Friday 22 July 2016

Soorah Luqmaan 31 Q-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह लुकमान ३१-२१ वां पारा

(पहली किस्त)


कहते हैं कि हकीम लुक़मान खेतों में, बागों और जंगलों में सैर करने जाते तो पौदों और पेड़ उनको आवाज़ देकर बुलाते कि हकीम साहब मैं फलाँ बीमारी का इलाज हूँ . और यह बात भी मशहूर है कि अल्लाह मियाँ ने उनको पैगम्बरी की पेश कश की थी जिसे उन्हों ने ठुकरा दिया था कि मुझे हिकमत पसन्द है. 
ये तो खैर किंवदंतियाँ हुईं. 
हकीम साहब आला ज़र्फ़ इंसान रहे होंगे और समझ दार भी, साथ साथ मेहनत कश और हलाल खोर भी. बस यूँ समजें कि आज के परिवेश में एक सच्चा डाक्टर जो इन कुकुरमुत्तों की औलादों बाबा, स्वामी, पीर, गुरू और योगी वगैरह से महान होता है, 
हकीम साहब ने लाखों इंसानी ज़िंदगियाँ बचाईं और उनके नुस्खे यूनानी इलाज के बुनियाद बने हुए हैं. पैगम्बर ने लाखों जिंदगियों को मौत के घाट उतरा और उनके मज़हब मुसलसल इंसानियत का खून किए जा रहे हैं.
सूरह में देखें कि मुहम्मदी अल्लाह ने उस अज़ीम हस्ती को उल्लू का पट्ठा बनाए हुए है. मुहम्मद जिस क़दर मूसा ईसा को जानते थे उतना ही लुकमान हकीम को और ठोंक दी एह सूरह उनके नाम की  भी,
" आलम"
मुहम्मदी छू मंतर. मतलब अल्लाह जाने.

"ये आयतें एक पुर हिकमत किताब की हैं जो कि हिदायत और रहमत है, नेक कारों के लिए. जो नमाज़ की पाबन्दी करते हैं और ज़कात अदा करते हैं और वह लोग आखरत का पूरा यकीन रखते हैं.''
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(२-४)

वाजेह हो कि मुहम्मदी अल्लाह की नज़र में नेक कार नमाज़, ज़कात और आखरत पर यकीन रखना ही है जोकि दर असल कोई कार ही नहीं है. 
नेक कार है हक हलाल की रोज़ी, खून पसीना बहा कार कमाई गई रोटी, इनसे परवरिश पाया हुवा परिवार, इस कमाई से की गई मदद. 
अल्लाह के बन्दों के लिए रोज़ी के ज़राए पैदा करना. 
धरती को सजा संवार कार इससे खाद्य निकालना, 
सनअत क़ायम करना.
कुरान अगर पुर हिकमत किताब होती तो मुसलमान हिकमत लगा कर बहुत सी ईजादों के मूजिद होते. 
कोई ईजाद इन नमाजियों ने नहीं की?

"और बअज़ा आदमी ऐसा है जो उन बातों का खरीदार बनता है जो  गाफ़िल करने वाली हो, ताकि अल्लाह की राह से बेसमझे बूझे गुमराह करे और इसकी हंसी उड़ा दे, ऐसे लोगों को ज़िल्लत का अज़ाब है. और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो वह तकब्बुर करता हुआ मुँह फेर लेता है, जैसे इसने सुना ही न हो, जैसे इसके कानों में नक्श हो."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(६-७)

कैसा मेराकी इंसान था वह जो अल्लाह का रसूल बना हुआ था? 
जो राह चलते राही की राहें रोक रोक क़र परलय आने की बातें करता था. ज़रा आज भी ऐसे दीवाने कि कल्पना कीजिए कि 
कोई पैदा हो जाए तो क्या हो? 
वह खुद लोगों को गफ़लत बेचने में कामयाब हो गया, 
ऐसी गफ़लत कि सदियाँ गुज़र गईं, लोग गाफ़िल हुए पड़े है, पूरी की पूरी कौम गफ़लत के नशे में चूर है.

"अल्लाह ने आसमान को (बहैसियत एक छत) बगैर खम्बे के कायम किया, तुम इसको देख रहे हो और ज़मीन में पहाड़ डाल रक्खे हैं ताकि वह तुम को लेकर डावां डोल न हो.और इस में हर क़िस्म के जानवर फैलाए और हम ने आसमान से पानी बरसाया और फिर हमने ज़मीन पर हर तरह के उम्दा एक्साम उगाए."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१०)

अफ्रीका के क़बीलों में जहाँ अभी तालीम नहीं पहुँची ऐसी आयतों पर अक़ीदा बांधे  हुए हैं जब कि मुसलमान योरोप में रहकर भी नहीं बदले उनका अकीदा भी यही है कि अल्लाह ने आसमानों की छतें बगैर खम्बों के बनाए हुए है और ज़मीन में पहाड़ों के खूँटे गाड़ कार हमें महफूज़ किए हुए है.
मुहम्मद अल्लाह की बखान कभी खुद करते हैं 
और कभी खुद अल्लाह बन कर बोलने लगते हैं. 
गौर करें कि कहते हैं "अल्लाह ने आसमान को - - - 
" फिर कहते हैं " हम ने आसमान से पानी बरसाया- - - "
इसे मुसलमान अल्लाह का कलाम मानते हैं, 
गोया मुहम्मद को जुज़वी तौर पर अल्लाह मानते हैं. 
ओलिमा इस पर गढ़ी हुई दलील पेश करते हैं कि 
अल्लाह कभी खुद अपने मुँह से बात करता है तो कभी मुहम्मद के मुँह से. ओलिमा सारी हकीक़त जानते हैं और ये भी जानते हैं कि इनको इनका अल्लाह ग़ारत नहीं कर  सकता, 
क्यूंकि अल्लाह वह भी मुहम्मदी अल्लाह हवाई बुत है 
जैसे मुशरिकों के माटी के बुत होते हैं.
देखिए कि खुद साख्ता अल्लाह के रसूल हकीम लुक़मान से कोई हिकमत की बातें नहीं कराते हैं बल्कि अपने दीन इस्लाम का प्रचार कराते हैं - - -

"और हमने लुक़मान को दानिश मंदी अता फ़रमाई कि अल्लाह का  शुक्र करते रहो, कि जो शुक्र करता है, अपने ज़ाती नफ़ा नुक़सान के लिए शुक्र करता है. और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ खूबियों वाला है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१२)
"और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ खूबियों वाला है."बन्दा नाशुक्री करता रहे और अल्लाह खूबियाँ बटोरता रहे? है न मुहम्मद की उम्मियत का असर.

"और जब लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा कि बेटा! अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराना. बे शक शिर्क करना बहुत बड़ा ज़ुल्म है."
सूरह लुकमान ३१-२१ वाँ पारा आयत(१३)

क्या बात है नाज़िम ए कायनात कान लगाए बैठा हकीम लुक़मान की नसीहत सुन रहा था जो वह अपने बेटे को दे रहे थे. फिर हजारों साल बाद जिब्रील अलैहिस्सलाम को इसकी खबर देकर कहा कि इस  वाकिए को मेरे प्यारे नबी के कानों में फुसक आओ ताकि वह अपनी उम्मत के लिए तिलावत का सामान पैदा कार सकें,
मुसलमानों थोड़ी देर के लिए दिमाग़ की खिड़की खोलो. अपने रसूल की चालबाज़ी को समझो, क्या हकीम लुक़मान अपने बेटे को कोई हकीमी नुस्खा दे रहे हैं, जो कि उनकी हिकमत के मुताबिक अल्लाह को गवाही देनी चाहिए? क़ुरआनी अल्लाह निरा झूठा है.

ज़ुल्म वही इंसानी अमल है जिसके करने से किसी को जानी नुक़सान हो रहा हो, 
या फिर ज़ेहनी नुक़सान के इमकान हों, 
या तो माली नुकसान पहुँचाना हो. 
शिर्क करने से कौन घायल होता है? 
किसको ज़ेहनी अज़ीयत होती है या 
फिर किसकी जेब कटती है? 
आम मुसलमान कुफ्र और शिर्क को ज़ुल्म मानता है 
क्यूंकि कुरआन बार बार इस बात को दोहराता है. 
कुरान ने अलफ़ाज़ के मानी बदल रक्खे हैं.





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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