Saturday 28 February 2015

Soorah Teen 95/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
****************

सूरह तीन ९५  - पारा ३० 
(वत्तीने वज्जैतूने वतूरे सीनीना) 
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

अल्लाह क्या है?
अल्लाह एक वह्म, एक गुमान है.
अल्लाह का कोई भी ऐसा वजूद नहीं जो मज़ाहिब बतलाते हैं.
अल्लाह एक अंदाजा है, एक खौफ़ है.
अल्लाह एक अक़ीदा है जो विरासत या जेहनी गुलामी के मार्फ़त मिलता है.
अल्लाह हद्दे ज़ेहन है या अकली कमजोरी की अलामत है,
अल्लाह अवामी राय है या फिर दिल की चाहत,
कुछ लोगों की राय है कि अल्लाह कोई ताक़त है जिसे सुप्रीम पावर भी कह जाता है?
अल्लाह कुछ भी नहीं है, गुनाह और बद आमाली कोई फ़ेल नहीं होता, इन बातों का यक़ीन करके अगर कोई शख्स इंसानी क़द्रों से बगावत करता है तो वह बद आमाली की किसी हद को पार कर सकता है.
ऐसे कमज़ोर इंसानों के लिए अल्लाह को मनवाना ज़रूरी है.
वैसे अल्लाह के मानने वाले भी गुनहगारी की तमाम हदें पर कर जाते हैं.
बल्कि अल्लाह के यक़ीन का मुज़ाहिरा करने वाले और अल्लाह की अलम बरदारी करने वाले सौ फीसद दर पर्दा बेज़मिर मुजरिम देखे गए हैं.
बेहतर होगा कि बच्चों को दीनी तालीम देने की बजाय  अख्लाक्यात पढाई जाए, वह भी जदीद तरीन इंसानी क़द्रें जो मुस्तकबिल करीब में उनके लिए फायदेमंद हों.
मुस्तकबिल बईद में इंसानी क़द्रों के बदलते रहने के इमकानात हुवा करते है.
देखिए कि अल्लाह किन किन चीज़ों की कसमें खाता है और क्यूँ कसमें खाता है. अल्लाह को कंकड़ पत्थर और कुत्ता बिल्ली की क़सम खाना ही बाकी बचता है - - -

"क़सम है इन्जीर की,
और ज़ैतून की,
और तूर ए सीनैन  की,
और उस अमन वाले शहर की,
कि हमने इंसानों को बहुत खूब सूरत साँचे में ढाला है.
फिर हम इसको पस्ती की हालत वालों से भी पस्त कर देते हैं.
लेकिन जो लोग ईमान ले आए और अच्छे काम किए तो उनके लिए इस कद्र सवाब है जो कभी मुन्क़ता न होगा.
फिर कौन सी चीज़ तुझे क़यामत के लिए मुनकिर बना रही है?
क्या अल्लाह सब हाकिमों से बड़ा हाकिम नहीं है?"
सूरह तीन ९५  - पारा ३० आयत (१-८)

नमाज़ियो!
मुहम्मदी अल्लाह और मुहम्मदी शैतान में बहुत सी यकसानियत है. दोनों हर जगह मौजूद रहते है, दोनों इंसानों को गुमराह करते हैं.
मुसलामानों का ये मुहाविरा बन कर रह गया है कि 
"जिसको अल्लाह गुमराह करे उसको कोई राह पर नहीं ला सकता"
आपने देखा होगा कि कुरआन में सैकड़ों बार ये बात है कि वह अपने बन्दों को गूंगा, बहरा और अँधा बना देता है.
इस सूरह में भी यही काम अल्लाह करता है,
कि "हमने इंसानों को बहु खूब सूरत साँचे में ढ़ाला है."
"फिर हम इसको पस्ती की हालत वालों से भी पस्त कर देते हैं."
गोया इंसानों पर अल्लाह के बाप का राज है.
अगर इंसान को अल्लाह ने इतना कमज़ोर और अपना मातेहत पैदा किया है तो उस अल्लाह की ऐसी की तैसी.
इससे कनारा कशी अख्तियार कर लो. बस अपने दिमाग की खिड़की खोलने की ज़रुरत है.
कहीं जन्नत के लालची तो नहीं हो?
या फिर दोज़ख की आग से हवा खिसकती है?
इन दोनों बातों से परे, मर्द मोमिन बनो, इस्लाम को तर्क करके.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment