Tuesday 26 December 2017

Hindu Dharm Darshan119



गीता और क़ुरआन

>अर्जुन ने वहां पर दोनों पक्षो की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा, ताऊओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुरों और शुभचिंतकों को भी देखा.
>>(सरल स्वभाव अर्जुन कहता है - - -)
हे कृष्ण ! 
इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा संबंधियों को अपने समक्ष उपस्थित देख कर, मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुंह सूखा जा रहा है.
>>> मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, 
मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है. 
>>>>मैं यहाँ अब और खड़े रहने में असमर्थ हूँ. 
मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है. 
हे कृष्ण !
 मुझे तो केवल अमंगल के करण दिख रहे है. 
>>>>>हे कृष्ण ! 
इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का बद्ध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न, मैं उस से किसी प्रकार का विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ.  
 श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 1    श्लोक 26 -28 -29 -30- 31  

   श्री भगवान ने कहा --
>तुम पाण्डित्य पूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो, 
जो शोक करने योग्य नहीं. 
जो विद्वान् होते हैं, वह न तो जीवित के लिए,
 न ही मृत के लिए शोक करते हैं.  
*(भगवान अर्जुन को गुमराह कर रहे हैं ) 
>>जिस शरीर धारी आत्मा इस शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था में 
और फिर वृधा वस्था में निरंतर अग्रसर होता रहता है, 
उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है. 
धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता है.  
>>हे कुन्ती पुत्र ! 
सुख और दुःख का क्षणिक उदय और काल क्रम में उनका अन्तर्धान होना, 
सर्दी तथा गर्मी के ऋतुओं के आने जाने के सामान है.
हे भरतवंशी ! 
वे इन्द्रीयबोध से उत्पन्न होते हैं 
और मनुष्य को चाहिए कि अविचल भाव से उन्हें सहन करना सीखे.
श्रीमद् भगवद भगवद् गीता अध्याय 2     श्लोक 11-  13 -14  

*अर्जुन की ठोस मार्मिक और तार्तिक भावनाएं 
और कृष्ण के कुरुर और अमानवीय मशविरे? 
मनुवाद के इस घृणित विचारों से से गीता की शुरुआत होती है 
और अंत तक युद्ध-पाप का दमन गीता नहीं छोडती. 

और क़ुरआन कहता है - - - 
''निकल पड़ो थोड़े से सामान से या ज़्यादः सामान से और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जेहाद करो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम यक़ीन करते हो.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४१)

''जो लोग अल्लाह और कयामत के दिन पर ईमान रखते हैं वह अपने माल ओ जान से जेहाद करने के बारे में आप से रुखसत न मांगेंगे अलबत्ता वह लोग आप से रुखसत मांगते हैं जो अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान नहीं रखते और इन के दिल शक में पड़े हैरान हैं.
''सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४५)

''आप कह दीजिए तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियां और तुम्हारा कुनबा और तुम्हारा माल जो तुमने कमाया और वह तिजारत जिस में से निकासी करने का तुम को अंदेशा हो और वह घर जिसको तुम पसंद करते हो, 
तुमको अल्लाह और उसके रसूल से और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादः प्यारे हों तो मुन्तज़िर रहो, यहाँ तक की अल्लाह अपना हुक्म भेज दे. और बे हुकमी करने वाले को अल्लाह मक़सूद तक नहीं पहुंचता'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२४)

इन्तहा पसंद मुहम्मद, ताजदारे मदीना, सरवरे कायनात, न खुद चैन से बैठते कभी न इस्लाम के जाल में फंसने वाली रिआया को कभी चैन से बैठने दिया. अगर कायनात की मख्लूक़ पर क़ाबू पा जाते तो जेहाद के लिए दीगर कायनातों की तलाश में निकल पड़ते. अल्लाह से धमकी दिलाते हैं कि तुम मेरे रसूल पर अपने अज़ीज़ तर औलाद, भाई, शरीके-हयात और पूरे कुनबे को कुर्बान करने के लिए तैयार रहो, वह भी बमय अपने तमाम असासे के साथ जिसे तिनका तिनका जोड़ कर आप ने अपनी घर बार की खुशियों के लिए तैयार किया हो. इंसानी नफ्सियात से नावाकिफ पत्थर दिल मुहम्मद क़ह्हार अल्लाह के जीते जागते रसूल थे. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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