Sunday 24 March 2013

सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ 
(दूसरी क़िस्त)  


"तो क्या ऐसा शख्स जिसको उसका अमले-बद से अच्छा करके दिखाया गया, फिर वह उसको अच्छा समझने लगा, और ऐसा शख्स जिसको क़बीह को क़बीह (बुरा)समझता है, कहीं बराबर हो सकते हैं

सो अल्लाह जिसको चाहता गुमराह करता है.
जिसको चाहता है हिदायत करता है .
सो उन पर अफ़सोस करके कहीं आपकी जान न जाती रहे .
अल्लाह को इनके सब कामों की खबर है.
और अल्लाह हवाओं को भेजता है, फिर वह बादलों को उठाती हैं फिर हम इनको खुश्क कर के ज़मीन की तरफ हाँक ले जाते हैं, फिर हम इनको इसके ज़रिए से ज़मीन को जिंदा करते हैं. इसी तरह (रोज़े -हश्र  इंसानों का) जी उठाना है. जो लोग इज्ज़त हासिल करना चाहें तो, तमाम इज्ज़त अल्लाह के लिए ही हैं.
अच्छा कलाम इन्हीं तक पहुँचता है और अच्छा काम इन्हें पहुँचाता है."
सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (८-१०)

इन आयतों के एक एक जुमले पर गौर करिए कि उम्मी अल्लाह क्या कहता है?
*मतलब ये कि अच्छे और बुरे दोनों कामों के फ़ायदे हैं मगर दोनों बराबर नहीं हो सकते.
*मुसलामानों के लिए सबसे भला काम है= जिहाद, फिर नमाज़, ज़कात और हज वगैरा और बुरा काम इन की मुख्लिफत.
*जब अल्लाह ही बन्दे को गुमराह करता है तो ख़ता वार अल्लाह हुवा या बंदा?
*जिसको हिदायत नहीं देता तो उसे दोज़ख में क्यूँ डालता है ? क्या इस लिए कि उससे, उसका पेट भरने का वादा किए हुए है ?
*जब सब कामों की खबर है तो बेखबरी किस बात की? फ़ौरन सज़ा या मज़ा चखा दे, क़यामत आने का इंतज़ार कैसा? बुरे करने ही क्यूँ देता है इंसान को?
*अल्लाह हवाओं को हाँकता है, जैसे चरवाहे मुहम्मद बकरियों को हाँका करते थे.
*गोया इंसान कि दफ़्न होगा और रोज़ हश्र बीज की तरह उग आएगा. फिर सारे आमाल की खबर रखने वाला अल्लाह खुद भी नींद से उठेगा और लोगों  के आमालों का हिसाब किताब करेगा.
*"तमाम इज्ज़त अल्लाह के लिए ही हैं." तब तो तुम इसके पीछे नाहक भागते हो, इस दुन्य में बेईज्ज़त बन कर ही जीना है. जो मुस्लमान जी रहे हैं.
मुसलमानों! तुम जागो. अल्लाह को सोने दो. क़यामत हर खित्ता ए ज़मीन पर तुम्हारे लिए आई हुई है. पल पल तुम क़यामत की आग में झुलस रहे हो. कब तुम्हारे समझ में आएगा. क़यामत पसंद मुहम्मद हर तालिबान में जिंदा है जो मासूम बच्चियों को तालीम से ग़ाफ़िल किए हुए है. गैरत मंद औरतों पर कोड़े बरसा कर ज़िन्दा दफ़्न करता है. ठीक ऐसा ही ज़िन्दा मुहम्मद करता था.

"अल्लाह ने तुम्हें मिटटी से पैदा किया, फिर नुत्फ़े से पैदा किया, फिर तुमको जोड़े जोड़े बनाया और न किसी औरत को हमल रहता है, न वह  जनती है, मगर सब उसकी इत्तेला से होता है और न किसी की उम्र ज़्यादः की जाती है न उम्र कम की जाती है मगर सब लूहे-महफूज़ (आसमान में पत्थर पर लिखी हुई किताब) में होता हो.ये सब अल्लाह को आसान है."
सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (११)

इंसान के तकमील का तरीका कई बार बतला चुके हैं अल्लाह मियाँ! कभी अपने बारे में भी बतलाएँ कि आप किस तरह से वजूद में आए.
उम्मी का ये अंदाज़ा यहीं तक महदूद है. वह अनासिरे खमसा (पञ्च तत्व) से बे खबर है,"मिटटी से भी और फिर नुत्फे से भी"? मुहम्मद तमाम मेडिकल साइंस को कूड़े दान में डाले हुए हैं. मुसलमान आसमानी पहेली को सदियों से बूझे और बुझाए हुए है.

"और दोनों दरिया बराबर नहीं है, एक तो शीरीं प्यास बुझाने वाला है जिसका पीना आसन है. और एक खारा तल्ख़ है और तुम हर एक से ताजः गोश्त खाते हो, जेवर निकलते हो जिसको तुम पहनते हो और तू कश्तियों को इसमें देखता है, पानी को फाड़ती हुई चलती हैं, ताकि तुम इससे रोज़ी ढूढो और शुक्र करो."

सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१२)


मुहम्मदी अल्लाह की जनरल नालेज देखिए कि खारे समन्दर को दूसरा दरिया कहते हैं , ताजः मछली को ताजः गोश्त कहते हैं , मोतियों को जेवर कहते हैं. हर जगह ओलिमा अल्लाह की इस्लाह करते हैं. भोले भाले और जज़बाती मुसलामानों को गुमराह करते हैं. 

"वह रात को दिन में और दिन को रात दाखिल कर देता है. उसने सूरज और चाँद को काम पर लगा रक्खा है. हर एक वक्ते-मुक़र्रर पर चलते रहेंगे. यही अल्लाह तुम्हारा परवर दिगार है और इसी की सल्तनत है और तुम जिसको पुकारते हो उसको खजूर की गुठली के छिलके के बराबर भी अख्तियार नहीं" 
सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१३)

रात और दिन आज भी दाखिल हो रहे हैं एक दूसरे में मगर वहीँ जहाँ तालीम की रौशनी अभी तक नहीं पहुची है. अल्लाह सूरज और चाँद को काम पर लगाए हुए है अभी भी जहां आलिमाने-दीन की बद आमालियाँ  है. मुहम्मदी अल्लाह की हुकूमत कायम रहेगी जब तक इस्लाम मुसलामानों को सफ़ा ए हस्ती से नेस्त नाबूद न कर देगा.

"अगर वह तुमको चाहे तो फ़ना कर दे और एक नई मखलूक पैदा कर दे, अल्लाह के लिए ये मुश्किल  नहीं."
सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१४)

अल्लाह क्या, कोई भी गुंडा बदमाश किसी को फ़ना कर सकता है.
मगर मख्लूको में इंसान भी एक किस्म की मखलूक, अगर वह वह इसे ख़त्म कर दे तो पैगम्बरी किस पर झाडेंगे?
मैं बार बार मुहम्मद की अय्यारी और झूट को उजागर कर रहा हूँ ताकि आप जाने कि उनकी हक़ीक़त क्या है. यहाँ पर मख़लूक की जगह वह काफ़िर जैसे इंसानों को मुखातिब करना चाहते हैं मगर इस्तेमाल कर रहे हैं शायरी लफ्फाजी.

"आप तो सिर्फ़ ऐसे लोगों को डरा सकते हैं जो बिन देखे अल्लाह से डर सकते हों और नमाज़ की पाबंदी करते हों."
सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१८)

बेशक ऐसे गधे ही आप की सवारी बने हुए हैं.

"और अँधा और आँखों वाला बराबर नहीं हो सकते और न तारीकी और रौशनी, न छाँव और धूप और ज़िंदे मुर्दे बराबर नहीं हो सकते. अल्लाह जिस को चाहता है सुनवा देता है. और आप उन लोगों को नहीं सुना सकते जो क़ब्रों में हैं." 
सूरह फ़ातिर -३५ पारा -२२ आयत (१९-२२)

मगर या अल्लाह तू कहना क्या चाहता है, 
तू ये तो नहीं रहा कि मुल्ला जी और डाक्टर बराबर नहीं हो सकते.
जो इस पैगाम को सुनने से पहले क़ब्रों में चले गए, क्या उन पर भी तू रोज़े-हश्र मुक़दमा चला कर दोज़खी जेलों में ठूँस देगा ? तेरा उम्मी रसूल तो यही कहता है कि उसका बाप अब्दुल्लह भी जहन्नम रसीदा होगा.
या अल्लाह क्या तू इतना नाइंसाफ़ हो सकता है?
दुन्या को शर सिखाने वाले फित्तीन के मरहूम वालिद का उसके जुर्मों में क्या कुसूर हो सकता है? 

कलामे दीगराँ - - - 
"आदमी में बुराई ये है कि वह दूसरे का मुअल्लिम (शिक्षक) बनना चाहता है और बीमारी ये है कि वह अपने खेतों की परवाह नहीं करता और दूसरे के खेतों की निराई करने का ठेका ले लेता है."
" कानफ़्यूशश"
यह है कलाम पाक 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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