Friday 27 November 2015

Soorah Infaal 8 qist 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफाल 8 
(चौथी किस्त)

'' और जब उन लोगों ने कहा ऐ अल्लाह ! अगर यह आप की तरफ से वाकई है तो हम पर आसमान से पत्थर बरसाए या हम पर कोई दर्द नाक अज़ाब नाज़िल कर दीजिए.''
काफ़िरों का बहुत ही जायज़ एहतेजाज था, और मुहम्मद के लिए यह एक चुनौती थी.
''और तुम उन कुफ्फारो से इस हद तक लड़ो की उन्हें फ़सादे अक़ीदत न रहे और दीन अल्लाह का ही क़ायम हो जाए, फिर अगर वह बअज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके अअमाल को खूब देखते हैं.''
ऐसी जिहादी आयतों से कुरआन भरा हुवा है, जिस पर तालिबान जैसे पागल अमल कर रहे है और कुत्तों की मौत मारे जा रहे है.
''और जान लो जो शै बतौर गनीमत तुम को हासिल हो तो कुल का पाँचवां हिस्सा अल्लाह और उसके रसूल का है और आप के क़राबत दारों का है और यतीमो का है और गरीबों का है और मुसाफिरों का है, अगर तुम अल्लाह पर यक़ीन रखते हो तो.''
सूरह इंफाल ८ नौवाँ परा आयत ( ३२ - ३९ - ४१)
मैं एक बार फिर अपने पाठकों को बतला दूं कि जंग में लूटे हुए माल को मुहम्मद ने माले गनीमत नाम दिया और इसको ज़रीया मुआश का एक साधन करार दिया.
यह बात पहले लूट मार और डकैती जैसे बुरे नाम से जानी जाती थी जिसको उन्होंने वाहियों के नाटक से अपने ऊपर जायज़ कराया. माले गनीमत के बटवारे का कानून भी अल्लाह बतलाता है ,
वह अपना पांचवां हिस्सा आसमान से उतर कर ले जाता है, उसके बाद यतीमों, गरीबों और मुसफिरून का हिसा कायम करके रसूल अपने यहाँ रखवाते, 
कहीं कोई इदारह ए फलाह ओ बहबूद उनकी ज़िन्दगी में इनके लिए कायम नहीं हुवा. 
खुद अपने मुसाहिबों में तकसीम करके अपनी शान बघारते, 
जो बुनयादी फायदे होते उससे कुरैशियो कि जड़ें मज़बूत होती रहतीं. 
उनकी मौत के बाद ही उनकी सींची हुई बाग़ कुरैशियों के लिए लहलहा उट्ठी, अली हसन, हुसैन और यजीद इस्लामी शहजादे बन कर उभरे. कुछ रद्दे-अमल में क़त्ल हुए और कुछ आज तक फल फूल रहे हैं.
हमें गम है कि हम न अरब हैं, हम न कुरैश हैं और हम न अल्वी न यजीदी हैं, हम भारतीय हैं, हम भला इस्लाम कि ज़द में आकर क्यों इसके शिकार बने हुए है?

''इस ने अपनी हिकमत अमली से कभी दुश्मनों को मोमिनों कि लश्कर को कसीर दिखला कर और कभी मोमिनों की हौसलों को बढाने के लिए काफिरों कि फ़ौज को मुख़्तसर दिखलाया .''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ४३)
मुहम्मद को अपने अल्लाह से दगाबाजी का काम कराने से भी कोई परहेज़ नहीं करते. 
नादान भोले भाले मुसलमान तो इसकी गहराई में जाते ही नहीं, मगर यह तालीम याफ़्ता मुसलमान इस बात को नज़र अंदाज़ करके कौम को पस्ती में डाले हुए हैं. अगर यह आगे आएँ तो वह इनके पीछे चलने की हिम्मत कर सकते है.
''काफ़िरों को हिम्मत बंधाने वाला शैतान , मुसलमानों के लिए मदद आता देख कर, सर पर पाँव रखकर भागता है, यह कहते हुए कि मैं तो अल्लाह से डरता हूँ.
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( 48 )
यह है मुसलामानों तुम्हारा क़ुरआन और तुम्हारा दीन जो कि बच्चों को दिल बहलाने के लिए किसी कार्टून फिल्म के किरदार की तरह है. 
क्या इसी पर तुम्हारा ईमान है? 
क्या तुम इस पर कभी शर्मिंदा नहीं होते? 
या तुम को यह सब कुछ बतलाया ही नहीं जाता, 
तुमसे क्यूँ यह बातें छिपाई जाती हैं? 
या फिर तुम हिन्दुओं के देवी देवताओं की पौराणिक कथाओं को जानते हुए इन बातों को उन से बेहतर मानते हो? 
ज़रा सोचो मुहम्मद ने किस समझदार शैतान को तुमको बहकाने के लिए गढ़ा है कि तुम सदियों से उसकी गुमराही में भटकते रहोगे .आँखें खोलो.
उम्मी मुहम्मद गधी मख़लूक़ को समझाते हैं - - - चूँकि शैतान भी अल्लाह से डरता है, इस लिए तुमको भी अल्लाह से डरना चाहिए. और यह मख़लूक़ इस बात को समझ ही नहीं पाती कि बेवकूफ मुहम्मद उससे शैतान की पैरवी करा रहे है. 

''देखें जब यह फ़रिश्ते काफिरों की जान कब्ज़ करने जाते हैं और आग की सजा झेलना, ये इसकी वजेह से है कि तुम ने अपने हाथों समेटे हैं कि अल्लाह बन्दों पे ज़ुल्म नहीं करता.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५०-५१)
वाह ! कितने रहम दिल हैं अल्लाह मियाँ. 
खुद ज़ुल्म करते हैं और अपने फरिश्तों से कराते है 

कि इस्लाम कुबूल करने के बाद मुसलमान हर वक़्त डरा सहमा रहता है अपने अल्लाह से.
क्यूँ ? क्या उसका जुर्म यह है कि वह उसकी धरती पर पैदा हो गया? 
मगर वह अपनी मर्ज़ी से कहाँ इस दुन्या में आया? 
वह तो अपने माँ बाप के उमंग और आरज़ू का नतीजा है. 
उसके बाद भी मेहनत और मशक्कत से दो वक़्त की रोज़ी रोटी कमाता है, 
उसके लिए मुहम्मदी अल्लाह को टेक्स दे? 
उस से डरे उसके सामने मत्था टेके, 
गिड़गिडाए ? 
भला क्यूं? 
अपने वजूद को दोज़ख के न बुझने वाले अंगारों के हवाले करने का यकीन क्यूं करें?

'' बिला शुबहा अल्लाह तअला बड़ी क़ूवत वाले हैं''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५२)

जो ''कुन'' कह कर इतनी बड़ी कायनात की तखलीक करदे उसकी कूवत का यकीन एक अदना बन्दा से क्यूँ करा रहा है ? 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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