Sunday 1 April 2012

Soorah Kuhaf 18 (Aakhir Qist)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह कुहफ़ १८

चौथी किस्त

"लोग आप से ज़ुलक़रनैन का हाल पूछते हैं, आप बयान करिए - - - हम ने उनको रूए ज़मीन पर हुकूमत दी थी और हम ने उनको हर क़िस्म का सामान दिया था, चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?) और इस मौके पर उन्हों ने एक कौम देखी. हमने उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख्वाह सज़ा दो खवाह नरमी का बरताव अख्तियार करो, जवाब दिया जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम लोग सज़ा ही देंगे, फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा और वह उसको सख्त सज़ा देगा और जो शख्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - -
 फिर ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी. इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी खबर है ,फिर एक और राह हो लिए, यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ एक कौम को देखा जो कोई बात समझने के करीब में नहीं पहुँचते. उन्हों ने अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! 
याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें , इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें, जवाब दिया कि जिस में हमारे रब ने अख्तियार दिया है, वह बहुत बहुत कुछ है . सो कूवत से मेरी मदद करो. मैं तुम्हारे और उनके दरमियान खूब मज़बूत दीवार बना दूगा. तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको, यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र दिया तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे, कहा कि ये मेरे रब की रहमत है फिर जिस वक़्त मेरे रब का वादा आएगा , इसके फ़ना का वक़्त आएगा सो इसको ढा कर बराबर कर देगा और मेरे रब का बर हक़ हक है.''
सूरह कुहफ १८-१६ वां परा(८३-९८)
मुहम्मद ने ईसा, मूसा, मरियम, हकीम लुकमान वगैरह, जिनका हाल सुन रख्खा था, या जिनकी कहानी सुनी थी सबको कुरआन में शामिल करके उनकी कहानी अपने अंदाज़ में बनाई है, जो इस्लामी प्रचार के लिए विषय होते थे और इसका गवाह सीधे अल्लाह को बना दिया। कुरआन को अल्लाह का कलाम बता कर।
मशहूर हस्तियाँ ही नहीं कुछ अजीबो-गरीब हस्तियाँ अपनी तरफ़ से भी गढ़ लिया था. इस सूरह में कोई फ़र्ज़ी बादशाह ज़ुलक़रनैन की कहानी गढ़ी है.
''हम ने उनको रूए ज़मीन पर हुकूमत दी थी''
''हम ने उनको हर क़िस्म का सामान दिया था''
बड़े बादशाह को हर क़िस्म का सामान भी अल्लाह ने दिया, है न अहमकाना बात - -
''और ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, अल्लाह को इसकी पूरी खबर है ''
है ये दूसरी अहमकाना दलील हुई,
मगर वह बे सरो समानी के आलम में तनहा सफ़र पर भी था - - -
शाम का वक़्त था काले पानी में क्या डूबता हुवा दिखाई दिया उसका नाम बतलाना भूल कर आगे बढ़ते हैं।
''चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?)''
''इस मौके पर उन्हों ने एक कौम देखी। हमने (गोया अल्लाह ने) उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख्वाह सज़ा दो खवाह नरमी का बरताव अख्तियार करो''
मतलब हुवा कि अल्लाह ज़ुलक़रनैन के मातहत था। अल्लाह का मशविरा ठुकरा कर ज़ुलक़रनैन ने फैसला कुन जवाब दिया कि
''जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम सज़ा ही देंगे और (कोई आप से बड़ा मालिक है तो) फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा। वह उसको सख्त सज़ा देगा.''
मुहम्मद अपनी इस्लामी डफली बजाने लगते हैं - - -''जो शख्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - -
चलते चलते शाम से रात हुई और सुबह का वक़्त आया फिर ''ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी।''
मुहम्मद ने यहाँ क्या कहा है आलिम रफुगरों की समझ से भी बाहर है. अल्लाह ने सूरज को चिलमन बना कर नहीं लटकाया? मुखबिर अल्लाह ज़ुलक़रनैन के झोले में रख्खे सामान की पूरी जानकारी रखता है यह मुक़र्रर इरशाद है . - - - ''इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी खबर है''
चलते चलते ''ज़ुलक़रनैन यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ एक कौम को देखा जो कोई बात समझने के करीब में नहीं पहुँचते।''
यानी उस कौम की गुतुगू को न समझते हुए भी समझे कि उन लोगों ने '' अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें, इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें''
यह याजूज माजूज भी मुहम्मद की जेहनी पैदावार हैं. आगे फरमाते हैं की ज़ुलक़रनैन ने उन लोगों से कोई माली मदद तो नहीं ली क्यूँकि उनके पास रब का दिया हुवा बहुत था, मगर लोगों कि मेहनत ज़रूर तलब की. बादशाह उनकी मदद यूँ करता है - - -
''तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको'',
 जिस कौम ने लोहे की चादर बना ली हो, उसको इनसे मैदान की घेरा बंदी भी आती होगी. ज़ुलक़रनैन उनसे क्या (?) धौंक्वता है,
'' यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र देते हैं तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे.''
लोग ताम्बा पिघला सकते हैं, बस कि लोहे की चादरों से दीवार नहीं खड़ी कर सकते?
'' फिर मुहम्मद क़ुरआनी सारंगी छेड़ देते हैं.''
मुसलमानों! ईमान दार मोमिन ही कुरआन की सही तर्जुमानी कर सकता है, ये ज़मीर फरोश ओलिमा सच बोलने की हिम्मत भी नहीं कर सकते. कुरआन में इस फ़र्ज़ी वाकिए और नामुकम्मल गुफ्तुगू में आलिम ने क्या क्या न आरिफाना (आध्यात्मिक) मिर्च मसालों की छ्योंक बघारी हैं कि पढ़ कर दिल मसोसता है.
 तुम जागो, जग कर मोमिन हो जाओ जो कि इंसान का मुकम्मल मज़हब है, जिसका कोई झूठा पैगम्बर नहीं, बल्कि कोई पैगम्बर नहीं, कोई चल-घात की बातें नहीं, सीधा सादा एलान कि २+२=४ होता है, न तीन और न पाँच. फूल में खुशबू होती है, इसे किसने पैदा किया? उसकी तलाश में मत जाओ कि तुम्हारी तलाश की राह में कोई मुहम्मद बना हुवा पैगम्बर बैठा होगा. बहुत से सवाल, जवाब नहीं रखते, कि वक़्त कब शुरू हुआ था? कब ख़त्म होगा? सम्तें (दिशाएँ) कहाँ से शुरू होती हैं, कहाँ ख़त्म होंगी? इन सवालों को ज़मीन की दीगर मखलूक की तरह सोचो ही नहीं. फितरत की इस दुन्या में चार दिन के लिए आए हो, फ़ितरी ज़िन्दगी जी लो।
''और उस रोज़ हम उनकी ऐसी हालत कर देंगे कि वह एक दूसरे में गडमड हो जाएँगे और सूर फूँका जायगा और हम सब को जमा कर लेंगे और दोज़ख को उस रोज़ काफ़िरों के सामने पेश करेगे और वह अपने ख़याल में हैं कि अच्छा काम कर रहे हैं, ये लोग हैं जो कि रब की आयातों का और उस से मिलने का इंकार कर रहे हैं इनके सारे काम ग़ारत हो जाएँगे क़यामत के रोज़. हम इनका ज़रा भी वज़न न कायम करेंगे. यानी दोज़ख इस सबब से कि उन्हों ने कुफ्र किया था और मेरी आयातों और पैगम्बर का मज़ाक उड़ाया था. आप कह दीजिए कि मेरे रब की बातें लिखने के लिए समन्दर रोशनी हो तोसमन्दर ख़त्म हो जाएगा मगर मेरे रब की बातें ख़त्म न होंगी'' 
सूरह कुहफ १८-१६ वां परा(१००-११०)
मुसलमानों! देखो कि अपने अल्लाह की शान, अपने बन्दों की हालत वह क्या कर देगा, यह मुहम्मद की ज़ालिमाना फ़ितरत की गम्माज़ी है. क्या तुम को ये शैतान ज़ेहन की साज़िश नहीं मअलूम पड़ती? क्या तुम उस कुदरत को इतना बे रहम समझते हो कि अपने बन्दों में कुफ़्र को गुनाह साबित करके उनके लिए अलग से सज़ा मुक़र्रर करेगा? ज़लज़ला आता है तो काफ़िर और मोमिन को देख कर उनके घर गिराता है ? मुहम्मद इतने बड़े गैर मुंसिफ थे कि काफिरों के नेक अमल को भी खातिर में नहीं लाते. बस कि जब तक उनकी इन पुरगुनाह आयतों को तस्लीम न कर लें. दुन्या की तारिख में इतना बड़ा साजिशी कोई और नहीं हुवा कि इंसानियत को महसूर करके कामयाब हो गया हो. मगर नहीं यह कामयाबी नहीं, झूट भी क्या कभी कामयाब हो सकता है? मकर कभी हक़ीक़त का सामना नहीं कर सकती, मुहम्मद आलमे इंसानियत में बद तरीन मुजरिम हैं।
खुदा के लिए अपने आप को और अपनी औलादों को आने वाले वक़्त से बचाओ. अभी सवेरा है, वरना मुहम्मद के किए धरे की सज़ा भुगतने के लिए तैयार रख्खो अपनी नस्लों को. तुमको छूट हैकि मोमिन बन के अपने बुजुर्गों की भूल की तलाफी करो।


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment