Saturday 28 January 2012

सूरह नह्ल 16

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह नह्ल 16

(दूसरी किस्त) 
सूरतें क्या खाक में होंगी ?



मुहम्मद ने कुरआन में कुदरत की बख्शी हुई नेमतों का जिस बेढंगे पन से बयान किया है, उसका मज़ाक़ ही बनता है न कि कोई असर ज़हनों पर ग़ालिब होता हो. बे शुमार बार कहा होगा- - - 


''मफ़िस समावते वमा फ़िल अरज़े'' यानी आसमानों को( अनेक कहा है ) और ज़मीन (को केवल एक कहा है ). जब कि आसमान ,कायनात न ख़त्म होने वाला एक है और उसमें ज़मीने, बे शुमार हैं.
वह बतलाते हैं पहाड़ों को ज़मीन पर इस लिए ठोंक दिया कि तुम को लेकर ज़मीन डगमगा न पाए.
परिंदों के पेट से निकले हुए अंडे को बेजान बतलाते है और अल्लाह की शान कि उस बेजान से जान दार परिन्द निकल देता है.
ज़मीन पर रस्ते और नहरें भी अल्लाह की तामीर बतलाते हैं. कश्ती और लिबासों को भी अल्लाह की दस्त कारी गर्दानते है.
मुल्लाजी कहते हैं अल्लाह अगर अक्ल ही देता तो दस्तकारी कहाँ से आती? मुहम्मद के अन्दर मुफक्किरी या पयंबरी फ़िक्र तो छू तक नहीं गई थी कि जिसे हिकमत, मन्तिक़ या साइंस कहा जाए.
ज़मीन कब वजूद में आई?
कैसे इरतेकाई सूरतें इसको आज की शक्ल में लाईं, इन को इससे कोई लेना देना नहीं, बस अल्लाह ने इतना कहा'' कुन'', यानी होजा और ''फयाकून'' हो गई.
जब तक मुसलमान इस कबीलाई आसन पसंदी को ढोता रहेगा, वक़्त इसको पीछे करता जाएगा. जब तक मुसलमान मुसलमान रहेगा उसे यह कबीलाई आसन पसंदी ढोना ही पड़ेगा, जो कुरआन उसको बतलाता है. मुसलमानों के लिए ज़रूरी हो गया है कि वह इसे अपने सर से उठा कर दूर फेंके और खुल कर मैदान में आए.

देखिए कि ब्रिज नारायण चकबस्त ने दो लाइनों में पूरी मेडिकल साइंस समो दिया है। 


ज़िन्दगी क्या है? अनासिर में ज़हूरे तरतीब,
मौत क्या है? इन्ही अजजा का परीशां होना। 

कुरआन की सारी हिकमत, हिमाक़त के कूड़े दान में डाल देने की ज़रुरत है अगर ग़ालिब का यह शेर मुहम्मद की फ़िक्र को मयस्सर होता तो शायद कुरानी हिमाक़त का वजूद ही नहोता - - - 


सब कहाँ कुछ लाला ओ गुल में नुमायाँ हो गईं,
सूरतें क्या खाक में होंगी जो पिन्हाँ हो गईं'' 


देखिए कि मुहम्मदी हिमाक़तें क्या क्या गुल खिलाती हैं - - -  

''बखुदा आप से पहले जो उममतें हो गुजरी हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?) सो उनको भी शैतान ने उनके आमाल ए  मुस्तहसिन करके दिखलाए, पस वह आज उन का रफ़ीक था और उनके वास्ते दर्द नाक सज़ा है.''

सूरह नह्ल पर१४ आयत (६३)


मुहम्मद का एलान कि कुरआन अल्लाह का कलाम है मगर आदतन उसके मुँह से भी "बखुदा" निकलता  है। "जो उम्मतें हो गुज़री हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?)''

 क्या भेजा था?
'' गोया मतलब शेर का बर बतने-शायर रह गया''
मूतराज्जिम मुहम्मद का मददगार बन कर ब्रेकेट में (रसूलों को) लिख देता है। यह कुरआन का ख़ासा है  

''और हम ने आप पर यह किताब सिर्फ इस लिए नाज़िल की है कि जिन उमूर पर लोग इख्तेलाफ़ कर रहे हैं, आप लोगों पर इसे ज़ाहिर फ़रमा दें और ईमान वालों को हिदायत और रहमत की ग़रज़ से. और तुम्हारे लिए मवेशी भी गौर दरकार हैं, इन के पेट में जो गोबर और खून है, इस के दरमियान में से साफ़ और आसानी से उतरने वाला दूध हम तुम को पीने को देते हैं. और खजूर और अंगूरों के फलों से तुम लोग नशे की चीज़ और उम्दा खाने चीज़ें बनाते हो. बे शक इसमें समझने के लिए काफी दलीलें हैं जो अक्ल रखते हैं.''

सूरह नह्ल पर१४ आयत (६४-६७)

कठ मुल्ले ने गोबर, खून और दूध का अपने मंतिक बयानी से कैसा गुड गोबर किया है. 

''और आप के रब ने शाहेद की मक्खी के जी में यह बात डाली कि तू पहाड़ में घर बनाए और दरख्तों में और जो लोग इमारते बनाते हैं इनमें, फिर हर किस्म के फलों को चूसती फिर, फिर अपने रब के रास्तों पर चल जो आसन है. उसके पेट में से पीने की एक चीज़ निकलती है, जिस की रंगतें मुख्तलिफ होती हैं कि इन में लोगों के लिए शिफ़ा है. इस में इन लोगों के लिए बड़ी दलील है जो सोचते हैं.''

सूरह नह्ल पर१४ आयत (६८-६९)

मुहम्मद का मुशाहिदा शाहेद की मक्खियों पर कि जिनको इतना भी पता नहीं की मक्खियाँ फलों का नहीं फूलों का रस चूसती हैं। रब का कौन सा रास्ता है जिन पर हैवान मक्खियाँ चलती हैं? या अल्लाह कहाँ मक्खियों के रास्तों पर हज़ारों मील योमिया मंडलाया करता है? मगर तफ़सीर निगार कोई न कोई मंतिक गढ़े होगा. 

''और अल्लाह तअला ने तुम को पैदा किया, फिर तुम्हारी जान कब्ज़ करता है और बअज़े तुम में वह हैं जो नाकारा उम्र तक पहंचाए जाते हैं कि एक चीज़ से बा ख़बर होकर फिर बे ख़बर हो जाता है . . . और अल्लाह तअला ने तुम में बअज़ों को बअज़ों पर रिज्क़ में फ़ज़ीलत दी है, वह अपने हिस्से का मॉल गुलामों को इस तरह कभी देने वाले नहीं कि वह सब इस पर बराबर हो जावें. क्या फिर भी खुदाए तअला की नेमत का इंकार करते हो. और अल्लाह तअला ने तुम ही में से तुम्हारे लिए बीवियाँ बनाईं और बीवियों में से तुम्हारे लिए बेटे और पोते पैदा किए और तुम को अच्छी चीज़ें खाने कोदीं, क्या फिर भी बे बुन्याद चीजों पर ईमान रखेंगे . . .

सूरह नह्ल पर१४ आयत (७०-७२)

न मुहम्मद कोई बुन्याद कायम कर पा रहे हैं और न मुखालिफ़ को बे बुन्याद साबित कर पा रहे हैं। बुत परस्त भी बुतों को तवस्सुत मानते थे, न कि अल्लाह. तवस्सुत का रुतबा छीन लिया बड़े तवस्सुत बन कर खुद मुहम्मद ने. मुजरिम बेजान बुत कहाँ ठहरे? मुजरिम तो गुनेह्गर मुहम्मद साबित हो रहे हैं जिन्हों ने आज तक करोरो इंसानी जिंदगियाँ वक़्त से पहले खत्म कर दीं. अफ़सोस कि करोरो जिंदगियां दाँव पर लगी हुई हैं। 

''और अल्लाह तअला ने तुम को तुम्हारी माओं के पेट से इस हालत में निकाला कि तुम कुछ भी न जानते थे और इसने तुम को कान दिए और आँख और दिल ताकि तुम शुक्र करो. क्या लोगों ने परिंदों को नहीं देखा कि आसमान के मैदान में तैर रहे हैं, इनको कोई नहीं थामता. बजुज़ अल्लाह के, इस में ईमान वालों के लिए कुछ दलीलें हैं. और अल्लाह तअला ने तुम्हारे लिए जानवरों के खाल के घर बनाए जिन को तुम अपने कूच के दिन हल्का फुल्का पाते हो और उनके उन,बल और रोएँ से घर की चीज़ें बनाईं . . . और मखलूक के साए . . . पहाड़ों की पनाहें . . . ठन्डे कुरते . . . और जंगी कुरते बनाए ताकि तुम फरमा बरदार रहो. फिर भी अगर यह लोग एतराज़ करें तो आप का ज़िम्मा है साफ़ साफ़ पहुंचा देना.

सूरह नह्ल पर१४ आयत (७८-८२)

यह है कुरानी हकीकत किसी पढ़े लिखे गैर मुस्लिम के सामने दावते-इस्लाम के तौर पर ये आयतें पेश करके देखिए तो वह कुछ सवाल उल्टा आप से खुद करेगा . . .

-अल्लाह ने कान दिए और आँख और दिल - - - सुनने, देखने और एहसास करने के लिए दिए हैं कि शुक्र अदा करने के लिए?

- और अब हवाई जहाज़, रॉकेट और मिसाइलें कौन थामता है? ईमान वालों के पस अक़ले-सलीम है?

-अब हम जानवरों की खाल नहीं बुलेट प्रूफ़ जैकेट पहेनते हैं उन,बाल और रोएँ का ज़माना लद गया, हम पोलोथिन युग में जी रहे हैं, तुम भी छोड़ो, इस बाल की खाल में जीना और मरना. जो कुछ है बस इसीदुन्या में और इसी जिंदगी में है.
-हम बड़े बड़े टावर बना रहे हैं और मुस्लमान अभी भी पहाड़ों में रहने की बैटन को पढ़ रहा है? और पढ़ा रहा है?
-बड़े बड़े साइंसदानों का शुक्र गुज़र होने के बजाय इन फटीचर सी बातों पर ईमान लाने की बातें कर रहे हो.
- तुम्हारे इस उम्मी रसूल पर जो बात भी सलीके से नहीं कर पता? तायफ़ के हाकिम ने इस से बात करने के बाद ठीक ही पूछा था '' क्या अल्लाह को मक्का में कोई ढंग का पढ़ा लिखा शख्स नहीं मिला था जो तुम जैसे जाहिल को पैग़म्बरबना दिया।'' 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. मैं तो यही कहता हूँ कि हिन्दू मुसलमान बाद में बनना, पहले इन्सान तो बन जाओ...

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    1. insaan kaisa hota hai main insaan banna chahta hun aap mera marg darshan karne ka kast karenge kya aap insaan ban gaye

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