मेरी तहरीर में - - -
सूरह फुरकान-२५
25 The Criterion
(तीसरी किस्त)
"और जब इन काफ़िरों से कहा जाता है कि रहमान को सजदा करो तो वह कहते हैं रहमान क्या चीज़ हैं, क्या हम उसको सजदा करने लगेंगे कि तुम जिसको कहोगे? और इससे इनको और ज़्यादः नफ़रत होती है." सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (६०) मुहम्मद की तमाम बिदअतों में एक बिदअत ये थी कि खुदा के नए नए नाम तराशे थे, उनमे से एक था रहमान. बाशिदों को ये नाम अजीब सा लगा, लफ्ज़ तो पहले से ही अपने मानवी एतबार से रायज था कि रहम दिल को रहमान कहा जाता था, इसे जब अल्लाह का दर्जा मिला तो मुखालिफ़त की बहसें होने लगीं. इससे मुतालिक एक हदीस - - - - - - सुल्ह हदीबिया कुछ लफ्ज़ी तकरार के बाद पास हुआ। बिस्मिल्लाह-हिर रहमान-निर-रहीम पर फरीक़ मुखालिफ़ के फर्द सुहेल ने कहा "ये रहमान कौन हैं इनको मैं नहीं जानता, इनको बीच से अलग किया जाए और 'ब इस्मक अलम' से शुरूआत की जाय. और मुहम्मदुर रसूल अल्लाह की जगह मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह करो."
"और वह ज़ात बड़ी आली शान है जिसने आसमान में बड़े बड़े सितारे बनाए और इसमें एक चराग आफ़ताब और एक नूरानी चाँद बनाया और वह ऐसा है जिसने रात और दिन को एक दूसरे के आगे पीछे आने जाने वाले बनाए. उस शख्स के लिए काफी है जो समझना चाहे.या शुक्र करना चाहे."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (६१-६२)
मुसलमानों! क्या उम्मी के जेहालत भरे फलसफे ही तुम्हारा यकीन है? अगर हाँ तो अपनी नस्लों को ताल्बानियों के सुपुर्द करते रहो और आने वाले दिनों में वह कुत्ते की मौत मरें, इस का यकीन करके इस दुन्या से रुखसत हो. तुम्हारे लिए इस्लाम की हर बात ही नामाकूल है क्यूँकि इस्लाम जेहालत के पेट से पैदा हुवा है.
''और रहमान के बन्दे वह हैं जो ज़मीं पर अजिज़ी के साथ चलते हैं, शर की बात करते हैं तो वह रफा-शर की बातें करते हैं. और जो रातों को अपने रब के सामने सजदा और कयाम में लगे रहते हैं और जो दुआ मांगते हैं ऐ मेरे रब ! हम से जहन्नम के अज़ाब को दूर राख्यो. क्यूंकि इसका अज़ाब तबाही है.'' सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (६३-६५) मुहम्मद अपनी उम्मत को अपनी दोहरी शख्सियत से गुमराह करते हैं, यही अल्लाह के बने हुए रसूल के बारे में दूसरे खलीफा उमर फ़रमाते हैं कि - - - "फ़तह मक्का के बाद मुहम्मद हज करने जाते तो संगे-अस्वाद को बोसा देकर अकड़ कर चलते और यही हुक्म सब के लिए था, मगर बाद में देखा कि जईफों को इसमें क़बाहत हो रही है तो हुक्म को वापस ले लिया."
"और जो वह खर्च करने लगते हैं तो फुजूल खर्ची करते हैं, और न तंगी करते हैं और उनका खर्च करना इसके दरमियान एतदाल पर हो, और जो अल्लाह तअला के साथ किसी और माबूद को शरीक नहीं करते और जिस शख्स को क़त्ल करने में अल्लाह तअला ने हराम फ़रमाया है उसको क़त्ल नहीं करते और जो शख्स ऐसा करेगा सज़ा से उसको साबेका पड़ेगा कि क़यामत के रोज़ उसका अज़ाब बढ़ता चला जाएगा. और वह हमेशा ज़लील होकर इस अज़ाब में रहेगा.
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (६७-६९)
मुहम्मद का मिशन है कि "अल्लाह कि इबादत करो और रसूल की इताअत." मुस्लमान अपने बुजुर्गों पर हुवे मज़ालिम को भूल कर, जिनके गर्दनों पर तलवार रख कर कालिमा पढाया गया था, दो एक पुश्तों के बाद पूरी तरह से इस अरबी डाकू के मुट्ठी में फँस चुका है. इसको समझाना जूए शीर लाना है.
मुहम्मद किसी अपने शागिर्द को खर्राच होना पसंद नहीं करते थे. अल्लाह की राह में खर्च करने की हिदायत देते जो कि जेहाद की राह होती. देखिए कि कुरआन ईरान से तूरान कैसे चला जाता है , कैसे मौज़ू बदल जाते है, अभी अल्लाह खर्च खराबे की बातें कर रहा था, कि उसे अपने लिए इबादत की याद आ गई, फिर हराम और हलाल क़त्ल करने की बातें करने लगा. ये इस्लाम ही है जहाँ क़त्ले-इंसानी हलाल भी होता है,
"और वह ऐसे हैं कि जब उनको अल्लाह के एहकाम के ज़रीया नसीहत की जाती है तो उन पर बहरे अंधे होकर नहीं गिरते.''
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (७३)
उफ़ ! अय्यारे-आज़म कहते हैं कि उनकी इन बकवासों पर लोग मुतास्सिर कर क्यूँ बहरे अंधे होकर नहीं गिरते? ये इन्तहा दर्जे की गिरावट है कि एक इंसान दूसरे को इस क़दर ज़लील करे कि वह उसकी बातों को इतना माने कि बहरा और अँधा हो जाय. दुनिया भर के मुसलामानों की इस से बढ़ कर और क्या बाद नसीबी होगी कि उनका रहनुमा इतना गिरा हुवा जेहन रखता हो. कितना महत्त्वा-कांक्षी और खुद पसंद था वह इंसान.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
सूरह फुरकान-२५
25 The Criterion
"और जब इन काफ़िरों से कहा जाता है कि रहमान को सजदा करो तो वह कहते हैं रहमान क्या चीज़ हैं, क्या हम उसको सजदा करने लगेंगे कि तुम जिसको कहोगे? और इससे इनको और ज़्यादः नफ़रत होती है." सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (६०) मुहम्मद की तमाम बिदअतों में एक बिदअत ये थी कि खुदा के नए नए नाम तराशे थे, उनमे से एक था रहमान. बाशिदों को ये नाम अजीब सा लगा, लफ्ज़ तो पहले से ही अपने मानवी एतबार से रायज था कि रहम दिल को रहमान कहा जाता था, इसे जब अल्लाह का दर्जा मिला तो मुखालिफ़त की बहसें होने लगीं. इससे मुतालिक एक हदीस - - - - - - सुल्ह हदीबिया कुछ लफ्ज़ी तकरार के बाद पास हुआ। बिस्मिल्लाह-हिर रहमान-निर-रहीम पर फरीक़ मुखालिफ़ के फर्द सुहेल ने कहा "ये रहमान कौन हैं इनको मैं नहीं जानता, इनको बीच से अलग किया जाए और 'ब इस्मक अलम' से शुरूआत की जाय. और मुहम्मदुर रसूल अल्लाह की जगह मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह करो."
(बुखारी ११४४)
इसे मुहम्मद को मानना पड़ा था.
ज़ाहिर है इस तरह अपने पूज्य का नाम बदलना किसको रास आएगा . अल्लाह की जगह मुसलमानों से भगवान कहलाया जाए तो कैसा लगेगा?
''और रहमान के बन्दे वह हैं जो ज़मीं पर अजिज़ी के साथ चलते हैं, शर की बात करते हैं तो वह रफा-शर की बातें करते हैं. और जो रातों को अपने रब के सामने सजदा और कयाम में लगे रहते हैं और जो दुआ मांगते हैं ऐ मेरे रब ! हम से जहन्नम के अज़ाब को दूर राख्यो. क्यूंकि इसका अज़ाब तबाही है.'' सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (६३-६५) मुहम्मद अपनी उम्मत को अपनी दोहरी शख्सियत से गुमराह करते हैं, यही अल्लाह के बने हुए रसूल के बारे में दूसरे खलीफा उमर फ़रमाते हैं कि - - - "फ़तह मक्का के बाद मुहम्मद हज करने जाते तो संगे-अस्वाद को बोसा देकर अकड़ कर चलते और यही हुक्म सब के लिए था, मगर बाद में देखा कि जईफों को इसमें क़बाहत हो रही है तो हुक्म को वापस ले लिया."
(बुखारी ७७६-७७)
जिसका इरशाद था कि काफिरों को घात लगा कर मारो वह कह रहा है कि जो"शर की बात करते हैं तो वह (मुस्लिम) रफ़ा -शर की बातें करते हैं." मुहम्मद पैग़म्बर होते तो पैगाम देते कि "दोज़ख कहीं नहीं है, इन्सान के दिल में है जो उसे दिनों-रात भूना करती है, इस लिए बुरे कम मत करो." दोज़ख का तसव्वुर मुसलामानों का सबसे बड़ा नुकसान है, इन कच्चे ईमान वालों को ये तसव्वुर जीते जी खाता रहता है कि वह इसकी वजेह से अपनी तामीर नहीं कर पा रहे है.
मुहम्मद किसी अपने शागिर्द को खर्राच होना पसंद नहीं करते थे. अल्लाह की राह में खर्च करने की हिदायत देते जो कि जेहाद की राह होती. देखिए कि कुरआन ईरान से तूरान कैसे चला जाता है , कैसे मौज़ू बदल जाते है, अभी अल्लाह खर्च खराबे की बातें कर रहा था, कि उसे अपने लिए इबादत की याद आ गई, फिर हराम और हलाल क़त्ल करने की बातें करने लगा. ये इस्लाम ही है जहाँ क़त्ले-इंसानी हलाल भी होता है,
"और वह ऐसे हैं कि दुआ करते हैं कि ऐ हमारे परवर दिगार हमारी बीवियों और हमारे औलाद की तरफ से आँखों की ठंडक अता फरमा और हमको मुत्ताकियों का अफ़सर बना दे.ऐसे लोगों को बहिश्त में रहने को बाला खाने मिलेंगे. बवजह उनके साबित क़दम रहने के और उनको इन में बका की दुआ और सलाम मिलेगा."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (७५-७६)
इस्लाम की बहुत बड़ी कमजोरी है दुआ माँगना. इस बेबुन्याद ज़रीया की बहुत अहमियत है. हर मौक़ा वह ख़ुशी का हो या सदमें का दुआ के लिए हाथ फैले रहते हैं. बादशाह से लेकर रिआया तक सब अपने अल्लाह से जायज़, नाजायज़ हुसूल के लिए उसके सामने हाथ फैलाए रहते हैं. जो मांगते मांगते अल्लाह से मायूस हो जाता है, वह इंसानों के सामने हाथ फैलाने लगता है. मुसलामानों में भिखारियों की कसरत इसी दुआ के तुफैल में है कि भिखारी भी भीख देने वाले को दुआ देता है, देने वाला भी उसको इस ख़याल से भीख दे देता है कि मेरी दुआ कुबूल नहीं हो रही, शायद इसकी ही दुआ कुबूल हो जाए. दुआओं की बरकत का यक़ीन भी मुसलामानों को निकम्मा और मुफ़्त खोर बनाए हुए है. कितना बड़ा सानेहा है कि मेहनत काश मजदूर को भी यह दुआओं का मंतर ठग लेता है. कोई इनको समझाने वाला नहीं कि गैरत के तकाज़े को दुआओं की बरकत भी मंज़ूर नहीं होना चाहिए. खून पसीने से कमाई हुई रोज़ी ही पायदार होती है. यही कुदरत को भी गवारा है न कि वह मंगतों को पसंद करती है.
मुहम्मद की दुआ? इससे तो खुदा हर मुसलमान को बचाए. मुहम्मद चाल घात की दुआएं भी मुसलमानों से मंगवाते हैं, कि दुआओं की बरकत से उनका अल्लाह मुत्ताकियों का अफ़सर बना दे. गोया ऊपर भी हुक्मरानी की चाहत. दुआ मांगने वालों को बाला खाने मिलेंगे, भूखंड और तहखाने ऐरे गैरों को. मुहम्मदी जन्नत में जन्नातियों को बराबरी का दर्जा न होगा कोई सोने की जन्नत में होगा तो कोई जमुर्रद की, तो किसी को जन्नतुल फिरदौस जोकि सब से कीमती जन्नत होगी . जिब्रील अलैहिस्सलाम ने पता नहीं क्यूँ मुहम्मद की पहली बीवी खदीजा को खोखले मोतियों की जन्नत अलोट की है. हैरत है कि मुसल मान किसी आयत पर नज़रे सानी नहीं करता. हर मस्जिद में गिद्ध बैठे हुए है जो कौम का बोटियाँ नोच नोच कर खा रहे हैं.
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>>>>>> इसी लिये मुसलमानो के लिये कहा जाता है कि:-
>>>>>> ’’सिर सजदे मे और चूतड़ दगेबाजी में’’
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मुहम्मदी अल्लाह ने गैर मुस्लिमों को काफिर कह कर यह
प्रूफ कर दिया कि अल्लाह ईश्वर नही था और न है।
कोई भी बाप अपनी औलाद को कत्ले आम करने की
इजाजत नही देगा चाहे औलाद कितनी निकम्मी हो
उसको यह आशा रहती है कि एक दिन मेरा लड़का सही
रास्ते मे आ जायेगा।
काफिर कहने से ये सिद्ध होता है कि अल्लाह कोई टुच्चा
देवता था यानी शैतान का कोई खादिम रहा। इस लिये
काफिरो को कत्लेआम का फरमान जारी किया। उसका
क्या जायेगा।
जायेगा तो इंसान को बनाने वाले का जायेगा।
मगर मुसलमानो के मुहम्मद नाम की पट्टी आंखों मे बंधी
है।
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लिखना क्यों बन्द कर दिया...
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पवित्र कुरान,अल्लाह ताला ,मुहम्मद (मुक्ती दाता),की पाकीजगी देखो
कटुऐ बहुत पाक साफ रहते हैं पेशाब करने के बाद मिट्टी के ढेले
से लिंग घिसते है। पेशाब की बूंद शरीर या कपड़े मे नही पड़नी
चाहिये। और बताओ मुहम्मदी अल्लाह ने इनको
>>>>>>>> अपनी सोने की डंडी गू की हंडीं मे <<<<<<<<
घुमाने की आयत आसमान से उतरने की शुभ सूचना मुसलमानो को
दिलवा दी।
(1) >>>>>>>> -गुदा मैथुन anal sex <<<<<<<<
अरब और दूसरे इस्लामी देशों में इसका खूब प्रचलन है ,बड़े बड़े सहाबा इसके आदी थे ऐसा करना आम बात थी ,देखिये-
जामी तिरमिजी -बाब अल तफ़सीर जिल्द 2 पेज 382 .आयते
हर्स(हर्स का मतलब है anal sex )
(2) "इब्ने अब्बास से रिवायत है कि हजरत उमररसूल के पास
गए और बोले या रसूलुलाह मैं रात को अपनी औरत के साथ anal
sex करता हूँ .क्या मैं बर्बाद हो गया .रसूल थोड़ी देर खामोश रहे
.और उसके बाद कुरआन की यह आयत नाजिल हुई -
"तुम्हारी औरतें तुम्हारी खेतियों के सामान हैं .तुम अपनी खेती में
जिस तरफ से चाहो घुस सकते हो .और आगे बढ़ो ,यह ईमान वालों
को शुभ सूचना दे दो .सूरा -अल बकरा 2 :223
जयहिन्द
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अनवर जमाल और एजाज उल हक एवं सभी मुस्लिम बन्धु
मुहम्मद साहब खुद कह रहे है कि खुदा के अजाब से खुद को नही
बचा सकते है और न किसी को बचा सकते है नजात
नही दे सकते हैं वो >>>मुक्ती दाता<<<< कैसे हो सकते है।
इब्ने सऊद कहते हैं कि हजरत मोहम्मद ने फरमाया है कि जब
जहन्नम मे दाखिल होंगें और हजरत मोंहम्मद किसी को भी नजात
नही दे सकते हैं कयामत के रोज मोहम्मद साहब कहेंगें कि ऐ कुरैष
के लोगो ऐ अबद मुनाफ बेटों ऐ अब्बास मुतालिब के बेटों ऐ मेरी फूफी मै तुमको खुदा से और कयामत के अजाब से नही बचा
सकता हंू तुम अपनी फिक्र आप ही कर लो। ऐ मेरी बेटी फातिमा
तू मेरे माल से सवाल कर सकती हो परन्तु मै तुमको खुदा से नही
बचा सकता हूं। तुम अपनी फिक्र आप ही कर लो। तब मोहम्मद
साहब के मित्र अबुहुरेरा पूछते हैं कि ऐ असल्लम हजरत मोहम्मद
क्या आप भी नही बच सकतेए तब उन्होने कहा बेषक मै भी नही
बच सकता। बुखारी सफा 702
हजरत मोंहम्मद किसी को भी नजात(मुक्ती) नही दे सकते हैं
मुहम्मद ने मझधार मे मुसलमान लोगों को अकेला छोड़ दिया है
फिर भी मुक्तीदाता कह रहे हैं
मुहम्मद चिल्ला चिल्ला के बता रहा है बोल रहा है मै खुद नहीे बच
सकता न तुम लोंगों को बचा सकता हूं अपनी अपनी फिकर आप कर लो।
साले गधों से भी गये बीते हैं
मुसलमान दिमाग के पैदल हैं ये तो सिद्ध हो गया है
जयहिन्द
जीम. 'मोमिन' जी ने ये साबित कर दिया कि
ReplyDeleteकुरआन नापाक है शैतानियत से भरी सेटेनिक वर्सेज है।
और उसमे जो अच्छी बातें है वो तोरेत,जबूर और इंजील से
चुराई हुई हैं। और तोड़ मरोड़ के लिखी गयी है।
अल्लाह एक टुच्चा शैतान है।
मुहम्मद टुच्चे शैतान का खादिम नबी था।
कटुऐ हम हिन्दुओं के सामने ख्तरनाक सुअर को नहला घुला
कर कपड़ा ओढ़ा कर पेश कर रहे हैं। मगर सुअर तो सुअर ही
रहेगा। सुअर इंसान नही बन सकता नामुमकिन है
शैतान ईश्वर तो नही बन जायेगा इम्पॉसबिल है।
मुहम्मद सम्भोग करते मरा उसका पूरा खान दान कुत्ते की
मौत मरा प्रमाण सहित शर्मा जी ने दिया।
यहूदी और ईसाईयों को कभी शांती नही मिलेगी मुहम्मद ने
श्राप दिया।
श्राप वापस लौट के कटुओं पर पड़ा देख लो
पाकिस्तान,अफगानिस्तान पूरी मुस्लिम देशों को शांती नही है।
आज भी कटुऐ कुत्ते की मौत मारे जा रहे है ये भी प्रमाणित है
पाकिस्तान और अफगानिस्तान और भी मुस्लिम राष्ट्र् के कटुऐ
आताताई हैं चरम सीमा तक अत्याचार कर रहे है। इनके
मुहम्मद और अल्लाह का कहीं से कहीं तक पता नही है और
ये साले अल्लाह से डराते है।
अबे साले कटुओ मुहम्मद और अल्लाह खुद डर के भाग गया
है उसका कहीं पता नहीं है।
गधे के सिर से सींग की तरह गोल हो गया है।
इन दोनो को ईश्वर ने कैद करके दोजख के किसी कोने में
डाल दिया है। जरा जाके अपने मुहम्मद और अल्लाह की
खबर तो ले लो। अपने मुक्ति दाता की
जयहिन्द
अबे कटुओ आज की खबर सुनो टीवी पर आंखें खोल कर देखो
ReplyDeleteपाकिस्तान की मस्जिद मे आतंकवादियों ने विस्फोट किया 25 लोग
मारे गये हैं।
अकल के अंधो भेजे मे गू भरा है आंखो मे मुहम्मदी अल्लाह की
पट्टी बांधे हो।
मारने वाला भी मुसलमान और मरने वाले भी बेचारे मुसलमान
अब ये बताओ कि इनमे से कौन जहन्नुम जायेगा और कौन जन्नत
जायेगा।
रही बात सच की तो कुरान की सच्चाईयां ये ब्लाग बयान कर रहा है
हमारे हिन्दू धर्म मे
शैतान को शैतान ही न बोला जाता है। ईश्वर तो नही बोला जाता है
चोर को चोर ही बोला जाता है। साहूकार नही बोला जाता है।
मुस्लिम धर्म मे सच्चाई
शैतान को ईश्वर मुहम्मद अल्लाह बोला जाता है ये भी सच्चाई है।
और चोर, लुटेरे, डांकू, हत्यारे जिहादी, बलात्कारी मां,बेटी, बहनो,
भाभी, चाची, मामी वगैरा के साथ व्यभिचार करने वाले इन सब कामो
को अंजाम देने वाले धर्मी है ये ही जन्नत जायेगें। मुहम्मद और
अल्लाह ऐसे काम करने वालो को जन्नत मे विशेष सुविधा देगा
इनको जन्नत मे मेडिल मिलेगा। ये भी कुरआन की सच्चाई है।
ये कुरान की सच्चाई है इसे कौन झुठला सकता है दुनिया मे मुहम्मद
और अल्लाह से बड़ा झूठा न पैदा हुआ है न होगा ये भी सच्चाई है।
तुम लोग अकल के अंधे और दिमाग के पैैदल हो ये भी सच्चाई है।
तुम्हारे धर्म की सच्चाई दुनिया मे किसी के गले मे नही उतर रही है
ये भी सच्चाई है।
जयहिन्द
momin sahab,
ReplyDeletekya kuraan ka koi pramanik anuvaad hindi mein bhi uplabdh hai? agar ho to kripya jankaari dein.
dhanyavaad
kripya likhna jaari rakhein.
salaam muje tumhe dekh kar afsos hota hai tum kitne bechare ho me siraf apni baat tumhe quran ki ek aayet se batnaa chhuga.
ReplyDeleteSACH AAGYAA JHUT KHATM HOGYA OR JUTH TO THA HI KHATM HONE VALA.tum log kitna bhi jhut likho islam ke bare me islam ko kusch fark nahi pdega
lekin to jo ye gunah kar rahaa hai is ki tumhe jarur sajaa mile gi sabr kar
ReplyDeletetum islam ke baree me ek bhi galti nahi nikaal sakte ye sach hai.
ReplyDeleteab jaraa meri sun siv kon tha siv ling keyaa tha
kisne siv ka ling kataa
ye sare fizol ki bate mane vaolo har jagh galti najar aati hai tumhari ek bhi kitab me muje sach dikhado to me tumhe manuga tum jhute tumhare baap dada jhute tum bas ounki batee mante ho on gadhone kuch bi kahaa tum vo man lete ho kbhi kisi chij ki janch ki hai tom logone aaye qran me galti nikalne tumse bevkuf duniya me nai jo patharo ke aage pade rahte ho tum pe puri duniya hasti hai TUMHAR DOST