Sunday 9 October 2011

सूरह अलएराफ़ ७ (पांचवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं


सूरह अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारापांचवीं किस्त

''ऐ मिटटी के जन्मो!

तुम से यकीनी तौर पर कह रहा हूँ - -

तमाम इंसानों में सब से ज़्यादः फसादी वह शख्स है जो बैठे बैठे झगडे क़ायम करता रहता है और अपने भाई बंधुओं से आगे बढ़ जाने की तमन्नाएं रखता है. कह दो कि तुम्हारे अल्फ़ाज़ नहीं, तुम्हारे कर्म ही तुम्हारे मोक्ष करते हैं।''

बहा उल्लाह (बहाई धर्म)

चलिए क़ुरआन की अदभुत दुन्या की सैर करें. - - -


'आप कह दीजिए - - -

लोगो!

मैं तुम सब की तरफ उस अल्लाह का भेजा हुवा हूँ, जिसकी बादशाही है, तमाम आसमानों और ज़मीन पर है - - - अल्लाह पर ईमान लाओ और नबी उम्मी पर जो अल्लाह और उसके एह्कम पर ईमान रखते हैं''

अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५८)लोगों को अल्लाह का इल्म भली भांत था जिसे वह मानते थे मगर जनाब उसकी तरफ से नकली दूत बन कर सवार हो, वह भी उम्मी.

तायाफ़ के हुक्मरां ने ठीक ही कहा थ कि क्या अल्लाह को मक्का में कोई पढ़ा लिखा ढंग का आदमी नहीं मिला था जिसे अपना रसूल बनाता और रुसवा करके उसके दरबार से निकले. अल्लाह ने तुम्हारी कोई खबर न ली. जाहिलों को लूट मार का सबक सिखला कर कामयाब हुए तो किया हुए.



'' - - - और इन लोगों को जो ज्यादती करते थे एक सख्त अज़ाब में पकड़ लिया, बवाजेह इसके कि वह बे हुकमी किया करते थे, यानी जब उनको जिस काम से मना किया जाता थ तो उस में वह हद से निकल गए तो हम ने उन को कह दिया की तुम बन्दर ज़लील बन जाओ.''

अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१६६)ऐ अल्लाह के बन्दों !

ऐ भोले भाले मुसलमानों !

अगर तुम इस पैगम्बरी जेहालत से बागी होकर, इल्म जदीद की तरफ रागिब हो जाओ तो बेहतर होगा कि यह तुम को ज़लील बन्दर बना दे. तुम्हारे लिए दावते फ़िक्र यह है कि समझो, अपने फेल से सिर्फ इंसान ही ज़लील और अज़ीम होता है, बाक़ी तमाम मखलूक अपनी फितरत और अपनी खसलत के एतबार से हुआ करती हुआ करती हैं. इंसान को इंसानियत की राह से हटा कर दुश्मने इंसानियात बनाने वाला खुद ज़लील बंदर हो सकता है.



''और जब आप के रब ने बतला दिया कि वह उन पर क़यामत तक ऐसे शख्स को ज़रूर मुसल्लत करता रहेगा जो उनको सज़ा ए शदीद की तकलीफ पहुंचता रहेगा. बिला शुबहा आप का रब वाकई जल्द ही सज़ा दे देता है और बिला शुबहा वह बड़ी मग़फ़िरत और बड़ी रहमत वाला है.''सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (१६७)मुहम्मदी अल्लाह के परदे में खुद अल्लाहहै. वह लोगों को आगाह कर रहे हैं कि इस्लाम कुबूल करो वर्ना मैं तुमको सख्त सजा दूंगा. तलवार के जोर पर पैगम्बर बन जाने के बाद उन्हों ऐसा किया भी.


'' हमने दुनया में इसकी मुतफ़र्रिक जमाअतें कर दीं. बअज़े उनमें नेक और बअज़े और तरह के थे और हम उन को खुश हालियों और बद हालियों से आजमाते रहे कि शायद बअज़ आ जाएँगे. फिर उस के बाद ऐसे लोग उसके जानशीन रहे कि किताब को उन से हासिल किया. इस दुन्याए अदना का माल ओ मता हासिल कर लेते है और कहते हैं हमारी ज़रूर मग्फेरत हो जाएगी, हालांकि उनके पास ऐसा ही माल ओ माता आने लगे तो इस को ले लेते हैं. क्या उन से किताब का अहेद नहीं लिया गया कि अल्लाह की तरफ बजुज़ हक बात के और किसी बात की निस्बत न करें और उन्हों ने इस में जो कुछ था इसे पढ़ लिया और आखीर वाला घर इन लोगों के लिए बेहतर है जो परहेज़ रखते हैं, तो फिर क्या नहीं समझते. और जो लोग किताब के पाबन्द हैं और नमाज़ की पाबन्दी करते हैं, हम ऐसे लोगों का को जो अपनी इस्लाह खुद करें तो सवाब जाया न करेंगे. और जब पहाड़ को उठा कर छत की तरह इन के ऊपर कर दिया और इन को यकीन हो गया की अब उन पर गिरा , कुबूल करो जो किताब हमने उन को दी है और याद रखो जो एहकाम इस में हैं, जिस से तवक्को है कि तुम मुत्तकी बन जाओ,''सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (१७१-१६८एक थे हादी बाबा, मैं जब भी क़ुरआन का तर्जुमा पढता हूँ तो ऐसी आयतों पर उनकी तस्वीर मेरे आँखों में तैर जाती है. वह सीधे सादे थे, क़लम किताब से उनको कभी वास्ता न रहा, खेत खलियान और मवेश्यों की देख भाल में उनकी ज़िन्दगी की कायनात महदूद थी. इन में कुछ ज़ेहनी खलल था. रात को हम लोग इनको लेकर कुछ मशगला किया करते, इनके ऊपर बाबा आया करते थे, जैसे कि लोगों पर शैतान, भूत और जिन्नात आते हैं. बस इन्हें पानी पर चढाने भर कि देर होती कि हादी बाबा हो जाते शुरू. उनके मुंह में जो भी आता बकते रहते मगर गाली गलौज नहीं, न ही किसी को बुरा भला. उनकी धारा प्रवाह बक बक उस वक़्त तक ख़त्म न होती जब तक हम लोग उनको वापस पानी से उतार न लेते. इसी तरह पनयाने पर वह लम्बी लम्बी दौड़ भी लगा कर वापस आते. भरम था कि थकते नहीं. इसी भरम ने हादी बाबा की जान ले ली.

क़ुरआन में मुहम्मद की वज्दानी कैफियत में बकी गई बक बक हादी बाबा की बक बक जैसी ही होती है. जिन आयातों को मैं ने हाथ नहीं लगाया वह कुछ ऊपर जैसी ही होंगी. क़ुरआन की यह बक बक सियासत के दांव पेंच में आकर इबादत बन गईं हैं.



''क्या उनके पाँव हैं जिन से वह चलते हैं? या उनकी आँखें हैं जिन से वह देखते है? या उनके कान हैं जन से वह सुनते हों? आप कह दीजिए कि तुम अपने सब शुरका (सम्लितों) को बुला लो फिर मेरी ज़रर रेसनी (नुकसान पहुंचाने) की तदबीर करो, फिर मुझको ज़रा मोहलत मत दो. यकीनन मेरा मदद गार अल्लाह है जिस ने यह किताब नाज़िल फ़रमाई है. वह नेक बन्दों कि मदद करता है.''सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (195-९६)यह जुमले मुहम्मद के निजी दावे हैं तो अल्लाह का कलम कैसे हो सकत है?
खैर अभी तो अरबी बोलने वाले अल्लाह का ही पता नहीं। वैसे मुहम्मद का ये दावा खोखला है। अगर इनकी बातों में दम है तो रातों रात मक्का से मदीना चोरों कि तरह अपने साथी अबू बकर के साथ क्यूं भागे, गारे हरा में दिन भर डर के मारे क्यूं दुबके पड़े रहे? जंगे उहद में सिकश्ते फ़ाश के बाद नाम पुकारने पर पिछली कतार में खामोश बे ईमान फौजी सिपाही बने खड़े रहे. कहीं पर अल्लाह की मदद इनको मयस्सर क्यूं न थी?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. aapko hajaar salaam, ek dam sachhchi baat bolte ho aap.

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