मेरी तहरीर में - - -
क्या आपने कभी गौर किया है कि सारी दुन्या में मुसलमान पसमान्दा क्यूं हैं? सारी दुन्या को छोड़ें अपने मुल्क भारत में ही देखें कि मुसलमान एक दो नहीं हर मैदान में सब से पीछे हैं. मैं इस वक़्त इस बात का एहसास शिद्दत के साथ कर रहा हूँ . क्यों कि मैं Ved is at your door '' के मुतहर्रिक स्वर्गीय स्वामी चिन्मयानानद के आश्रम के एक कमरे में मुकीम हूँ,जो कि हिमालयन बेल्ट हिमांचल प्रदेश में तपोवन के नाम से मशहूर है. साफ सफ्फफ़, और शादाब, गन्दगी का नाम निशान नहीं, वाकई यह जगह धरती पर एक स्वर्ग जैसी है. ईमान दारी ऐसी कि कमरों में ताले की ज़रुरत नहीं. सिर्फ सौ रुपे में रिहाइश और खुराक बमय चाय या कोफी. ज़रुरत पड़े तो इलाज भी मुफ्त. मैं यहाँ अपने मोमिन के नाम से अजादाना रह रहा हूँ, उनके दीक्ष/ प्रोग्रामो में हिस्सा लेकर अपनी जानकारी में अज़ाफा भी कर रहा हूँ. इनकी शिक्ष\ में कहीं कोई नफरत का पैगाम नहीं है. जदीद तरीन इंसानी क़द्रों के साथ साथ धर्म का ताल मेल भी, आप उनसे खुली बहेस भी कर सकते हैं. मैं ने यहाँ हिन्दू धर्म ग्रंथों का ज़खीरा पाया और जी भर के मुतालिया किया.
इसी तरह मैंने कई मंदिर, गुरु द्वारा, गिरजा देखा बहाइयों का लोटस टेम्पिल देखा, ओशो आश्रम में रहा , इन जगहों में दाखिले पर जज़्बाए एहतराम पैदा होता है , इसके बरक्स मुसलामानों के दरे अक़दस पर दिल बुरा होता है और नफरत के साथ वापसी होती है. चाहे वह ख्वाजा अजमेरी की दरगाह हो या निज़ामुद्दीन का दर ए अक़दस हो, जामा मस्जिद हो या मुंबई का हाजी अली. जाने में कराहियत होती है. आने जाने के रास्तों पर गन्दगी के ढेर के साथ साथ भिखारियों, अपाहिजों और कोढियों की मुसलसल कतारें राह पार करना दूभर कर देती है. मुजाविर (पण्डे) अकीदत मंदों की जेबें ख़ाली करने पर आमादः रहते हैं. मेरी अकीदत मन्द अहलिया निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पहुँचने से पहले ही भैंसे की गोश्त की सडांध, और गंदगी के बाईस उबकाई करने लगीं. बेहूदे फूल फरोश फूलों की डलिया मुँह पर लगा देते है. वह बगैर ज़्यारत किए वापस हुईं . इसी तरह अजमेर की दरगाह में लगे मटकों का पानी पीना गवारा न किया, सारी आस्था वहाँ बसे भिखारियों और हराम खोर मुजविरों के नज़र हो गई.
औरों के और मुसलामानों के ये कौमी ज्यारत गाहें, कौमों के मेयार का आइना दार हैं.. मुसलमान आज भी बेहिस हैं जिसकी वजेह है दीन इस्लाम. दूसरी कौमों ने परिवर्तन के तक़ाज़ों को तस्लीम कर लिया है और वक़्त के साथ साथ क़दम मिला कर चलती हैं. मुसलमान क़ुरआनी झूट को गले में बांधे हुए है. क़ुरआनी और हदीसी असरात ही इनके तमद्दुनी मर्काज़ों पर ग़ालिब है. मुसलमान दिन में पाँच बार मुँह हाथ और पैरों को धोता है जिसे वजू कहते हैं और बार बार तनासुल (लिंग) को धोकर पाक करता है, मगर नहाता है आठवें दिन जुमा जुमा. कपडे साफी हो जाते हैं मगर उसमें पाकी बनी रहती है. नतीजतन उसके कपडे और जिस्म से बदबू आती रहती है. जहाँ जायगा अपनी दीनी बदबू के साथ. मुसलामानों को यह वर्सा मुहम्मद से मिला है. वह भी गन्दगी पसंद थे कई हदीसें इसकी गवाह हैं, अक्सर बकरियों के बाड़े में नमाज़ पढ़ लिया करते.
दूसरी बात ज़कात और खैरात की रुकनी पाबंदी ने कौम को भिखारी ज्यादा बनाया है जिसकी वजेह से मेहनत की कमाई हुई रोटी को कोई दर्जा ही नहीं मिला. सब क़ुरआनी बरकत है, जहां सदाक़त नहीं होती वहां सफाई भी नहीं होती और न कोई मुसबत अलामत पैदा हो पाती है.
आश्रम में कव्वे, कुत्ते कहीं नज़र नहीं आते, इनके लिए कहीं कोई गंदगी छोड़ी ही नहीं जाती. ख़ूबसूरत चौहद्दी में शादाब दरख़्त, उनपर चहचहाते हुए परिंदों के झुण्ड. जो कानों में रस घोलते हैं. ऐसी कोई मिसाल भारत उप महाद्वीप में मुसलामानों की नहीं है. यहाँ जो भी तालीम दी जाती है उसमें क़ुरआनी नफरत इंसानों के हक में नहीं.
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा
''जिस रोज़ तुम इसको देखोगे, तमाम दूध पिलाने वालियाँ अपने बच्चों को दूध पिलाना भूल जाएँगी और तमाम हमल वालियाँ अपना हमल डाल देंगी और तुझको लोग नशे के आलम में दिखाई देंगे.हालांकि वह नशे में न होंगे मगर अल्लाह का अज़ाब है सख्त.''
''हमने तुमको मिटटी से बनाया फिर. नुत्फे से, फिर खून के लोथड़े से फिर खून की बोटी से कि पूरी होती है और अधूरी भी , ताकि हम तुम्हारे सामने ज़ाहिर कर दें . हम गर्भ में जिसको चाहते हैं एक मुद्दत ए मुअय्यना तक ठहराए रखते हैं, फिर तुम को बच्चा बना कर हम बाहर लाते हैं. फिर ताकि तुम अपनी भरी जवानी तक पहुँच जाओ और बी अजे तुम में वह भी हैं जो निकम्मी उम्र तक पहुंचे जाते हैं. - - - और क़यामत आने वाली है , इसमें ज़रा शुबहा नहीं और अल्लाह कब्र वालों को दोबारह पैदा करेगा.''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-५-७)एक बार फिर मुहम्मदी अल्लाह अपने हुनर और हिकमत को दोहराता है कि उसने जो कुछ इंसानी वजूद की शुरूआत अपनी आँखों से मुश्तअमल होते हुए देखा है. यानी मुहम्मद अपना ज़ाती मुशाहिदा बयान करते हैं जो मेडिकल साइंस में जेहालत कही जायगी. इन्हीं पुर जेहल बातों को ओलिमा कुराने-हकीम की बातें कहते हैं. पुनर जन्म की फिलासफी एक कशिश तो रखती है मगर ये सदियों कब्र में पड़े रहना और उसके बाद उठाए जाना बड़ा बोरियत वाला अफसाना है. क्या मजाक है अल्लाह अपने कारनामों का यकीन ज़ोरदार तरीके से दिलाता है.
'' जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जरी होंगी। हमेशा हमेशा इनमें रहें. ये बड़ी कामयाबी है, अल्लाह तअला जो इरादः करता है, कर गुज़रता है ''
'' जो शख्स इस बात का ख़याल रखता है कि अल्लाह तअला उसकी न्या और आखरत में मदद न करेगा तो उसको चाहिए कि एक रस्सी आसमान तक तान ले और मौकूफ करा दे गौर करना चाहिए कि तदबीर उसकी न गवारी की चीज़ को मौकूफ कर सकती है और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१५-१६)दिमाद मुहम्मद का, कलाम अल्लाह का, समझ बंदएमुस्लिम का - - - बड़ा मुश्किल मुक़ाम है कि ऐसी आयतें कुरआन की क्या कहना चाहती हैं? आम मुस्लमान में जब कोई इस किस्म की बाते करता है तो सुनने वाले उसे कठमुल्ला कह कर मुस्कुराते है. मगर अगर उनको बतलाया जाय कि क़ुरआनी अल्लाह ही कठमुल्ला है, ये उसकी बातें हैं, तो कुछ देर के लिए कशमकश में पड़ जाता है? मगर मुसलमान ही बना रहना पसंद करता है , कुछ बगावत के साथ. भारतीय माहौल में वह जाय तो कहाँ जाय? मोमिन का रास्ता उसे टेढ़ा नज़र आता है, जो कि है बहुत सीधा.सितम ये कि बे शऊर अल्लाह कहता है'' और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,''
''और अल्लाह तअला उन लोगों को कि ईमान लाए और नेक काम किए ऐसे बागों में दाखिलकरेगा जिनके नीचे नहरें जरी होंगी. इनको वहाँ पर सोने के कंगन और मोती पहनाई जाएँगे और पोषक वहाँ रेशम की होगी.''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-23)मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं है कि जहाँ सोने के घर द्वार हैं वहाँ सोने के कंगन पहना रहे हैं? वैसे भी सोने का जब तक ख़रीदार न हो उसकी कोई क़द्र व् कीमत नहीं. सोने और रेशम को मर्दों पर हराम करके दुन्या में तो कहीं का न छोड़ा, जहाँ इनकी जीनत थी. महरूम और मकरूज़ कौम.
''बेशक जो लोग काफ़िर हुए अल्लाह के रस्ते से और मस्जिदे हराम (काबा ) से रोकते हैं जिसको हमने तमाम आदमियों के लिए मुक़र्रर किया है, कि इस में सब बराबर हैं। इसमें रहने वाले भी और बहार से आने वाले भी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२५)कुरआन की यह आयत बहुत ही तवाज्जेह तलब है - - - आज काबे में कोई गैर मुस्लिम दाख़िल नहीं हो सकता है। काबा ही क्या शहर मक्का में भी मुसलामानों के अलावा किसी और के दाखिले पर पाबन्दी है। आज की हकीकत ये है जब कि ये आयतें उस वक्त कि हैं जब मुसलामानों पर काबे में दाखिले पर पाबन्दी थी. इसी कुरआन में आगे आप देखेंगे कि अल्लाह कैसे अपनी बातों से फिरता है. इनके ही जवाब में आज़ाद भारत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ मुसलामानों के दाखिले पर पाबन्दी है.
जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान*****************
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस)
मुसम्मी '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
सफाई
क्या आपने कभी गौर किया है कि सारी दुन्या में मुसलमान पसमान्दा क्यूं हैं? सारी दुन्या को छोड़ें अपने मुल्क भारत में ही देखें कि मुसलमान एक दो नहीं हर मैदान में सब से पीछे हैं. मैं इस वक़्त इस बात का एहसास शिद्दत के साथ कर रहा हूँ . क्यों कि मैं Ved is at your door '' के मुतहर्रिक स्वर्गीय स्वामी चिन्मयानानद के आश्रम के एक कमरे में मुकीम हूँ,जो कि हिमालयन बेल्ट हिमांचल प्रदेश में तपोवन के नाम से मशहूर है. साफ सफ्फफ़, और शादाब, गन्दगी का नाम निशान नहीं, वाकई यह जगह धरती पर एक स्वर्ग जैसी है. ईमान दारी ऐसी कि कमरों में ताले की ज़रुरत नहीं. सिर्फ सौ रुपे में रिहाइश और खुराक बमय चाय या कोफी. ज़रुरत पड़े तो इलाज भी मुफ्त. मैं यहाँ अपने मोमिन के नाम से अजादाना रह रहा हूँ, उनके दीक्ष/ प्रोग्रामो में हिस्सा लेकर अपनी जानकारी में अज़ाफा भी कर रहा हूँ. इनकी शिक्ष\ में कहीं कोई नफरत का पैगाम नहीं है. जदीद तरीन इंसानी क़द्रों के साथ साथ धर्म का ताल मेल भी, आप उनसे खुली बहेस भी कर सकते हैं. मैं ने यहाँ हिन्दू धर्म ग्रंथों का ज़खीरा पाया और जी भर के मुतालिया किया.
इसी तरह मैंने कई मंदिर, गुरु द्वारा, गिरजा देखा बहाइयों का लोटस टेम्पिल देखा, ओशो आश्रम में रहा , इन जगहों में दाखिले पर जज़्बाए एहतराम पैदा होता है , इसके बरक्स मुसलामानों के दरे अक़दस पर दिल बुरा होता है और नफरत के साथ वापसी होती है. चाहे वह ख्वाजा अजमेरी की दरगाह हो या निज़ामुद्दीन का दर ए अक़दस हो, जामा मस्जिद हो या मुंबई का हाजी अली. जाने में कराहियत होती है. आने जाने के रास्तों पर गन्दगी के ढेर के साथ साथ भिखारियों, अपाहिजों और कोढियों की मुसलसल कतारें राह पार करना दूभर कर देती है. मुजाविर (पण्डे) अकीदत मंदों की जेबें ख़ाली करने पर आमादः रहते हैं. मेरी अकीदत मन्द अहलिया निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पहुँचने से पहले ही भैंसे की गोश्त की सडांध, और गंदगी के बाईस उबकाई करने लगीं. बेहूदे फूल फरोश फूलों की डलिया मुँह पर लगा देते है. वह बगैर ज़्यारत किए वापस हुईं . इसी तरह अजमेर की दरगाह में लगे मटकों का पानी पीना गवारा न किया, सारी आस्था वहाँ बसे भिखारियों और हराम खोर मुजविरों के नज़र हो गई.
औरों के और मुसलामानों के ये कौमी ज्यारत गाहें, कौमों के मेयार का आइना दार हैं.. मुसलमान आज भी बेहिस हैं जिसकी वजेह है दीन इस्लाम. दूसरी कौमों ने परिवर्तन के तक़ाज़ों को तस्लीम कर लिया है और वक़्त के साथ साथ क़दम मिला कर चलती हैं. मुसलमान क़ुरआनी झूट को गले में बांधे हुए है. क़ुरआनी और हदीसी असरात ही इनके तमद्दुनी मर्काज़ों पर ग़ालिब है. मुसलमान दिन में पाँच बार मुँह हाथ और पैरों को धोता है जिसे वजू कहते हैं और बार बार तनासुल (लिंग) को धोकर पाक करता है, मगर नहाता है आठवें दिन जुमा जुमा. कपडे साफी हो जाते हैं मगर उसमें पाकी बनी रहती है. नतीजतन उसके कपडे और जिस्म से बदबू आती रहती है. जहाँ जायगा अपनी दीनी बदबू के साथ. मुसलामानों को यह वर्सा मुहम्मद से मिला है. वह भी गन्दगी पसंद थे कई हदीसें इसकी गवाह हैं, अक्सर बकरियों के बाड़े में नमाज़ पढ़ लिया करते.
दूसरी बात ज़कात और खैरात की रुकनी पाबंदी ने कौम को भिखारी ज्यादा बनाया है जिसकी वजेह से मेहनत की कमाई हुई रोटी को कोई दर्जा ही नहीं मिला. सब क़ुरआनी बरकत है, जहां सदाक़त नहीं होती वहां सफाई भी नहीं होती और न कोई मुसबत अलामत पैदा हो पाती है.
आश्रम में कव्वे, कुत्ते कहीं नज़र नहीं आते, इनके लिए कहीं कोई गंदगी छोड़ी ही नहीं जाती. ख़ूबसूरत चौहद्दी में शादाब दरख़्त, उनपर चहचहाते हुए परिंदों के झुण्ड. जो कानों में रस घोलते हैं. ऐसी कोई मिसाल भारत उप महाद्वीप में मुसलामानों की नहीं है. यहाँ जो भी तालीम दी जाती है उसमें क़ुरआनी नफरत इंसानों के हक में नहीं.
''ऐ लोगो अपने रब से डरो यकीनन क़यामत का ज़लज़ला बहुत भारी चीज़ होगी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१)एक बार फिर आप को दावते-फ़िक्र दे रहा हूँ कि गौर करिए कि आपका अल्लाह कैसा होना चाहिए? बहुत ज़ालिम, बड़ा गुस्सैल, शेर की तरह कि ज़रा सी हरकत पर अप पर चढ़ बैठे? या आपके चचा और मामा की तरह आप को चाहने वाला, आपकी गलतियों को दरगुज़र करने वाला, कम से कम सज़ा देने वाले को तो आप पसंद नहीं ही करेगे. यह आप पर मुनहसर है कि आप जैसा अल्लाह चाहें अख्तियार करें. जी हाँ! यही तो इंसान का ज़ाती मुआमला हो जाता है कि वह अपने को किस पसंद दीदा दोस्त के हवाले करता है. दोस्त कोई ज़ात पाक भी हो सकता है, दोस्त कोई खयाले- नादिर भी हो सकता है. दोस्त आपकी महबूबा भी हो सकती है और आप का हुनर भी. दोस्त आप की पूजा भी हो सकती है और आपकी इबादते-लाहूत भी. दोस्त कैसा भी हो सकता है मगर क़ुरआनी अल्लाह को दोस्त बनाना किसी साजिश का शिकार हो जाना है.
ज़लज़ले और आताश फिशां निज़ाम कुदरत के तहत मुक़र्रर है जो किसी काफ़िर या मुस्लिम आबादी को देख कर नहीं आते न उनका उस टुकाची अल्लाह से कोई सरोकार है जो मुहम्मद ने गढ़े हैं. खुलकर ऐसे अल्लाह से बगावत कीजिए जो कौम को जुमूद में किए हुए है.
ज़लज़ले और आताश फिशां निज़ाम कुदरत के तहत मुक़र्रर है जो किसी काफ़िर या मुस्लिम आबादी को देख कर नहीं आते न उनका उस टुकाची अल्लाह से कोई सरोकार है जो मुहम्मद ने गढ़े हैं. खुलकर ऐसे अल्लाह से बगावत कीजिए जो कौम को जुमूद में किए हुए है.
''जिस रोज़ तुम इसको देखोगे, तमाम दूध पिलाने वालियाँ अपने बच्चों को दूध पिलाना भूल जाएँगी और तमाम हमल वालियाँ अपना हमल डाल देंगी और तुझको लोग नशे के आलम में दिखाई देंगे.हालांकि वह नशे में न होंगे मगर अल्लाह का अज़ाब है सख्त.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२-३)कबीलाई बन्दे मुहम्मद तमाज़त और मेयार को ताक पर रख कर गुफ्तुगू कर रहे हैं. क़यामत का बद तरीन नज़ारा वह किस घटिया हरबे को इस्तेमाल कर, कर रहे है कि जिसमे औरत ज़ात रुसवा हो रही है. और मर्द शराब के नशे में बद मस्त अपनी औरतों की rusvaaiyan देख रहे होगे.
''हमने तुमको मिटटी से बनाया फिर. नुत्फे से, फिर खून के लोथड़े से फिर खून की बोटी से कि पूरी होती है और अधूरी भी , ताकि हम तुम्हारे सामने ज़ाहिर कर दें . हम गर्भ में जिसको चाहते हैं एक मुद्दत ए मुअय्यना तक ठहराए रखते हैं, फिर तुम को बच्चा बना कर हम बाहर लाते हैं. फिर ताकि तुम अपनी भरी जवानी तक पहुँच जाओ और बी अजे तुम में वह भी हैं जो निकम्मी उम्र तक पहुंचे जाते हैं. - - - और क़यामत आने वाली है , इसमें ज़रा शुबहा नहीं और अल्लाह कब्र वालों को दोबारह पैदा करेगा.''सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-५-७)एक बार फिर मुहम्मदी अल्लाह अपने हुनर और हिकमत को दोहराता है कि उसने जो कुछ इंसानी वजूद की शुरूआत अपनी आँखों से मुश्तअमल होते हुए देखा है. यानी मुहम्मद अपना ज़ाती मुशाहिदा बयान करते हैं जो मेडिकल साइंस में जेहालत कही जायगी. इन्हीं पुर जेहल बातों को ओलिमा कुराने-हकीम की बातें कहते हैं. पुनर जन्म की फिलासफी एक कशिश तो रखती है मगर ये सदियों कब्र में पड़े रहना और उसके बाद उठाए जाना बड़ा बोरियत वाला अफसाना है. क्या मजाक है अल्लाह अपने कारनामों का यकीन ज़ोरदार तरीके से दिलाता है.
'' जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जरी होंगी। हमेशा हमेशा इनमें रहें. ये बड़ी कामयाबी है, अल्लाह तअला जो इरादः करता है, कर गुज़रता है ''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१४)मुसलामानों! अल्लाह तआला कोई इंसानी ज़ेहन का नहीं है, वह अगर कुछ है तो इन बातों से बाला तर होगा. वह बज़ाहिर लगता है बहुत बारीक, मगर है बहुत साफ.. हर जगह नज़र आता है मगर बिना किसी रंग रूप का . उसकी कोई जुबान नहीं है न उसका कोई कलाम. जुबान होती तो बोलता ही रहता , सिर्फ चौदह सौ साल पहले मुहम्मद से बात करने के बाद उसके मुँह को लकवा नहीं मर गया होता कि उनके बाद उसकी बोलती बंद है. बार बार मुहम्मद तुम से नहरों वाली जन्नत की बात करते हैं जो कि तुमको अगर मिल जाय तो घर घर न रह जाय बल्कि खेत और ताल बन जाय.
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२५)कुरआन की यह आयत बहुत ही तवाज्जेह तलब है - - - आज काबे में कोई गैर मुस्लिम दाख़िल नहीं हो सकता है। काबा ही क्या शहर मक्का में भी मुसलामानों के अलावा किसी और के दाखिले पर पाबन्दी है। आज की हकीकत ये है जब कि ये आयतें उस वक्त कि हैं जब मुसलामानों पर काबे में दाखिले पर पाबन्दी थी. इसी कुरआन में आगे आप देखेंगे कि अल्लाह कैसे अपनी बातों से फिरता है. इनके ही जवाब में आज़ाद भारत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ मुसलामानों के दाखिले पर पाबन्दी है.
जीम 'मोमिन' निसरुल-ईमान*****************
अच्छा किया आपने 'हमारीवाणी'पर रजिस्टर नहिं किया।
ReplyDeleteयह एग्रिगेटर सायबर मुल्ला मुहम्मद उमर कैरान्वी, शाह नवाज़,सलीम खान,अयाज़ अहमद, अनवर जमाल, असलम क़ासमी,आदि टोली का है।
उफ़...! ये क्या किया तुमने, अपने ही मुंह से अपना पता बक दिया तुमने!
ReplyDeleteइस्लाम के दलाल
ReplyDelete१. मुहम्मद उम्र कैरान्वी
२. सलीम खान
३. अनवर जमाल
४. असलम कासमी
५. जिशान जैदी
६. अयाज अहमद
६ .सफत आलम
७. शाहनवाज
बाकियों को भी सभी जानते हैं.
प्रमाण
इनके बाप ईसाइयों ने ११ सितम्बर को इनके अल्लाह की किताब कुरान जलाने की घोषणा की है.
अमेरिका ने सऊदी अरब को मोती रकम देकर कुरान जलाने का विरोध न करने का "आदेश" दिया है. अपने बाप के आदेश पर आतंकवाद के सरगना सऊदी अरब ने अपने चमचों आतंकवादियों से चुप बैठने को कह दिया है.
चुप बैठने वाले आतंकवादियों को भी उनका हिस्सा मिलेगा. इसलिए उपरोक्त "इस्लाम के दलाल" चुप बैठे हैं. भारत में तो कुरान के नाम पर हिन्दुओं का खून पीने को तैयार रहते हैं. अब क्या हुआ?????????
इस्लाम के दलालों के संगठन का नाम "impact " यानी "indian muslim progressive activist "है. यह दल "indian mujaahidin "से संबधित है .कैरानावी और सलीम खान इसके local सरगना हैं .बाक़ी सब सदस्य हैं, जिनमें असलम कासमी, अनवर जमाल, अयाज अहमद, एजाज अहमद, जीशान जैदी आदि शामिल हैं. इस्लाम के दलालों के ग्रुप में बुरकेवालियां भी हैं .इनका मुख्य काम दुश्मनों को सूचना देना है. कैरानवी का गिरोह धर्मं परिवर्तन कराना, आतंकवादियों को और घुसपैठ करने वालों को पनाह देना है और उनका सहयोग करना है. blogging तो इनका बाहरी रूप है. ब्लोगिंग के माध्यम से ये लोग अपनी जेहादी मानसिकता के लोग तलाश रहे हैं.
यह impact भी सिम्मी जैसा ही संघटन है।
ReplyDeleteऔर इस नाम से उपयोगकर्ता को खोज लिया जायेगा।
जैसे ही यह लागिन होता है,उस तक पहूंच बना ली जायेगी।
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ReplyDeleteक्या वास्तव में मेरी शिक्षा ऐसी ही है जैसा इस ब्लॉग में जिक्र किया गया है?
ReplyDeleteअगर सच्चाई यही होती तो आज करोड़ो हाथों और दिलों में मेरा वजूद ना होता।
ऐ इंसानों आओ मैं तुम सबको आमंत्रित करता हूं। बिना किसी पूर्वाग्रह के मुझे पढ़ो, गौर करो मेरी शिक्षा पर और ईमानदारी से सोचो अपने सच्चे दिल और दिमाग से।
उस दिल-दिमाग से जो सच्चे मालिक का दिया हुआ है। मुझे यकीन है वह सच्चा पालनहार आपका मार्गदर्शन करेगा।
मै भारत गया और वहां पर हिंदू,बौध्द,सिक्ख और इस्लाम धर्मों के बारें में सीखा।
ReplyDeleteभारत में मेरे साथ एक अद्भुत घटना घटित हुई। एक सुबह मैं स्टेशन पर रेल का इंतजार कर रहा था। स्टेशन खचाखच लोगों से भरा था। भीड़ के बीच एक महिला ने अचानक मेरे बगल में अपनी जाजम बिछा ली और नमाज पढऩे लगी। मेरे लिए यह घटना चौंकाने वाली थी। ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मैंने एक व्यक्ति से पूछा-यह सब क्या है? उसने जवाब दिया-यह मेरी दादी है। यह मुस्लिम है और प्रार्थना कर रही है। संभव है यही कारण रहा हो। अल्लाह ने वह क्षण एक तस्वीर की तरह मुझे दिया जो आज भी मेरी स्मृतियों में है।
जब मैं ब्रिटेन लौटा तो मेरे कई साथी नशे के लती हो चुके थे और कुछ इस्लाम धर्म अपनाकर इससे बचे हुए थे, तब मुझे लगा कि यही मेरा रास्ता है। इसके तीन महीने बाद मेरी जिंदगी में निर्णायक मोड़ आया।
मैं अध्ययन के बाद मुसलमान हुआ हूं। मेरे दिल में इस्लाम की बहुत कद्र है।
ReplyDeleteमुसलमानों को इस्लाम विरासत में मिला है। इसलिए वे उसकी कद्र नहीं पहचानते। सच्चाई यह है कि मेरी जि़न्दगी में जितनी मुसीबतें आयीं, उनमें , अमन व सुकून की जगह केवल इस्लाम में ही मिली।
कुरआन,
ReplyDeleteहां वास्तव में तेरी शिक्षा ऐसी ही है जैसा इस ब्लॉग में जिक्र किया गया है।
अन्यथा, सच को न तो गाली की जरूरत पडती है, न गाली से फ़र्क पडता है।(तुम लोगों ने तो मोमिन की मां को मोदी के साथ सुलाने में कसर नहिं छोडी थी)
शिक्षा तो इस मोमिन के पास है तब भी उसने समता रखी थी,और आज भी समता में है।
वह अन्दर ही अन्दर घूटता नहिं उसका साहस तो देखो,अकेला है फ़िर भी हक़ की राह पर चले जा रहा है।
सच्चे मज़हब को प्रचार की ज़रुरत नहिं होती।
तुम लोगों को नहिं मालूम,इस तरह शोध-खोल पर कितना परिश्रम लगता है, मोमिन कहीं भी थक के रूका नहिं, क्या स्वार्थ है उसका ?
बस सभी को सच्चा मोमिन बनाने की ही तो भावना है।
शैतान ने यही तो कहा था की वह सारी दुनिया को बहका कर दम लेगा. आज वह 'मोमिन' बनकर श्रम कर रहा है. जब अल्लाह शैतान पर लानत भेज सकता है तो हम क्यों न भेजें. शैतान पर लानत भेजने को गाली नहीं कहते, जिस तरह 'हरामजादे' को 'हरामजादा' कहना गाली नहीं होता.
ReplyDeleteहाँ गाली तो यह 'फर्जी मोमिन' बना शैतान दे रहा है हमारे नबियों को.
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ReplyDeleteइस्लामी प्रोपेगंडा हमेशा इस टेक्निक को अपना कर चलता है कि फलाँ गैर मुस्लिम ने इस्लाम में ये खूबी पाई, या ये बात लिखी अथवा इस्लाम स्वीकार किया . इस्लाम में क्या खूबी और क्या खामी है इसे खुद ये नहीं जानते न ही जानना चाहते है.यह लोग मुसलमानों को ही नहीं अपने आप को भी धोखा देते हैं. मेरी बातों का सीधा जवाब इनके पास नहीं है . इस्लामी तरीकों से ये प्रयास करते हैं की दंगा हो जाय और मुसलमान कुछ और पस्ती में चले जाएँ ताकि इनकी दूकान चलती रहे . यह अपने अल्लाह की तरह कोसते काटते हैं और गालियाँ भी लिख देते हैं. मुसलमानों यही तुम्हारे दुश्मन नंबर वन हैं. मुझको पढ़ते रहिए जहाँ पर सदाक़त न पाएं तो तर्क के साथ , कायदे का जवाब दीजिए. मैं आपका हकीकी खैर ख्वाह हूँ. जागिए कि अब इस्लामी हांडी फूट चुकी है.
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ReplyDeleteमैं मुजफ्फरनगर में एक दुकान से कुरआन मजीद का हिन्दी तर्जमा(अनुवाद) लेकर आया। मैं ने फोन पर मौलाना साहब से उसके पढने की ख्वाहिश का इज़्हार किया। मौलाना साहब ने कहा, देखिये कुरआन मजीद को आप जरूर पढें मगर सिर्फ और सिर्फ ये समझकर पढिए कि मेरे मालिक का भेजा हुआ यह कलाम है और यह सोच कर पढे कि यह सिर्फ और सिर्फ मेरे लिये भेजा है। इस लिये मालिक का कलाम समझ कर पढना अच्छा है। आप इसे स्नान करके पढें। पाक कलाम, पाक नूर, पाक और साफ सुथरे हालत में पढना चाहिये। दो हफ्तों मैंने पूरा कुरआन मजीद पढ लिया। अब मेरे लिये मुसलमान होने के लिये अन्दर के दरवाजे खुल गये थे। मैंने फुलत जाकर मौलाना साहब के सामने कलमा पढा। मौलाना साहब ने मेरा नाम रामकुमार बदल कर मेरी ख्वाहिश पर मुहम्मद हुज़्ौफा रखा.
ReplyDeleteहम तीनों ने मशवरा किया और सब ने तै किया कि हम को मुसलमान हो जाना चाहिये। मौलाना साहब ने हमें कलमा पढवाया। वो हाल मैं बता नहीं सकता कि हम तीनों पर क्या गुजरी, जैसे-जैसे हमें कलमा पढवाया और तौबा करायी, ऐसा लग रहा था जैसे काँटों का एक लिबास जिस से जिस्म बंधा था, हमारे जिस्म से उतर गया। अन्दर से खौफ एकदम काफूर हो गया। जैसे हम न जाने किस खतरे से निकल कर एक महफूज किले में आ गए हों। मौलाना साहब ने मेरा नाम मुहम्मद इसहाक रखा, योगेश का मुहम्मद याकूब रखा और योगेन्द्र का मुहम्मद युसुफ.
ReplyDeleteदो रोज़ के बाद मैं दिल से इस्लाम के लिए तैयार हो चुका था। मैंने 25 जून 93 जोहर (दोपहर) के बाद इस्लाम कुबूल किया। मेरा नाम मुहम्मद आमिर रखा। तीन महीने के बाद बीवी भी मुसलमान हो गयी
ReplyDeleteमैंने सब से पहले हजरत मुहम्मद सल्ल. की एक छोटी सीरत पढ़ी, उसके बाद ‘इस्लाम क्या है?’ पढी। ‘इस्लाम एक परिचय’ मौलाना अली मियाँ की पढी। 5 दिसम्बर 2006 को मुझे छोटी सी किताब ‘आप की अमानत -आपकी सेवा में’ एक लडके ने लाकर दी। 6 दिसंबर अगले रोज थी, मैं डर रहा था कि अब कल को किया हादसा होगा, उस किताब ने मेरे दिल में यह बात डाली कि मुसलमान होकर इस खतरे से जान बच सकती है और में 5 दिसंबर की शाम को पाँच छ लोगों के पास गया मुझे मुसलमान कर लो, मगर लोग डरते रहे, कोई आदमी मुझे मुसलमान करने का तैयार न हुआ........
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