(दूसरी किस्त)
सूरह बनी इस्राईल
नाम से लगता है कि इस सूरह में बनी इस्राईल यानी याक़ूब की बारह औलादों की दास्तान होंगी मगर ऐसा कुछ भी नहीं, वही लोगों से जोड़ तोड़, अल्लाह की क़यामती धमकियाँ ही हैं. गीता की तरह अगर हम कुरआन सार निकलना चाहें तो वो ऐसे होगा - - -'' अवाम को क़यामत आने के यक़ीन में लाकर, दोज़ख का खौफ़ और जम्मत की लालच पैदा करना, फिर उसके बाद मन मानी तौर पर उनको हाँकना''क़यामत के उन्वान को लेकर मुहम्मद जितना बोले हैं उतना दुन्या में शायद कोई किसी उन्वान पर बोला हो. इस्लाम को अपना लेने के बाद मुसलमानों मे एक वाहियात इनफ्रादियत आ गई है कि मुहम्मद की इस 'बड़ बड़' को ज़ुबानी रट लेने की, जिसे हफ़िज़ा कहा जाता है. लाखों ज़िंदगियाँ इस ग़ैर तामीरी काम में लग कर अपनी फ़ितरी ज़िन्दगी से ना आशना और महरूम रह जाती हैं और दुन्या के लिए कोई रचनात्मक काम नहीं कर पातीं. अरब इस हाफ़िज़े के बेसूद काम को लगभग भूल चुके हैं और तमाम हिंदो-पाक के मुसलमानों में रायज, यह रवायती खुराफात अभी बाक़ी है. वह मुहम्मद को सिर्फ इतना मानते हैं कि उन्हों ने कुफ्र और शिर्क को ख़त्म करके वहदानियत (एक ईश्वर वाद ) का पैगाम दिया. मुहम्मद वहाँ आक़ाए दो जहाँ नहीं हैं. यहाँ के मुस्लमान उनको गुमराह और वहाबी कहते हैं.
तुर्की में इन्केलाब आया, कमाल पाशा ने तमाम कट्टर पंथियों के मुँह में लगाम और नाक में नकेल डाल दीं, जिन्हों ने दीन के हक़ में अपनी जानें कुरबान करना चाहा उनको लुक्माए अजल हो जाने दिया, नतीजतन आज योरोप में अकेला मुस्लिम मुल्क तुर्की है जो यरोप के शाने बशाने चल रहा है. कमाल पाशा ने बड़ा काम ये किया की इस्लाम को अरबी जुबान से निकल कर टर्किश में कर दिया जिसके बेहतरीन नतायज निकले, कसौटी पर चढ़ गया कुरआन. कोई टर्किश हाफ़िज़ ढूंढें से नहीं मिलेगा टर्की में. काश अपने मुल्क भारत में ऐसा हो सके, कौम का आधा इलाज यूँ ही हो जाए.हमारे मुल्क का बड़ा सानेहा ये मज़हब और धर्म है, इसमें मुदाखलत न हिदू भेड़ें चाहेगी और न इस्लामी भेड़ें, इनके कसाई इनके नजात दिहन्दा बन कर इनको ज़िबह करते रहेंग. हमारे हुक्मरान अवाम की नहीं अवाम की 'ज़ेहनी पस्ती' की हिफ़ाज़त करते हैं. मुसलमान को कट्टर मुसलमान और हिन्दू को कट्टर हिन्दू बना कर इनसे इंसानियत का जनाज़ा ढुलवाते हैं.
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चलिए देखें कि अल्लाह तअला क्या फरमाता है - - -
''जिस शख्स को अल्लाह तअला ने हराम फ़रमाया है उसको क़त्ल मत करो, हाँ मगर हक़ पर और जो शख्स न हक़ क़त्ल किया जावे तो हम ने इस के वारिस को अख्त्यार दिया है सो इस के क़त्ल के बारे में हद से तजावुज़ न करना चाहिए वह शख्स तरफ़दारी के काबिल है.''सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (३३)मुहम्मद ने कुरआन नाजिल करते वक़्त ख्वाबों-ख़याल में ना सोचा होगा कि इंसानी इल्म और अक्ल इर्तेकई मंजिलें तय करती हुई इक्कीसवीं सदी में पहुँच जाएंगी. वह खुद से हजारों साल पहले इब्राहीमी दौर में अपनी उम्मत को ले जाना चाहते थे। पूरे कुरआन में तौरेती निज़ाम की तरह अपनी अलग ही लगाम बनाई. वह भी गैर वाज़ेह. जान के बदले जान पर बना क़ानून है. कलाम से कोई बात साफ नहीं होती जिसे मौलानाओं ने उनके फ़ेवर में कर दिया है. साफ कलाम करने में अल्लाह की क्या मजबूरी हो सकती थी, मगर हाँ उम्मी मुहम्मद की मजबूरी ज़रूर थी। सितम ये कि मुसलमान इसे उनकी ज़ुबान नहीं मानते हैं बल्कि समझते हैं कि अल्लाह ऐसी ही ना समझ में आने वाली भाषा बोलता रहा होगा. फ़ख्रिया कहते हैं अल्लाह का कलाम समझ पाना बच्चों का खेल नहीं।गोया अल्लाह को और कोई काम नहीं है इंसानों की घेरा बंदी के सिवा. यह तमाशे मुहम्मद के गढ़े हुए किस्से-मेराज की तरफ है.''जिस पेड़ की कुरआन में मज़म्मत की गई है. हम तो इनको डराते रहते हैं मगर इनकी सरकशी बढती ही जाती है.''अल्लाह अजब है अपने बनाए हुए दरख्त की मज़म्मत करता है. उसने बन्दों को क्यूं निडर बनाया कि समझदार है कि बात की माकूलियत को समझता है , उसको डरना नहीं पड़ रहा है. इन्सान उसका बन्दा होते हुए भी उसके साथ सर कशी करता है?
अल्लाह अपने रसूल से कहता है - - -''अगर हमने आप को साबित क़दम न बनाया होता तो आप उनकी तरफ़ कुछ कुछ झुकने के क़रीब जा पहुचते तो हम आप को हालते-हयात में या बअद मौत दोहरा मज़ा चखाते फिर आपको हमारे मुकाबले में कोई मददगार भी मिलता - - -''
मुहम्मद का जेहनी मकर उलटी चाल भी चलता है. लोगों को डराते डराते खुद भी बड़ी नादानी से अल्लाह का शिकार होने से बच गए.'' रात ढलने के बाद रात के अँधेरे तक नमाज़ अदा कीजिए ,सुब्ह की नमाज़ भी कि फरिश्तों के आने वक़्त होता है और रात के हिस्से में भी तहज्जुद अदा कीजिए, उम्मीद है आपका रब आप को मुकाम ऐ महमूद (आलिमों का गढ़ा हुवा ''तफसीरी चूँ चूँ का मुरब्बा'' के तहत कोई मुकाम) में जगह देगा .''सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (६०-८२)अपने नबी को देखें कि नमाज़ों की भरमार से सराबोर हो रहे है ताकि लोग उनकी पैरवी करें। मुस्लमान इसी इबादत में रह गए मस्जिदों के घेरे में, ईसाई, यहूदी भी इन्ही बंधनों में थे कि बंधन तोड़ कर खलाओं में तैर रहे हैं, मुसलमान उनकी टेकनिक के मोहताज बन कर रह गए हैं। मुहम्मद ने इनके सरों में उस दुन्या का तसव्वुर जो भर दिया है.
जीम। मोमिन ''निसारुल ईमान''
कितनी खूबसूरत बातें बता रहा है कुरआन :
ReplyDelete"जिस शख्स को अल्लाह तअला ने हराम फ़रमाया है उसको क़त्लमत करो, हाँ मगर हक़ पर और जो शख्स न हक़ क़त्ल किया जावेतो हम ने इस के वारिस को अख्त्यार दिया है"
"यतीम के मॉल को मत खाओ, अपने अहद पूरा करो. पूरा पूरानापो तौलो. ज़मीन पर इतराते हुए मत चल क्यूँकि तू न ज़मीनफाड़ सकता है और न पहाड़ों की लम्बाई को पहुँच सकता है. येसब काम तेरे रब के नजदीक ना पसंद हैं."
ये बातें उसी को नापसंद होंगी जो किसी को नाहक क़त्ल कर चूका हो या यतीम का माल खा रहा हो. या नापतोल में डंडी मारता हो. और शायद तू ऐसे ही लोगों में शामिल है. तेरे जैसे लोगों के लिए ही कुरआन कह रहा है
"(ये) वह किताब है। जिस में कुछ भी शक नहीं (ये) परहेज़गारों की रहनुमा है." (2.2)
यह किताब हराम माल खाने वालों को रास्ता नहीं दिखाती. उनकी आँखों पर पट्टी बाँध देती है.
लगे रहो भाई....आंखे खोल देने वाला लिखते हो.....पर क्या कुछ पागल सांड यहां घूमने आते हैं वो नहीं दिखे आज ....चलो मैं तो निकल लेता हूं
ReplyDelete"यहाँ के मुस्लमान उनको गुमराह औरवहाबी कहते हैं."
ReplyDeleteदुनिया के सारे मुस्लिम आतंकवादी वहाबी मसलक से ही निकल रहे हैं.
चाचा अलबेदार की नकल पे ला रहे हो अपने मामा का अनुवाद, शब्द xgalatx तक तुम्हें ठीक (ग़लत ghalat) से नहीं पता, चले हो अल्लाह कुरआन की बातें करने, जरा ध्यान से पढो और पढवाओ
ReplyDeleteQuran:
और व्यभिचार के निकट न जाओ। वह एक अश्लील कर्म और बुरा मार्ग है॥17:32॥
किसी जीव की हत्या न करो, जिसे (मारना) अल्लाह ने हराम ठहराया है। यह और बात है कि हक़ (न्याय) का तक़ाज़ा यही हो। और जिसकी अन्यायपूर्वक हत्या की गई हो, उसके उत्तराधिकारी को हमने अधिकार दिया है (कि वह हत्यारे से बदला ले सकता है), किन्तु वह हत्या के विषय में सीमा का उल्लंघन न करे। निश्चय ही उसकी सहायता की जाएगी॥17:33॥
ऐ मोमिन के मर्द आओ अभी समय है
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विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि
(इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
antimawtar.blogspot.com (Rank-2 Blog) डायरेक्ट लिंक
अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता
अल्लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
अल्लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्तक केवल चार
अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में
अल्लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी
छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्लामिक पुस्तकें
islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
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'' अवाम को क़यामत आने के यक़ीन में लाकर, दोज़ख का खौफ़ और जम्मत की लालच पैदा करना, फिर उसके बाद मन मानी तौर पर उनको हाँकना''
ReplyDeleteShbaash MOMIN
@मिहिरभोज
ReplyDeleteलगे रहो भाई....आंखे खोल देने वाला लिखते हो.....पर क्या कुछ पागल सांड यहां घूमने आते हैं वो नहीं दिखे आज ....चलो मैं तो निकल लेता हूं
Shbaash
मेरे भोले भले मुसलमान भाइयो ! जागो ! इक्कीसवीं सदी की सुब्ह हुए दस साल होने को हैं, यह ज़ालिम टोपी और दाढ़ी वाले मुल्ला तुम को इस्लामी अफ़ीम खिला कर सुलाए हुए हैं. सब कुछ यहीं मौजूद ज़िन्दगी में हैं, इसके बाद कुछ भी नहीं है, तुम्हारे बाद रह जाएगी तुम्हारी विरासत, कि अपने नस्लों को क्या दिया है. कम से कम उनको इल्म जदीद तो दो ही, कि तुमको याद करें। इल्म जदीद पा जाने के बाद तो यह सब कुछ हासिल कर लेंगे। मगर हाँ! इन्हें इन ज़हरीले ओलिमा से बचाओ.
ReplyDeleteकाश अपने मुल्क भारत में ऐसा (टर्की) हो सके, कौम का आधा इलाज यूँ ही हो जाए.
ReplyDeleteहमारे मुल्क का बड़ा सानेहा ये मज़हब और धर्म है, इसमें मुदाखलत न हिदू भेड़ें चाहेगी और न इस्लामी भेड़ें, इनके कसाई इनके नजात दिहन्दा बन कर इनको ज़िबह करते रहेंगे. हमारे हुक्मरान अवाम की नहीं, अवाम की 'ज़ेहनी पस्ती' की हिफ़ाज़त करते हैं. मुसलमान को कट्टर मुसलमान और हिन्दू को कट्टर हिन्दू बना कर इनसे इंसानियत का जनाज़ा ढुलवाते हैं.
मुहम्मद जिन छोटी छोटी बातों को अल्लाह से कहलाते हैं, पढने वाला समझेगा कि उस वक़्त अरब को इन की तमाज़त ना रही होगी मगर हो सकता है अनपढ़ पैग़म्बर के लिए यह बाते नई रही हों. आज इन्सान कुरआन की बातों के बदले में ज़मीन फाड़ भी रहा है और पहाड़ों की बुलंदियाँ भी उबूर कर रहा है. अगर यह बात आज मुसलमानों के समझ में आती है तो, कुरआन की हकीकत क्यूँ नहीं? कोई माबूद तो नहीं, मगर हाँ इन्सान ने अर्श पर सीढ़ियाँ लगा दी हैं, अल्लाह वह क़ुदरत के अनोखे निज़ाम की शक्ल में पा भी रहा है।
मेरे भोले भले मुसलमान भाइयो ! जागो ! इक्कीसवीं सदी की सुब्ह हुए दस साल होने को हैं, यह ज़ालिम टोपी और दाढ़ी वाले मुल्ला तुम को इस्लामी अफ़ीम खिला कर सुलाए हुए हैं. सब कुछ यहीं मौजूद ज़िन्दगी में हैं, इसके बाद कुछ भी नहीं है, तुम्हारे बाद रह जाएगी तुम्हारी विरासत, कि अपने नस्लों को क्या दिया है. कम से कम उनको इल्म जदीद तो दो ही, कि तुमको याद करें। इल्म जदीद पा जाने के बाद तो यह सब कुछ हासिल कर लेंगे। मगर हाँ! इन्हें इन ज़हरीले ओलिमा से बचाओ.
bilkul yahi hai sandesh
मोमिन तेरा जवाब नहीं!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteमोमिन! दिल चाहता है तुम पर ईमान ले आऊँ
ReplyDeleteचमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
ReplyDeleteबलिहारी जाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके
सदा बहार सजीला है रसूल मेरा
हो लाखपीर रसीला है रसूल मेरा
जहे जमाल छबीला है रसूल मेरा
रहीने इश्क रंगीला है रसूल मेरा
चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
बलिहारी जाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके
किसी की बिगड़ी बनाना है ब्याह कर लेंगे
बुझा चिराग जलाना है ब्याह कर लेंगे
किसी का रूप सुहाना है ब्याह कर लेंगे
किसी के पास खजाना है ब्याह कर लेंगे
चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
बलिहारीजाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके
चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
ReplyDeleteबलिहारी जाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके
सदा बहार सजीला है रसूल मेरा
हो लाखपीर रसीला है रसूल मेरा
जहे जमाल छबीला है रसूल मेरा
रहीने इश्क रंगीला है रसूल मेरा
चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
बलिहारी जाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके
किसी की बिगड़ी बनाना है ब्याह कर लेंगे
बुझा चिराग जलाना है ब्याह कर लेंगे
किसी का रूप सुहाना है ब्याह कर लेंगे
किसी के पास खजाना है ब्याह कर लेंगे
चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
बलिहारीजाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके