Monday 16 November 2015

सूरह इंफाल - ८ पहली किस्त

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफाल - ८
पहली किस्त 
निंगलो या उगलो

अभी कल की बात है कि रूस में वहां के बशिदे बदलाव चाहते थे, वह अपनी रियासतों को अपना मुल्क बनाना चाहते थे, उन्होंने इसकी आवाज़ बुलंद की. सदर रूस ने उन्हें इस तरह आगाह किया कि अलग होने से पहले एक हज़ार बार सोचो फिर हमें बतलाओ कि क्या इसका नतीजा तुम्हारे हक में होगा? जनता ने एक हज़ार बार सोचने के बाद अपनी मांग दोहराई. बिना किसी खून खराबे के सात आठ राज्यों को रूस ने आजाद कर दिया. 
भारत की तरह रियासतों को अपना अभिन्न नहीं बतलाया.
इसी तरह कैनाडा में फ्रंस्सिसी लाबी ने कैनाडा से बाहर होकर अपना मुल्क चाहते हैं, उनकी आवाज़ पर कैनाडा में तीन बार राय शुमारी हुई मगर बहुत मामूली अंतर से वह तीनो बार हारे. वहां के सभी समाज ने इस पर एक क़तरा भी खून न बहने दिया. राय आमा को सर आँखों पर रख कर अपने अपने कामों पर लग गए.
सदियों पहले गीता में कहा गया है कि परिवर्तन प्रक्रति का नियम है. किसी मुफक्किर की राय है कि हर हिस्सा ए ज़मीन में कोई बादशाहत या कोई निज़ाम पचास साल से ज्यादह नहीं पसंद किया जाता.
फिराक कहता है
निज़ामे दहर बदले, आसमाँ बदले, ज़मीं बदले,
कोई बैठा रहे कब तक हयात-बेअसर लेके.
तुलसी दास जी कहते हैं
रघु कुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई.
भारत ने राष्ट्र मंडल में वचन दिय हुवा है कि कश्मीर में राय शुमारी करा के कश्मीर को कश्मीरियों के हवाले कर देंगे, फिर चाहे वह हिंदुस्तान के साथ रहे, या पाकिस्तान के साथ, अथवा आज़ाद हकर अपना मुल्क बनाएँ.
यह बात किसी फ़र्द का वादा नहीं, बल्कि कौम की कौम को दी हुई ज़बान है जो अलिमी पंचायत में लिखित दी गई है.
आज हिदुस्ताम चरित्र के मामले में दुन्या के आखरी पायदान या उससे कुछ ऊपर है. इसकी वजह यह है कि हम परले दर्जे के बे ईमान लोग हैं.
अब मैं आता हूँ कश्मीर पर कि
ऐ कश्मीरियों तुम्हारे लिए यह हुस्न इत्तेफ़ाक है कि तुम २/३हिदुस्तान के होकर रह रहे हो, तुम हिदुस्तानी होकर एक बड़े मुल्क के बाशिंदे हो, वह भी कश्मीरी होते हुए. हिदुस्तान से अलग होकर क्या रहोगे? नेपाल, भूटान या श्री लंका जैसे छोटे से देश में? गुमनाम होकर रह जाओगे, तुम्हारे हाथ महरूमियों के सिवा कुछ न आएगा. वैसे अलग होकर तुम खाओगे क्या? सेब औए ज़ाफ़रान से अपने पेट भरोगे? क्या तुम मुल्लाओं का शिकार होकर इस्लामी जिहालातों के गोद में जाना चाहते हो ? अलकायदा और तालिबान तुम्हारा शिकार कर लेंगे .
अभी एक बड़े मुल्क के बशिदे होकर तमाम सहूलते तुम्हें मयस्सर हैं खास कर तालीम के मैदान में, इन तमाम मवाके गँवा बैठोगे. वैसे अभी तक तुम कुछ बन नहीं पाए हो. मैं कश्मीर घूमा हूँ कोई किरदार अवाम में नहीं है. पक्के बे इमान, ठग और लड़ाका कौम हो  आजाद होने के बाद भी तुम आपस में लड़ मरोगे. 

अब देखिए कि अल्लाह बने मुहम्मद अपनी झोली भरने के लिए लोगों को कैसे जेहाद के लिए वरगला रहे हैं - -
फ़तह जेहाद में लूटे हुए माल के बटवारे में मुसलामानों में खीचा तानी है. इसे मुहम्मद ने माले गनीमत का नाम दिया है जो मुसलामानों के लिए फतेह का तबर्रुक अर्थात विजय का प्रसाद बन गया है. सारी सृष्टि के व्यवस्था को छोड़ कर ईश्वर इस पिद्दी भर मुआमले को निपटने के लिए फ़रिश्ते जिब्रील को पकड़ता है और बदमाश लुटेर्रों को शान्त करने के लिए मुहम्मद के पास भेजता है. यह फ़तह बदर के बाद के हालात हैं, लूट के माल पर खुद मुहम्मद की नियत खराब हो जाती है। वह अल्लाह और उसके रसूल के नाम पर खुद सारा माल हड़पना चाहते हैं.
''यह लोग आप से गनीमातों का हुक्म दरयाफ्त करते हैं, आप फ़रमा दीजिए कि गनीमतें अल्लाह की हैं और रसूल की हैं. सो तुम अल्लाह से डरो और बाहमी तअल्लुकात की इस्लाह करो. अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करो। अगर तुम ईमान वाले हो.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१)
अज़ीम कुरैश सरदार अबू जेहल (जेहालत की औलाद - - ये नाम मुहम्मद का दिया हुवा हैइसको इस्लाम ने इस क़दर दोहराया कि इसका असली नाम ही ना पैद हो गया. ये मुहम्मद के सगे चाचा थे) को दो अंसारी नौ उम्र लड़कों ने मैदाने जंग में एलाने जंग होने से पहले ही उसकी बे खयाली में कत्ल कर दिया। जंग ख़त्म हुई, मुहम्मद को पता चला कि उनका दुश्मन नंबर १ अबू जेहल मारा गया. पास गए, पहचाना, दाढ़ी पकड़ कर ताने तिश्ने दिए, लोगों ने कहा हुज़ूर यह मुर्दा लाश है इसे क्या सुना रहे हैं? जवाब था तुम्हें नहीं मालूम ये खूब सुन रहा है.
एलान हुआ कि इसको किसने मारा, 
दोनों अंसारी लड़के बहादरी और इनाम की लालच लिए हाज़िर हुए, नीयतें दोनों की खराब हो चुई थीं, दोनों दावे दार थे। माले गनीमत झगडे में पड़ गया, दोनों की तलवारें मंगाई गईं, दोनों तलवारों में खून ताज़ा लगा हुवा था। मुआमला यूं तै हुआ कि एक को अबू जेहल का घोडा दे दिया गया दूसरे को घोड़े की काठी. 
बे शक काठी पाने वाले ने मुहम्मद को ज़रूर कोसा होगाकि उसके साथ ना इंसाफी हुई. इस वाकेए के पसे मंज़र में आप माले गनीमत का लुटेरों में बटवारा समझ गए होगे कि जेहादियों को यूं टरकाया और अबू जेहल की तमाम जायदाद अल्लाह और उसके रसूल की हुई. मुहम्मद लूट का सारा का सारा माल घोट जाने के बाद अपने बन्दों को समझाते और फुसलाते हैं असली माल तो क़ुरआनी आयतें हैं, 
सच्चे मुसलमान की दौलत उनका ईमान है - - -
''बस ईमान वाले तो ऐसे होते हैं कि जब अल्लाह तअला का ज़िक्र आता हैतो उनके कुलूब डर जाते हैं और जब अल्लाह की आयतें उनको पढ़ कर सुनाई जाती हैं तो वह उनके ईमान को ज़राज़्यादा कर देती हैं और वह लोग अपने रब पर तवक्कुल करते हैं.''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (२)
मुहम्मद इस्लामी ईमान के बे ईमान धागे को अपने उँगलियों में बांध कर समाज के बेवकूफों और मजबूरों को कठ पुतलियों की तरह नचा रहे हैं। वह अपनी क़ुरआनी तुकबंदी को क़ल्बी सुकून के लिए सुनना चाहते हैं न कि जेहनी तश्नगी की खातिर. सब्र और संतोष का पाठ उम्मत को और मालो मता अपने हक में कर के आँख मेंधूल झोंक रहे है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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