Sunday 23 December 2012

सूरह लुकमान ३१ - (2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह लुकमान ३१
(2)

"और हमने इंसान को उसके माँ बाप के मुतालिक़ ताकीद किया है कि उसकी माँ ने तकलीफ़ पर तकलीफ़ उठा कर ? और दो बरस में उसका दूध छूटता है कि तू मेरी और अपने माँ बाप का शुक्र गुज़री किया कर. मेरी तरफ ही लौट कार आना है."
सूरह लुकमान ३१ आयत(१४)
लगता है मुसंनिफे-कुरआन कुछ मदक़ पिए हुए है, ज़बान लड़खड़ा रही है, जुमले को पूरा भी नहीं कर पा रहा है. ऐसे अल्लाह के मुँह पर लगाम लगाई जाए और पैरों में बेडी डाली जाए. कैसी मखलूक है ये कट्टर मुसलामानों की भीड़ जो इन बकवासों को इबादत के लायक समझते हैं.

"और अगर तुझ पर वह दोनों मिलकर ज़ोंर डालें तो कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को शरीक न कर जिसकी तेरे पास कोई दलील नहीं है तो तू इनका कहना न मानना और दुन्या में इनके साथ खूबी से बसर करना और उसी कि राह पर चलना जो मेरी तरफ रुजू हो, फिर तुम सब को मेरे पास आना है, फिर तुम को जत्लाऊँगा जो कुछ तुम करते हो."
सूरह लुकमान ३१ आयत(१५)
मुहममद अल्लाह से कहलाते है कि औलाद माँ बाप की नाफ़रमानी भी करे और इनके साथ खूबी से बसर भी करे. है न ये हिमाक़त की बात?
मुहम्मद औलादों को बहकते भी हैं और साथ साथ धमकाते भी हैं.
बद क़िस्मत कौम! जागो.

"बेटा! अगर कोई अमल राई के दाने के बराबर हो, वह किसी पत्थर के अन्दर हो या आसमान के अन्दर या ज़मीन के अन्दर हो तब भी अल्लाह इसको हाज़िर कर देगा. बेशक अल्लाह बारीक बीन बाखबर है."
सूरह लुकमान ३१ आयत(१६)
मुसलामानों
अल्लाह तअला न बारीक बीन है न बाखबर, न वह बनिए है की सब का हिसाब किताब रखता हो, वह अगर है तो एक निजाम बना कर कुदरत के हवाले कर दिया है, अगर नहीं है तो भी कुदरत का निजाम ही कायनात में लागू है. हर अच्छे बुरे का अंजाम मुअय्यन है, इस ज़मीन की रफ़्तार अरबों बरस से मुक़र्रर है कि है कि वह एक मिनट के देर के बिना साल में एक बार अपनी धुरी पर अपना चक्कर पूरा करती है. कुदरत गूँगी, बहरी है और अंधी है उससे निपटने के लिए इंसान हर वक़्त मद्दे मुकाबिल है. अगर वह मुकाबिला न करता होता तो अपना वजूद गवां बैठता, आज जानवरों की तरह सर्दी, गर्मी और बरसात की मर झेलता होता, बड़ी बड़ी इमारतों में ए सी में न बैठा होता.
मुसलमान उसका मुकाबिला नहीं करता बल्कि उसको पूजता है, यही वजेह है कि वह ज़वाल पज़ीर है.




"बेटा नमाज़ पढ़ा कर और अच्छे कामो की नसीहत किया कर और बुरे कामों से मना किया कर, और तुझ पर मुसीबत वाक़े हो तो सब्र किया कर, ये उम्मत के कामों में से है. और लोगों से अपना मुँह मत फेर और ज़मीन पर इतरा कर मत चला कर. बेशक अल्लाह तकब्बुर करने वाले, फख्र करने वाले को पसन्द नहीं करता. अपनी रफ़्तार में एतदाल अख्तियार कर और अपनी आवाज़ पस्त कर, बे शक आवाजों में सब से बुरी आव्वाज़ गधों की है"
हकीम लुकमान से कैसी कैसी टुच्ची बातें करवाते हैं . यह हकीम लुकमान की मिटटी पिलीद करना हुआ. मुहम्मद को इसकी परवाह भी नहीं , जो इंसानी समाज का बद ख्वाह रहा हो उसको बुद्धि जीव्यों की कद्र कीमत कोई मानी नहीं रखती. बहुत से बुद्धि जीवी मुहम्मद के ज़माने में हुवा करते थे जिन्हें उन्हों ने काफ़िर, मुशरिक, मुल्हिद कहकर पामाल कर दिया.
देखिए कि हज़रात कह रहे हैं
"बे शक आवाजों में सब से बुरी आव्वाज़ गधों की है "
अल्लाह के बने रसूल अल्लाह की मखलूक पर कैसा तबसरा कर रहे हैं.

"हम उनको चन्द रोज़ का ऐश दिए  हुए हैं, उनको धेरे धीरे एक सख्त अज़ाब की तरफ ले जाएँगे और- - -''
सूरह लुकमान ३१ आयत(१७-१९)
गौर कीजिए कि मुहम्मदी अल्लाह अपने बन्दों के साथ कैसी साजिश रचता है . इंसानी दिलो-दिमाग और जन का दुश्मन शिकारी.

"और अल्लाह तबारक तअला बेनयाज़, सब खूबियों वाला है. और जितने दरख़्त ज़मीन भर में हैं, ये सब क़लम बन जाएं तो और ये समंदर है, इसके अलावः सात समंदर और इसमें शामिल हो जाएं तो इस की बातें ख़त्म न होंगी."
सूरह लुकमान ३१ आयत(२७)
गोया रसूल का अंदाज़ा है कि इस ज़मीन के सारे दरख़्त अगर कलम बन जाएँ तो समंदर भर की रोशनाई कम पड़ जायगी बल्कि इस का सात गुना भी कम पड़ जाएगी कि अल्लाह की बातें ख़त्म न होंगी. मगर बातें कुरानी बकवास न हों, नई नई बातें हो, कारामद बातें होंतो इसको पढने के लिए मुसलसल इंसानी नस्लें तैयार हैं.

"और वही जनता है जो रहेम (गर्भ) में है "
सूरह लुकमान ३१ आयत(३४)
आज अल्लाह का चैलेंज तार तार हो चुका है. अगर इस आयत को ही लेकर मुसलमान अपनी आँखें खोलना चाहें तो काफी है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. प्रशान्त24 December 2012 at 01:18

    vaah vaah, sundar aalekh

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