Tuesday 17 August 2010

कुरआन - सूरह मओमेनून २३- परा-१८

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी,

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

(दूसरी किस्त)
मुसलमानों!
अमरीका के फ्लोरिडा चर्च की तरफ़ से एलान है क़ि वह ११-९ को कुरआन को नज़र ए आतिश करेंगे. मुसलामानों के लिए ये वक़्त है खुद से मुहासबा तलबी का, स्व-मनन का, अपने ओलिमा की ज़ेहनी गुलामी छोड़ कर इस बात पर गौर करने का क़ि वह अब अपना फैसला खुद करें, मगर ईमानदारी के साथ. मुसलमानों को चाहिए क़ि कुरआन का मुतालेआ करें, ना क़ि तिलावत. देखें क़ि ज़माना हक बजानिब है या कुरआन? मैं कुछ आयतें आपको पढने का मशविरा दे रहे हैं - - -
सूरह- आयत
बकर - १९०-१९२-२१४-२४४-२४५-
इमरान- १६७- १६८-१७०
निसा ७५-७७
मायदा- ३५
इंफाल १५-१६-१७-३९- ४३- ६४ -६७
तौबः ५- १६- २९ -४१- ४५- ४६ - ४७ -५३ - ८४ - ८६ -
मुहम्मद - २० -२१ -२२
फतह १६-२०-२३
सफ़- १०-११-
यह चंद आयतें बतौर नमूना हैं, पूरा का पूरा कुरआन ज़हर में बुझा हुआ झूट है.
इन आयातों में जेहाद की तलकीन की गई है. देखिए क़ि किस हठ धर्मी के साथ दूसरों को क़त्ल कर देने के एह्कामत हैं. मुसलमान अल्लाह के हुक्म पर जहाँ मौक़ा मिलता है , क़ुरआनी अल्लाह के मुताबिक ज़ुल्म ढाने लगता है. ऐसी कौम को जदीद इंसानी क़द्रें ही अब तक बचाए हुए हैं वगरना माज़ी के आईने को देख कर जवाब देने में अगर हैवानियत पहुंचे तो मुसलामानों का सारी दुन्या से नाम ओ निशान ही ख़त्म हो जाय. स्पेन में आठ सौ साल हुक्मरानी के बाद जब मुसलमान अपने आमालों के भुगतान में आए तो दस लाख मुस्लमान दहकती हुई मसनवी दोज़ख में झोंक दिए गए. अभी कल की बात है क़ि ईराक में दस लाख मुसलमान चीटियों की तरह मसल दिए गए. ऐसा चौदह सौ सालों से चला आ रहा है, जिसकी खबर आलिमान दीन आप को मक्र के रूप में देते हैं क़ि वह सब शहादत के सीगे में दाखिल हो कर जन्नत नशीन हुए. इंसानों को यह सजाएँ क़ुरआनी आयतें दिलवाती हैं. इसकी जिम्मे दारी इस्लाम ख़ोर ओलिमा की हमेशा से रही है. आप लोग सिर्फ शिकारयों के शिकार हैं.
झूट को पामाल करने के लिए जब तक आप ज़माने के साथ न होंगे , खुद को पायमाल करते रहेंगे. अगर आप थोड़े से भी इंसाफ पसंद हैं तो खुद हाथ बढ़ा कर ऐसी मकरूह इबारत आग में झोंक देंगे.
आइए देखें कि हाद्साती आयतें क्या कहती हैं - - -

"और हमने पानी से बाग़ पैदा किए खजूरों और अंगूरों के. तुम्हारे लिए इसमें बकसरत मेवे भी हैं और इसमें से खाते भी हो और एक दरख्त जो तूरे-सीना में पैदा होता है, जो कि उगता है तेल लिए हुए और खाने वालों को सालन लिए हुए. और तुम्हारे मवेशी गौर करने का मौक़ा है कि हम तुमको इन के पेट में की चीज़ पीने को देते हैं और इनमें से बअज़ को खाते भी हो . इन पर और कश्ती पर लदे घूमते भी हो."
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (१९-२२ )
रेगिस्तानी अल्लाह को खजूर, अंगूर और जैतून के सिवा, आम, अमरुद और सेब जैसे दरख्तों का पता भी नहीं है. इरशाद हुवा है की मवेशी के पेट से पीने की चीजें भी पैदा कीं . ज़ाहिर है कि इसमें से दो चीजें ही आती हैं. दूध और मूत. दूध तो पिया भी जाता है और कभी कभी मूत भी पिया जाता है. खुद मुहम्मद भी इसके कायल थे कि एक हदीस के मुताबिक मुहम्मद के पास किसी दूर बस्ती से पेट के कुछ मरीज़ आए, तो उन्होंने उनको अपने फॉर्म हॉउस में ये कहके भेज दिया कि वहां पर ऊंटों का दूध और मूत पीकर यह लोग सेहत याब हो जाएँगे. और वह वहां रहकर ठीक भी हो गए, ऐसे ठीक हुए कि फार्म हॉउस के रखवाले को मार कर मुहम्मद के सभी ऊंटों को लेकर फरार हो गए. मुहम्मद के सिपाहियों ने उन्हें जा धरा. ज़ालिम मुहम्मद ने उन्हें ऐसी सजा दी कि सुन कर कलेजा मुंह को आए.
अल्लाह काफिरों को जब दोज़ख की सजाएं तजवीज़ करता है तो मुहम्मद की ज़ेहंयत इस हदीस को लेकर नज़रों के सामने घूम जाती है।
"कश्ती का ज़िक्र मुहम्मद के मुँह पर आए तो कुरआन का तहकीकी मौज़ू ग़ायब हो जाता है और वह बार बार नूह के साथ बह निकलते हैं. कश्ती का नूह से चोली दामन का साथ जो हुवा. कश्ती का नाम मुहम्मद के मुँह पर आए तो जेहन में नूह दौड़ने लगते हैं
सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (१९-२२ )फिर शुरू हो जाती है नूह की कथा . नूह के नाम से मुहम्मद अपनी आप बीती मन गढ़ंत जड़ने लगते हैं. मुलाहिजा हो एक बार फिर नूह के सफीने पर कुरान की सवारी - - -"और हमने नूह को इनकी कौम की तरफ़ पैगम्बर बना कर भेजा सो उन्हों ने कौम से फ़रमाया कि ऐ मेरी कौम! अल्लाह की ही इबादत किया करो, उसके आलावा कोई माबूद बनाने के लायक नहीं है, तो क्या डरते नहीं हो. बस कि उनकी कौम में जो काफ़िर मालदार थे , कहने लगे कि ये शख्स बजुज़ इसके कि तुम्हारी तरह एक आदमी है और कुछ भी नहीं, इसका मतलब ये है कि तुम से बरतर बन कर रहे और अल्लाह को मंज़ूर होता तो किसी फ़रिश्ते को भेजता. हमने ये बात अपने बड़ों में नहीं सुनीं. बस कि ये एक आदमी है जिसको जूनून हो गया है . नूह ने कहा ऐ मेरे रब! मेरा बदला ले वजेह ये है कि उन्हों ने मुझको झुटलाया। पस कि हमने उनके पास हुक्म भेजा कि तुम कश्ती तैयार कर लो हमारी निगरानी में फिर जब हमारा हुक्म आ पहुँचे और ज़मीन से पानी उबलना शुरू हो तो हर किस्म में एक एक नर और एक एक मादा यानी दो अदद इस में दाखिल कर लो और अपने घर वालों को भी इस लिहाज़ के साथ कि जिस पर इस में से हुक्म नाजिल हो चुका हो. और हम से काफिरों के बारे में कोई गुफ्तुगू न करना. वह सब ग़र्क किए जाएँगे. फिर जिस वक़्त तुम और तुम्हारे साथी कश्ती पर बैठ चुको तो कहना शक्र है अल्लाह का जिसने मुझे काफिरों से नजात दी. और यूं कहना कि रब मुझको बरकत से उतारियो. और आप सब उतारने वालों में से सब से अच्छे हैं इसमें बहुत सारी निशानियाँ हैं और हम आजमाते हैं."सूरह मओमेनून २३- पारा-१८ -आयत (२३-३०)इस तरह मुहम्मद अपना दिमागी फितूर ज़ाहिर करते हुए अहले मक्का को समझाते हैं बल्कि धमकाते हैं कि वह भी नूह की तरह ही पैगम्बर है और उनकी बद दुआ से सब के सब गरके-आब हो जाओगे. इस तरह अपने मुखालिफ काफिरों से नजात भी चाहते है.
''हमने कौम नूह के बाद दूसरा गिरोह पैदा किया फिर हमने इनमें से ही एक पैगम्बर भेजा कि तुम लोग अल्लाह की इबादत किया करो. इसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं है. तो इनमें से जिन्हों ने कुफ्र किया था और आखिरत को झुटलाया था और हमने इनको दुन्या के ऐश दिए, कहने लगे पस वह तुम्हारी तरह ही एक आदमी है. ये वही खाते हैं जो तुम खाते हो, वाही पीते हैं जो तुम पीते हो, इसके कहने पर चलोगे तो घाटे में रहोगे क्या वह तुम से कहता है कि मर जाओगे तो मिटटी और हड्डियाँ हो जाओगे, तो निकाले जाओगे, बहुत ही बईद है जो तुम से कही जाती है. पैगम्बर ने दुआ किया कि ऐ मेरे रब मेरा बदला ले - - - फिर हमने इन्हें खश ओ खाशाक कर दिया. सो अल्लाह की मर काफिरों पर फिर इनको हालाक होने पर हमने और उम्मत पैदा की।''
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
*****************


Prophet of Doom s

5 comments:

  1. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  3. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  4. मोमिन के साथ सार्थक चर्चा के लिये तुम लोगों के पास न तर्क है न बात है। और न ही बौद्धिक सामर्थ्य।
    तुम उम्मीयो और उम्मी पिछल्गूओं को मोमिन अच्छी तरह जानता है।
    फ़िर भी तुम लोगों में अक्ल की रोशनी जगाने को जिद्दी हुआ जा रहा है।

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete