मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा
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इसके बाद नूह का नंबर आता है और अल्लाह उनका किस्सा एक बार फिर दोहराता है, फिर आद और हूद पर आता है और उनके नामों का जिक्रे-खास भर कर पाता है. मुहम्मदी अल्लाह ऊँची ऊँची इमारतों की तामीर को गुनाह ठहराते हुए मुसलमानों को ऐसा पाठ पढाता है कि आज भी तरक्की याफ्ता कौमों के सामने वह झुग्गियों में रहकर गुज़र बसर कर रहे हैं. मवेशी, बागबानी, और औलादों की बरकतों की फैजयाबी से मुसलामानों को नवाजते हुए मुहम्मद अपना दिमागी तवाजुन खो बैठते हैं और जो मुँह में आता है, बकते चले जाते हैं, जो ऐसे ही कुरआन बनता चला जाता है. अपने इर्द गिर्द के माहौल को दीवाने हादी बाबा की तरह बडबडाते हुए कहते हैं
"वह लोग कहने लगे यूँ कि तुम पर तो किसी ने बड़ा जादू कर दिया है, तुम तो महेज़ हमारी तरह एक आदमी हो. और हम तो तुम पर झूठे लोगों का ख़याल करते हैं, सो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर कोई आसमान का टुकड़ा गिरा दो."सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (६९-१७८)
मुहम्मद अनजाने में अपने अल्लाह को शैतान साबित कर रहे हैं जो इंसानों के दिलों में वुस्वसे पैदा करता है. किस कद्र बेवकूफ़ी की बातें करते है? क्या ये कोई पैगम्बर हो सकते है. अगर ये अल्लाह का कलाम है तो कोई दीवाना ही मुसलमानों का अल्लाह हो सकता है. जागो मुसलमानों! तुम क़ुरआनी इबारतों को समझो और अपने गुमराहों को रह दिखलाओ।
"और जितनी बस्तियां हमने गारत की हैं, सब में नसीहत के वास्ते डराने वाले आए और हम ज़ालिम नहीं हैं और इसको शयातीन लेकर नहीं आए, और ये इनके मुनासिब भी नहीं, और वह इस पर क़ादिर भी नहीं, क्यूँकि वह शयातीन सुनने से रोक दिए गए हैं, सो तुम अल्लाह के साथ किसी और माबूद की इबादत न करना, कभी तुम को सज़ा होने लगे और आप अपने नज़दीक के कुनबे को डराइए "सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (२०९-२१४)
पूरे कुरआन में सिर्फ़ कुरआन की अज़्मतें बघारी गई हैं, कौन सी अज़्मतें है इसको मुहम्मद बतला भी नहीं पा रहे. शैतान मियाँ को कुरआन ने अल्लाह मियाँ का सौतेला भाई बना रख्खा है. ताक़त में उन्नीस बीस का फर्क है. उम्मी के जेहनी भंडार में इतने शब्द भी नहीं की डराने के बजाए कोई इनके मकसद को छूता हुवा लफ्ज़ होता जिससे इनकी बातें और भाषा में कमी न होती , बल्कि मुनासिबत होती."और अगर ये लोग आपकी बात को न मानें तो कह दीजिए मैं आपके अफआल से बेज़ार हूँ, और आप अल्लाह क़ादिर और रहीम पर तवक्कुल कीजिए "सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (२१६-१७)
उस वक़्त के ज़हीन लोगों से खुद मुहम्मद बेजार थे या उनका लाचार अल्लाह? जोकि रब्बुल आलमीन है. नाफरमान काफिरों से अल्लाह कैसे खिसया रहा है. सब मुहम्मद की कलाकारी है."और शायरों की राह तो बेराह लोग चला करते हैं और क्या तुमको मालूम नहीं शायर खयाली मज़ामीन के हर मैदान में हैरान फिरा करते हैं और ज़ुबान से वह बातें कहते हैं, जो करते नहीं. हाँ! जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए और अपने अशआर में कसरत से अल्लाह का ज़िक्र किया."सूरह -शोअरा २६ - १९वाँ पारा (२२४-२७)
मुहम्मद खुद उम्मी शायर थे. कुरआन उनकी ऐसी रचना है जो तुकान्तों में है, तुकबंदी करने में ही वह नाकाम रहे. अपनी शायरी में मानी ओ मतलब पैदा करने में नाकाम रहे. लोग उनको शायरे-मजनू कहते थे. अपनी इस फूहड़ गाथा को अल्लाह का कलाम बतला कर अपनी एडी की गलाज़त को अल्लाह की एडी में लगा दिया. मुहम्मद उल्टा शायरों पर बेहूदा आयतें गढ़ते हैं ताकि इन पर मुताशायरी का इलज़ाम न आए। काश की मुहम्मद पूरे शायर होते और साहिबे फ़िक्र भी. उनके कलाम में इतना दम होता कि ग़ालिब कह पड़ता - - -
मैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है।
वफ़ादारी बशर्ते-उस्तवारी असले-ईमां है,
मरे बुत खाने में तो काबे में गाडो बरहमन को।
दोज़ख में ड़ाल दो कोई लेकर बहिश्त को.
कुरआन कहता है अल्लाह की इबादत करो तो ऊपर शराब और शबाब से भरी हुई जन्नत मिलेगी. ग़ालिब कहता है ऐसी जन्नत को उठा कर जहन्नम में झोंक दो.
आजकल शोअरा कसरत से अल्लाह की बात मानने लगे हैं मगर हम्दो-सना को छोड़ कर मुहम्मद गाथा यानी नअत पर आमदः हैं. कौल-फ़ेल में चिरकुट, ज़रीआ मुआश हराम मगर नअत शरीफ को हलाल किए रहते हैं. नअत गोई का फैशन हुआ जा रहा है. कैसा भी मुशायरा हो क़ुरआनी आयात से शुरू होता है फिर दो एक नअत के बाद ही शायर शायरी के अदब में आते हैं. मुशायरों का नअत्या करन हो गया है. गुंडे नातिया मुशायरे करा रहे हैं, नअत्या के नाम पर चंदे का धंधा बन गया है. ऐसे मुशायरों की कामयाबी की गारंटी होती है, हूट होने की कोई गुंजाईश नहीं होती, अकीदत मंद नियत बांध कर बैठे हैं तो सुबह अज़ान की आवाज़ तक बैठे रहते हैं. रसूल की शान में जो जितनी मुबालिगा आराई, दरोग गोई और किज़्ब के पुल बाँधता है उसको उतना ही बड़ा रुतबा मिलता है. रसूल में सारे गुण पाए जाते हैं. हर शोबए इल्म ओ हुनर में यह बेजोड़ होते हैं. हर मौजूअ, हर मज़मून में इनके सललल्लाहोअलैहेवसल्लम ताक़ होते है, दुन्या की तमाम अज़्मतें इन पर ख़त्म है. अकीदत मंद यहाँ तक कहते हैं - - -
जीम 'मोमिन' निसारुल-इमान
very nice post
ReplyDeleteकब तक ये फ़साना६ ये हवा छाई रहेगी ,
माजी७ की सियासत की फिजा छाई रहेगी ।
सर पे खड़ा वक़्त चड़ाए हुए तेवर ,
हो जाए न महशर८ से ही पहले कोई महशर ।
बहुत खूब मोमिन साहब. काश कि आपकी आवाज उन बहरे कानों तक पहुँच रही हो.
ReplyDeleteजिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन राह पर लावे
ReplyDeleteजिसको खुदा गुमराह करे उसको कौन राह पर लावे
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