मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह सबा ३४
(पहली क़िस्त)
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सूरह सबा ३४
(पहली क़िस्त)
इस सूरह में ऐसा कुछ भी नहीं है जो नया हो. मुहम्मद कुफ़्फ़ार ए मक्का के दरमियान सवालों-जवाब का सिलसिला दिल चस्प है. कुफ्फार कहते हैं - -
" ए मुहम्मद ये क़ुरआन तुम्हारा तराशा हुआ झूट है"
क़ुरआन मुहम्मद का तराशा हुवा झूट है, ये सौ फ़ीसदी सच है.
कमाल का ख़मीर था उस शख्स का,
जाने किस मिटटी का बना हुवा था वह,
शायद ही दुन्या में पैदा हुवा हो कोई इंसान, तनहा अपनी मिसाल आप है वह.
अड़ गया था अपनी तहरीक पर जिसकी बुनियाद झूट और मक्र पर रखी हुई थी.
हैरत का मुकाम ये है की हर सच को ठोकर पर मारता हुवा,
हर गिरफ़्त पर अपने पर झाड़ता हुवा,
झूट के बीज बोकर फ़रेब की फ़सल काटने में कामयाब रहा. दाद देनी पड़ती है कि इस कद्र बे बुन्याद दलीलों को लेकर उसने इस्लाम की वबा फैलाई कि इंसानियत उस का मुंह तकती रह गई.
साहबे ईमान लोग मुजरिम की तरह मुँह छिपाते फिरते. खुद साख्ता पैगम्बर की फैलाई हुई बीमारी बज़ोर तलवार दूर दराज़ तक फैलती चली गई.वक़्त ने इस्लामी तलवार को तोड़ दिया मगर बीमारी नहीं टूटी. इसके मरीज़ इलाज ए जदीद की जगह इस्लामी ज़हर पीते चले गए, खास कर उन जगहों पर जहाँ मुकामी बद नज़मी के शिकार और दलित लोग. इनको मजलूम से ज़ालिम बनने का मौक़ा जो मिला.
इस्लाम की इब्तेदा ये बतलाती है कि मुहम्मद का ख़ाब क़बीला ए क़ुरैश की अजमत क़ायम करना और अरब की दुन्या तक ही था, इस कामयाबी के बाद अजमी (गैर अरब) दुन्या इसके लूट का मैदान बनी, साथ साथ ज़ेहनी गुलामी के लिए तैयार इंसानी फ़स्ल भी.
मुहम्मद अपनी जाबिराना आरज़ू के तहत बयक वक़्त दर पर्दा अल्लाह बन गए, मगर बजाहिर उसके रसूल खुद को कायम किया. वह एक ही वक़्त में रूहानी पेशवा, मुमालिक के रहनुमा और बेताज बादशाह हुए, इतना ही नहीं, एक डिक्टेटर भी थे,
बात अगर जिन्स की चले तो राजा इन्दर साबित होते हैं.
कमाल ये कि मुतलक़ जाहिल, एक क़बीलाई फ़र्द.हठ धर्मी को ओढ़े-बिछाए, ज़ालिमाना रूप धारे, जो चाहा अवाम से मनवा लिया, इसकी गवाही ये कुरआन और उसकी हदीसें हैं.
मुहम्मद की नक़्ल करते हुए हज़ारों बाबुक ख़ुर्मी और क़दियानी हुए मगर कोई मुहम्मद की गर्द भी न छू सके .
"तमाम तर हम्द उसी अल्लाह को सजावार है जिसकी मिलकियत में है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और उसी को हुक्म
आख़ रत में है और वह हिकमत वाला ख़बरदार है."
सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (१)
मुसलामानों!अल्लाह को किसी हम्द की ज़रुरत है, न वह कोई मिलकियत रखता है. उसने एक निज़ाम बना कर मख्लूक़ को दे दिया है, उसी के तहत इस दुन्या का कारोबार चलता है. आख़रत बेहतर वो होती है जो आप मौत से पहले मुतमईन हों कि आपने किसी का बुरा नहीं किया है. नादान लोग अनजाने में बद आमाल हो जाते हैं, वह अपना अंजाम भी इसी दुन्या में झेलते हैं. हिसाब किताब और मैदान हश्र मुहम्मद की चालें और घातें हैं.
"और ये काफ़िर कहते हैं कि हम पर क़यामत न आएगी, आप फ़रमा दीजिए कि क्यूं नहीं? क़सम है अपने परवर दिगार आलिमुल ग़ैब की, वह तुम पर आएगी, इससे कोई ज़र्रा बराबर भी ग़ायब नहीं, न आसमान में और न ज़मीन में और न कोई चीज़ इससे छोटी है न बड़ी है मगर सब किताब ए मुबीन में है."
सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (३)
अल्लाह खुद अपनी क़सम खाता है और अपनी तारीफ़ अपने मुँह से करता हुआ खुद को "परवर दिगार आलिमुल गैब" बतलाता है. ऐसे अल्लाह से नजात पाने में ही समझदारी है.
बेशक क़यामत काफ़िरों पर नहीं आएगी क्यूंकि वह रौशन दिमाग़ हैं और मुसलमानों पर तो पूरी दुन्या में हर रोज़ क़यामत आती है क्योंकि वह अपने मज़हब की तारीकियों में भटक रहे हैं.
"काफ़िर कहते हैं कि हम तुमको ऐसा आदमी बतलाएँ कि जो तुमको ये अजीब ख़बर देता है, जब तुम मरने के बाद (सड़ गल कर) रेज़ा रेज़ा हो जाओगे तो (क़यामत के दिन) ज़रूर तुम एक नए जन्म में आओगे. मालूम नहीं अल्लाह पर इसने ये झूट बोहतान बाँधा है या इसको किसी तरह का जूनून है."
सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (७-८)
जैसा कि हम बतला चुके हैं कि इस्लाम की बुनयादी रूह यहूदियत है. ये अक़ीदा भी यहूदियों का है कि क़यामत के रोज़ सबको उठाया जाएगा, पुल ए सरात से सबको गुज़ारा जायगा जिसे गुनाहगार पार न कर पाएँगे और कट कर जहन्नम रसीदा होंगे, मगर बेगुनाह लोग पुल को पार कर लेंगे और जन्नत में दाखिल होंगे. इस बात को अरब दुन्या अच्छी तरह जानती थी, मुहम्मद ऐसा बतला रहे हैं जैसे इस बात को वह पहली बार लोगों को बतला रहे हों. इस बात से अल्लाह पर कोई बोहतान या इलज़ाम आता है?
"और हमने दाऊद को अपनी तरफ़ से बड़ी निआमत दी थी,
ए पहाड़ो! दाऊद के साथ तस्बीह किया करो और परिंदों को हुक्म दिया और सुलेमान अलैहिस सलाम के लिए हवा को मुसख़खिर (मुग्ध करने वाला) कर दिया था कि इसकी सुबः की मंजिल एक एक महीने भर की हुई और इसकी शाम की मंजिल एक महीने भर की हुई और हमने इनके लिए ताँबे का चश्मा बहा दिया और जिन्नातों में बअज़े ऐसे थे जो इनके आगे काम करते थे, उनके रब के हुक्म से और उनमें से जो हमारे हुक्म की सरताबी करेगा हम उसको दोज़ख़ का अज़ाब चखा देंगे. वह जिन्नात उनके लिए ऐसी चीजें बनाते जो इन्हें मंज़ूर होता. बड़ी बड़ी इमारतें, मूरतें और लगन जिससे हौज़ और देगें एक जगह जमी रहें.
ए दाऊद के ख़ानदान वालो! तुम सब शुक्रिया में नेक काम किया करो और मेरे बन्दों में शुक्र गुज़ार कम ही हैं."
सूरह सबा ३४- २२ वाँ पारा आयत (१०-१३)
ए मेरे अज़ीज़ दोस्तों! कुछ गौर करो कि क्या पढ़ते हो. क्या तुम्हारा अक़ीदा उस अल्लाह पर है जो पहाड़ों से तस्बीह पढवाता हो? देखिए कि आपका उम्मी रसूल अपनी बात भी पूरी तरह नहीं कर पा रहा. पागलों की तरह जो ज़बान में आता है, बकता रहता है. उसके सआदत मंद इन लग्व यात को नियत बाँध कर नमाज़ें पढ़ते हैं. भला कब तक जिहालत की कतारों में खड़े रहोगे ? इस तरह तुम अपनी नस्लों के साथ ज़ुल्म और जुर्म किए जा रहे हो. ऐसी क़ुरआनी आयतों को उठा कर कूड़ेदान के हवाले करो जो कहती हों कि- - -
" ए पहाड़ो! दाऊद के साथ तस्बीह किया करो और इत्तेला देती हों कि सुलेमान अलैहिस सलाम के लिए हवा को मुसख्खिर (मुग्ध करने वाला) कर दिया था "
ये सुब्ह व् शाम की मंजिलों का पता मिलता है अरब के गँवारों के इतिहास में, आज हिंद में ये बातें दोहराई जा रही हैं .
"सुबः की मंजिल एक एक महीने भर की हुई और इसकी शाम की मंजिल एक महीने भर की हुई."
"हमने इनके लिए ताँबे का चश्मा बहा दिया "
तांबा तो खालिस होता ही नहीं, ये लोहे और पीतल का मुरक्कब हुआ करता है, रसूल को इसका भी इल्म नहींकि धातुओं का चश्मा नहीं होता. जिहालत कुछ भी गा सकती है. मगर तुम तो तालीम याफ़्ता हो चुके हो, फिर तुम जिहालत को क्यूं गा रहे हो?
"जिन्नातों में बअज़े ऐसे थे जो इनके आगे काम करते थे,"
अगर ये मुमकिन होता तो सुलेमान जंगें करके हज़ारों यहूदी जानें न कुर्बान करता और जिन्नातों को इस काम पर लगा देता.जिन्नात कोई मख़लूक़ नहीं होती है, अपनी औलादों को समझाओ..
"जो हमारे हुक्म की सरताबी करेगा, हम उसको दोज़ख का अज़ाब चखा देंगे"
अल्लाह कैसे गुंडों जैसी बातें करता है, ये अल्लाह की नहीं गुन्डे मुहम्मद की ख़सलत बोल रही है.
"बड़ी बड़ी इमारतें, मूरतें और लगन जिससे हौज़ और देगें एक जगह जमी रहें."
ये मुहम्मद कालीन वक़्त की ज़रुरत थी, अल्लाह को मुस्तक़बिल की कोई ख़बर नहीं कि आने वाले ज़माने में पानी गीज़र से गर्म होगा और वह भी चलता फिरता हुवा करेगा.
"मेरे बन्दों में शुक्र गुज़ार कम ही हैं."
कैसे अल्लाह हैं आप कि बन्दों को कंट्रोल नहीं कर पा रहे? और पहाड़ों से तस्बीह कराने का दावा करते हैं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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