Saturday, 22 May 2010

क़ुरआन सूरह रअद-१३

सूरह रअद १३
The Thunder
2nd


आज भारत भूमि का सब से बड़ा संकट है नक्सलाइट्स जिसकी कामयाबी शायद भारत का सौभाग्य हो और नाकामी इसका दुर्भाग्य. दूसरा बड़ा संकट है इस्लामी आतंकवाद जो सिर्फ भारत के लिए ही नहीं पूरी दुन्या के लिए अज़ाब बना हुवा है. दुन्या इस से कैसे निपटती है दुन्या जाने या बराक हुसैन ओबामा, मगर भारत की सियासी फ़िज़ा इसे ज़रूर पाल पोस रही है. क़ुरआन में क्या है अब किसी से छिपा नहीं है, सब जानते हैं क़ुरआन जेहाद सिखलाती है, काफिरों से नफरत करना सिखलाती है, भारत में हर हिन्दू प्योर काफ़िर है. मदरसों में इनको मारना ही सवाब है, पढाया जाता है, मदरसे हर पार्टी के नाक के नीचे चलते हैं, वह भी सरकारी मदद से. मदरसे से फारिग तालिबान यह काम कर भी रहे हैं, पकडे भी जाते हैं, क़ुबूल भी करते हैं. आत्म घाती बन जाते हैं, मरते ही हूरों भरी जन्नत में पहुँच जाएँगे जहाँ अय्याशी के साथ साथ शराबन तहूरा भी मयस्सर होगी, ऐसा उनका विश्वास है जैसे बालाजी पर दस लाख के चढ़ावे पर पोता पा जाने का बिग बी. का विश्वास. मदरसों पर, कुरआन पर, वेदों पर, मनु स्मृरिती पर, अंध विश्वासों पर पाबन्दी नहीं लगाई जा सकती. ऐसे में क्या कोई भारत भाग्य विधाता पैदा होगा?
B J P जैसी कट्टर साम्प्रदायिक पार्टियाँ चाहती है कि इसकी जेहादी आयतों को इस से निकाल कर इसे क़ायम रहने दिया जाए. वजेह? ताकि मुसलमान इसकी जेहालत में मुब्तिला रह कर हिदुओं के लिए सस्ती मज़दूरी करते रहें और इनकी कंज्यूमर मार्केट भी बनी रहे. सवर्णों की पार्टी कांग्रेस चाहती है कि क़ुरआन की नाक़िस तालीम क़ायम रहे वर्ना मनुवाद सरीके पंडितो द्वारा दोहित हो रहे भारत उनके कब्जे से निकल जाएगा जोकि उनके हक में न होगा. बहुजन जैसी दलित उद्धार के नेता मौक़ा मिलते ही ब्रह्मण बन कर दलितों पर राज करने लग जाते हैं. इन्हीं धोका धडी में लिपटी ८०%भारत की आबादी ५% नाजायज़ अक्सरियत और .५% नाजायज़ अक़ल्लियत के हाथों का खिलौना बनी हुई है. बिल गेट्स दुन्या के अमीरों में पहले नंबर पर रहे अपनी ५३ बिलियन डालर की दौलत में से ३८.७बिलियन डालर''बिल & मिलिंडा गेट्स फ़ौंडेशन'' नाम का ट्रस्ट बना के इसको दान देकर ग़रीब किसानों और मजदूरों की सेहत और सुधार काम में लगा दिया है. हमारे देश में अम्बानी बन्धु जो देश की मालिक बने बैठे हैं, पेट्रोल, गैस से लेकर किसानों तक के कामों को उनके हाथों से छीन कर अपने हाथों में ले लिया है, बद्री नाथ की तीर्थ यात्रा से अपने पाप धो रहे हैं. तिरुपति मंदिर से अजमेर दरगाह तक घर्म के धंघे बाज़ इन्ही ५.५% बे ईमानों के शिकार हैं. देखिए भारत जैसे कुदरत द्वरा माला मॉल देश का सितारा कब तक गर्दिश में रहताहै।



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क़ुरआनी जेहालत कहती है - - -

''वह ऐसा है कि तुम्हें बिजली दिखलाता है जिस से डर भी होता है और उम्मीद भी, और वह बादलों को बुलंद करता है जो भरे होते हैं और रअद ( मेघ नाथ) उसकी तारीफ़ के साथ उसकी पाकी बयान करता है और फ़रिश्ते इस के खौफ़ से और वह बिजलियाँ भेजता है, फिर जिस पर चाहे उन्हें गिरा देता है. और वह अल्लाह के बाब में झगड़ते हैं हालांकि वह बड़ा शदीदुल कुलूब है.''सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (१२-१३)
लाल बुझक्कड़ के गाँव से कोई हाथी रात को गुज़रा, सुब्ह गाँव वालों ने हाथी के पैरों के निशान देख कर हैरान हो गए कि इतना बड़ा पैर किसका हो सकता है? चलो मुखिया लाल बुझक्कड़ के पास. लाल बुझक्कड़ ने निशान को देख कर मस्ती से अपनी आयत गाई
''बूझें बूझें लाल बुझक्कड़ और न बूझे कोय,
पांव माँ चकिया बांध के हिरन न कूदा होय.
ऐसी बातों का एहतराम ही इंसानी ज़ेहन कि पामाली है. मुहम्मद को किसी से सुनने में मिला होगा ''शदीदुल कुलूब'' यानि किसी ने जमा सीगे (बहु वचन) के लिए कहा होगा जैसे सख्त दिल जमाअत. मुहम्मद वाहिद अल्लाह के लिए शदीदुल कुलूब का इस्तेमाल कर रहे हैं यानी अल्लाह शिद्दत के दिलों वाला है. अल्लाह एक है और उसके दिल बहुत से. इस्लामी गुंडे आलिमों को सब पता है मगर वह हर ऐसी लग्ज़िश की पर्दा पोशी करते हैं।

''इसी ने आसमान से पानी नाज़िल फ़रमाया फिर नाले अपनी मिक़दार के मुवाफ़िक चलने लगे फिर सैलाब खस ओ खाशाक को बहा लाया जो इस के ऊपर है. और जिन चीजों को आग के अन्दर ज़ेवरात और दीगर असबाब बनाने के लिए तपाते हैं इस में भी ऐसा ही मैल कुचैल था और वह तो फेंक दिया जाता है. जो चीज़ लोगों के लिए कारामद है, ज़मीन में रहती है. अल्लाह तअला इसी तरह मिसालबयान करता है.''सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (१७)मैं पहले भी इस बात को वाजेह कर चुका हूँ कि नाजिल आफतें होती हैं बरकतें नहीं. मुहम्मद इल्म से पैदल रहमतों को नाज़िला कहते हैं. इसी तरह पूरे क़ुरआन में उम्मी ने मुताबिक की जगह मुवाफिक लफ्ज़ लिए हैं, कोई साहबे कलम ईमान दारी के साथ अल्लाह के कलम पर कलम क्यूं नहीं उठाता? सैलाब में खस ओ खाशक नहीं हजारों की जाने चली जाया करती थीं और उम्र भर की जोड़ी गांठी पूँजी भी. आपकी इन भोंडी मिसालों को ही ओलिमा हवा दिए हुए हैं कि आप ने कुरान ए हकीम पेश किया है.
''और अगर कोई क़ुरआन होता जिसके ज़रिए पहाड़ हटा दिए जाते या इसके ज़रिए से ज़मीन जल्दी जल्दी तय हो जाती या इसके ज़रिए से मुरदों से बात करा दी जाती तब भी ये लोग ईमान न लाते, बल्कि सारा अख्तियार अल्लाह को है. क्या फिर भी ईमान वालों को दिल को राहत नहीं कि अगर अल्लाह चाहता तो तमाम आदमियों को हिदायत देता और ये काफ़िर - - - (बद दुआएं,बद कलामी)सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (३१-३४)किताबें पहाड़ नहीं हटातीं, न ही सफ़र में मददगार होती हैं और न मुरदों से बातें कराती हैं, हाँ! मगर कौमों में सदाक़त की नई राहें रौशन कर देती हैं
चीनी पैग़म्बर दाओ (या ताओ) कहता है - - -

''जो कुछ भी मुकम्मल सच्चाई के साथ नहीं कहा जाता वह दरोग़ बाफ़ी है, इस कमज़ोरी से बचने में नाकाम होना जहन्नम में पड़ने के बराबर है''
''फ़ौज के पीछे कमज़ोर चलता है''
''सच्चा बहादर ज़ुल्म, खुद सताई, मस्ती, मिस्कीनी और तैश से दूर रहता है.''
''कारे खैर में शोहरत से बचो और अपने कम में बदनामी से. दरमियाना रवी ही बेहतर है.''
''दुन्या में ऐसे लोग कम हैं जो बिना बोले इल्म देते हैं और फ़िक्र की गहराइयों में डूब कर मह्जूज़ होते हैं.''
ऐ मुहम्मदी अल्लाह देख कि कुरान क्या होता है? तेरी बातों में मुकम्मल सच्चाई क्या, सच्चाई का अंश भी नहीं है. तूने तो बे ईमान कमजोरों की जेहादी फ़ौज बना रखी है. तू ज़ुल्म, खुद सताई, मस्ती, मिस्कीनी और तैश के पास है. कुरआन में तू इतना बोला है कि दाओ ने सुन कर अपना सर पीट लिया होगा.''और हम ने यकीनन आप से पहले कई रसूल भेजे और हम ने उनको बेवी और बच्चे भी दिए और किसी पैग़म्बर को अख्तियार यह अम्र नहीं कि एक आयत भी बगैर खुदा के हुक्म के ला सके. हर ज़माने के एहकाम हैं. अल्लाह तअला जिस को चाहे मौक़ूफ़ कर देते हैं जिसको चाहें क़ायम रखते हैं और असल किताब उन्हीं के पास है.सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (३८-३९)यकीनन आपसे पहले एक रसूल जापान में संतो Shen Tao कहते हैं - - -


''खुदा को पाने का पहला यकीनी रास्ता है झूट, मक्र और अय्यारी को तर्क करना.''( जो आप में कूट कूट कर भरा हुवा है.)
''अल्लाह सादा लौही(सादगी) से प्यार करता है खैरात, ज़कात और सदके से नहीं.'' ( माले ग़नीमत के भूके अपने गरीबन में मुँह डालें)
''इबादत गाहों में तीन दिन रोज़ा रखने और एतकाफ़ में बैठने से बेहतर है दिन में कोई एक नेक काम'' (ख़ास कर मुसलमानों के लिए पैगाम)
''अगर वही साफ़ नहीं जो अन्दर है तो बाहर की सफ़ाई के लिए इबादत फुज़ूल है.''( इस्लाम आज मुकम्मल और मुजस्सम फुज़ूल है)
''न बुरा देखो, न बुरा सुनो, न बुरा बोलो.'' (गाँधी जी ने ये सीख संतो Shen तो से ही ली.)
''जन्नत और दोज़ख इन्सान के मन में है.'' ( आप की गाढ़ी हुई नहीं)
''सच के तौर तरीक़े पर अटल रहो ये ज़िन्दगी से भी क़ीमती है.''( मुहम्मदी अल्लाह झूट का पैकर है)
''मत भूलो की खिलक़त (मानव जति) एक कुनबा है.'' ( इसी का एक जुज़ मोमिन को होना चाहिए)
''क्या वह इस चीज़ को नहीं देखते हैं कि हम ज़मीन को हर तरफ से बराबर कम करते चले आ रहे हैं और अल्लाह हुक्म करता है, इसके हुक्म को कोई हटाने वाला नहीं और वह बड़ी जल्दी हिसाब लेने वाला है.
काफ़िर लोग कह रहे हैं कि आप पैगम्बर नहीं. आप फरमा दीजिए कि मेरे और तुम्हारे दरमियान अल्लाह तअला और वह शख्स जिसके पास किताब का इल्म हैकाफ़ी गवाह है.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (४१+४३)इन्हीं बातों से बेजार होकर एक ईरानी मुफक्किर मिर्ज़ा हुसैन अली १८४४ में तर्क इस्लाम करके जदीद तरीन मज़हब की बुनियाद रखी, कहता है - - -

*इन्सान बिरादरी सब एक है.रंग, नस्ल, तबका और मज़हब की वजेह से इन्सान में फर्क नहीं होना चाहिए. सब एक ही पेड़ के फल, एक ही डाल के पत्ते , एक ही चमन के फूल हैं.
*मज़हब साइंस और दलील का मुख़ालिफ़ न हो और इत्तेहाद का हामी हो.
*अमन, इंसाफ, तालीम और ज़ुबान के किए आलमी तौर पर मुत्तहेद होना चाहिए.
*जानिब दारी और तंग नज़री को छोड़ कर सदाक़त की आज़ादाना तलाश करनी चाहिए.
*वक़्त की शुरुआत है न आखिर, तवारीख छ हज़ार साल (आदम कल )से नहीं ला मतनाही सालों से है.
*इंसान हमेशा इन्सान से है जानवर से नहीं.
*ज़मीन पर पैदा सभी चीज़ें इन्सान के लिए होती हैं जो ज़मीन पर अशरफ़ुल मखलूकात है.
खुदा सबसे बरतर है, वह सब समझता है, उसे कोई नहीं समझता. वह अपने को बज़रिए कायनात ज़ाहिर करता है.


जीम. मोमिन ''निसारुल ईमान''
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10 comments:

  1. "क़ुरआन में क्या है अब किसी से छिपा नहीं है, सब जानते हैं क़ुरआन जेहाद सिखलाती है, काफिरों से नफरत करना सिखलाती है, भारत में हर हिन्दू प्योर काफ़िर है. मदरसों में इनको मारना ही सवाब है, पढाया जाता है, मदरसे हर पार्टी के नाक के नीचे चलते हैं, वह भी सरकारी मदद से. मदरसे से फारिग तालिबान यह काम कर भी रहे हैं, पकडे भी जाते हैं, क़ुबूल भी करते हैं. आत्म घाती बन जाते हैं, मरते ही हूरों भरी जन्नत में पहुँच जाएँगे जहाँ अय्याशी के साथ साथ शराबन तहूरा भी मयस्सर होगी,"


    हम तो मानते हैं, जरा उदाहरण भी दे दो, वरना मुल्ला कह देंगे- मोमिन झूठ बोलता है. मदरसे जेहाद की तालीम नहीं देते.

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  2. जन्नती शराब और हूरों की बातें झूठ हैं, बेचारे मुल्लों को फंसाया जा रहा है. उदाहरण भी दोगे तो उचित रहेगा

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  3. kabhi doosre blogs par ghoom aaya karo Mohtaram Momin sahab

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  4. "....देखिए भारत जैसे कुदरत द्वरा माला मॉल देश का सितारा कब तक गर्दिश में रहताहै। "

    इस भूमिका में, भारत के मामले में गंभीर चिंतन प्रस्तुत किया है आपने.

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  5. पोस्ट की शुरुआत ही गलत जुमले से हो रही है, आज भारत भूमि का सब से बड़ा संकट है नक्सलाइट्स जिसकी कामयाबी शायद भारत का सौभाग्य हो और नाकामी इसका दुर्भाग्य.
    आगाज़ अगर ऐसा है तो अंजाम का अल्लाह ही मालिक.

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  6. मियां जीशान! पहला जुमला पढ़ कर ही अघा गए. तुम्हारा अल्लाह तुम को अक़ले-सलीम दे. जैसे सद बुद्धि ANONYMOUS को मिली है जिनहोंने मेरी फ़िक्र को डूब कर समझा है. खुद देखें कि क्या कहा है- - -'' इस भूमिका में, भारत के मामले में गंभीर चिंतन प्रस्तुत किया है आपने.''
    अपने अन्दर जेहनी बलूगत लाओ. . . ख़ैर ख्वाह 'मोमिन'

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  7. जनाब ज़हनी बलूगत रखने वाले, ज़रा अपने जुमले पर फिर से गौर तो करें आज भारत भूमि का सब से बड़ा संकट है नक्सलाइट्स जिसकी कामयाबी शायद भारत का सौभाग्य हो और नाकामी इसका दुर्भाग्य.
    इसका तो यही मतलब निकल रहा है की अगर नक्सली संकट कामयाब हो गया यानी नक्सली कामयाब हो गए तो यह भारत का सौभाग्य होगा. और अगर नक्सली नाकाम हो गए तो यह भारत का दुर्भाग्य होगा.
    माफ़ कीजिये, मुझे डूबने से बहुत डर लगता है.

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  8. @ जीशान
    भावार्थ के किये 'जिसकी' को 'जिसपर' पढ़ लेते, मुद्दा पुरे लेख के भाव को समजने से है.

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  9. हाथ में जाम लेकर लिखने के यही नतीजे निकलते हैं.

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  10. ये क्या पागलपन है एक तो जाकिर नाइक जिसके दिमाग में भूसा भरा है और ये दूसरा असरफअली है जिनका भी कोई स्क्रू ढीला लगता है एक को संस्कृत ठीक से नहीं आती और एक को अरबी का मतलब करना नहीं आता दोनों ही अपने अपने नाम का प्रचार करने में लगे है में कोई इस्लाम या मुसलमानों का विरोधी नहीं हूँ लेकिन ऐसे लोगो का विरोधी हूँ जो की किसी भी धर्म ग्रन्थ का अपमान करके अपने आप को बड़ा चतुर और समजदार बताते है इन लोगो की आदत होती है ये किसी भी धर्म ग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया करते लेकिन ये धर्म ग्रन्थ इस लिए पढ़ते है की उसमे से कुछ ऐसा मसाले दार मतलब निकला जाये कि दुनिया अचंभित हो जाये ये सब दया के पात्र है और इनका साथ देनेवाले विकृत मनो विचार वाले कहलायेंगे (अगर जाकिर नाइक को संस्कृत और असरफ को अरबी उर्दू सीखनी है तो में सिखाने के लिया तैयार हु बिलकुल निःशुल्क ) चाणक्य के अनुसार मूर्खो से कोई भी सम्बन्ध रखने वाला अंत में संकट ही पाता है तो असरफ अली और जाकिर नाइक ये दोनों को एक दुसरे पर कीचड़ उछालना है तो उछाले लेकिन इनके पास खड़े रह कर अपने ऊपर भी किचल उचालेंगा ये तय है तो इनसे दूर ही रहा जाये यही बुध्धिमानी है असरफ अली मुस्लिम हो कर मुस्लिम के उपास्यो को निचा दिखा रहा है तो क्या ये दुसरे धमो की इज्जत करेगा ? इनसे पूछो की फिर किसकी उपासना की जाये? क्या तुम लोगो की ? इससे पूछना भी बेकार होगा की, तुम्हारे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के बारेमे क्या विचार है? या तो गरीब नवाज़ के बारे में क्या विचार है? विवेकानंद के बारेमे या तो सूफी संत निजामुदीन के बारेमे? कबीर, तुलसीदास, मीराबाई के बारे में ?क्यों की ये दोनों बकवास ही करने वाले है. मैं तो हिन्दू, जैन, बुद्ध, सिख, इसाई और सबको इनसे दूर ही रहने की सलाह देता हूँ . - श्री दासअवतार

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