मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह फुरकान-२५
सूरह फुरकान-२५
मैं ब्लागिग की टेक्नीकल दुन्या में अनाड़ी हूँ ,
मैं तो ये तक नहीं जनता था कि आए हुए कमेंट्स को कैसे
डिलीट किया जाय. मगर धीरे धीरे
सब सीख रहा हूँ. फफ्ते में एक
बार मैं अपनी छपी हुई रचनाओं पर एक नज़र डालता हूँ,
अपने पाठकों का शुक्र गुज़र होता हूँ, आलोचनाओं में गली-गुज्वों को बड़े सब्र के साथ देखता
हूँ, अपने ब्लॉग के द्वार पर
विसर्जित किए गए इस मॉल-मूत्र
को एक मुस्कान के साथ बुहार कर कूड़ेदान में डाल देता हूँ. बस. सोचता हूँ कि यही तो कथित धर्मो-मज़ाहिब ने इनको सिखलाया है .
कुछ कट्टर वादी हिन्दू पाठक मुझे इस लिए पसंद करते हैं कि मैं इस्लाम का विरोधी
हूँ. वह ठीक समजते हैं मगर
५०% ही. मैं हिन्दू धर्म को भी जनता हूँ और उसमें
समाई हुई पहाड़ जैसे अनर्थ को भी, जो मानव मूल्यों को नज़र अंदाज़ किए हुए है,
मगर उन पर क़लम चलाना मेरे लिए वर्जित है, क्यूंकि उनके यहाँ बेशुमार समाज सुधारक
आज़ादी से अपना काम कर रहे हैं. मुसलमानों कें यहाँ कोई नहीं हुआ.
मैं प्रचलित धर्म एवं मज़हब विरोधी हूँ, क्यूंकि इन्हीं पवित्र शब्दों की आड़ में
बड़े बड़े मुजरिम खड़े हुए है. ये बुराइयों की पनाह गाहें बन चुके हैं.
भारत को जब तक इन बीमारियों से नजात नहीं मिलेगी तब तक
भारत उद्धार नहीं हो सकता.
(दूसरी किस्त)
"और जिस रोज़ आसमान बदली पर से फट जाएगा, और फ़रिश्ते बकसरत उतारे
जाएँगे उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत रहमान की होगी. और वह काफ़िर पर सख्त दिन
होगा,
उस रोज़ ज़ालिम अपने हाथ काट काट खाएँगे. और कहेंगे क्या खूब होता
रसूल के साथ हो लेते."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (२६-२७)
अल्लाह का इल्म मुलाहिजा हो, उसकी समझ से बादलों
के ठीक बाद आसमान की छत छाई हुई है जो फट कर फरिश्तों को उतारने लगेगी. इस अल्लाह को हवाई सफ़र कराने की ज़रुरत है, कह रहे हैं कि "उस रोज़ हक़ीक़ी
हुकूमत रहमान की होगी" जैसे कि आज कल दुन्या में उसका बस
नहीं चल पा रहा है. अल्लाह ने काफिरों को ज़मीन पर
छोड़ रक्खा है कि हैसियत वाले बने रहो कि जल्द ही आसमान में दरवाज़ा खुलेगा और
फरिश्तों की फ़ौज आकर फटीचर मुसलामानों का साथ देगी. काफ़िर लोग हैरत ज़दः होकर अपने ही हाथ काट लेंगे और पछताएँगे कि कि
काश मुहम्मद को अपनी खुश हाली को लुटा देते. चौदः सौ सालों से मुसलमान फटीचर का फटीचर है और काफिरों की गुलामी कर
रहा है,
यह सिलसिला तब तक क़ायम रहेगा जब तक मुसलमान इन
क़ुरआनी आयतों से बगावत नहीं कर देते.
"नहीं नाजिल किया गया इस तरह इस लिए है, ताकि हम इसके ज़रीए से
आपके दिल को मज़बूत रखें और हमने इसको बहुत ठहरा ठहरा कर उतारा
है.
और ये लोग कैसा ही अजब सवाल आप के सामने पेश
करें,
मगर हम उसका ठीक जवाब और वजाहत भी बढ़ा हुवा आपको इनायत कर
देते हैं."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (३२-3)
अल्लाह की कोई मजबूरी रही होगी कि उसने कुरआन को आयाती टुकड़ों में नाजिल
किया,
वर्ना उस वक़्त लोग यही मुतालबा करते थे कि यह
आसमानी किताब आसमान से उड़ कर सीधे हमारे पास आए या मुहम्मद आसमान पर सीढ़ी लगाकर चढ़
जाएँ और पूरी कुरआन लेकर उतरें. मुहम्मद का मुँह
जिलाने वाली बातें इसके जवाब में ये होतीं कि तुम सीढ़ी लगा कर जाओ और अल्लाह को रोक
दो कि मुहम्मद पर ये आयतें न उतारे. इस जवाब को वह ठीक
ठीक कहते है बल्कि वजाहत भी बढ़ा हुवा.
"और ये लोग जब आपको देखते हैं तो तमास्खुर करने लगते हैं और
कहते है,
क्या यही हैं जिनको अल्लाह ने रसूल बना कर भेजा
है?
इस शख्स ने हमारे मअबूदों से हमें हटा दिया होता अगर हम इस
पर क़ायम न रहते.
और जल्दी इन्हें मालूम हो जाएगा जब अज़ाब का सामना करेंगे
कि कौन शख्स गुमराह है."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (४१-४२)
तायफ़ के हाकिम के पास मुहम्मद जाते हैं और उसको बतलाते हैं कि मैं अल्लाह का
रसूल हूँ,
शुरू हो जाते हैं अपने लबो-लहजे के साथ - - - हाकिम क़ुरआनी
आयतों को सुनकर इनको ऊपर से नीचे तक देखता है और इनसे ही पूछता है अल्लाह को मक्का
में कोई ढंग का आदमी नहीं मिला जो तुम को चुना? तायफ़ के हाकिम की बात पूरी कुरआन पर, हर सूरह पर और हर आयत पर आज भी लागू होती हैं. मुहम्मद के जेहादी तरीका-ए-कार ने इनको लुटेरों का पैगम्बर
बना दिया है. हराम जादे ओलिमा ने इन्हें
मुक़द्दस बना दिया.
"और वह ऐसा है कि उसने तुम्हारे लिए रात को पर्दा की चीज़ और
नींद को राहत की चीज़ बनाया और दिन को जिंदा हो जाने का वक़्त
बनाया."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (४७)
यह माजी के बेजान मुशाहिदे का एक नमूना है. आज रौशन रातें जागने की और गर्म दिन सोने के लिए खुद अरब में बदल गए
हैं.
ये किसी अल्लाह का मुशाहिदा नहीं हो
सकता.
"और वह ऐसा है कि जिसने दो
दरियाओं को सूरतन मिलाया, जिसमें एक तो शीरीं तस्कीन बख्श है और
एक शोर तल्ख़.
और इनके दरमियाँ में एक हिजाब और एक मअनी क़वी रख दिया और
वह ऐसा है जिसने पानी से इंसान को पैदा किया फिर उसे खानदान वाला और ससुराल वाला
बनाया और तेरा परवर दिगार बड़ी कुदरत वाला है."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (५४)
कुरआन की ये सूरतें दो मुख्तलिफ जिंसों की तरफ़ इशारा करती हैं. पहली दरिया है निस्वनी अन्दमे-निहानी (योनि) और दूसरी दरिया है नारीना आज़ाए-तानासुल (लिंग). इन दोनों से धार के साथ पेशाब ख़ारिज होता है, इसलिए इसकी मिसाल दरिया से दी गई है." दो दरियाओं को सूरतन मिलाया" यानी औरत और मर्द की मुबाश्रत(सम्भोग) की सूरते हाल की तरफ इशारा
है.
इस हाल में निकलने वाले माद्दे में से एक को
शीरीं और तस्कीन बख्श और दूसरे को शोर तल्ख़ कहा है ? अब मुहम्मदी अल्लाह को इसके जायके का तजरबा होगा कि मर्द का माद्दा
और औरत के माद्दे के में से शीरीं और तस्कीन बख्श है ? कौन सा है, और कौन सा शोर तल्ख़
?"
एक हिजाब और एक मअनी क़वी रख दिया और वह ऐसा है
जिसने पानी से इंसान को पैदा किया" यानी मुहम्मद ने
इन्सान की पैदाइश को कोक शाश्त्री तरीका अल्लाह की ज़बान में बतलाया जो कि हमेशा की
तरह मुहम्मद का फूहड़ अंदाज़ रहा.
कहते है इन्ही दोनों जिंसी दरयाओं के पानी से आदमी का वजूद होता है, इसी से खानदान बनता है और खानदानों के मिलन से आपस में ससुराल बनता
है.
मुहम्मद ने जैसे तैसे अपने उम्मी अंदाज़ में एक बात कही, मगर तर्जुमान अपनी खिचड़ी कैसे पकता है मुलाहिज़ा हो - - -
"मुराद दरियाओं के वह
मवाके हैं जहाँ शीरीं दरियाएँ और नहरें समन्दरों से आ मिलते हैं. वहाँ बज़ाहिर ऊपर से दोनों की सतह एक सी
मालूम होती है, मगर कुदरत
अलैह से इसमें एक हद फ़ासिल है कि अगर इनके कनारे से पानी लिया जाए तो
तल्ख़.
चुनाँच बंगाल में ऐसे
मवाक़े मौजूद है.
गौर तलब है अल्लाह कहता है खेत की और ये हाकिम वक़्त के गुलाम ओलिमा सुनते हैं
खलियान की. सच पूछिए तो किसी मज़हबी को सच
बोलने,
सच सोचने, और सच लिखने की जिसारत ही नहीं.
"और हमने आपको इस लिए भेजा है कि खुश खबरी सुनाएँ और
डराएँ.
आप कह दीजिए कि मैं तुम से इस पर कोई माव्ज़ा नहीं
मांगता,
हाँ जो शख्स यूँ चाहे कि अपने रब तक रास्ता अख्तियार
करे."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (५७)
डरना,
धमकाना, जहन्नम की बुरी बुरी सूरतें दिखलाना और इन्तेकाम की का दर्स
देना,
मुहम्मदी अल्लाह की खुश खबरी हुई. जो अल्लाह जजिया लेता हो, खैरात और ज़कात मांगता हो, वह भी तलवार की ज़ोर पर, वह खुश खबरी क्या
दे सकता है?
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
धर्म को खत्म कर दो, झंझट खत्म.
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