Saturday, 12 June 2010

क़ुरआन सूरह बनी इस्राईल -१७


सूरह बनी इस्राईल -१७

The Israelites

मुहम्मदुर रसूलिल्लाह

(मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं)


मुहम्मद की फितरत का अंदाज़ा क़ुरआनी आयतें निचोड़ कर निकाला जा सकता है कि वह किस कद्र ज़ालिम ही नहीं कितने मूज़ी तअबा शख्स थे। क़ुरआनी आयतें जो खुद मुहम्मद ने वास्ते तिलावत बिल ख़ुसूस महफूज़ कर दीं, इस एलान के साथ कि ये बरकत का सबब होंगी न कि इसे समझा समझा जाए. अगर कोई समझने की कोशिश भी करता है तो उनका अल्लाह उस पर एतराज़ करता है कि ऐसी आयतें मुशतबह मुराद (संदिग्ध) हैं जिनका सही मतलब अल्लाह ही जानता है. इसके बाद जो अदना(सरल) आयतें हैं और साफ़ साफ़ हैं वह अल्लाह के किरदार को बहुत ही ज़ालिम, जाबिर, बे रहम, मुन्तकिम और चालबाज़ साबित करती है बल्कि अल्लाह इन अलामतों का खुद एलान करता है कि अगर ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' (मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं) को मानने वाले न हुए तो. अल्लाह इतना ज़ालिम और इतना क्रूर है कि इंसानी खालें जला जला कर उनको नई करता रहेगा , इंसान चीखता चिल्लाता रहेगा और तड़पता रहेगा मगर उसको मुआफ़ करने का उसके यहाँ कोई जवाज़ नहीं है, कोई कांसेप्ट नहीं है. मज़े की बात ये कि दोबारा उसे मौत भी नहीं है कि मरने के बाद नजात कि सूरत हो सके, उफ़! इतना ज़ालिम है मुहमदी अल्लाह? सिर्फ़ इस ज़रा सी बात पर कि उसने इस ज़िन्दगी में ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' क्यूं नहीं कहा. हज़ार नेकियाँ करे इन्सान, कुरआन गवाह है कि सब हवा में ख़ाक की तरह उड़ जाएँगी अगर ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' नहीं कहा क्यों कि हर अमल से पहले ईमान शर्त है और ईमान है ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' . इस कुरआन का खालिक़ कौन है जिसको मुसलमान सरों पर रखते हैं ? मुसलमान अपनी नादानी और नादारी में यकीन करता है कि उसका अल्लाह . वह जिस दिन बेदार होकर कुरआन को खुद पढ़ेगा तब समझेगा कि इसका खालिक तो दगाबाज़ खुद साख्ता अल्लाह का बना हुवा रसूल मुहम्मद है. उस वक़्त मुसलमानों की दुन्या रौशन हो जाएगी.
मुहम्मद कालीन मशहूर सूफ़ी ओवैस करनी जिसके तसव्वुफ़ के कद्रदान मुहम्मद भी थे, जिसको कि मुहम्मद ने बाद मौत के अपना पैराहन पहुँचाने की वसीअत की थी, मुहम्मद से दूर जंगलों में छिपता रहता कि इस ज़ालिम से मुलाक़ात होगी तो कुफ्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' मुँह पर लाना पड़ेगा. इस्लामी वक्तों के माइल स्टोन हसन बसरी और राबिया बसरी इस्लामी हाकिमों से छुपे छुपे फिरते थे कि यह ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को कुफ्र मानते थे. मक्के के आस पास फ़तेह मक्का के बाद इस्लामी गुंडों का राज हो गया था. किसी कि मजाल नहीं थी कि मुहम्मद के खिलाफ मुँह खोल सके . मुहम्मद के मरने के बाद ही मक्का वालों ने हुकूमत को टेक्स देना बंद कर दिया कि ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहना हमें मंज़ूर नहीं 'लाइलाहा इल्लिल्लाह' तक ही सही है. अबुबकर ख़लीफ़ा ने इसे मान लिया मगर उनके बाद ख़लीफ़ा उमर आए और उन्हों ने फिर बिल जब्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' पर अवाम को आमादः कर लिया . इसी तरह पुश्तें गुज़रती गईं , सदियाँ गुज़रती गईं, जब्र, ज़ुल्म, ज्यादती और बे ईमानी ईमान बन गया.
आज तक चौदह सौ साल होने को हैं सूफ़ी मसलक ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को मज़ाक़ ही मानता है, वह अल्लाह को अपनी तौर पर तलाश करता है, पाता है और जानता है किसी स्वयंभू भगवन के अवतार और उसके दलाल बने पैगम्बर के रूप में - - -


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''मस्जिदे अक़सा तक जिसके गिर्दा गिर्द हम ने बरकतें कर रखी हैं ले गया ताकि हम उनको अपने कुछ अजायब दिखला दें. बेशक अल्लाह तअला बड़े सुनने और देखने वाले हैं. और हमने मूसा को किताब दी और हमने उसको बनी इस्राईल के लिए हिदायत बनाया कि तुम मेरे सिवा किसी और को करसाज़ मत क़रार दो. ऐ उन लोगो की नस्ल! जिन को हमने नूह के साथ सवार किया था वह बड़े शुक्र गुज़र बन्दे थे. और हमने बनी इस्राईल को किताब में बतला दी थी कि तुम सर ज़मीन पर दोबारा खराबी करोगे और बड़ा ज़ोर चलाओगे. फिर जब उन दो में से पहली की मीयाद आवेगी, हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१-५)
पाठको क्या समझे? तर्जुमा कर शौकत अली थानवी ने ब्रेकेट की खपच्चियाँ लगा लगा कर बड़ी रफ़ू गरी की मगर जब जेहालत सर पर चढ़ कर बोले तो कौन मुँह खोले? अल्लाह कहता है ''हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.'' यानि अल्लाह का भी वतीरा होता है? बद किमाश सियासत दानों की तरह, वह खुद जंगजू तालिबान को पैदा किए हुए है, जो मासूम बच्चियों को इल्म के लिए घरों से बाहर तो निकलने नहीं देते और घरों में ऐसी आयतों का सहारा लेकर घुस जाते हैं और मनमानी करते हैं.
मुसलमानों तुम कितने बद नसीब हो कि तुम्हारी आँखें ही नहीं खुलतीं. कितने बेहिस हो? कितने डरपोक? कितने बुजदिल? कितने अहमक हो ? जागो, अभी तो तुमको तुम में से ही जगा हुवा एक मोमिन जगा रहा है, मुमकिन है कि कल दूसरों के लात घूंसे खा कर तुम्हारी आँखें खुलें।


''फिर उन पर तुम्हारा गलबा कर देंगे और मॉल और बेटों से हम तुम्हारी मदद करेगे और हम तुम्हारी जमाअत को बढ़ा देंगे. अगर अच्छे कम करते रहोगे तो अपने ही नफ़े के लिए अच्छे कम करोगे. और अगर बुरे कम करोगे तो भी अपने लिए, फिर जब पिछली की मीयाद आएगी ताकि तुम्हारे मुँह बिगाड़ दें और जिस तरह वह पहली बार मस्जिद में घुसे थे, यह लोग भी इस में घुस पड़ें और जिन जिन पर इनका ज़ोर चले सब को बर्बाद कर डालें. अजब नहीं कि तुम्हारा रब तुम पर रहेम फरमा दे और अगर वही करोगे तो हम फिर वही करेंगे और हमने जहन्नम को काफिरों का जेल खाना बना रखा है. बिला शुबहा ये कुरआन ऐसे को हिदायत देता है जो बिलकुल सीधा है. और ईमान वालों को जो कि नेक कम करते हैं, ये खुश खबरी देता है कि उसको बहुत बड़ा सवाब है. और जो आखरत पर ईमान नहीं लाते उनके लिए दर्दनाक सजा तैयार है,
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (६-१०)
ये है कुरानी अल्लाह की ज़ेहन्यत और इस्लाम की रूह। ऐसी तसवीर लेकर आप ज़माने के सामने जाकर इस्लाम की तबलीग़ करने लायक़ तो रह नहीं गए कि इसमें कुछ दम नहीं और इसे सब जान चुके है और इससे बुरे इस्लामी एहकाम को भी, लिहाज़ा अब तगलीगिए मुसलमानों के मुहल्लों में ही जा कर उनके नव उम्रों को भड़काते फिरते हैं कि अल्लाह तुम को जैशे मुहम्मद की तरफ़ बुला रहा है. इस तरह एक नया ख़तरा मुसलमानों पर आन खड़ा हवा है. ज़रुरत है निडर होकर मैदान में आने की , इस एलान के साथ कि आप हसन बसरी की तरह सिर्फ़ मोमिन हैं. जाइए आपको जो करना हो कर लीजिए. आप जागिए और लोगों को जगाइए.

''और हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाया, सो रात की निशानी को तो हमने धुंधला बनाया और दिन की निशानी को हमने रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम बरसों का शुमार और हिसाब मालूम कर लो और हम ने हर चीज़ को खूब तफ़सील के साथ बयान कर दिया है. ''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१२)
मुहम्मद रात को कोई ऐसी शय मानते हैं जो ढक्कन नुमा होती हो और रौशनी को ढक कर उस पर ग़ालिब हो जाती हो और दिन को एक रौशन शय जो आकर सूरज को रौशन कर देता हो,जैसे बल्ब में फिलामेंट. हदीसें बतलाती हैं कि वह सूरज को रात में मसरुफे सफ़र जानिबे अल्लाह बराय सजदा रेज़ी होना जानते हैं. मुहम्मद कहते हैं ''हमने दिन को रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो'' बन्दे का रब उसकी तलाश कि हुई कौन सी रोज़ी खाता है? मुतरजजिम लिखता है गोया बन्दों कि रोज़ी. अब रात पायली काम होने लगे, बरसों का शुमार और हिसाब रात और दिन पर कभी मुनहसर नहीं रहे। मुसलमान सच मुच इतना ही पीछे है जितना इसका कुरान इसे अपनी बेहूदा तफसीलो में मुब्तिला किए हुए है।


''हर इंसान को आमल नामे के मुताबिक सज़ा मिलेगी, साथ में अल्लाह ये भी सहेज देता है कि ''और हम सज़ा नहीं देते जब तक किसी रसूल को नहीं भेज लेते।''

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३)
गोया अल्लाह पाबन्द है रसूलों का कि वह आकर मुझे जन्नतियों कि लिस्ट दे. यहाँ पर भी मुहम्मद भोले भालों को चूतिया बनाते हैं कि फ़िलहाल तुम्हारा रसूल तो मैं ही हूँ. असली दीन की अदालत में जिस दिन आलमी मुजरिमों पर मुक़दमा चलेगा, मुहम्मद सब से बड़े जहन्नमी साबित होंगे।

अल्लाह कहता है''जो शख्स दुन्या की नीयत रखेगा हम उस शख्स को दुन्या में जितना चाहेंगे, जिसके वास्ते चाहेंगे, फ़िलहाल दे देंगे फिर उसके लिए हम जहन्नम तजवीज़ करेंगे और वह उस में बदहाल रांदे दरगाह होकर दाख़िल होगा।और जो शख्स आख़िरत की नीयत रखेगा और इसके लिए जैसी साईं करना चाहिए वैसी ही साईं करेगा बशर्ते ये कि वह शख्स मोमिन भी हो, सो ऐसे लोगों की ये साईं मकबूल होगी।''

यहाँ पर पहली बात तो ये साबित होती है कि मुहम्मदी अल्लाह परले दर्जे का शिकारी है कि शिकार के लिए दाना डालता है, आदमी दाना चुगने लगे और चैन कि साँस ले कि वह इसको दबोच लेता है? दूसरी बात ये कि जैसे मैं पहले बयान करचुका हूँ कि आप लाख नेक इन्सान हों, अल्लाह आपकी नेकियों का कोई वास्ता नहीं अगर आप मोमिन ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहने वाले नहीं।

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३-२२)

''अल्लाह अपने बालिग़ बच्चों को समझाता है कि माँ बाप के फ़रायज़ याद रखना, उनसे हुस्ने सुलूक से पेश आना, क़राबत दारों के हुक़ूक़ भी याद दिलाता है, फुज़ूल खर्ची को मना करता है मगर बुखालत को भी बुरा भला कहता है, मना करता है कि औलादों को तंग दस्ती के बाईस मार डालना भारी गुनाह है, ज़िना कारी को बे हयाई बतलाता है. साथ साथ अपनी अज़मत को ख़ुद अपने मुँह से बघारना नहीं भूलता. ''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (२३-३२)
जिस तरह बच्चों को एखलाकयात सिखलाया और पढाया जाता है उसी तरह मुहम्मद कुरआन के ज़रीए मुसलामानों को सबक़ देते हैं लगता है उस वक़्त अरब में सब जंगली और वहशी रहे होंगे। ख़ुद दूसरों को नसीहत देने वाले मुहम्मद अपने चचाओं पर कैसा ज़ुल्म ढाया कोई तवारीख़ से पूछे. ज़िना कारी और हराम कारी को बे हयाई गिनवाने वाले मुहम्मद पर दस्यों इलज़ाम हैं कि इसके कितने बड़े मुजरिम वह ख़ुद थे।

हदीस है - - - मुहम्मद फरमाते हैं ''जो शख्स मेरे वास्ते दो चीज़ों का जामिन हो जाय ,पहली दोनों जबड़ों के दरमियान जो ज़ुबान है, दूसरी दोनों पैरों के बीच जो शर्मगाह (लिंग) है तो मैं उस शख्स के वास्ते जन्नत का जामिनदार हो जाऊँगा. (बुखारी २००७)
अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब जोकि इनके मुँह बोले बेटे ज़ैद बिन हारसा की बीवी थी, के साथ मुँह काला करते हुए उसके शौहर ज़ैद बिन हारसा ने हज़रात को पकड़ा तो तूफ़ान खड़ा हुवा, ,जिंदगी भर उसको बिन निकाही बीवी बना के रक्खा और चले हैं बातें करने। आगे कुरआन में ही इस वाकेआ पूरा हाल आने वाला है.



जीम. मोमिन ''निसारुल ईमान''


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मेरे हम नवा


The only other Qur'anic mention of the flight of fancy is found in the 17th surah which opens: "Glory to Him who carried His votary by night from the Sacred Mosque (at Mecca), to the farther Temple, the environs which we have blessed, that we might show him some of Our Signs। Verily He hears and sees।"
The six-year-old Aisha, who married the fifty-year-old prophet within days of Khadija's death, said: Ishaq:183 "The Prophet's body remained where it was. Allah removed his spirit at night." In that there was no way to see Jerusalem at night in the seventh century, the cover of darkness must have suited Islam's demonic spirit. Aisha further indicted her husband's tale with: Bukhari:V4B53N400 "Once the Prophet was bewitched so that he began to imagine that he had done a thing which in fact he had not done." Finishing the job, she said: Bukhari:V4B54N457 "Whoever claimed that Muhammad saw his Lord is committing a great fault, for he only saw Gabriel."
While Aisha's criticism was incriminating, there was a bigger problem. There was no Temple in Jerusalem. Six centuries years before al-Buraq took flight, the Romans destroyed it. By 70 A.D. not one stone stood upon another. And that would make both the Islamic god and his prophet liars.
Bukhari:V4B55N585 "'O Allah's Apostle! Which mosque was first built on the surface of the earth.' He said, 'The mosque Haram in Mecca.' 'Which was built next.' He replied 'The mosque of Al-Aqsa in Jerusalem.' 'What was the period of construction between the two.' He said, 'Forty years.'" No matter how one goes about interpreting these facts and fantasies, Muhammad lied. If the Ka'aba was built by Allah, it was several billion years old. If by Adam, then the year was 4000 B.C. If by Abraham, it was 2000 B.C. If historical evidence is our guide, the year was about 500 A.D. The Temple of Solomon was built in 967 B.C. (precisely 1,000 years before Christ's crucifixion and resurrection in 33 A.D.). The Dome of the Rock was raised on the foundations of the Roman Temple of Jupiter in 691 A.D. As for the mosque, Al-Aqsa was constructed over a Roman basilica on the southern end of the Temple Mount many centuries later. Muhammad got the order wrong as well as the gap separating them.
While I'm not a psychiatrist, this story sounds delusional: Bukhari:V4B54N429/ V5B58N227 "The Prophet said, 'While I was at the House or standing place in a state midway between sleep and wakefulness, an angel recognized me as the man lying between two men. [That sounds provocative.] A golden tray full of wisdom and belief was brought to me and my body was cut open from the throat to the lower part of my pubic area.' The Prophet said, 'My abdomen was washed with Zamzam water taking away doubt or polytheism or pre-Islamic beliefs or error. Then he took out my heart and filled it with belief and wisdom before returning it to its place. Then Al-Buraq, a white animal, smaller than a mule and bigger than a donkey was brought to me and I set out with Gabriel.' The Prophet said, 'The animal's step was so wide it reached the farthest point within reach of the animal's sight."
From the Sira: Ishaq:182 "While I was in the Hijr, Gabriel came and stirred me with his foot। He took me to the door of the mosque and there was a white animal, half mule, half donkey, with wings on its sides yet it was propelled by its feet. He mounted me on it. When I mounted, he shied. Gabriel placed his hand on its mane and said [to the jackass], 'You should be ashamed to behave this way. By God, you have never had a more honorable rider than Muhammad.' The animal was so embarrassed, it broke into a cold sweat."


Prophet of Doom

39 comments:

  1. शुक्रिया मोमिन,

    आयतों का यथार्थ चित्रण,आपका शुद्ध विश्लेषण और उनके पीछे के भावार्थ का प्रकटीकरण आपको असल मोमिन सिद्ध करता है।
    आपके लहजे से ज्ञात होता है,आप इस्लाम की बुराई नहीं कर रहे,बल्कि इस्लाम में से बुराई हटाने के पक्षधर है।
    लाखों करोड़ों निर्दोष मोमिनो को, सच्चे,पवित्र,नेक बुद्धिशाली मोमिन बनने की प्रेरणा है। भारतवर्ष के पानी में ही इतनी प्रज्ञा है कि कमसेकम भारतीय मुसलमान तर्कबुद्धि से यथार्थ अपनाएंगे।
    विनय: कुछ अश्लील शब्दो से बचें,ताकि कल कोई आपकी भाषा-सभ्यता पर अंगुली न उठा सके।

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  2. चाचा अलबेदार की नकल पे ला रहे हो अपने मामा का अनुवाद, शब्‍द xgalatx तक तुम्‍हें ठीक (ग़लत ghalat) से नहीं पता, चले हो अल्‍लाह कुरआन की बातें करने

    quran: 17:
    क्या ही महिमावान है वह जो रातों-रात अपने बन्दे (मुहम्मद) को प्रतिष्‍ठित मस्जिद (काबा) से दूरवर्ती मस्जिद (अक़्सा) तक ले गया, जिसके चतुर्दिक को हमने बरकत दी, ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियाँ दिखाएँ। निस्संदेह वही सब कुछ सुनता, देखता है॥17:1॥

    हमने मूसा को किताब दी थी और उसे इसराईल की सन्तान के लिए मार्गदर्शन बनाया था कि "हमारे सिवा किसी को कार्य-साधक न ठहराना।"॥17:2॥

    जो समझ चुके आओ उस पर

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    विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि
    (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा? हैं या यह big Game against Islam है?
    antimawtar.blogspot.com (Rank-2 Blog) डायरेक्‍ट लिंक

    अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को

    अल्‍लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता

    अल्‍लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं

    अल्‍लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार

    अल्‍लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में

    अल्‍लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी

    छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्‍लामिक पुस्‍तकें
    islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
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  3. हज़रत उवैस क़रनी, हसन बसरी और राबिया बसरी वग़ैरह सभी मुस्लिम सुफ़ी ‘ला इलाहा इल्-लल्लाह‘ के साथ ‘मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह‘ के भी क़ायल थे। मुस्लिम जगत के आलिम आज भी उनका सम्मान करते हैं और उनके जीवन चरित्र को लोगों के सामने एक मिसाल के तौर पर पेश करते हैं। उनका चरित्र हनन करना निहायत घटिया हरकत है। उनके जीवन की घटनाओं को आज कोई भी व्यक्ति जान सकता है। केन्द्रीय व्यवस्था के खि़लाफ़ बग़ावत को कोई भी अच्छा हाकिम कभी बर्दाश्त नहीं करता। लोक व्यवस्था को बनाये रखने के लिये उनका दमन किया ही जाता है। अपना देश इस मामले में खुद एक मिसाल है।

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  4. आप जो कह रहे हैं अपने मन से कह रहे हैं . मैंने जो भी लिखा है आप मुझ से उसका हवाला मांग सकते हैं . मैंने तो कल भी अजित जी के ब्लॉग पर जा कर कहा कि श्री कृष्ण जी ने कभी रस लीला खेलने का पाप नहीं किया . महापुरुष समाज के सामने आदर्श पेश करते हैं . उनके बाद स्वार्थी लोग शोषण करते हैं और महापुरुषों को कलंकित करते हैं . कृपया मेरे लेख देख कर बताएं कि मेरी कौन सी बात अप्रमाणिक है ?

    हिन्दू नारी कितनी बेचारी ? women in ancient hindu culture
    क्या दयानन्द जी को हिन्दू सन्त कहा जा सकता है ? unique preacher
    कौन कहता है कि ईश्‍वर अल्लाह एक हैं
    क्या कहेंगे अब अल्लाह मुहम्मद का नाम अल्लोपनिषद में न मानने वाले ?
    गर्भाधान संस्कारः आर्यों का नैतिक सूचकांक Aryan method of breeding
    आत्महत्या करने में हिन्दू युवा अव्वल क्यों ? under the shadow of death
    वेदों में कहाँ आया है कि इन्द्र ने कृष्ण की गर्भवती स्त्रियों की हत्या की ? cruel murders in vedic era and after that
    गायत्री को वेदमाता क्यों कहा जाता है ? क्या वह कोई औरत है जो ...Gayatri mantra is great but how? Know .
    आखि़र हिन्दू नारियों को पुत्र प्राप्ति की ख़ातिर सीमैन बैंको से वीर्य लेने पर कौन मजबूर करता है ? Holy hindu scriptures
    वेद आर्य नारी को बेवफ़ा क्यों बताते हैं ? The heart of an Aryan lady .
    लंका दहन नायक पवनपुत्र महावीर हनुमान जी ने मन्दिर को टूटने से बचाना क्यों जरूरी न समझा ? plain truth about Hindu Rashtra .

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  5. @जीम. मोमिन
    ज़रूर तेरी माँ ने गुजरात के सी.एम्. के साथ अपना मुंह काला किया है. क्योंकि तू उसी की तरह झूठ बोल रहा है.
    हज़रत उवैस नबी से इतनी मोहब्बत करते थे की जब ओहद की जंग में नबी के दांत शहीद होने की खबर सुनी तो अपने हाथ से अपने दांत तोड़ दिए. अपनी बीमार और अंधी माँ की खिदमत करने की वजह से वह नबी से कभी मिल नहीं पाए, इसके बावजूद नबी ने उन्हें अपना प्यारा सहाबी कहा. तू क्या जाने नबी और उवैस (R.) जैसे सहाबियों की अजमत!

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  6. बहुत शोधपरक लेख हैं आपके... जो आपको गाली दे रहे हैं, उन्हें अपने समर्थन में तर्क पेश करना चाहिये.....

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  7. सच का आइना दिखाने वाला कोई तो आया
    Islam = Sex+Terrorism

    -इस्लाम अय्याशी (चार निकाह, जन्नत में 72 हूरें) और आतंक (जिहाद) का पाठ पढाता है

    -ये लोग अपनी बहनो को भी नहीं छोडते, उनसे निकाह करके बिस्तर में ले जाते हैं

    -कोई मुसलमान हिन्दू धर्म की प्रशंसा कर दे तो उसे मजहब से निकाल देते हैं

    -हिन्दू धर्म ग्रथों को जलाना, मन्दिरों को तोडना, देवी-देवताओं के अश्लील चित्र बनाना, उनके बारे में अपशब्द बोलना इनकी घृणित मानसिकता का प्रमाण है

    - हिन्दुओं को मिटाने या मुसलमान बनाने पर इनको जन्नत रूपी अय्याशी का अड्डा मिलता है

    -मुसलमान (ना)मर्दों को बुरका बहुत भाता है, क्योंकी बुरके में छिपकर ये "बहुत कुछ" करते हैं

    - मुसलमान फर्जी नामों का बुरका पहनकर भौंकते फिरते रहते हैं

    -कुल मिलाकर इस्लाम (ना)मर्दों का मजहब है

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  8. Mohammed Umar Kairanvi अब Impact का बुर्का पहनकर गाली देते हो. इस्लाम (ना)मर्दों का मजहब है

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  9. impact यानी Mohammed Umar Kairanvi मां के साथ तो यह सब नही हुवा जो वो मोमिन को कह रहा है

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  10. मोमिन जी, चरण स्पर्श! आपके लिए मन में अपार श्रद्धा है

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  11. आपसे बात करने का मन है. email :
    sanjay.gosawami@gmail.com

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  12. @Sach ka...
    Indian Citizen
    वगैरह ....
    दूसरों को ना मर्द बताने वालों, पहले खुद तो अपने बुर-कों से बाहर आओ. लेकिन नहीं आओगे. जिस तरह तुम लोग इस हराम की औलाद का समर्थन कर रहे हो उससे स्पष्ट है की तुम सब एक दूसरे के नाजायेज़ भाई हो. तुम सब की माएं एक दूसरे के बापों के बिस्तरों की शोभा बन चुकी हैं.नबी को गालियाँ देने वालों, कौन किसका सुपुत्र है, ये तुम लोगों की माओं को भी पता नहीं होगा.

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  13. Abe Mohammed Umar Kairanvi Urf Impact sach se kiyon bhagte ho

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  14. जीम. 'मोमिन' की जय हो !!!!!!!! मुसलमानों को ओकात बता दी. सब भागे फिर रहे हैं

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  15. जीम. 'मोमिन' की जय हो !!!!!!!!

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  16. जीम. 'मोमिन' साहब! अपने इस ब्लॉग में अपने दूसरे ब्लॉग का लिंक भी दे दीजिये, जिससे पढने वालों को सुविधा रहे. आप इसी आईडी पर दूसरा ब्लॉग बना सकते थे.

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  17. इम्पैक्ट भाई, कुछ मत बोलिए. सच्चा मुसलमान सब्र से काम लेता है. इन्हें जो बकना है बकने दीजिये. इनके बकने से सच्चाई पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला न नबी का दर्जा कम होने वाला और न अल्लाह की सजा में कोई कमी होने वाली. न ही इनके ब्लॉग पे आकर अपने दिमाग को खराब करने से फायेदा है. क्योंकि ये यूं ही झूट का बयान करते रहेंगे. क्योंकि इन्हें इस्लाम पर इलज़ाम लगाने के लिए थैलियाँ मिल रही हैं.

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  18. मैं बहुत आहत हूँ कि मेरे ब्लाग के माध्यम से ज़ेहनों पर पथराव किया जा रहा है. मेरी नियत को समझने की कोशिश करें, ना मैं हिदू मत का जानिब दार हूँ और न इस्लाम का, मैं एक ईमान दर ''मोमिन'' हूँ , पहले मोमिन की व्याख्या समझें. मुसलमान एक मज़लूम कौम हैं जिसको मैं बेदार करना चाहता हूँ. वह नींद के आलम में हैं कि अपने हितैषी को गालियाँ दे रहे हैं. विडंबना ये है कि वह खुदकुरआन को नहीं समझते बल्कि उसके बारे में मिथ्य को पढ़ कर मुतासिर हैं. उनसे गुजारिश है की मेरे लेखों को यथार्थ को आगे रख कर पढ़ें अकीदत का चश्मा उतर कर.

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  19. प्रिय 'मोमिन'

    डाँ जाकिर नायक ने इन कैरान्वी,जमाल,जिशान आदि की आंखों पर कुतर्कों की पट्टी बांध रखी है। हुबहू उनके कुतर्कों की छपी-छपाई लिस्ट पेश करते है,सारे विषय फ़िक्श है,आप इनके ब्लोग एव'हमारी अन्ज़ुमन'पर देख सकते है,और आप वाकिफ़ ही होंगे।
    उन सभी लेखों-भाषणों का क्रमबद्ध तार्किक खण्डन कुरआन से नहिं दे देते,ये मानने वाले नहिं।
    आप अरबी और कुरआन के विद्वान है,प्रमाणिक व सही अनुवाद से हवाले देते हो,अनुवाद और अपनी बात को जुदा टन्कित करते हो,
    अभीतक आपके अनुवाद को गलत सिद्ध करने वाला कोई विद्वान सामने नहिं आया।
    आपका शुभ मक़सद सफ़ल बने यह शुभेच्छा।
    भारतिय मुसलमान,आर्य-मोमिन बने,जिसके दिल में दया करूणा हो,हिंसा से दूर रहे,पाप(बदी)से डरे,न कि अल्लाह से,दानशील,दयावान,इमानदार,क्षमाशील बने। ॥ इति शुभम्॥

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  20. जैदी भाई, आप ठीक कहते हैं की मुसलमान को सब्र से काम लेना चाहिए. लेकिन मैं इतना पेशेंस अपने अन्दर नहीं पाता. मैं तो 'शठे शाठ्यम---' वाला व्यक्ति हूँ. आप विद्वान हैं, इन कमीनों से बहस करना आपके स्तर के लिए मुनासिब नहीं. इन्हें मेरे जैसे जाहिल के लिए छोड़ दीजिये.

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  21. @मोमिन
    तूने कहा " ना मैं हिदू मत का जानिब दार हूँ और न इस्लाम का"
    दरअसल तू धोबी का कुत्ता है घर का न घाट का. अपने मुंह से अपने को ईमानदार वही कहता है जो सबसे बड़ा चोर होता है. तेरा मकसद सिर्फ फसाद फैलाना है. इतना ही मुसलमानों का ख्याल है तो जाकर किसी गरीब बच्चे को पढवा दे, किसी गरीब मुसलमान परिवार का खर्चा उठा ले. ब्लॉग पे बैठा क्यों माँ.... रहा है.

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  22. @सच्चा मुसलमान सब्र से काम लेता है

    ही ही ही ही ही ही
    हो हो हो हो हो हो
    हा हा हा हा हा हा

    Mohammed Umar Kairanvi उर्फ Impact के कमेन्ट और इन की घृणित मानसिकता मानसिकता इसका प्रमाण है जी ये गंदे लोग कितने सब्र वाले हैं

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  23. @Impact,
    'मोमिन' से अफसोस व्यक्त करते हुए कि,बिना इजाज़त 'इम्पैक्ट' को मै जवाब दे रहा हूँ ।
    १."जैदी भाई, आप ठीक कहते हैं की मुसलमान को सब्र से काम लेना चाहिए. लेकिन मैं इतना पेशेंस अपने अन्दर नहीं पाता. मैं तो 'शठे शाठ्यम---' वाला व्यक्ति हूँ."
    --ans:-अनाम ने सही कहा -"इन की घृणित मानसिकता इसका प्रमाण है"
    एक दूसरे की बांह पकड़ कर सभ्यता का नाटक छोड़ो।
    2." ना मैं हिदू मत का जानिब दार हूँ और न इस्लाम का"
    दरअसल तू धोबी का कुत्ता है घर का न घाट का.
    --ans:- तुम्हारे सोचने के नज़रिए का दोष है,लोग इसे मध्यस्थ भाव,या निरपेक्ष गुण कहते है।
    3."अपने को ईमानदार वही कहता है जो सबसे बड़ा चोर होता है."
    --ans:-यही तो बात 'मोमिन' समझाना चाहता है,देख लो कूरआन में अल्लाह स्वयं अपने को बहोत बड़ा सिद्ध करने के लिए कसमें खाता है।
    4."इतना ही मुसलमानों का ख्याल है तो जाकर किसी गरीब बच्चे को पढवा दे, किसी गरीब मुसलमान परिवार का खर्चा उठा ले."
    --ans:- यह बात आपकी सबसे अच्छी है,शिक्षा न केवल गरीब बच्चे के लिए बल्कि हर मुसलमान के लिए जरूरी है। 'मोमिन'का यही प्रयास है, पहले जागरूकता आए,और मुसलमान ज़ाहिल रहने के कारणों को समज़े।

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  24. Anonymous said...
    @Impact,
    'मोमिन' से अफसोस व्यक्त करते हुए कि,बिना इजाज़त 'इम्पैक्ट' को मै जवाब दे रहा हूँ ।
    १."जैदी भाई, आप ठीक कहते हैं की मुसलमान को सब्र से काम लेना चाहिए. लेकिन मैं इतना पेशेंस अपने अन्दर नहीं पाता. मैं तो 'शठे शाठ्यम---' वाला व्यक्ति हूँ."
    --ans:-अनाम ने सही कहा -"इन की घृणित मानसिकता इसका प्रमाण है"
    एक दूसरे की बांह पकड़ कर सभ्यता का नाटक छोड़ो।
    2." ना मैं हिदू मत का जानिब दार हूँ और न इस्लाम का"
    दरअसल तू धोबी का कुत्ता है घर का न घाट का.
    --ans:- तुम्हारे सोचने के नज़रिए का दोष है,लोग इसे मध्यस्थ भाव,या निरपेक्ष गुण कहते है।
    3."अपने को ईमानदार वही कहता है जो सबसे बड़ा चोर होता है."
    --ans:-यही तो बात 'मोमिन' समझाना चाहता है,देख लो कूरआन में अल्लाह स्वयं अपने को बहोत बड़ा सिद्ध करने के लिए कसमें खाता है।
    4."इतना ही मुसलमानों का ख्याल है तो जाकर किसी गरीब बच्चे को पढवा दे, किसी गरीब मुसलमान परिवार का खर्चा उठा ले."
    --ans:- यह बात आपकी सबसे अच्छी है,शिक्षा न केवल गरीब बच्चे के लिए बल्कि हर मुसलमान के लिए जरूरी है। 'मोमिन'का यही प्रयास है, पहले जागरूकता आए,और मुसलमान ज़ाहिल रहने के कारणों को समज़े।

    SAHMAT

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  25. @Anonymous
    Kahat Kabeera .......
    मैं ये बात मान लेता हूँ की मुसलमान को शिक्षा की ज़रुरत है. लेकिन हरामुन (Sorry Momin) जैसे गुरुओं की हरगिज़ ज़रुरत नहीं है. बल्कि ज़रुरत है जाबिर इब्ने हय्यान, अल ख्वारिज्मी, इब्न सीना और अल जवाहिरी जैसे गुरुओं की. अगर इनके नाम नहीं सुने तो गूगल पर सर्च करो Golden Period of Islam. जिस धर्म को तुम उम्मी का मज़हब कह रहे हो उसी ने दुनिया को सभ्यता सिखाई और साइंस के साथ जीना सिखाया. वरना यूरोप और अमरीका वाले तो आज भी पाखाना धोना नहीं जानते हैं. हमारी किताबें चुराकर आज वे अपने को विकसित कह रहे हैं जबकि हकीकत ये है की आज से पचास साल पहले तक उनकी मेडिकल साइंस के कोर्स में इब्ने सीना की किताबें शामिल थीं. फिर धीरे धीरे इन किताबों से मुसलमान नाम गायब कर दिए गए. जाबिर इब्ने हय्यान न होता तो केमिस्ट्री का कहीं अता पता न होता. इस्लाम ने लोगों को टीम वर्क सिखाया वरना हिन्दू गुरु तो अकेले अपने में मस्त हिमालय की गुफाओं में पड़े रहते थे. गरीबी हटाने के लिए ज़कात जैसे बेहतरीन सिस्टम इस्लाम के ही दिए हुए हैं. तुम इस्लाम की किन किन रहमतों को झुठलाओगे?

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  26. @Impact,

    आधुनिक विज्ञान कई सिद्धन्त इन विद्वानो की देन है,यह सच है।और पश्चिम सदा इस अह्सान का जिक्र करके,एवं कई सिद्धन्तो को उनके नाम रख रखकर सम्मान देता आया है।
    लेकिन यह किताबें इस्लाम की कैसे हो गई?,क्या केवल इसलिये कि ये विद्वान मुसलिम थे, उनके नाम मुसलिम थे। क्या ये किताबें अल्लाह नें नाजिल की थी?

    एक सच और बता दुं,यह सारा ज्ञान प्रारम्भ से तो आर्यक्षेत्र से ही गया है। वहां अनुवाद हुआ और उसपर यह किताबें लिखी गयी,जिसे तुम चुराना कह रहे हो,भारत ने तो सदा माना है, ज्ञान समस्त विश्व के लिये है। सबूत के लिये; पश्चिम आज भी मानता है 'अंक' इन्डो-अरेबिक है,यानि अंक शास्त्र भारत से अरब और अरब से पश्चिम में फ़ैला।
    आपने कहा,"वरना हिन्दू गुरु तो अकेले अपने में मस्त हिमालय की गुफाओं में पड़े रहते थे."
    सच कहा वे धर्म-गुरु थे,लडवैया नहिं, वे पहले ज्ञान प्राप्त करते थे,फ़िर उपदेश्। यही मूल फ़र्क है,हिन्दुइज्म और इस्लाम में।

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  27. तुम भारत की किन किन रहमतों को झुठलाओगे?

    ReplyDelete
  28. @सुज्ञ
    मैं उन अहसान फरामोशों को जवाब दे रहा हूँ जो इस्लाम के अहसानों तले दबे हुए हैं और उसके बाद उसी का मज़ाक उड़ा रहे हैं. इसमें आप के सन्दर्भ विषय से अलग हैं और न ही आप का मेरे जवाब से कोई सम्बन्ध है. हाँ आपके एक कथन " केवल इसलिये कि ये विद्वान मुसलिम थे, उनके नाम मुसलिम थे। क्या ये किताबें अल्लाह नें नाजिल की थी?" से मेरा सवाल पैदा होता है,
    अगर इस्लाम इतना ही बुरा था या है जैसा की ये मियाँ कह रहे हैं और आप जैसे लोग इनका सपोर्ट कर रहे हैं तो फिर इस्लाम में ऐसे विद्वान पैदा ही नहीं होने चाहिए थे.
    अल्लाह ने ये किताबें नाजिल नहीं कीं, लेकिन रास्ता ज़रूर बता दिया जिसपर चलकर इस्लाम ने ज्ञान के मामले में पूरी दुनिया में अपने झंडे गाड़े.
    पचास साल पहले देश छोड़ चुके एक भारतीय को अगर नोबुल पुरस्कार मिल जाता है तो आप और हम गर्व से कहते हैं की वह एक भारतीय था. तो फिर उन विद्वानों के लिए हम इस्लाम पर गर्व क्यों न करें?

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  29. @Impact,

    सबसे पहली बात तो आपकी पुर्व टिप्पनी देखकर तो मैने इस बहस में
    पडना मुनासिब नहिं माना था,पर आपकी यह टिप्पनी देखकर लगा की आप भी व्यवस्थित बात कर सकेंगे,तो मैने उध्यम किया।

    दूसरी बात,हम 'मोमिन'का उत्साह्वर्धन इसलिये नहिं कर रहे कि वह इस्लाम की आलोचना कर रहे है,बल्कि इसलिये कर रहे है कि वे भारतिय मुसलिमों का भला चाहते है। यकिन मानिये अगर वे भारतिय मुसल्मानों का बुरा या अहित चाहेंगे तो हम ही वह पहले व्यक्ति होंगे जो उनका विरोध करेंगे।

    तीसरी बात, आपका कथन- "अगर इस्लाम इतना ही बुरा था या है जैसा की ये मियाँ कह रहे हैं और आप जैसे लोग इनका सपोर्ट कर रहे हैं तो फिर इस्लाम में ऐसे विद्वान पैदा ही नहीं होने चाहिए थे.

    मित्र, ऐसा कोई नियम नहिं हैं कि कसाई के घर अहिंसक औलाद पैदा न हो,मुर्ख का बेटा विद्वान न हो,गरीब का बेटा कभी सम्पन्न ही न बने।

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  30. @सुज्ञ
    विद्वान तभी पैदा होते हैं जब उन्हें उस तरह का माहोल दिया जाये. जब इस्लाम का गोल्डेन पीरियड चल रहा था उस समय यूरोप अँधेरे में था. इसलिए क्योंकि यूरोप के धर्माधिकारियों ने विद्वानों के लिए कोई आजादी नहीं छोड़ी थी. जबकि इस्लाम की शुरुआत ही हुई 'इकरा' (पढो) से. जिस नबी पर ये दो कौड़ी के गन्दी नाली के कीड़े कीचड उछालने की कोशिश रहे हैं, उसने फरमाया की इल्म हासिल करो, चाहे इसके लिए तुम्हें चीन ही क्यों न जाना पड़े. इस्लाम की इसी महानता ने अपने अन्दर एक से एक विद्वान पैदा किये.

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  31. @Impact,

    मैं आपकी बात से असहमत हूँ।

    अरब का कथित 'गोल्डेन पीरियड' शोध का विषय है,वास्तविक कारणों गंभीर अध्यन की आवश्यकता है।
    आजादी के बाद भारत में भारतीय मुसलिमों को जो माहोल उपलब्ध है,उसकी तुलना में केवल अंगुलियों पर गिन सकें इतने विद्वान हुए,
    और आपको शायद बुरा लगे पर सच्चाई है वे विद्वान रूढ़िवादी इस्लाम से दूर रहकर ही सफल बने।
    अंत में आपकी टिप्पणियां पुनः तल्ख बनती जा रही है,मैं नहीं चाहता हमारी चर्चा का उपयोग ब्लोगधारक को ठेस पहुंचाने के लिए हो।
    चर्चा को यहां विराम देता हूँ।

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  32. ये क्या पागलपन है एक तो जाकिर नाइक जिसके दिमाग में भूसा भरा है और ये दूसरा असरफअली है जिनका भी कोई स्क्रू ढीला लगता है एक को संस्कृत ठीक से नहीं आती और एक को अरबी का मतलब करना नहीं आता दोनों ही अपने अपने नाम का प्रचार करने में लगे है में कोई इस्लाम या मुसलमानों का विरोधी नहीं हूँ लेकिन ऐसे लोगो का विरोधी हूँ जो की किसी भी धर्म ग्रन्थ का अपमान करके अपने आप को बड़ा चतुर और समजदार बताते है इन लोगो की आदत होती है ये किसी भी धर्म ग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया करते लेकिन ये धर्म ग्रन्थ इस लिए पढ़ते है की उसमे से कुछ ऐसा मसाले दार मतलब निकला जाये कि दुनिया अचंभित हो जाये ये सब दया के पात्र है और इनका साथ देनेवाले विकृत मनो विचार वाले कहलायेंगे (अगर जाकिर नाइक को संस्कृत और असरफ को अरबी उर्दू सीखनी है तो में सिखाने के लिया तैयार हु बिलकुल निःशुल्क ) चाणक्य के अनुसार मूर्खो से कोई भी सम्बन्ध रखने वाला अंत में संकट ही पाता है तो असरफ अली और जाकिर नाइक ये दोनों को एक दुसरे पर कीचड़ उछालना है तो उछाले लेकिन इनके पास खड़े रह कर अपने ऊपर भी किचल उचालेंगा ये तय है तो इनसे दूर ही रहा जाये यही बुध्धिमानी है असरफ अली मुस्लिम हो कर मुस्लिम के उपास्यो को निचा दिखा रहा है तो क्या ये दुसरे धमो की इज्जत करेगा ? इनसे पूछो की फिर किसकी उपासना की जाये? क्या तुम लोगो की ? इससे पूछना भी बेकार होगा की, तुम्हारे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के बारेमे क्या विचार है? या तो गरीब नवाज़ के बारे में क्या विचार है? विवेकानंद के बारेमे या तो सूफी संत निजामुदीन के बारेमे? कबीर, तुलसीदास, मीराबाई के बारे में ?क्यों की ये दोनों बकवास ही करने वाले है. मैं तो हिन्दू, जैन, बुद्ध, सिख, इसाई और सबको इनसे दूर ही रहने की सलाह देता हूँ . - श्री दासअवतार

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  33. मैं तो राबिया को ऋषि कहूंगा, दुर्वासा को नहीं। राबिया सूफी स्त्री थी। कुरान में एक जगह यह वचन आता है कि शैतान से घृणा करो। उसने काट दिया। और कुरान में कोई तरमीम नहीं कर सकता, कोई सुधार नहीं कर सकता। कुरान में सुधार करना! इसका मतलब हुआ कि पैगंबर गलत है, कि कुरान जो उतारी परमात्मा ने वह गलत है! ये ईश्वरीय वचन हैं। इनको कोई सुधार सकता है? यह कोई बच्चों की लिखी हुई किताब तो नहीं है कि तुम इस में सुधार कर दो।
    लेकिन राबिया ने काट ही दिया वह वचन। हसन नाम का फकीर उसके घर मेहमान था। उसने राबिया की किताब देखी, कुरान देखी। उलट—पलट रहा था, देखा कि एक जगह वाक्य कटा हुआ है। वह तो बहुत हैरान हुआ। उसने राबिया से कहा, 'किसी ने तेरी कुरान को अपवित्र कर दिया।’
    राबिया ने कहा, 'किसी ने नहीं। और अपवित्र नहीं किया है, पवित्र किया है। मैंने ही किया है। क्योंकि जब से मैंने परमात्मा को जाना तब से मुझे शैतान दिखाई नहीं पड़ रहा। मैं घृणा कैसे करूं? शैतान नहीं दिखाई पड़ता। शैतान भी मेरे सामने आकर खड़ा हो जाए तो परमात्मा ही दिखाई पड़ता है। और घृणा कैसे करूं? जब से परमात्मा को जाना, सारा जीवन प्रेम में रूपांतरित हो गया है। घृणा मेरे भीतर नहीं बची। अब शैतान का मैं क्या करूं? घृणा पहले भीतर होनी चाहिए न, तभी तो मैं कर सकूंगी! अब भीतर ही जो चीज न बची। शैतान हो या परमात्मा हो, कोई भी हो, मेरे भीतर तो बस प्रेम ही बचा है। मेरे भीतर से तो प्रार्थना ही उठेगी। मेरे भीतर दुर्गंध नहीं है, सुगंध ही उठेगी।’
    मैं राबिया को ऋषि कहूंगा। और मैं कहूंगा उसने ठीक किया जो कुरान में सुधार कर दिया। दुर्वासा को ऋषि नहीं कह सकता। जरा—सी बात में क्रुद्ध हो जाए। ऋषि तो वह परम अवस्था है दृष्टि की, द्रष्टा— भाव की, जहां न कोई काम बचता, न कोई मोह बचता, न कोई क्रोध बचता। और जहां ये तीनों समाप्त हो जाते है, वहीं ज्ञान का जन्म होता है।
    Osho

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  34. मैं तो राबिया को ऋषि कहूंगा, दुर्वासा को नहीं। राबिया सूफी स्त्री थी। कुरान में एक जगह यह वचन आता है कि शैतान से घृणा करो। उसने काट दिया। और कुरान में कोई तरमीम नहीं कर सकता, कोई सुधार नहीं कर सकता। कुरान में सुधार करना! इसका मतलब हुआ कि पैगंबर गलत है, कि कुरान जो उतारी परमात्मा ने वह गलत है! ये ईश्वरीय वचन हैं। इनको कोई सुधार सकता है? यह कोई बच्चों की लिखी हुई किताब तो नहीं है कि तुम इस में सुधार कर दो।
    लेकिन राबिया ने काट ही दिया वह वचन। हसन नाम का फकीर उसके घर मेहमान था। उसने राबिया की किताब देखी, कुरान देखी। उलट—पलट रहा था, देखा कि एक जगह वाक्य कटा हुआ है। वह तो बहुत हैरान हुआ। उसने राबिया से कहा, 'किसी ने तेरी कुरान को अपवित्र कर दिया।’
    राबिया ने कहा, 'किसी ने नहीं। और अपवित्र नहीं किया है, पवित्र किया है। मैंने ही किया है। क्योंकि जब से मैंने परमात्मा को जाना तब से मुझे शैतान दिखाई नहीं पड़ रहा। मैं घृणा कैसे करूं? शैतान नहीं दिखाई पड़ता। शैतान भी मेरे सामने आकर खड़ा हो जाए तो परमात्मा ही दिखाई पड़ता है। और घृणा कैसे करूं? जब से परमात्मा को जाना, सारा जीवन प्रेम में रूपांतरित हो गया है। घृणा मेरे भीतर नहीं बची। अब शैतान का मैं क्या करूं? घृणा पहले भीतर होनी चाहिए न, तभी तो मैं कर सकूंगी! अब भीतर ही जो चीज न बची। शैतान हो या परमात्मा हो, कोई भी हो, मेरे भीतर तो बस प्रेम ही बचा है। मेरे भीतर से तो प्रार्थना ही उठेगी। मेरे भीतर दुर्गंध नहीं है, सुगंध ही उठेगी।’
    मैं राबिया को ऋषि कहूंगा। और मैं कहूंगा उसने ठीक किया जो कुरान में सुधार कर दिया। दुर्वासा को ऋषि नहीं कह सकता। जरा—सी बात में क्रुद्ध हो जाए। ऋषि तो वह परम अवस्था है दृष्टि की, द्रष्टा— भाव की, जहां न कोई काम बचता, न कोई मोह बचता, न कोई क्रोध बचता। और जहां ये तीनों समाप्त हो जाते है, वहीं ज्ञान का जन्म होता है।
    Osho

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  35. RABIYA AL ADABIYA
    When Rabia Edited Quran

    There have been just a few more women around the world who are enough to prove that there is no intrinsic incapacity in being a woman that prevents you from rising to the status of being a master. One of them is Rabiya Al Adabiya, a sufi mystic.

    “She is a Sufi; her name is Rabiya al-Adabiya. Al-Adabiya means 'from the village of Adabiya'. Rabiya is her name, al-Adabiya is her address. That's how the Sufis named her: Rabiya al-Adabiya. The village became a very Mecca when Rabiya was still alive. Travelers from all over the world, seekers from everywhere, came searching for Rabiya's hut. She was really a ferocious mystic; with a hammer in her hand she could have broken anybody's skull. She actually broke many many skulls and brought out the hidden essence.

    Once, Hassan came to her searching, seeking. One morning while staying with her he asked for the Koran for his morning prayer. Rabiya gave him her own book. Hassan was aghast; he said, "This is condemnable. Who has done this?" Rabiya had corrected the Koran! She had crossed out many words in many places. She had even cut out whole passages. Hassan said, "This is not allowed. The Koran cannot be edited. Who can edit the prophet -- the last messenger of God?" That's why the Mohammedans call him the last messenger -- because there will be no more prophets after Mohammed, so who can correct his words? He is correct, and not correctable.

    Rabiya laughed and said, "I don't care about tradition. I have seen God face to face, and I have changed the book according to my experience. This is my book," she said; "you cannot raise any objection. It is my possession. You should be thankful that I allowed you to go through it. I have to be true to my experience, not to anybody else's."

    This is Rabiya, the incredible woman. I include her in my list. She is enough to put Madame Blavatsky in her place. Again, Rabiya's words are not written by her, but are just disciples' notes, like Devageet's. Rabiya would say something out of context -- nobody could figure out any context; suddenly she would say something and it was noted down. So were the anecdotes she related and the anecdotes that her life itself became. I love that.

    Meera is beautiful, but without salt, just sweet. Rabiya is very salty. As you know I am a diabetic, and I cannot eat or drink too much of Meera -- Devaraj won't allow it. But Rabiya is okay, I can have as much salt as I want. In fact I hate sugar, and I hate saccharin even more, the artificial sugar created especially for diabetics -- but I love the salt.

    Jesus said to his disciples: Ye are the salt of the earth. I can say of Rabiya: Rabiya, you are the salt of all the women that have existed and will ever exist on the earth.”

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  36. RABIYA AL ADABIYA
    When Rabia Edited Quran

    There have been just a few more women around the world who are enough to prove that there is no intrinsic incapacity in being a woman that prevents you from rising to the status of being a master. One of them is Rabiya Al Adabiya, a sufi mystic.

    “She is a Sufi; her name is Rabiya al-Adabiya. Al-Adabiya means 'from the village of Adabiya'. Rabiya is her name, al-Adabiya is her address. That's how the Sufis named her: Rabiya al-Adabiya. The village became a very Mecca when Rabiya was still alive. Travelers from all over the world, seekers from everywhere, came searching for Rabiya's hut. She was really a ferocious mystic; with a hammer in her hand she could have broken anybody's skull. She actually broke many many skulls and brought out the hidden essence.

    Once, Hassan came to her searching, seeking. One morning while staying with her he asked for the Koran for his morning prayer. Rabiya gave him her own book. Hassan was aghast; he said, "This is condemnable. Who has done this?" Rabiya had corrected the Koran! She had crossed out many words in many places. She had even cut out whole passages. Hassan said, "This is not allowed. The Koran cannot be edited. Who can edit the prophet -- the last messenger of God?" That's why the Mohammedans call him the last messenger -- because there will be no more prophets after Mohammed, so who can correct his words? He is correct, and not correctable.

    Rabiya laughed and said, "I don't care about tradition. I have seen God face to face, and I have changed the book according to my experience. This is my book," she said; "you cannot raise any objection. It is my possession. You should be thankful that I allowed you to go through it. I have to be true to my experience, not to anybody else's."

    This is Rabiya, the incredible woman. I include her in my list. She is enough to put Madame Blavatsky in her place. Again, Rabiya's words are not written by her, but are just disciples' notes, like Devageet's. Rabiya would say something out of context -- nobody could figure out any context; suddenly she would say something and it was noted down. So were the anecdotes she related and the anecdotes that her life itself became. I love that.

    Meera is beautiful, but without salt, just sweet. Rabiya is very salty. As you know I am a diabetic, and I cannot eat or drink too much of Meera -- Devaraj won't allow it. But Rabiya is okay, I can have as much salt as I want. In fact I hate sugar, and I hate saccharin even more, the artificial sugar created especially for diabetics -- but I love the salt.

    Jesus said to his disciples: Ye are the salt of the earth. I can say of Rabiya: Rabiya, you are the salt of all the women that have existed and will ever exist on the earth.”

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  37. RABIYA AL ADABIYA
    When Rabia Edited Quran

    There have been just a few more women around the world who are enough to prove that there is no intrinsic incapacity in being a woman that prevents you from rising to the status of being a master. One of them is Rabiya Al Adabiya, a sufi mystic.

    “She is a Sufi; her name is Rabiya al-Adabiya. Al-Adabiya means 'from the village of Adabiya'. Rabiya is her name, al-Adabiya is her address. That's how the Sufis named her: Rabiya al-Adabiya. The village became a very Mecca when Rabiya was still alive. Travelers from all over the world, seekers from everywhere, came searching for Rabiya's hut. She was really a ferocious mystic; with a hammer in her hand she could have broken anybody's skull. She actually broke many many skulls and brought out the hidden essence.

    Once, Hassan came to her searching, seeking. One morning while staying with her he asked for the Koran for his morning prayer. Rabiya gave him her own book. Hassan was aghast; he said, "This is condemnable. Who has done this?" Rabiya had corrected the Koran! She had crossed out many words in many places. She had even cut out whole passages. Hassan said, "This is not allowed. The Koran cannot be edited. Who can edit the prophet -- the last messenger of God?" That's why the Mohammedans call him the last messenger -- because there will be no more prophets after Mohammed, so who can correct his words? He is correct, and not correctable.

    Rabiya laughed and said, "I don't care about tradition. I have seen God face to face, and I have changed the book according to my experience. This is my book," she said; "you cannot raise any objection. It is my possession. You should be thankful that I allowed you to go through it. I have to be true to my experience, not to anybody else's."

    This is Rabiya, the incredible woman. I include her in my list. She is enough to put Madame Blavatsky in her place. Again, Rabiya's words are not written by her, but are just disciples' notes, like Devageet's. Rabiya would say something out of context -- nobody could figure out any context; suddenly she would say something and it was noted down. So were the anecdotes she related and the anecdotes that her life itself became. I love that.

    Meera is beautiful, but without salt, just sweet. Rabiya is very salty. As you know I am a diabetic, and I cannot eat or drink too much of Meera -- Devaraj won't allow it. But Rabiya is okay, I can have as much salt as I want. In fact I hate sugar, and I hate saccharin even more, the artificial sugar created especially for diabetics -- but I love the salt.

    Jesus said to his disciples: Ye are the salt of the earth. I can say of Rabiya: Rabiya, you are the salt of all the women that have existed and will ever exist on the earth.”

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  38. RABIYA AL ADABIYA
    When Rabia Edited Quran

    There have been just a few more women around the world who are enough to prove that there is no intrinsic incapacity in being a woman that prevents you from rising to the status of being a master. One of them is Rabiya Al Adabiya, a sufi mystic.

    “She is a Sufi; her name is Rabiya al-Adabiya. Al-Adabiya means 'from the village of Adabiya'. Rabiya is her name, al-Adabiya is her address. That's how the Sufis named her: Rabiya al-Adabiya. The village became a very Mecca when Rabiya was still alive. Travelers from all over the world, seekers from everywhere, came searching for Rabiya's hut. She was really a ferocious mystic; with a hammer in her hand she could have broken anybody's skull. She actually broke many many skulls and brought out the hidden essence.

    Once, Hassan came to her searching, seeking. One morning while staying with her he asked for the Koran for his morning prayer. Rabiya gave him her own book. Hassan was aghast; he said, "This is condemnable. Who has done this?" Rabiya had corrected the Koran! She had crossed out many words in many places. She had even cut out whole passages. Hassan said, "This is not allowed. The Koran cannot be edited. Who can edit the prophet -- the last messenger of God?" That's why the Mohammedans call him the last messenger -- because there will be no more prophets after Mohammed, so who can correct his words? He is correct, and not correctable.

    Rabiya laughed and said, "I don't care about tradition. I have seen God face to face, and I have changed the book according to my experience. This is my book," she said; "you cannot raise any objection. It is my possession. You should be thankful that I allowed you to go through it. I have to be true to my experience, not to anybody else's."

    This is Rabiya, the incredible woman. I include her in my list. She is enough to put Madame Blavatsky in her place. Again, Rabiya's words are not written by her, but are just disciples' notes, like Devageet's. Rabiya would say something out of context -- nobody could figure out any context; suddenly she would say something and it was noted down. So were the anecdotes she related and the anecdotes that her life itself became. I love that.

    Meera is beautiful, but without salt, just sweet. Rabiya is very salty. As you know I am a diabetic, and I cannot eat or drink too much of Meera -- Devaraj won't allow it. But Rabiya is okay, I can have as much salt as I want. In fact I hate sugar, and I hate saccharin even more, the artificial sugar created especially for diabetics -- but I love the salt.

    Jesus said to his disciples: Ye are the salt of the earth. I can say of Rabiya: Rabiya, you are the salt of all the women that have existed and will ever exist on the earth.”

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