Sunday 16 June 2013

सूरह मोमिन ४०

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह मोमिन ४० पारा ४ 
दूसरी क़िस्त   


मुसलमानों! तुम अगर अपना झूटा मज़हब इस्लाम को तर्क कर के मोमिन हो जाओ तो तमाम कौमें तुम्हारी पैरवी के लिए आमादा नज़र आएँगी. कौन कमबख्त ईमान दारी की कद्र नहीं करेगा? माज़ी की तमाम दुन्या लाशऊरी तौर पर मौजूदा दुन्या की हुकूमतों को ईमानदार बनने के लिए कुलबुला रही है, मगर मज़हबी कशमकश इनके आड़े आती है. चीन पहला मुल्क है जिसने मज़हबी वबा से छुटकारा पा लिया है नतीजतन वह ज़माने में सुर्खुरू होता जा रहा है, शायद हम चीन की सच्ची सियासत की पैरवी पर मजबूर हो जाएं.
मोमिन लफ्ज़ अरबी है, इसके लिए तमाम इंसानियत अरबों की शुक्र गुज़ार है कि इतना पाक साफ़ शुद्ध और लाजवाब लफ्ज़ दुन्या को उन्हों ने दिया जिसे एक अरब ने ही इस्लाम का नाम देकर इस पर डाका डाला और लूट कर खोखला कर दिया.मगर इसका असर अभी भी क़ायम है.
ऐसे ही "सेकुलर" लफ्ज़ को हमारे नेताओं ने लूटा है. सेकुलर के मानी हैं "ला मज़हब" जिसका नया मानी इन्हों ने गढ़ा है 
"सभी मज़हब को लिहाज़ में लाना"
 सियासत दान और मज़हबी लोग ही गैर मोमिन होते हैं, अवाम तो मोम की तरह मोमिन, होती है, हर सांचे में ढल जाती है.
देखिए कि लुटेरा दीन क्या कहता है - - -

"वह लोग कहेंगे कि ए मेरे परवर दिगार! आप ने हमें दो बार मुर्दा रखा और दो बार ज़िन्दगी दी, सो हम अपनी ख़ताओं का इक़रार करते हैं, तो क्या निकलने की कोई सूरत है? फ़रमाएगा हरगिज़ नहीं, इस लिए कि जब एक अकेले अल्लाह से दुआ करने को कहा जाता था, तो तुम ने मुख्तलिफ़ की, की थी और अल्लाह के साथ जब किसी दूसरे को शरीक करने को कहा जाता था तो तुम ने कुबूल कर लिया, बस आज अल्लाह आली शान जो सब से बड़ा है, उसका हुक्म हो चुका है."
 सूरह मोमिन ४० पारा २४ आयत (११-१२)

मुहम्मद गलती से कह रहे हैं कि "दो बार मुर्दा रखा" मौत तो एक बार ही आती है - - - खैर ये इंसानी भूल चूक है, कोई कुदरत की नहीं, मुहम्मदी अल्लाह न कुदरत है न अल्लाह की कुदरत.  
कई बार मैं बतला चुका हूँ कि मुहम्मद की खसलत और फ़ितरत ही उनके रचे हुए अल्लाह की हुवा करती है कि वह कितना बे रहेम और ज़ालिम है. अपनी तबीअत के मुताबिक ही रचा है अल्लाह को.
"वह रफीउद दर्जात, वह अर्श का मालिक है, वह अपने बन्दों में से ही जिस पर चाहता है, वह्यी यानी अपना हुक्म भेजता है ताकि इज्तेमा के दिन से डराए. जिस दिन सब लोग सामने आ मौजूद होंगे. इनकी बात अल्लाह से छुपी नहीं होगी. आज के रोज़ किसकी हुकूमत होगी, बस अल्लाह की होगी. जो यकता ग़ालिब है. आज हर एक को इसके किए का बदला दिया जायगा, आज ज़ुल्म न होगा, अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है. और आप लोगों को एक करीब आने वाली मुसीबत से डराएँ, जिस रोज़ कलेजे मुँह को आ जाएँगे, घुट घुट जाएँगे. जालिमों का कोई दोस्त होगा न सिफारसी."
सूरह मोमिन ४० पारा २४ आयत (१५-१८)

उम्मी मुहम्मद कहते है "आज के रोज़ किसकी हुकूमत होगी, बस अल्लाह की होगी" जैसे बाकी दिनों में शैतान की हुकूमत रहती हो. क़यामत का हर मंज़र नामा जुदा जुदा होता है, यह उनके झूट की क़िस्में हैं.
"और फ़िरओन ने कहा मुझको छोड़ दो मैं मूसा को क़त्ल कर डालूँगा, उसको चाहिए कि अपने रब को पुकारे. हमको अंदेशा है कि वह तुम्हारा दीन बदल डालेगा या मुल्क में कोई खराबी फैला दे.और मूसा ने कहा मैं अपने और तुम्हारे रब की पनाह लेता हूँ और हर ख़र दिमाग़ शख्स से जो रोज़े हिसाब पर यक़ीन नहीं रखता "
सूरह मोमिन ४० पारा २४ आयत (२६-२७)

जाह ओ जलाल वाला बादशाह कहता है मुझ को छोड़ दो? जैसे उसको किसी ने पकड़ रक्खा हो. बादशाह के एक इशारे से मूसा की गर्दन उड़ाई जा सकती थी. बेवकूफ खुद साख्ता रसूल को इन बातों की तमाज़त कहाँ थी. वह उस ज़माने में मूसा से इस्लाम की तबलीग कराता है. और इस वक़्त की उसकी उम्मत को क्या कहा जाए, उसने तो अकीदत के नाम पर जिहालत खरीद रख्खी है.
सानेहा ये है कि मुसलमान इन बातों को समझने की कोशिश नहीं करता. फ़िरओन की ज़िन्दगी के इन्हीं बातों को अल्लाह ने कान लगा कर सुना और मुहम्मद के कान में जिब्रील से फुसकी करवाया.

"और एक मोमिन शख्स जो फ़िरऔन के ख़ानदान से थे, अपना ईमान पोशीदा रक्खे हुए थे, कहा कि तुम एक शख्स को इस बात पर क़त्ल करते हो कि वह कहता है मेरा परवर दिगार अल्लाह है, हाँलाकि वह तुम्हारे रब की तरफ़ से दलील लाया है कि अगर वह झूठा है तो उसके झूट का वबाल उसी पर पडेगा और अगर वह सच्चा है तो इसकी पेश ख़बरी के मुताबिक तुम पर कोई अज़ाब भी आ सकता है. जान रक्खो कि अल्लाह ऐसे शख्स को राह नहीं देता जो हद से बढ़ जाने वाला और झूठा हो."
सूरह मोमिन ४० पारा २४ आयत (२८)

इस्लाम से दो हज़ार साल पहले ही कोई मोमिन पैदा हो गया था जो ईमान को पोशीदा रक्खे हुए था?
मुहम्मद जो ज़बान पर आता बक जाते उनकी हर गलत बात का जवाब ओलिमा ने गढ़ रक्खे हैं. इस बात का जवाब उन्हों ने इस तरह बना रक्खा है कि इस्लाम दीने इब्रामी मज़हब है.
उनसे कोई पूछे कि खुद नबी का बाप जहन्नम में क्यूँ जल रहा है जैस कि मुहम्मद खुद कहते हैं कि उनका बाप  जहन्नम रसीदा हुवा.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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