Sunday 16 March 2014

Sooraqh Jinn 72

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह जिन्न ७२ -पारा २९

मुझे हैरत होती है की मुहम्मद के ज़माने में वह लोग थे जोकि  कुरानी बकवासों को मुहम्मद का परेशान ख़याल कह कर दीवाने को फ़रामोश कर दिया करते थे. वह इस लग्वियात को मुहम्मद का जेहनी खलल मानते थे, ये बातें खुद कुरआन में मौजूद है, इस लिए कि मुहम्मद लोगों की तनक़ीद को भी क़ुरआनी फरमान का हिस्सा बनाए हुए हैं. वह लोग क़ुरआनी फ़रमूदात पर ऐसे ऐसे जुमले कसते कि अल्लाह की बोलती बंद हो जाया करती थी.
 आज का इंसान उस ज़माने से कई गुना तालीम याफ्ता है,
जेहनी बलूगत भी लोगों की काफी बढ़ गई है,
तहकीकात और इन्केशाफत के कई बाब खुल चुके हैं,
फिर भी इन कुरानी लग्वियात को लोग अल्लाह का कलाम माने हुए हैं.और इस बात पर यकीन रक्खे हुए हैं.
जाहिल अवाम को मुआफ़ किया जा सकता है, मगर
कालेज के प्रोफ़ेसर, वोकला, जज और बुद्धि जीवी भी यक़ीन रखते हैं कि अल्लाह ने ही कुरआन को अपनी दानिश मंदी की शक्ल  बख्शी .
अभी तक मुहम्मद उन लोगों को पकड़ कर अपनी पब्लिसिटी कराते थे जो बकौल उनके अल्लाह के रसूल हुवा करते थे. अब उतर आए हैं जिन्नों और भूतों के स्तर पर.
वह इस तरह मक्र को वह आयतें बनाते है - - -

"आप कहिए कि मेरे पास इस बात की वह्यी आई है कि जिन्नात में से एक जमाअत ने कुरआन को सुना फिर उनहोंने कहा हमने एक अजीब कुरआन को सुना जो राहे रास्त बतलाता है सो हम तो ईमान ले आए और हम अपने रब के साथ किसी को शरीक नहीं करेंगे."

मुहम्मद कुरआन की डफली अब उस मखलूक से भी बजवा रहे हैं जो वहमों का वजूद है. जिन्न का वहम भी यहूदियों के मार्फ़त इस्लाम में आया है.

"और हमारे परवर दिगार की बड़ी शान है. इसने न किसी को बीवी बनाया न औलाद."

उस शख्स को अल्लाह के वजूद का वहम अगर है और इंसानी दिल ओ दिमाग रखने वाला अल्लाह है तो इंसानी जिसामत उसमें क्यूं नहीं? उसकी बीवी और बच्चे भी होना चहिए.
इस के बार अक्स जिन्नों मलायक की इफ़रात से मौजूदगी बगैर जिन्स के कैसे  मुमकिन है?

"और हम में जो अहमक हुए हैं वह अल्लाह की शान में बढ़ी हुई बात करते थे. और हमारा ख़याल था कि इंसान और जिन्नात कभी अल्लाह की शान में झूट बात न कहेंगे. और बहुत से लोग आदमियों में ऐसे थे कि वह जिन्नात में से बअजे लोगों की पनाह लिया करते थे, सो उन आदमियों ने इन जिन्नात लोगों की बाद दिमागी और बढ़ा दी."

क्या कहना चाहा है उम्मी ने? इसे कठ बैठे मुल्ला ही समझें.

"और हमने आसमान की तलाशी लेना चाहा, सो हमने इसको सख्त पहरों और शोलों में भरा हुवा पाया. और हम आसमान के मौकों में सुनने के लिए जा बैठा करते थे, सो अब जो कोई सुनता है एक तैयार शोला पाता है.."

अल्लाह को पोलिस बन कर अपने ही कायनात की तलाशी लेनी पड़ सकती है क्या? कि किसी मुजरिम ने आसमान में शोले छुपा रक्खा था. साथ साथ पहरे भी सख्ती के साथ थे, फिर भी अल्लाह हो असगर (यानी  शैतान) आसमान में कान  लगाए बैठा रहता है कि वहां की कोई खबर मिल सके.. गरज उसके लिए तारे का बुर्ज बना दिया  जो कि शोले के साथ उस का पीछा करता है. ये तमाम कहानियाँ गढ़ राखी हैं रसूल ने इसको  मुहम्मदी उम्मत वजू करके और टोपी लगा कर पढ़ती है.

"और हम नहीं जानते कि ज़मीन वालों को कोई तकलीफ़ पहुँचाना मक़सूद है या उनके रब ने उनको हिदायत लेने का एक किस्सा फरमाया."


ऐसे किस्सों से कुरआन भरा हुवा है, जिसे मुसलमान दिनों रात तिलावत करते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. इन्सान को विवेक का प्रयोग करना चाहिए।

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