Sunday 30 September 2012

सूरह नमल २७ (1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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दीन के मअनी हैं दियानत दारी. इस्लाम को दीन कहा जाता है मगर इसमें कोई दियानत दारी नहीं है. अज़ानों में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल कहने वाले बद दयानती का ही मुज़ाहिरा करते हैं . वह अपने साथ तमाम मुसलमानों को गुमराह करते हैं, उन्हों ने अल्लाह को नहीं देखा कि वह मुहम्मद को अपना रसूल बनता हो , न अपनी आँखों से देखा और न अपने कानों से सुना, फिर अज़ानों में इस बे बुन्याद आकेए की गवाही दियानत दारी और सदाक़त कहाँ रही ? कुरान की हर आयत दियानत दारी की पामाली करती है जिसको अल्लाह का कलाम कह गया है. नई साइंसी तहकीक व् तमीज़ आज हर मौजूअ  को निज़ाम ए  कुदरत के मुताबिक सही या ग़लत साबित कर देती है. साइंसी तहकीक के सामने धर्म और मज़हब मज़ाक मालूम पड़ते हैं. बद दयानती को पूजना और उस पर ईमान रखना ही इंसानियत के खिलाफ एक साज़िश है. हम लाशऊरी तौर पर बद दयानती को अपनाए हुए हैं. जब तक बद दयानती को हम तर्क नहीं करते, इंसानियत की आला क़द्रें कायम नहीं हो सकतीं और तब तक यह दुन्या जन्नत नहीं बन सकती. 
आइए हम अपनी आने आली नस्लों के लिए इस दुन्या को जन्नत नुमा बनाएँ. इस धरती पर फ़ैली हुई धर्म व् मज़हब की गन्दगी को ख़त्म करें, अल्लाह है तो अच्छी बात है और नहीं है तो कोई बात नहीं. अल्लाह अगर है तो दयानत दारी और ईमान ए सालेह को ही पसंद करेंगा न कि इन साजिशी जालों को जो मुल्ला और पंडित फैलाए हुए हैं. 

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सूरह नमल २७
(1)
  

आइए देखें मुहम्मदी कुरान के जालों में बने हुए फन्दों को - - -

मुहम्मद ने इस सूरह में देव और पारी की कहानी गढ़ी है. इस्लामी बच्चे इस कहानी को अल्लाह के बयान किए हुए हक़ायक मानते हैं और इस पर इतना ईमान और यकीन रखते हैं कि वह बालिग़ ही नहीं होना  चाहते. ये कहानी मशहूर-ज़माना यहूदी बादशाह सोलेमन (सुलेमान) की है. इस कहानी की हकीकत के साथ साथ तारीखी सच्चाई तौरेत में तफसील के साथ बयान की गई  है, जिसे मुहम्मद ने पूरी तरह से बदल कर कुरआन बनाया है. मुहम्मद का तरीका ये रहा है कि उन्होंने हर यहूदी हस्ती को लिया और उसके नाम की कहानी ऐसी गढ़ी  कि जिसका तौरेती हकीकत से कोई लेना देना नहीं. अपनी गढंत को अल्लाह से गवाही दिला दिया है और असली तौरेत और इंजील को नकली बतला दिया. इनके इस बदलाव में मज़मून में कोई सलीका होता तो भी मसलहतन माना जा सकता है, मगर देखिए  कि उनका जेहनी मेयार कितना पस्त है - - -

"तास" 

यह कोई इशारा है जिसे आज तक कोई नहीं समझ सका, बस अल्लाह ही बेहतर जाने, कह कर आलिमान आगे बढ़ लेते हैं, गोया मंतर है सूरह शुरू करने से पहले दोहराने का.

"ये आयतें हैं कुरआन की और एक वाज़ह किताब की. ये ईमान वालों के लिए हिदायत और खुश खबरी सुनाने वाली है."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (१).

ये आयतें हैं कुरआन की जो कि एक गैर वाज़ह किताब है और इस में सब कुछ मुज़ब्ज़ब है जिसमे अल्लाह के रसूल को बात कहने का सलीका तक नहीं है, आयातों में कोई दम नहीं है, जो कुछ है सब मुहम्मद का बका हुआ झूट है.ये किताब आज इक्कीसवीं सदी में भी लोगों को गुमराह किए हुए है. मुहम्मद की दी हुई तरबियत में कुछ लोग अवाम के सीने पर तालिबान बने खड़े हुए हैं.यही खुश खबरी है,
 ऐ मजलूम मुसलमानों.  

"अल्लह मुसलमानों को इस्लाम पर चलने की ताक़ीद करता है और बदले में आखरत की तस्वीर दिखलाता है. अल्लाह मुहम्मद  को मूसा की याद दिलाता है जब वह अपने परिवार के साथ सफ़र में होते हैं - - - 
"मैंने एक आग देखी है मैं अभी वहाँ से कोई खबर लाता हूँ. तुम्हारे पास आग का शोला किसी लकड़ी वगैरा में लगा हुवा लाता हूँ ताकि तुम सेंको. सो जब इसके पास पहुंचे तो उनको आवाज़ दी गई कि जो इस आग के अन्दर हैं, उन पर भी बरकत हो और जो इसके पास है, उसपर भी बरकत हो, और रब्बुल आलमीन पाक है. ऐ मूसा बात ये है कि  मैं जो कलाम करता हूँ , अल्लाह हूँ ज़बरदस्त हिकमत वाला, और तुम अपना असा डाल दो सो जब उन्हों ने इसको इस तरह हरकत करते हुए देखा जैसे सांप हो तो पीठ फेर कर भागे और पीछे मुड कर भी न देखा. ऐ मूसा डरो नहीं हमारे हुज़ूर में पैगम्बर नहीं डरा करते.
हाँ! मगर जिससे कुसूर हो जावे फिर नेक काम करे तो मैं मगफिरत करने वाला हूँ . - - -
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (३-१६).

कुरान के अल्लाह बने मुहम्मद इस वक़्त आयातों में वज्द की हालत में हैं, कुछ बोलना चाहते हैं और मुँह से निकल रहा है कुछ, तर्जुमे और तफ्सीर के कारीगर मौलाना ने पच्चड लगा लगा कर इन मुह्मिलात में मअनी भरा है. अभी पिछले बाब में मूसा के बारे में जो बयान किया गया है, उसी को यहाँ पर दोहराया गया है, और आगे भी कई बार दोहराया जाएगा. मुसलामानों की नजात का एक ही इलाज है कि कुरआन इनको मार-बाँध कर सुनाया जाय, जब तक कि ये मुन्किरे-कुरान न हो जाएँ.

"हज़रात सुलेमान के पास बहुत बड़ी फ़ौज थी जिसमे आदमियों के अलावा जिन्न और परिंदों के दस्ते भी थे और कसरत से थे कि जिनको चलाने के लिए निजामत की जाती थी. लश्करे सुलेमानी जब चीटियों के मैदान में आया तो वह आपस में बातें करने लगीं कि अपने अपने बिलों में गुस जाओ.कि लश्करे-सुलेमानी तुमको कहीं कुचल न डाले. सुलेमान ये सुनकर मुस्कुरा पड़े."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (१७-१९).

कहते हैं मैजिक आई घुप अँधेरे में बड़ी खूबसूरत दिखाई पड़ती है, जैसे कि नादान और निरक्षर कौमों में जादूई करिश्में. मुहम्मद इन्हें सुलेमानी लश्कर में जिन्न और परिंदों के दस्ते शामिल बतला रहे हैं मुसलमान इस पर यकीन करने पर मजबूर है. चीटियों की खामोश झुण्ड में मुहम्मद उनकी गुफ्तुगू सुनते हैं और सुलेमान को मुस्कुराते हुए लम्हे की गवाही देते हैं. यह तमाम गैर फ़ितरी बातें ही मुसलमानों की फितरत में शामिल हैं, इन्हें कैसे समझाया जाए? 

"एक बार यूँ हुआ कि सुलेमान ने परिंदों की हाजिरी ली, पाया कि हुद हुद गायब है. वह इसकी गैर हजिरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबाह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे. सो थोड़ी देर में वह आ गया और कहने लगा मैं ऐसी खबर लेकर आया हूँ जिसकी खबर आप को भी नहीं है, मैं कबीला-ए-सबा से एक तहकीक़ खबर लाया हूँ. मैं ने एक औरत को देखा कि वह लोगों पर हुकूमत कर रही है और इसके यहाँ अश्या-ए-ऐश मुहय्या है और उसके यहाँ एक बड़ा तख़्त है. मैंने देखा उसको और उसके कौम को कि अल्लाह की इबादत को छोड़ कर सूरज को सजदह कर रहे हैं. वह राहे-हक पर नहीं चलते, शैतान ने उन्हें रोक रक्खा है."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (२०-२४).

इसके बाद कुछ देर के लिए मुहम्मद की जुबान हुद हुद की चोंच में आ जाती है और वह करने लगती है तब्लिगे-इस्लाम - - -

"सुलेमान ने दास्तान सुन कर कहा, देख लेते है कि तू सच बोलता है या झूट तू मेरा एक ख़त दरबार में छोड़ कर, सुन कि वहां क्या सवाल जवाब होते हैं."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (२८).

(हुद हुद हुक्म बजाते हुए सुलेमान के ख़त को मलका ए बिलकीस के महल में डालकर रद्दे अमल का इंतज़ार करता है. बिलकीस ख़त उठाती है और इसे पढ़ कर दरबार तलब करती है.)

"ए लोगो! सुलेमान का यह ख़त आया है जिसमें सब से पहले लिखा है 'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम' तुम लोग मेरे बारे में ज़्यादः तकब्बुर न करो और मती हो कर चले आओ. मलका ने अपने दरबारियों से पूछा कि तुम लोगों की क्या राय है? तुम लोगों के मशविरे के बगैर तो मैं कोई काम करती नहीं, बोलो कि हमें क्या करना चाहिए? दरबारी कहने लगे वैसे हम लोग बहादर हैं और बेहतर फौजी हैं मगर तुम्हारी मसलेहत क्या कहती है? फैसला करके हम को हुक्म दो. बिलकीस बोली वालियान मुल्क जब किसी बस्ती में दाखिल होते हैं तो इसे तहों-बाला कर देते है और इसमें रहने वाले इज्ज़त दार लोगों को ज़लील करते हैं और वह लोग भी ऐसा करेंगे. मैं उन लोगों के पास कुछ हदिया भेजती हूँ , फिर देखती हूँ कि वह फरिस्तादे क्या लाते है, सो वह फरिस्तादा जब सुलेमान के पास पहुंचा तो सुलेमान ने फ़रमाया क्या तुम लोग मॉल से मेरी इमदाद करना चाहते हो?  सो अल्लाह ने मुझे जो कुछ दे रक्खा है, वह इससे बहुत बेहतर है, हाँ तुम ही अपनी इस हदिया पर इतराते हो."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (२९-३६)

'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम'
अल्लाह का ये नाम मुहम्मद का रखा हुआ है जिसको यहूदी बादशाह के मुंह से कहलाते हैं. किस कद्र झूट और मकर के पुतले थे वह जिनको मुसलमान सल्लाल्हो-अलैहे-असल्लम कहते हैं.

(अगली किस्त में तौरेती सुलेमान की हकीकत होगी जिससे इस गढ़ंत का कोई ता अल्लुक नहीं.)



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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