Monday 23 June 2014

Soorah balad 90

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह बलद ९०   - पारा ३० 
(लअ उक्सिमो बेहाज़िल बलदे)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.
भारत की मरकजी सरकार और रियासती हुकूमतें भले ही मुस्लिम दुश्मन न हों, मगर यह मुस्लिम दोस्त भी नहीं. यह इलाकाई और कबीलाई तबकों की तरह मुसलमानों को भी छूट दिए हुए है कि मुसलमान सैकड़ों साल पुराने वहमों को ढ़ोते रहें. इन्हें शरई क़ानून के पालन की इजाज़त है, जो इंसानियत सोज़ है. पेश इमामों को और मुअज़ज़िनों को सरकार तनख्वाह मुक़र्रर किए हुए है कि वह मुसलामानों को पंज वक्ता खुराफात पढ़ाते रहे. मदरसों को तअव्वुन देती हैं कि वह हर साल निकम्मे और बेरोजगार पैदा करते रहें. मुसलमानों को नहीं मालूम कि उनका सच्चा हमदर्द कौन है. वह कुरआन को अपना राहनुमा समझते हैं जोकि दर असल उनके लिए ज़हर है. इसका कौमी और सियासी रहनुमा कोई नहीं है. इसे खुद आँखें खोलना होगा, तर्क इस्लाम करके मर्द ए सालह यानी मोमिन बनना होगा.   
  
"मैं क़सम खता हूँ इस शहर की,
और आपको इस शहर में लड़ाई हलाल होने वाली है,
और क़सम है बाप की और औलाद की,
कि हमने इंसान को बड़ी मशक्कत में पैदा किया है,
क्या वह ख़्याल करता है कि इस पर किसी का बस न चलेगा,
सूरह बलद ९०   - पारा ३० आयत (१-५)

कहता है हमने इतना वाफर मॉल खर्च कर डाला, क्या वह ये ख़याल करता है कि उसको किसी ने देखा नहीं,
क्या हमने उसको दो आँखें ,
और ज़बान और दो होंट नहीं दिए,
और हमने उसको दोनों रास्ते बतलाए,
सो वह शख्स घाटी से होकर निकला,
और आपको मालूम है कि घाटी क्या है,
और वह है किसी शख्स की गर्दन को गुलामी से छुड़ा देना है,
या खाना खिलाना फ़ाक़ा के दिनों में किसी यतीम रिश्तेदार को,.
या किसी खाक नशीन रिश्ते दार को.
सूरह बलद ९०   - पारा ३० आयत (६-१६)

"फिर इन लोगों में से न हुवा जो ईमान लाए  और एक दूसरे को फ़ह्माइश की, पाबन्दी की और एक दूसरे को तरह्हुम की फ़ह्माइश की, यही लोग दाहने वाले हैं,
और जो लोग हमारी आयातों के मुनकिर हैं वह बाएँ वाले हैं,
इन पर आग मुहीत होगी जिनको बन्द कर दिया जाएगा.
सूरह बलद ९०   - पारा ३० आयत (१७-२०)

नमाज़ियो !
देखिए कि अल्लाह साफ़ साफ़ अपने बाप और अपने औलाद की क़सम खा रहा है, जैसे कि मुहम्मद अपने माँ बाप को दूसरों पर कुर्बान किया करते थे, वैसे है तो ये उनकी ही आदतन क़सम जिसको बे खयाली में अल्लाह की तरफ़ से खा गए. हाँ, तुमको समझने की ज़रुरत है, इस बात को कि कुरआन किसी अल्लाह का कलाम नहीं बल्कि मुहम्मद की बकवास है.
अल्लाह कहता है कि उसने इंसान को बड़ी मशक्क़त से पैदा किया. है ना ये सरासर झूट कि इसके पहले मुहम्मद ने कहा था कि अल्लाह को कोई काम मुश्किल नहीं बस उसको कहना पड़ता है "कुन" यानि होजा, और वह हो जाता है. है न दोहरी बात यानी कुरानी तजाद यानी विरोधाभास. किसी खर्राच के खर्च पर मुहम्मद का कलेजा फट रहा है, कि शायद उसने अल्लाह का कमीशन नहीं निकाला. घाटी के घाटे और मुनाफ़े में अल्लाह क्या कह रहा है, सर धुनते रहो. मुहम्मद के गिर्द कोई भी मामूली वाकिया कुरआन की आयत बना हुवा है, जिसको तुम सुब्ह ओ शाम घोटा करते हो.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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