मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस)
मुसम्मी '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन '' का है.
रूरह ताहा २०
TaHa
(दूसरी किस्त)
मूसा जब अल्लाह के हुज़ूर में हाज़िर होते हैं तो अल्लाह उनसे पूछता है कि ''ऐ मूसा आपको अपनी कौम से जल्दी आने का क्या सबब हुवा ? उन्हों ने जवाब दिया वह लोग यहीं तो हैं, मेरे पीछे और मैं आपके पास जल्दी से चला आया कि आप खुश होंगे. इरशाद हुवा कि हमने तो तुम्हारी कौम को तुम्हारे बाद मुब्तिला कर दिया और उनको सामरी ने गुमराह कर दिया, ग़रज़ मूसा ग़ुस्से और रंज से भरे हुए अपनी कौम की तरफ वापस आए, फरमाने लगे, ऐ मेरी कौम ! क्या तुम्हारे रब ने तुमसे एक अच्छा वादा नहीं क्या था? क्या तुम पर ज़्यादा ज़माना गुज़र गया? या तुमको ये मंज़ूर हुवा कि तुम पर तुम्हारे रब का गज़ब नाज़िल हो? इस लिए तुमने मुझ से जो वादा किया था, उसको खिलाफ किया था. - - - लेकिन कौम के ज़ेवर में से हम पर बोझ लद रहा था. सो हमने उसको आग में डाल दिया, फिर सामरी ने डाल दिया, फिर उसने उन लोगों के लिए एक बछड़ा ज़ाहिर किया कि वह एक क़ालिब था जिसमे एक आवाज़ आई थी. फिर वह कहने लगे तुम्हारे और मूसा का भी तो माबूद यही है - - - ''रूरह ताहा २० _ आयत (८१-१००)आप कुच्छ समझे? मैं भी कुछ नहीं समझ सका. तहरीर हूबहू क़ुरआनी है. यह ऊट पटांग न समझ में आने वाली आयतें मुहम्मद उम्मी की हैं, न कि किसी खुदा की. इनमें दारोग गो, मुतफ़न्नी आलिमों ने सर मगजी करके तहरीर को बामअने ओ मतलब बनाने की नाकाम कोशिश की है. सवाल उठता है कि अगर इसमें मअने ओ मतलब पैदा भी हो जाएँ तो पैगाम क्या मिलता है इन्सान को ?यह सब तौरेती वक़ेआत का नाटकीय रूप है.
मेरे भाई क्या कभी आप ने इस कुरआन की हकीक़त जानने की कोशिश की है? जो आप को गुमराह किए हुए है. इसमें कोई भी बात आपको फ़ायदा पहुचने वाली नहीं है, अलावा इसके कि ज़िल्लत को गले लगाने का इलज़ाम तुम पर आयद हो. आखिर ये ओलिमा इसे किस बुन्याद पर कुरआनऐ-हकीम कहते हैं, कोई हिकमत की बात है इसमें? ज़ाती तौर पर हमें कोई ज़िल्लत हो तो काबिले बर्दाश्त है मगर क़ौमी तौर की बे आब्रूई किन आँखों से देखा जाय. जागो, देखो कि ज़माना कहाँ जा रहा हैऔर मुसलमान दिन बदिन पिछड़ता जा रहा है. आज के युग में इसका दोष इस्लाम फरोशों पर जाता है जो आप के पुराने मुजरिम हैं.
''जो लोग कुरआन से मुंह फेरेंगे सो वह क़यामत के रोज़ बड़ा बोझ लादेंगे, वह इस अज़ाब में हमेशा रहेगे. बोझ क़यामत के रोज़ उनके लिए बुरा होगा. जिस रोज़ सूर में फूंक मारी जायगी और हम उस रोज़ मुजरिम को मैदान हश्र में इस हालत में जमा करेंगे कि अंधे होंगे, चुपके चुपके आपस में बातें करेंगे कि तुम लोग सिर्फ दस रोज़ रहे होगे, जिस की निस्बत वह बात चीत करेंगे, उनको हम खूब जानते हैं. जबकि उन सब में का सैबुल राय यूं कहता होगा, नहीं तुम तो एक ही रोज़ में रहे और लोग आप से पहाड़ों के निस्बत पूछते हैं, आप फरमा दीजिए कि मेरा रब इनको बिलकुल उदा देगा, फिर इसको इसको मैदान हमवार कर देगा.जिसमें तू न हम्वारी देखेगा न कोई बुलंदी देखेगा. - - - और उस वक़्त तमाम चेहरे हय्युल क़य्यूम के सामने झुके होंगे. ''इसके बाद मुहम्मद इसी टेढ़ी मेढ़ी भाषा में क़यामत बपा करते हैं, फरिश्तों की तैनाती और सूर की घन गरज भी होती है और ख़ामोशी का यह आलम होता है कि सिर्फ़ पैरों की आहट ही सुनाई देती है, बेसुर तन की गप जो उनके जी में आता है बकते जाते हैं और वह गप कुरआन बनती जाती है.
ऐसे कुरान से जो मुँह फेरेगा वह रहे रास्त पा जायगा और उसकी ये दुन्या संवर जायगी. वह मरने के बाद अबदी नींद सो सकेगा कि उसने अपनी नस्लों को इस इस्लामी क़ैद खाने से रिहा करा लिया.रूरह ताहा २० _ आयत (१०१-११२)इंसान को और इस दुन्या की तमाम मख्लूक़ को ज़िन्दगी सिर्फ एक मिलती है, सभी अपने अपने बीज इस धरती पर बोकर चले जाते हैं और उनका अगला जनम होता है उनकी नसले और पूर्व जन्म हैं उनके बुज़ुर्ग. साफ़ साफ़ जो आप को दिखाई देता है, वही सच है, बाकी सब किज़्ब और मिथ्य है. कुदरत जिसके हम सभी बन्दे है, आइना की तरह साफ़ सुथरी है, जिसमे कोई भी अपनी शक्ल देख सकता है. इस आईने पर मुहम्मद ने गलाज़त पोत दिया है, आप मुतमईन होकर अपनी ज़िन्दगी को साकार करिए, इस अज्म के साथ कि इंसान का ईमान ए हाक़ीकी ही सच्चा ईमन है, इस्लाम नहीं. इस कुदरत की दुन्या में आए हैं तो मोमिन बन कर ज़िन्दगी गुज़ारिए,आकबत की सुबुक दोशी के साथ.
मेरे भाई क्या कभी आप ने इस कुरआन की हकीक़त जानने की कोशिश की है? जो आप को गुमराह किए हुए है. इसमें कोई भी बात आपको फ़ायदा पहुचने वाली नहीं है, अलावा इसके कि ज़िल्लत को गले लगाने का इलज़ाम तुम पर आयद हो. आखिर ये ओलिमा इसे किस बुन्याद पर कुरआनऐ-हकीम कहते हैं, कोई हिकमत की बात है इसमें? ज़ाती तौर पर हमें कोई ज़िल्लत हो तो काबिले बर्दाश्त है मगर क़ौमी तौर की बे आब्रूई किन आँखों से देखा जाय. जागो, देखो कि ज़माना कहाँ जा रहा हैऔर मुसलमान दिन बदिन पिछड़ता जा रहा है. आज के युग में इसका दोष इस्लाम फरोशों पर जाता है जो आप के पुराने मुजरिम हैं.
''जो लोग कुरआन से मुंह फेरेंगे सो वह क़यामत के रोज़ बड़ा बोझ लादेंगे, वह इस अज़ाब में हमेशा रहेगे. बोझ क़यामत के रोज़ उनके लिए बुरा होगा. जिस रोज़ सूर में फूंक मारी जायगी और हम उस रोज़ मुजरिम को मैदान हश्र में इस हालत में जमा करेंगे कि अंधे होंगे, चुपके चुपके आपस में बातें करेंगे कि तुम लोग सिर्फ दस रोज़ रहे होगे, जिस की निस्बत वह बात चीत करेंगे, उनको हम खूब जानते हैं. जबकि उन सब में का सैबुल राय यूं कहता होगा, नहीं तुम तो एक ही रोज़ में रहे और लोग आप से पहाड़ों के निस्बत पूछते हैं, आप फरमा दीजिए कि मेरा रब इनको बिलकुल उदा देगा, फिर इसको इसको मैदान हमवार कर देगा.जिसमें तू न हम्वारी देखेगा न कोई बुलंदी देखेगा. - - - और उस वक़्त तमाम चेहरे हय्युल क़य्यूम के सामने झुके होंगे. ''इसके बाद मुहम्मद इसी टेढ़ी मेढ़ी भाषा में क़यामत बपा करते हैं, फरिश्तों की तैनाती और सूर की घन गरज भी होती है और ख़ामोशी का यह आलम होता है कि सिर्फ़ पैरों की आहट ही सुनाई देती है, बेसुर तन की गप जो उनके जी में आता है बकते जाते हैं और वह गप कुरआन बनती जाती है.
ऐसे कुरान से जो मुँह फेरेगा वह रहे रास्त पा जायगा और उसकी ये दुन्या संवर जायगी. वह मरने के बाद अबदी नींद सो सकेगा कि उसने अपनी नस्लों को इस इस्लामी क़ैद खाने से रिहा करा लिया.रूरह ताहा २० _ आयत (१०१-११२)इंसान को और इस दुन्या की तमाम मख्लूक़ को ज़िन्दगी सिर्फ एक मिलती है, सभी अपने अपने बीज इस धरती पर बोकर चले जाते हैं और उनका अगला जनम होता है उनकी नसले और पूर्व जन्म हैं उनके बुज़ुर्ग. साफ़ साफ़ जो आप को दिखाई देता है, वही सच है, बाकी सब किज़्ब और मिथ्य है. कुदरत जिसके हम सभी बन्दे है, आइना की तरह साफ़ सुथरी है, जिसमे कोई भी अपनी शक्ल देख सकता है. इस आईने पर मुहम्मद ने गलाज़त पोत दिया है, आप मुतमईन होकर अपनी ज़िन्दगी को साकार करिए, इस अज्म के साथ कि इंसान का ईमान ए हाक़ीकी ही सच्चा ईमन है, इस्लाम नहीं. इस कुदरत की दुन्या में आए हैं तो मोमिन बन कर ज़िन्दगी गुज़ारिए,आकबत की सुबुक दोशी के साथ.
जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान
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इब्लीस शैतान नहिं, वह पहला क्रांतिकारी था,जिसने अल्लाह के दोगले आदेश को मानने से इन्कार कर दिया था। अल्लाह हमेशा कहता था,मेरे सिवाय किसी को भी सज़दा न करो,यह शिर्क है,और आदम को पैदा कर उसे भी सज़दा करने का दोगला हुक्म फ़रिस्तों को फ़रमा दिया।
ReplyDeleteसभी डरपोक फ़रिस्तों ने मान लिया, पर इब्लीस नें इस दोगलेपन का विरोध किया। आज भी वह शैतान शब्द के अन्याय पूर्ण ठप्पे को सह रहा है।
ऐसा मनमौजी अल्लाह यदि आखरत के दिन अपने नियम बदल दे,और जिसने भी लाइल्लाह्………॥ किया जह्न्नुम में झोक दे।
सायबर यज़ीद कैरानवी,
अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
(साल्लाह अपनी ही पैदा की गई मानव-जाति को चैलेंज ठोकता है)
अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता
(कितने सबूत चाहिए,चल अल्लाह को बोल एक टिप्पणी मार यहां)
अल्लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
(साल्लाह विरोध का 'आभास' क्या, प्रमाणिक विरोध ही विरोध दर्ज़ है)
अल्लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्तक केवल चार
(साल्लाह कभी कहता है,बहुत सी भेजी,कभी चार,तो चारों को सही तो मान )आसमानी नहिं हरे रंग की दिखती है।
अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में
(साल्लाह कभी वैज्ञानिकों की बातों का सहारा लेता है,कभी वैज्ञानिकों के विरोध में खडा होता है,तेरा क्या भरोसा?)
अल्लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी
(साल्लाह तूं ही पैदा करे, जीवित भी रखे और कहे कभी शांति नहीं मिलेगी। जब तक यहूदी इस ज़मी पर रहेंगे, अल्लाह तुझे शांति नहीं मिलेगी )
क़ुरआन में ताजाद ((विरोधाभास) का यह सब से बड़ा निशान है. दीने इस्लाम में तो इतनी ज़बरदस्ती है कि इसे मानो या जज्या दो या गुलामी कुबूल करो या तो फिर इस के मुंकिर होकर जान गंवाओ.
ReplyDelete"दीन में ज़बरदस्ती नहीं."ये बात उस वक़्त कही गई थी जब मुहम्मद की मक्का के कुरैश से कोर दबती थी. जैसे आज भारत में मुसलामानों की कोर दब रही है, वर्ना इस्लाम का असली रूप तो तालिबानी ही है.
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 256)
दीन की बातें छोड़ कर मुहम्म्द्द फिर किस्सा गोई पर आ जाते हैं। अल्लाह से एक क़िस्सा गढ़वाते है क़िस्सा को पढ़ कर आप हैरान होंगे कि क़िस्सा गो मकानों को उनकी छतों पर गिरवाता है. कहानी पढिए, कहानी पर नहीं, कहानी कार पर मुकुरइए और उन नमाजियों पर आठ आठ आंसू बहाइए जो इसको अनजाने में अपनी नमाजों में दोहरात्ते हैं. उनके ईमान पर मातम कीजिए जो ऐसी अहमकाना बातों पर ईमान रखते हैं. फिर दिल पर पत्थर रख कर सब्र कर डालिए कि वह मय अपने बल बच्चों के, तालिबानों का नावाला बन्ने जा रहे हैं.
मुहम्मदी अल्लाह अपनी कुरानी आयातों की खामियों की जानकारी देता है कि इन में कुछ साफ़ साफ़ हैं और यही क़ुरआन की धुरी हैं और कुछ मशकूक हैं जिनको शर पसंद पकड़ लेते हैं. इस बात की वज़ाहत आलिमान क़ुरआन यूँ करते हैं कि क़ुरआन में तीन तरह की आयतें हैं---
ReplyDelete१- अदना (जो साफ़ साफ़ मानी रखती हैं)
२- औसत (जो अधूरा मतलब रखती हैं)
३- तवास्सुत ( जो पढने वाले की समझ में न आए और जिसको अल्लाह ही बेहतर समझे।)
सवाल उठता है कि एक तरफ़ दावा है हिकमत और हिदायते नेक से भरी हुई क़ुरआन अल्लाह की अजीमुश्शान किताब है और दूसरी तरफ़ तवस्सुत और औसत की मजबूरी ? अल्लाह की मुज़बज़ब बातें, एहकामे इलाही में तजाद, हुरूफ़े मुक़त्तेआत का इस्तेमाल जो किसी मदारी के छू मंतर की तरह लगते हैं। दर अस्ल कुरआन कुछ भी नहीं, मुहम्मद के वजदानी कैफ़ियत में बके गए बड का एह मज्मूआ है। इन में ही बाज़ बातें ताजाऊज़ करके बे मानी हो गईं तो उनको मुश्तबाहुल मुराद कह कर अल्लाह के सर हांडी फोड़ दिया है। वाज़ह हो कि जो चीजें नाज़िल होती हैं वह बला होती हैं. अल्लाह की आयतें हमेशा नाज़िल हुई हैं. कभी प्यार के साथ बन्दों के लिए पेश नहीं हुईं. कोई कुरानी आयत इंसानी ज़िन्दगी का कोई नया पहलू नहीं छूती, कायनात के किसी राज़ हाय का इन्क्शाफ़ नहीं करती, जो कुछ इस सिलसिले में बतलाती है दुन्या के सामने मजाक बन कर रह जाता है. बे सर पैर की बातें पूरे कुरआन में भरी पड़ी हैं, बसकी कुरआन की तारीफ, तारीफ किस बात की तारीफ उस बात का पता नहीं. इस की पैरवी मुल्ला, मौलवी, ओलिमाए दीन करते हैं जिन की नक़ल मुस्लमान भी करता है. आम मुस्लमान नहीं जनता की कुरआन में क्या है खास जो कुछ जानते हैं वह सोचते है भाड़ में जाएँ हम बचे रहें इन से यही काफी है।
हज़रात इब्राहीम एक परदेसी थे, बद हाली और परेशानी की हालत में अपनी बीवी सारा को किसी मजबूरी के तहत अपनी बहन बतला कर मिसरी बादशाह फ़िरौन की पनाह में रहा करते थे. तौरेत के मुताबिक सारा हसीन थी और बादशाह कि मंजूरे नज़र हो कर उसके हरम में पनाह पा गई थी. सच्चाई खुलने पर हरम से बहार की गई और साथ में इब्राहीम और उनका भतीजा लूत भी. उसके बाद दोनों चचा भतीजों ने मवेशी पालन का पेशा अपनाया और कामयाब गडरिया हुए.बनी इस्राईल की शोहरत की वजेह तारीख़ में फिरअना के वज़ीर यूसुफ़ की ज़ात से हुई. युसूफ इतना मशहूर हुवा कि इसके बाप दादों का नाम तारिख में आ गया, वर्ना याकूब, इशाक , इस्माईल, और इब्राहीम जैसे मामूली लोगों का नामो निशान भी कहीं न होता.मानव की रचना कालिक अवस्था में इब्राहीम को जो होना चाहिए था वोह थे, न इतने सभ्य कि उन्हें पैगाबर या अवतार कहा जाए, ना ही इतने बुरे कि जिन्हें अमानुष कहा जाय. मानवीय कमियाँ थीं उनमें कि अपनी बीवी को बहन बना कर बादशाह के शरण में गए और अपनी धर्म पत्नी को उसके हवाले किया. दूसरा उनका जुर्म ये था कि अपनी दूसरी गर्भ वती पत्नी हाजरा को पहली पत्नी सारा के कहने पर घर से निकल बाहर कर दिया था, जो कि रो धो कर सारा से माफ़ी मांग कर वापस घर आई. तीसरा जुर्र्म था कि दोबारा इस्माईल के पैदा हो जाने के बाद हाजरा को मय इस्माईल के घर से दूर मक्का के पास एक मरु खंड में मरने के लिए छोड़ आए. उनका चौथा बड़ा जुर्म था सपने के वहम को साकार करना और अपने बेटे इशाक को अल्लाह के नाम पर कुर्बान करना, जो मुसलमानों का अंध विश्वास बन गया है और हजारो जानवर हर साल मारे जाते हैं.
ReplyDeleteअब लिखते होः
ReplyDeleteक़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस)
मुसम्मी '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
पहले लिखते थेः
मौलाना शौकत अली थानवी ने ईमानदारी से इसको शब्दार्थ में परिवर्तित किया
जनाब कोई तीसरा थानवी भी है उसका नाम लिखना मेरा मामा थानवी
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ReplyDeleteहज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का पहला जुर्म और झूट कि उन्होंने अपनी बीवी सारा को बादशाह के सामने अपनी बहेन बतलाया और उसको बादशाह की खातिर हरम के हवाले किया.
ReplyDeleteहज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दूसरा जुर्म कि अपनी बीवी हाजरा और बच्चे इस्माईल को दूर बिया बान सेहरा में मर जाने के छोड़ आए.
हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीसरा जुर्म झूट का कि उन्हों ने अपने बेटे इस्हाक़ को हलाल किया था, दर असल उन्हों ने हलाल तो किया था भेड़ा ही मगर झूट की ऐसी बुन्याद डाली की सदियों तक उस पर ख़ूनी जुर्म का अमल होता रहा. खुद मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब मनौती की बुन्याद पर मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला को क़ुर्बान करने जा रहे थे मगर चाचाओं के आड़े आने पर सौ ऊँटों की कुर्बानी देकर अब्दुल्ला की जान बची. सोचिए कि हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एक झूट पर हजारों सालों में कितनी जानें चली गई होंगी. हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलाम झूट बोले, इस्हाक़ का भेड़ा बन जाना गैर फितरी बात है, अगर अल्लाह मियाँ भी रूप धारण करके, आकर गवाही दें तो मेडिकल साइंस इस बात को नहीं मानेगी. अकीदा जलते तवे पर पैजामें जलाता रहे.
ऐसे अरबी झूठे और मुजरिम पुरुषों पर हम नमाज़ों के बाद दरूद ओ सलाम भेजते हैं- - - अल्ला हुम्मा सल्ले . . . अर्थात '' ऐ अल्लाह मुहम्मद और उनकी औलादों पर रहमत भेज जिस तरह तूने रहमत भेजी थी इब्राहीम और उनकी औलादों पर. बे शक तू तारीफ़ किया गया है, तू बुज़ुर्ग है.''
मुसलमानों ! अपने बाप दादाओं के बारे में सोचो जिनको तुमने अपनी आँखों से देखा है कि किन किन मुसीबतों का सामना करके तुमको बड़ा किया है और उन बुजुगों को भो ज़ेहन में लाओ जिनका खूने-अक़दस तुम्हारे रगों में दौड़ रहा है और जिनको तुमने देखा भी नहीं, हजारों साल पहले या फिर लाखों साल पहले कैसी कैसी मुसीबतों का सामना करते हुए तूफानों से, सैलाबों से, दरिंदों से पहाड़ी खोह और जंगलों में रह कर तुमको बचाते हुए आज तक जिंदा रक्खा है क्या तुम उनको फरामोश करके मुहम्मद की गुमराहियों में पड़ गए हो? अब्राहम की यहूदी नस्लों के लिए और अरबी कुरैशियों के लिए दिन में पाँच बार दरूद ओ सलाम भेजते हो? शर्म से डूब मरो।
सायबर यज़ीद कैरानवी,
ReplyDeleteअल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
(साल्लाह अपनी ही पैदा की गई मानव-जाति को चैलेंज ठोकता है)
अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता
(कितने सबूत चाहिए,चल अल्लाह को बोल एक टिप्पणी मार यहां)
अल्लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
(साल्लाह विरोध का 'आभास' क्या, प्रमाणिक विरोध ही विरोध दर्ज़ है)
अल्लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्तक केवल चार
(साल्लाह कभी कहता है,बहुत सी भेजी,कभी चार,तो चारों को सही तो मान )आसमानी नहिं हरे रंग की दिखती है।
अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में
(साल्लाह कभी वैज्ञानिकों की बातों का सहारा लेता है,कभी वैज्ञानिकों के विरोध में खडा होता है,तेरा क्या भरोसा?)
अल्लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी
(साल्लाह तूं ही पैदा करे, जीवित भी रखे और कहे कभी शांति नहीं मिलेगी। जब तक यहूदी इस ज़मी पर रहेंगे, अल्लाह तुझे शांति नहीं मिलेगी )
यज़िद की 19 थी औलाद,कैरांडवी,
ReplyDeleteचाचा अलबेदार की नकल पे ला रहे हो अपने मामा का अनुवाद,
अबे गधे,ये मोमिन खुद चाचा अलबेदार है,और तेरा…………।
कैरानावी मुस्लिम ब्लोगर गैंग का सरगना है.इसका काम हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करवाना है.इसने एक बहुरूपिये की तरह कई नामों से फर्जी ब्लॉग बना रखे है ,जैसे इम्पेक्ट .सत्यागौतम और नवलकिशोर आदि .इसे अचानक एक ऎसी बीमारी लग्गयी कि यह खुद को इस्लाम का झंडा बरदार समझाने लगा है .और समझता है बाक़ी के सारे लोग मूर्ख हैं ,और वही इस्लाम का एकमात्र विद्वान् है.इसलिए कैरानावी इब्लीस की तरह किसी भी ब्लॉग में प्रकट हो जाता है ,और अपने गिनेचुने मुद्दों को लेकर किसी को भी चेलेंज करता रहता है .इसके पीछे इसके आका हैं ,जो देश के बाहर से इसको निर्देश देते रहते हैं .एक दो दिनों से मैं देख रहा हूँ कि कैरानावी चेलेंज के साथ साथ गालियाँ भी देने लगा है.इसलिए मैंने निर्णय लिया कि अगर इस पाखंडी को मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया गया तो यह उर भी उद्दंड हो जाएगा ,औरयह समझाने लगेगा कि कोई इसका जवाब देने वाला नहीं है.और यह जो बकवास करता है वह सच है .लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूँगा .
ReplyDeleteआप जिस तरह से रेफ़रेंस और उद्धरण देकर उसके तथाकथित चैलेंज की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं, वह आपके ही बस की बात है। आपकी तथ्यात्मक बातों के जवाब में उनके पास सिर्फ़ कुतर्क, गालियाँ और फ़र्जी चैलेंज ही हैं… कोई ठोस बहस नहीं, क्योंकि उसके लिये इल्म होना जरूरी है।
ReplyDeleteकैरानवी तो वह मेरी ज्ञान वाटिका के ख़रगोश हैं, उनकी उछल-कूद से हमारा दिल भी बहलता है और कुरआन की तो…होती रहती है। कैरानवी को जवाब देने वाले सदा वहां मौजूद रहते हैं। कभी कभी मैं खुद भी पहुंच जाता हूं ताकि मोमिन साहब लगे रहें और उन्हें देखकर दूसरे भी प्रेरित हों।
ReplyDeleteकेवल मानने के लिये तो मोटे तौर की जानकारी से भी काम चल जाता है लेकिन जिस विचार में कोई कमी न हो उसमें दोष ढूंढने के लिये बहुत गहराई तक जाना पड़ता है । जब आदमी गहराई में उतर जाता है तो सत्य देर सवेर उसपर प्रकट हो जाता है । मोमिन पर प्रकट हो चुका है। और हम तो फ़ंसे हुए है। पैसा आना बंद हो जायेगा।
-डा जमाल
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ReplyDeleteमोनिन जी!
ReplyDeleteसावधान, कैराना मुज़फ्फर नगर (उ.प्र) से गधा कैरान्वी फिर आपका खेत चरने आ गया है.
जनाब कैरंवी साहब!
ReplyDeleteमौलाना अशरफ अली थानवी को कभी बेखयाली में शौकत अली थानवी लिख गए होंगे, इस चूक की इत्तेला देने का शुक्रिया. अच्छा लगा की आप मेरे मज़ामीन इतनी गौर से पढ़ते हैं. उम्मीद है एक दिन मोमिन का ईमान लाकर अपनी नस्लों के हक में कुछ अच्छा कम भी करेंगे .
अब इस रटन्त को बदलिए ''चाचा अलबेदार की नकल पे ला रहे हो अपने मामा का अनुवाद, शब्द xgalatx तक तुम्हें ठीक (ग़लत ghalat) से नहीं पता, चले हो अल्लाह कुरआन की बातें करने, अभी समय है आओ''
अल्बेदर भी मेरा जी ब्लॉग था, आप लोग बेदार नहीं हुए तो इसे हर्फे-ग़लत कर दिया. पढ़ते रहिए.
जनाब कैरंवी साहब!
ReplyDeleteमौलाना अशरफ अली थानवी को कभी बेखयाली में शौकत अली थानवी लिख गए होंगे, इस चूक की इत्तेला देने का शुक्रिया. अच्छा लगा की आप मेरे मज़ामीन इतनी गौर से पढ़ते हैं. उम्मीद है एक दिन मोमिन का ईमान लाकर अपनी नस्लों के हक में कुछ अच्छा कम भी करेंगे .
अब इस रटन्त को बदलिए ''चाचा अलबेदार की नकल पे ला रहे हो अपने मामा का अनुवाद, शब्द xgalatx तक तुम्हें ठीक (ग़लत ghalat) से नहीं पता, चले हो अल्लाह कुरआन की बातें करने, अभी समय है आओ''
अल्बेदर भी मेरा जी ब्लॉग था, आप लोग बेदार नहीं हुए तो इसे हर्फे-ग़लत कर दिया. पढ़ते रहिए.
ये क्या पागलपन है एक तो जाकिर नाइक जिसके दिमाग में भूसा भरा है और ये दूसरा असरफअली है जिनका भी कोई स्क्रू ढीला लगता है एक को संस्कृत ठीक से नहीं आती और एक को अरबी का मतलब करना नहीं आता दोनों ही अपने अपने नाम का प्रचार करने में लगे है में कोई इस्लाम या मुसलमानों का विरोधी नहीं हूँ लेकिन ऐसे लोगो का विरोधी हूँ जो की किसी भी धर्म ग्रन्थ का अपमान करके अपने आप को बड़ा चतुर और समजदार बताते है इन लोगो की आदत होती है ये किसी भी धर्म ग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया करते लेकिन ये धर्म ग्रन्थ इस लिए पढ़ते है की उसमे से कुछ ऐसा मसाले दार मतलब निकला जाये कि दुनिया अचंभित हो जाये ये सब दया के पात्र है और इनका साथ देनेवाले विकृत मनो विचार वाले कहलायेंगे (अगर जाकिर नाइक को संस्कृत और असरफ को अरबी उर्दू सीखनी है तो में सिखाने के लिया तैयार हु बिलकुल निःशुल्क ) चाणक्य के अनुसार मूर्खो से कोई भी सम्बन्ध रखने वाला अंत में संकट ही पाता है तो असरफ अली और जाकिर नाइक ये दोनों को एक दुसरे पर कीचड़ उछालना है तो उछाले लेकिन इनके पास खड़े रह कर अपने ऊपर भी किचल उचालेंगा ये तय है तो इनसे दूर ही रहा जाये यही बुध्धिमानी है असरफ अली मुस्लिम हो कर मुस्लिम के उपास्यो को निचा दिखा रहा है तो क्या ये दुसरे धमो की इज्जत करेगा ? इनसे पूछो की फिर किसकी उपासना की जाये? क्या तुम लोगो की ? इससे पूछना भी बेकार होगा की, तुम्हारे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के बारेमे क्या विचार है? या तो गरीब नवाज़ के बारे में क्या विचार है? विवेकानंद के बारेमे या तो सूफी संत निजामुदीन के बारेमे? कबीर, तुलसीदास, मीराबाई के बारे में ?क्यों की ये दोनों बकवास ही करने वाले है. मैं तो हिन्दू, जैन, बुद्ध, सिख, इसाई और सबको इनसे दूर ही रहने की सलाह देता हूँ . - श्री दासअवतार
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