Saturday 25 August 2012

क़ुरआन - सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा

मेरी तहरीर में - - -


क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है, हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा


(पहली किस्त)
बजा कहे जिसे दुन्या उसे बजा कहिए,
ज़बाने-खलक को नक्कारा ए खुदा कहिए.



बहुत मशहूर शेर है मगर बड़ा खयाले खाम से भरा हुवा है. ज़बाने खलक की तरह फैली हुई यहूदियत के नककारा को तोड़ने वाला ईसा मसीह क्या मुजरिम थे ? इंसान को एक एक दाने को मोहताज किए हुए इस दुन्या पर छाई हुई सरमाया दारी , नादार मेहनत कशों के लिए नक्कारा ए खुदा थी? इसे पाश पाश करने वाला कार्ल मार्क्स क्या मुजरिम था?३०-३५ लाख लोग हर साल काबा में शैतान को कन्कड़ी मारने जाते हैं, इसके पसे पर्दा अरबों को इमदाद और एहतराम बख्शना क्या नक्कारा ए खुदा है? कुम्भ के मेले में करोरों लोग गंगा में डुबकी लगा कर अपने पाप धोते है और हराम खोर पंडों को पालते हैं, नंग धुदंग नागा साधू बेशर्मी का मुजाहिरा करते हैं, क्या ये नक्कारा ए खुदा है? नहीं यह सब साजिशों पर आधारित बुराइयाँ है.
मैं इलाहबाद होते हुए कानपुर जा रहा था, इलाहबाद स्टेशन आते ही लट्ठ लिए हुए पण्डे हमारी बोगी में आ घुसे . कुम्भ का ज़माना था, ज्यादाः हिस्सा गंगा स्नान करने वाले बोगी में थे सब पर उन पंडों ने अपना अपना क़ब्ज़ा जमा लिया. एक फटे हल अधेड़ पर जिस पण्डे ने अपना क़ब्ज़ा जमाया था उसको टटोलने लगा, अधेड़ ने कहा मेरे पास तो कोई पैसा कौड़ी नहीं है आपको देने के लिए, पण्डे ने उसे धिक्कारते हुए कहा "तो क्या अपनी मय्या C दाने के लिए यहाँ आया है" सुनकर मेरा कलेजा फट गया . आखिर कब तक हमारे समाज में ये सब चलता रहेगा?
इन बुराइयों पर ईमान और अकीदा रखने वालों को मेरी तहरीर की नई नई परतें बेचैन कर रही होंगी. कुछ लोग मुझसे जवाब तलब होंगे कि आखिर इन पर्दा कुशाइयों की ज़रुरत क्या है? इन इन्केशाफत से मेरी मुराद क्या है ? इसके बदले शोहरत, इज्ज़त या दौलत तो मिलने से रही, हाँ! ज़िल्लत, नफरत और मौत ज़रूर मिल सकती है. मुखालिफों की मददगार हुकूमत होगी, कानून होगा, यहाँ तक कि इस्लाम के दुश्मन दीगर धर्मावलम्बी भी होंगे. मेरे हमदर्द कहते है तुम मुनकिरे इस्लाम हो, हुवा करो, तुम्हारी तरह दरपर्दा बहुतेरे हैं. तुम नास्तिक हो हुवा करो, तुम्हारी तरह बहुत से हैं, तुम कोई अनोखे नहीं. अक्सर लम्हाती तौर पर हर आदमी नास्तिक हो जाता है मगर फिर ज़माने से समझौता कर लेता है या अलग थलग पड़ कर जंग खाया करता है.
मेरे मुहब्बी ठीक ही कहते है जो कि मुहब्बत के मारे हुए हैं. हक कहाँ बोल सकते हैं, मुझे खोना नहीं चाहते.
आज़ादी के बाद बहुत से मुस्लमान मोमिन बशक्ले-नास्तिक पैदा हुए हैं. कुछ ऐसे मुसलमान हुए जो अपनी मिटटी सुपुर्दे-खाक न करके सुपुर्दे-आग किया है, करीम छागला, नायब सदर जम्हूर्या जस्टिस हिदायत उल्लाह, मशहूर उर्दू लेखिका अस्मत चुगताई वगैरा नामी गिरामी हस्तियाँ हैं. उनके लिए सवाल ये उठता है कि उन्हों ने इस्लाम के खिलाफ जीते जी आवाज़ क्यूँ नहीं बुलंद की? तो मैं क्यूं मैदान में उतर रहे हूँ ?
ऐ लोगो! वह अपने आप में सीमित थे, वह सिर्फ अपने लिए थे. नास्तिक मोमिन थे मगर ज़मीनी हकीकत को सिर्फ अपने तक रक्खा. मैं नास्तिक मोमिन हूँ मगर एक धर्म के साथ जिसका धर्म है सदियों से महरूम, मजलूम और नादार मुसलमानों को जगाना। मजकूरह बाला लोग खुद अपने आपको मज़हब की तारीकी से निकल गए, इनके लिए यही काफी था. मैं इसे कोताही और खुद गरजी मानता हूँ. उनको रौशनी मिली मिली तो उन्हों ने इसे लोगों में तकसीम क्यूँ नहीं किया? क्यूं अपना ही भला करके चले गए?
मेरा इंसानी धर्म कहता है कि इंसानों को इस छाए हुए मज़हबी अँधेरे से निकालो, खुद निकल गए तो ये काफी नहीं है. मेरे अन्दर का इंसान सर पे कफ़न बाँध कर बाहर निकल पड़ा है, डर खौफ़, मसलेहत और रवा दारी मेरे लिए कोई मानी नहीं रखती, इंसानी क़दरों के सामने. मैं अपने आप में कभी कभी दुखी होता हूँ कि मैं भोले भाले अकीदत मंदों को ठेंस पहुंचा रहा हूँ मगर मेरी तहरीक एक आपरेशन है जिसमें अमल से पहले बेहोश करने का फामूला मेरे पास नहीं है, इस लिए आपरेशन होश ओ हवास के आलम में ही मुझे करना पड़ रहा है. इस मज़हबी नशे से नजात दिलाने के लिए सीधे सादे बन्दों को कुछ तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी. ताकि इन के दिमाग से इस्लामी कैंसर की गाँठ निकाली जा सके. इनकी नस्लों को जुनूनी क़ैद खानों से नजात मिले. इनकी नस्लें नई फिकरों से आशना हो सकें. मैं यह भी नहीं चाहता कि कौम आसमान से छूटे तो खजूर में अटके. मैं ये सोच भी नहीं सकता कि नस्लें इस्लाम से ख़ारिज होकर ईसाइयत, हिंदुत्व या और किसी अन्य धार्मिक जाल में फसें. ये सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं.
मैं मोमिन को इन सब से अलग और आगे इंसानियत की राह पर गामज़न करना चाहता हूँ जो आने वाले वक़्त में सफ़े अव्वल की नस्ल होगी. शायद ही कोई मुसलमान अपनी औलादों के लिए ऐसे ख्वाब देखता हो.ऐ गाफिल मुसलामानों! अपनी नस्लों को आने वाले ज़वाल से बचाओ. इस्लाम अपने आने वाले अंजाम के साथ इन्हें ले डूबेगा. कोई इनका मदद गार न होगा, सब तमाश बीन होंगे. ऊपर कुछ भी नहीं है, सब धोका धडी है. पत्थर और मिटटी के बने बुतों की तरह अल्लाह भी एक हवा का खयाली बुत है. इससे डरने की कोई ज़रुरत नहीं है मगर सच्चा मोमिन बनना ऐन ज़रूरी है.ज़रा देखिए तो अल्लाह क्या कहता है - - -
"ये किताबे-वाज़ेह की आयतें हैं. शायद आप उनके ईमान न लाने पर अपनी जान दे देंगे. अगर हम चाहें तो उन पर आसमान से एक बड़ी किताब नाज़िल कर दें, फिर उनकी गर्दनें उस निशानी से पस्त हो जाएँ. और उन पर कोई ताजः फ़ह्माइश रहमान की तरफ़ से ऐसी नहीं आई जिससे ये बेरुखी न करते हो, सो उन्होंने झूठा बतला दिया, सो उनको अब अनक़रीब इस बात की हक़ीक़त मालूम हो जाएगी जिसके साथ यह मज़ाक़ किया करते थे."सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१-६)ये किताबे-मुज़ब्जाब की आयतें हैं, ये किताबे-गुमराही की आयतें हैं. ये एक अनपढ़ और ख्वाहिश-पैगम्बरी की आयतें हैं जो तड़प रहा है कि लोग उसको मूसा और ईसा की तरह मान लें. इसका अल्लाह भी इसे पसंद नहीं करता कि कोई करिश्मा दिखला सके. क़ुरआनी आयतें चौदह सौ सालों से एक बड़ी आबादी को नींद की अफीमी गोलियाँ खिलाए हुए है.मुसलामानों कुरआन की इन आयातों पर गौर करो कि कहीं पर कोई दम है?
''क्या उन्हों ने ज़मीन को नहीं देखा कि हमने उस पर तरह तरह की उमदः उमदः बूटियाँ उगाई हैं? इसमें एक बड़ी निशानी है. और उनमें अक्सर लोग ईमान नहीं लाते, बिला शुबहा आप का रब ग़ालिब और रहीम है.''सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (७-९)
मुहम्मद को कुदरत की बख्शी हुई नेमतों का बहुत ज़रा सा एहसास भर है. इस वासी ज़राए पर रिसर्च करने और इसका फ़ायदा उठाने का काम दीगर कौमों ने किया जिनके हाथों में आज तमाम सनअतें हैं, और ज़मीन की ज़र्खेज़ी का फायदा भी उनके सामने हाथ बांधे खड़ा है, मुसलमानों के हाथों में खुद साख्ता रसूल के फ़रमूदात .
तौरेत कि कहानी का सुना हुआ वक़ेआ मुहम्मद अपनी पैगम्बरी चमकाने के लिए कुछ इस तरह गढ़ते हैं - - -.''- - - जब आप के रब ने मूसा को पुकारा - - -
रब्बुल आलमीन :--"तुम इन ज़ालिम लोगों यानी काफिरौं के पास जाओ, क्या वह लोग नहीं डरते?"
मूसा :--"ऐ मेरे परवर दिगार! मुझे ये अंदेशा है कि वह मुझको झुटलाने लगें औए मेरा दिल तंग होने लगता है और मेरी ज़बान भी नहीं चलती है, इस लिए हारून के पास भी वह्यी भेज दीजिए और मेरे जिम्मे उन लोगों का एक जुर्म भी है. सो मुझको अंदेशा है कि व लोग मुझे क़त्ल कर देंगे."
(वाजेह हो कि मूसा ने एक मिसरी का खून कर दिया था और मिस्र से फरार हो गए थे.)
रब्बुल आलमीन :-- "क्या मजाल है? तुम दोनों मेरा हुक्म लेकर जाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, सुनते हैं. कहो कि हम रब्बुल आलमीन के भेजे हुए हैं कि तू बनी इस्राईल को हमारे साथ जाने दे "
फिरऔन :-- "क्या बचपन में हमने तुम्हें पवारिश नहीं किया? और तुम अपनी उम्र में बरसों हम में रहा सहा किए, और तुम ने अपनी वह हरकत भी की थी, जो की थी, और तुम बड़े ना सिपास हो."
मूसा :-- " उस वक़्त वह हरकत कर बैठ था और मुझ से गलती हो गई थी फिर जब मुझको डर लगा तो मैं तुम्हारे यहाँ से मफरुर हो गया था. फिर मुझको मेरे रब ने दानिश मंदी अता फ़रमाई और मुझको पैगम्बरों में शामिल कर दिया और वह ये नेमत है जिसका तू मेरे ऊपर एहसान रखता है कि तू ने बनी इस्राईल को सख्त ज़िल्लत में डाल रक्खा था."
फिरऔन : -- "रब्बुल आलमीन की हकीक़त क्या है? "
मूसा : -- "वह परवर दिगार है मशरिक और मगरिब का और जो कुछ इसके दरमियान है उसका. भी, अगर तुमको यकीन करना हो."
फिरऔन : -- "(अपने लोगों से कहा) तुम लोग सुनते हो ?
मूसा :-- "वह परवर दिगार है, तुम्हारा और तुम्हारे पहले बुजुर्गों का "
फिरऔन : --"ये जो तुम्हारा रसूल है, खुद साख्ता तुम्हारी तरफ़ रसूल बन कर आया है, मजनू है."
मूसा :-- ""वह परवर दिगार है मशरिक और मगरिब का और जो कुछ इसके दरमियान है, उसका. भी, अगर तुमको अक्ल हो."
फिरऔन (झल्लाकर) : --"अगर तुम मेरे सिवा कोई और माबूद तस्लीम करोगे तो तुम को जेल खाने भेज दूंगा."
मूसा : -- "अगर मैं कोई सरीह दलील पेश करूँ तब भी. ?
फिरऔन : --"अच्छा तो दलील पेश करो, अगर तुम सच्चे हो ."
मूसा ने अपनी लाठी डाल दी तो वह एक नुमायाँ अज़दहा बन गया और अपना हाथ बाहर निकाला तो दफअतन सब देखने वालों के रूबरू बहुत ही चमकता हुवा हो गया.
फिरऔन:--( ने अहले-दरबार से जो उसके आसपास थे कहा) : -- "इसमें कोई शक नहीं की ये शख्स बड़ा माहिर जादूगर है, इसका मतलब ये है कि तुमको तुम्हारी सर ज़मीन से बाहर कर देगा तो तुम क्या मशविरह देते हो, "
दरबारियों ने कहा : -- "आप उनको और उनके भाई को मोहलत दीजिए. और शहरों में चपरासियों को भेज दीजिए कि वह सब जादूगरों को आप के पास हाज़िर करें"
(गोया फिरऔन बादशाह न था बल्कि किसी सरकारी आफिस का अफसर था जो चपरासियों से काम चलता था कि वह मिस्र के शहरों में जाकर बादशाह के हुक्म की इत्तेला अवाम तक पहुंचाते थे)
गरज वह सब जादूगर मुअय्यन दिन पर, खास वक़्त पर जमा किए गए और लोगों को इश्तेहार दिए गए कि क्या तुम जमा हो गए, ताकि अगर जादूगर ग़ालिब आ जावें तो हम उन्हीं की राह पर रहें .
फिर जब वह जादूगर आए तो फिरौन से कहने लगे अगर हम ग़ालिब हो गए तो क्या हमें कोई बड़ा सिलह मिलेगा?
फिरऔन : --"हाँ! तुम हमारे क़रीबी लोगों में दाखिल हो जाओगे "
मूसा : -- ( जादूगरों से )"तुम को जो कुछ डालना हो डालो"
चुनाँच उन्हों ने अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ डालीं और कहने लगे की फिरौन के इकबाल की क़सम हम ही ग़ालिब होंगे.
मूसा ने अपना असा (लाठी) डाला सो असा के डालते ही उनके तमाम तर बने बनाए धंधे को निगलना शुरू कर दिया. जादूगर सब सजदे में गिर गए, और कहने लगे हम ईमान ले आए रब्बुल आलमीन पर जो मूसा और हारुन का भी रब है.
फिरऔन : -- "हाँ!तुम मूसा पर ईमान ले आए बगैर इसके कि मैं तुम को इसकी इजाज़त देता, ज़रूर ये तुम सब का उस्ताद है जिसने तुम को जादू सिखलाया है, सो अब तुम को हक़ीक़त मालूम हुई जाती है. मैं तुम्हारे एक तरफ़ के हाथ और दूसरे तरफ़ के पैर काटूँगा ."
जादूगर :-- "कोई हर्ज नहीं हम अपने रब के पास जा पहुच जाएँगे. हम उम्मीद करंगे कि हमारे परवर दिगार हमारी खताओं को मुआफ़ कर दे, सो इस वजेह से कि हम सब से पहले ईमान ले आए ."
रब्बुल आलमीन :--और हमने मूसा को हुक्म भेजा कि मेरे इन बन्दों को रातो रात बाहर निकल ले जाओ .
फिरौन : -- "तुम लोगों का पीछा किया जाएगा, उसने पीछा करने के लिए शहरों में चपरासी दौड़ाए कि ये लोग थोड़ी सी जमाअत हैं और इन लोगों ने हमको बहुत गुस्सा दिलाया है और हम सब एक मुसल्लह जमाअत हैं''
रब्बुल आलमीन :-- ''गरज हम ने उनको बागों से और चश्मों से और खज़ानों से और उमदः मकानों से बाहर किया. और उसके बाद बनी इस्राईल को उनका मालिक बना दिया. गरज़ सूरज निकलने से पहले उनको जा लिया. फिर जब दोनों जमाअतें एक दूसरे को देखने लगीं तो मूसा के हमराही कहने लगे कि बस, हम तो हाथ आ गए ''
मूसा :-- "हरगिज़ नहीं ! क्यूं कि मेरे हमराह मेरा परवर दिगार है, वह मुझको अभी रास्ता बतला देगा "
रब्बुल आलमीन :--''फिर हमने हुक्म दिया कि अपने असा को दरिया में मारो, चुनाँच वह दरिया फट गया और हर हिस्सा इतना था जैसे बड़ा पहाड़. हमने दूसरे फरीक़ को भी मौके के करीब पहुँचा दिया और हम ने मूसा को और उनके साथ वालों को बचा लिया फिर दूसरे को ग़र्क़ कर दिया और इस वाकिए में बड़ी इबरत है और बावजूद इसके बहुत से लोग ईमान नहीं लाते और आप का रब बहुत ज़बरदस्त है और बड़ा मेहरबान है.
सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (१०-६८ )

  • मूसा की कहानी कई बार कुरआन में आती है, मुख्तलिफ़ अंदाज़ में. एक कहानी मैंने बतौर नमूना पेश किया आप के समझ में आए या न आए मगर है ये खालिस तर्जुमा, बगैर मुतरज्जिम की बैसाखियों के. कोई अल्लाह तो इतना बदजौक हो नहीं सकता कि अपनी बात को इस फूहड़ ढंग से कहे उसकी क्या मजबूरी हो सकती है? ये मजबूरी तो मुहम्मद की है कि उनको बात करने तमीज़ भी नहीं थी. ऐसी ही हर यहूदी हस्तियों की मुहम्मद ने दुर्गत की है. अल्लाह को जानिबदार, चालबाज़, झूठा और जालसाज़ हर कहानी में साबित किया गया है.*****


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


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