Sunday 26 May 2013

सूरह अल-ज़ुमर ३९

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३
(1)

"यह नाज़िल की हुई किताब है अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाले की तरफ से "
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (१)
नाज़िल और ग़ालिब यह दोनों अल्फाज़ मकरूह हैं अगर रहमान और रहीम, वह खालिक़ ए कायनात कोई है तो. नाज़िल वह शै होती है जो नाज़ला हो. वबाई हालत में कोई आफ़त नाज़ला होती है.
ग़ालिब वह सूरतें होती हैं जिसका वजूद पर ग़लबा हो,  जो हठ धर्मी और ना इंसाफी का एक पहलू होता है. अल्लाह अगर नाज़ला और ग़लबा में रखता है तो वह ख़ालिक़ हो ही नहीं सकता.
कुदरत तो हर शै को उसके वजूद में आने के लिए मददगार होती है. वजूद का मज़ा लेकर वह उसे फ़ना की तरफ़ माइल कर देती है.
इस्लाम, का अल्लाह और इसका रसूल मखलूक के लिए नाज़ला और ग़लबा ही हैं. इसमें रहकर क़ुदरत  की बख्शी हुई नेमतों से महरूमी है . 

"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मखलूक में से जिसको चाहता है मुन्तखिब फ़रमाता है. वह पाक है और ऐसा है जो वाहिद है, ज़बरदस्त है."
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (४)

ईसा को खुदा का बेटा कहने वाले ईसाइयों पर वार करते हुए कुरआन में बार बार कहा गया है कि "लम यलिद वलम यूलद" न वह किसी का बाप है और न किसी का बेटा. अब मुहम्मद कह रहे है "अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मखलूक में से जिसको चाहता है मुन्तखिब फ़रमाता है."
कुरान तज़ाद (विरोधाभास) का का अफ़साना है. मुहम्मद खुद इस बात के इमकानात की सूरत पैदा कर रहे हैं 

"और तुम्हारे नफ़े के लिए आठ नर मादा चार पायों को पैदा किये और तुम्हें माँ के पेट में एक कैफियत के बाद दूसरी कैफियत में बनाता है, तीन तारीखों में. ये है अल्लाह तुम्हारा रब, इसी की सल्तनत है.  इसके सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं. सो तुम कहाँ फिरे चले जा रहे हो?"
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (६)

कुरआन के ख़िलाफ़ अब इससे ज़्यादः और क्या सुबूत हो सकता है कि यह किसी अनपढ़,मूरख और कठ मुल्ले की पोथी है.
वह सिर्फ आठ चौपायों की ख़बर रखता है, उसे इस बात की कहाँ ख़बर है कि एक एक चौपायों की सौ सौ इक्साम हो सकती हैं. हमल में इंसान की तीन सूरतें भी उसके जिहालत का सुबूत है, पिछले बाबों में इसका ज़िक्र आ चुका है

"ऐ बन्दों! मुझ से डरो. और जो लोग शैतान की इबादत करने से बचते हैं, अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जे होते हैं, वह मुस्तहक खुश ख़बरी सुनाने के हैं, सो आप मेरे इन बन्दों को खुश ख़बरी सुना दीजिए जो इस कलाम को कान लगा कर सुनते हैं, फिर उसकी अच्छी अच्छी बातों पर चलते हैं, यही हैं जिन को अल्लाह ने हिदायत की. और यही हैं जो अहले अक्ल हैं."
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (१७-१८)

कोई खुदा यह कह सकता है क्या?
दर पर्दा मुहम्मद ही अल्लाह बने हुए हैं ये बात जिस दिन आम मुसलामानों की समझ में आ जाएगी इसी दिन उनको अपने बुजुगों के साथ ज़ुल्म ओ सितम के घाव नज़र आ जाएँगे.
कुरआन में एक बात भी अच्छी नहीं है अगर कोई है तो वह आलमी सच्चियों कि सूरत है.
मुसलामानों कुरआन तुम्हें सिर्फ गुमराह करता है .

"लेकिन जो लोग अपने रब से डरते हैं उनके लिए बाला खाने है. जिन के ऊपर और बाला खाने हैं, जो बने बनाए तय्यार हैं. इसके नीचे नहरें चल रही हैं, ये अल्लाह ने वादा किया है. अल्लाह वादा खिलाफी नहीं करता. क्या तूने इस पर कभी नज़र नहीं की कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया फिर इसको ज़मीन के सोतों में दाखिल कर देता है, फिर इसके ज़रीए  से खेतियाँ करता है जिसकी कई क़िस्में हैं, फिर वह खेती बिलकुल ख़ुश्क हो जाती है सो इनको तू ज़र्द देखता है, फिर इसको चूरा चूरा कर देता है. इसमें अहले अक्ल के लिए बड़ी इबरत है.
सूरह अल-ज़ुमर ३९ पारा २३- आयत (२०-२१)


ए उम्मी! आजकल तेरे बाला खाने से लाख गुना बेहतर इंसानी पाखाने बन गए हैं. हज़ारों खाने वाली सैकड़ों मंज़िल की इमारतें खड़ी होकर तुझे मुँह चिढ़ा रही हैं. तूने मुसलामानों पर हराम कर रखी हैं इंसानी काविशों की बरकतें. तूने तो सिर्फ़ अपने ख़ानदान  कुरैश की बेहतरी तक सोंचा था, अब तो हर एक बिरादरी में एक कठ मुल्ला, मुहम्मद बना बैठा है. उनके ऊपर मौलानाओं की टोली फ़तवा लिए बैठी है, औए इससे भी कोई बाग़ी हुआ तो मफ़िया सरगना सर काटने को तैयार है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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