Friday 1 July 2016

Soorah Qasas 28 Q 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा

तीसरी किस्त 

 लीजिए महसूस कीजिए गैर अल्लाह के कुरआन को, 
मगर हाँ! क़ि इस मुजरिम ने मुहम्मद की उम्मियत की इस्लाह की है, कलम में मुहम्मद का हम सर ही है - - -   

"आप जिसको चाहें हिदायत नहीं कर सकते बल्कि अल्लाह ही जिसको चाहे हिदायत कर देता है और हिदायत पाने वालों का इल्म उसी को है."
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-56)

''और हम बहुत सी ऐसी बस्तियाँ हलाक कर चुके हैं जो अपने सामाने ऐश पर नाज़ां थे सो ये उनके घर हैं कि उनके बाद आबाद ही न हुए मगर थोड़ी देर के लिए और आखिर कार हम ही मालिक रहे और आप का रब बस्तियों को हलक नहीं किया करता जब तक कि सदर मुकाम में किसी पैगम्बर को न भेज ले कि वह इन लोगों को हमारी आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाए. और हम उन बस्तियों को हलाक नहीं करते मगर इस हालत में कि वहाँ के बाशिंदे बहुत ही शरारत न करने लगें"
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (आयत-५८-५९)

"और जिस दिन काफिरों से पूछा जाएगा कि तुमने पैगम्बरों को क्या जवाब दी? सो उस रोज़ उनसे सारे मज़मून गुम हो जाएँगे सो वह लोग आपस में पूछ ताछ भी न कर सकेगे, अलबत्ता जो शख्स तौबा कर ले और ईमान ले आए तो ऐसे लोग उम्मीद है कि फलाह पाने पाने वालों में से होंगे ."
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (६६-६७)

"और कहें कि भला ये तो बताओ कि अल्लाह तुम पर हमेशा के लिए रात ही रहने दे तो वह अल्लाह के सिवा कौन सा माबूद है जो रौशनी ले आए? तो क्या तुम सुनते  नहीं? और भला ये तो बताओ कि अगर अल्लाह तअला तुम पर क़यामत तक के लिए दिन ही रहने दे तो उसके सिवा तुम्हारा कौन सा माबूद है जो रात ले आए? जिसमें तुम आराम पाओ? क्या तुम देखते नहीं? और उसने अपनी रहमत से तुम्हारे लिए दिन और रात बनाया ताकि तुम रात में आराम करो और दिन में उसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि दोनों पर तुम शुक्र करो.  
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (७१-७३)

कारून मूसा की बिरादरी में से था सो वह उन लोगों से तकब्बुर करने लगा और हमने उसको इस क़दर खजाने दिए थे कि उनकी कुंजियाँ कई कई ज़ोर आवर शख्सों को गराँ बार कर देतीं, जब कि उसको उसकी बिरादरी ने कहा कि तू इस पर इतरा मत, वाकई अल्लाह तअला इतराने वालों को पसंद नहीं करता - - - और जिस तरह अल्लाह तअला ने तेरे साथ एहसान किया है, तू भी एहसान कर. दुन्या में फसाद का ख्वाहाँ मत हो, बेशक अल्लाह तअला फसाद को पसंद नहीं करता. करून कहने लगा मुझको तो मेरी ज़ाती हुनर मंदी से मिला है. क्या इसने ये न जाना कि अल्लाह तअला  इससे पहले गुज़श्ता उम्मतों में से ऐसे ऐसों हलाक कर चुका है जो कूवत में इससे कहीं बढे चढ़े थे और माल भी ज्यादह था. और अहले जुर्म से उनके गुनाहों का सवाल न करना पड़ेगा (?) फिर वह अपनी आराइश से अपनी बिरादरी  के सामने निकला जो लोग दुया के तालिब थे, कहने लगे क्या खूब होता कि हमको भी वह साज़ो सामान मिला होता जैसा कि कारून को मिला है, वाकई वह वह बड़ा साहिबे नसीब है. और जिन लोगों को फहेम अता हुई थी वह कहने लगे, अरे तुम्हारा नास हो अल्लाह तअला के घर का सवाब इससे हज़ार दर्जा बेहतर है जो ऐसे लोगों को मिलता है कि ईमान लाए और नेक अमल करे. . . फिर हमने कारून को और इसके महेल सरा को ज़मीन में धंसा दिया. सो कोई ऐसी जमाअत न हुई जो इसको अल्लाह के अजाब से बचा लेती और कल जो लोग इस जैसे होने की तमन्ना रखते थे, वह आज कहने लगे बस जी यूँ मालूम होता है कि अल्लाह जिसको चाहे ज़्यादः रोज़ी देदेता है और  तंगी से देने लगता है. अगर हम पर अल्लाह की मेहरबानी न होती तो हम को भी धँसा देता.
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (७४-८२)      

ये आलमे आखिरत हम उन ही लोगों के लिए खास करते हैं जो दुन्या में न बड़ा बनना चाहते हैं और न फसाद करना. और नेक नतीजा मुत्तकी लोगों को मिलता है. जो शख्स नेकी करके आएगा  उसको  इस से  बेहतर नतीजा मिलेगा, और जो शख्स बदी  करके आवेगा, सो ऐसे लोगों को जो बदी का काम करते हैं, इतना ही बदला मिलेगा. जितना वह बदी करते थे.
सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (८३) 

जिस खुदा ने आप पर कुरआन के एहकाम पर अमल और इसकी तबलीग को फ़र्ज़ किया है, वह आप को (आपके)  असली वतन (यानी मक्का ) फिर पहुंचाएगा. आप (इनसे) फरमा दीजिए कि मेरा रब खूब जनता है की (अल्लाह की तरफ़ से) कौन सच्चा दीन लेकर आया है. और कौन सरीह गुमराही में (मुब्तिला) है. और आप को (अपने नबी होने के क़ब्ल)ये तावक्को न थी कि आप पर ये किताब नाज़िल हो जाएगी. मगर महेज़ आपके रब की मेहरबानी से इसका नुज़ूल हुवा. सो आप उन काफिरों की ज़रा भी ताईद न कीजिए. जब अल्लाह के एहकाम आप पर नाज़िल हो चुके तो ऐसा न होने पाए (जैसा अब तक भी नहीं होने पाया) कि ये लोग आपको इन एहकाम से रोक दें. और आप (बदस्तूर) अपने (रब के दीन)  की तरफ़ लोगों को  बुलाते रहिए. और इन मुशरिकों में शामिल न होइए. और जिस तरह (अब तक शिर्क से मासूम हैं इसी तरह आइन्दा भी) अल्लाह के साथ किसी माबूद को न पुकारना. इसके सिवा कोई माबूद होने के काबिल नहीं.  (इस लिए कि) सब चीज़ें फ़ना होने वाली हैं. बजुज़ उसके ज़ात की, उसी की हुकूमत है.
  सूरह क़सस २८- २० वाँ पारा (८४-८७) 

मुहम्मद की गढ़ी हों या मुहम्मद के किसी किराए के टट्टू ने इनको सलीका बतलाते हुए इस आयत को बतौर नमूना गढ़ा हो, 
देखना ये है की कुरआन की बातों में कोई दम भी है? 
मुस्लमान इन कुरानी आयतों में सदियों से अटके हुए हैं. 
मुसलमान आकबत के फरेब में इस तरह गर्क है कि उसे अपना उरूज समझ में ही नहीं आता. आकबत का नशा उसे आँख ही नहीं खोलने देता, कि वह दुनिया में सुर्खुरू हो सके. 
मुहम्मदी अल्लाह बार बार हिदायत करता है इस दुन्या का हासिल छलावा है, उस दुन्या को हासिल करो. खुद मुहम्मद इस दुन्या को इस क़दर हासिल किए हुए थे कि हर जंग के माले गनीमत में २०% अल्लाह और उसके रसूल का हिस्सा रहता. 
ये कमबख्त आलिमान इस्लाम किस्सा गढ़े हुए हैं कि उनके मरने पर चंद दीनारें  उनकी विरासत निकली.  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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