Friday 6 February 2015

Soorah Alkaria 101/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह अलक़ारिआ १०१- पारा ३०
(अल्क़ारेअतो मल्क़ारेअतो)
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

एक बच्चे ने बाग़ में बैठे कुछ बुजुर्गों से, आकर पूछा क़ि क्या उनमें से कोई उसके एक सवाल का जवाब दे सकता है?
छोटा बच्चा था, लोगों ने उसकी दिलजोई की, बोले पूछो.
बच्चे ने कहा एक बिल्ली अपने बच्चे के साथ सड़क पार कर रही थी क़ि अचानक एक कार के नीचे आकर मर गई, मगर उसका बच्चा बच गया, बच्चे ने आकर अपनी माँ के कान में कुछ कहा और वहां से चला गया. ,
आप लोगों में कोई बतलाए क़ि बच्चे ने अपनी माँ के कान में क्या कहा होगा ?
बुड्ढ़े अपनी अपनी समझ से उस बच्चे को बारी बारी जवाब देते रहा जिसे बच्चा ख़ारिज करता रहा. थक हर कर बुड्ढों ने कहा , अच्छा भाई  हारी, तुम ही बतलाओ क्या कहा होगा?
बच्चे ने कहा उसने अपनी माँ के कान में कहा था "मियाऊँ"
आलिमान दीन की चुनौती है कि कुरआन का सही मतलब समझना हर एक की बस की बात नहीं, वह ठीक ही समझते है क़ि मियाऊँ को कौन समझ सकता है? मुहम्मद के मियाऊँ का मतलब है "क़यामत ज़रूर आएगी"

देखिए क़ि मुहम्मद उम्मी सूरह में आयतों को सूखे पत्ते की तरह खड़खडाते हैं. सूखे पत्ते सिर्फ जलाने के काम आते हैं. वक़्त का तकाज़ा है क़ि सूखे पत्तों की तरह ही इन कुरानी आयतों को जला दिया जाए - - - 

सूरह अलक़ारिआ १०१- पारा ३०
"वह खड़खडाने वाली चीज़ कैसी कुछ है, वह खड़खडाने वाली चीज़,
वह खाद्खादाने वाली चीज़ कैसी कुछ है वह खड़खडाने वाली चीज़,
और आपको मालूम है कैसी कुछ है वह खड़खडाने वाली चीज़,
जिस रोज़ आदमी परेशान परवानों जैसे हो जाएगे.
और पहाड़ रंगीन धुनी हुई रूई की तरह हो जाएगे,
फिर जिस शख्स का पल्ला भरी होगा,
वह तो खातिर ख्वाह आराम में होगा,
और जिसका पल्ला हल्का होगा,
तो उसका ठिकाना हाविया होगा,और आपको मालूम है, वह हाविया क्या है?
वह एक दहकती हुई आग है."
सूरह अलक़ारिआ १०१- पारा ३० आयत (१-११)
 नमाज़ियो !
इस सूरह को ज़बान ए उर्दू में हिफज़ करो उसके बाद एक हफ्ते तक अपनी नमाज़ों में ज़बान ए उर्दू में (या जो भी आपकी मादरी ज़बान हो), अल्हम्द के बाद इसे ही जोड़ो. अगर तुम उस्तुवार पसंद हो तो तुम्हारे अन्दर एक नया नमाज़ी नमूदार होगा. वह मोमिन की राह तलाश करेगा, जहाँ सदाक़त और उस्तुवारी है.
नमाज़ के लिए जाना है तो ज़रूर जाओ, उस वक्फे में वजूद की गहराई में उतरो, खुद को तलाश करो. अपने आपको पा जाओगे तो वही तुम्हारा अल्लाह होगा. उसको संभालो और अपनी ज़िन्दगी का मकसद तुम खुद मुक़र्रर करो.
तुम्हें इन नमाज़ों के बदले 'मनन चिंतन' की ज़रुरत है. इस धरती पर आए हो तो इसके लिए खुद को इसके हवाले करो, इसके हर जीव की खिदमत तुम्हारी ज़िन्दगी का मक़सद होना चाहिए, इसे कहते हैं ईमान, क़ि जो झूट का इस्तेमाल किसी भी हालत में न करे. तुम्हारे कुरआन में  मुहम्मदी झूट का अंबार है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment