मेरी तहरीर में - - -
सूरह फुरकान-२५
25 The Criterion
मैं ब्लागिग की टेक्नीकल दुन्या में अनाडी हूँ , मैं तो ये तक नहीं जनता था कि आए हुए कमेंट्स को कैसे डिलीट किया जाय. मगर धीरे धीरे सब सीख रहा हूँ. फफ्ते में एक बार मैं अपनी छपी हुई रचनाओं पर एक नज़र डालता हूँ, अपने पाठकों का शुक्र गुज़र होता हूँ, आलोचनाओं में गली-गुज्वों को बड़े सब्र के साथ देखता हूँ, अपने ब्लॉग के द्वार पर विसर्जित किए गए इस मॉल-मूत्र को एक मुस्कान के साथ बुहार कर कूड़ेदान में डाल देता हूँ. बस. सोचता हूँ कि यही तो कथित धर्मो-मज़ाहिब ने इनको सिखलाया है .
कुछ कट्टर वादी हिन्दू पाठक मुझे इस लिए पसंद करते हैं कि मैं इस्लाम का विरोधी हूँ. वह ठीक समजते हैं मगर ५०% ही. मैं हिन्दू धर्म को भी जनता हूँ और उसमें समाई हुई पहाड़ जैसे अनर्थ को भी, जो मानव मूल्यों को नज़र अंदाज़ किए हुए है, मगर उन पर क़लम चलाना मेरे लिए वर्जित है, क्यूंकि उनके यहाँ बेशुमार समाज सुधारक आज़ादी से अपना काम कर रहे हैं. मुसलमानों कें यहाँ कोई नहीं हुआ. मैं भारत में प्रचलित धर्म एवं मज़हब विरोधी हूँ, क्यूंकि इन्हीं पवित्र शब्दों की आड़ में बड़े बड़े मुजरिम खड़े हुए है. ये बुराइयों की पनाह गाहें बन चुके हैं. भारत को जब तक इन बीमारियों से नजात नहीं मिलेगी तब तक भारत उद्धार नहीं हो सकता.(दूसरी किस्त)
"नहीं नाजिल किया गया इस तरह, इस लिए है, ताकि हम इसके ज़रीए से आपके दिल को मज़बूत रखें और हमने इसको बहुत ठहरा ठहरा कर उतारा है. और ये लोग कैसा ही अजब सवाल आप के सामने पेश करें, मगर हम उसका ठीक जवाब और वजाहत भी बढ़ा हुवा आपको इनायत कर देते हैं."सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (३२-३३)
"और ये लोग जब आपको देखते हैं तो तमास्खुर करने लगते हैं और कहते है, क्या यही हैं जिनको अल्लाह ने रसूल बना कर भेजा है? इस शख्स ने हमारे मअबूदों से हमें हटा दिया होता अगर हम इस पर क़ायम न रहते. और जल्दी इन्हें मालूम हो जाएगा जब अज़ाब का सामना करेंगे कि कौन शख्स गुमराह है."
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (४१-४२)तायफ़ के हाकिम के पास मुहम्मद जाते हैं और उसको बतलाते हैं कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ, शुरू हो जाते हैं अपने लबो-लहजे के साथ - - - हाकिम क़ुरआनी आयतों को सुनकर इनको ऊपर से नीचे तक देखता है और इनसे ही पूछता है अल्लाह को मक्का में कोई ढंग का आदमी नहीं मिला जो तुम को चुना? तायफ़ के हाकिम की बात पूरी कुरआन पर, हर सूरह पर और हर आयत पर आज भी लागू होती हैं. मुहम्मद के जेहादी तरीका-ए-कार ने इनको लुटेरों का पैगम्बर बना दिया है. हराम जादे ओलिमा ने इन्हें मुक़द्दस बना दिया.
"और वह ऐसा है कि उसने तुम्हारे लिए रात को पर्दा की चीज़ और नींद को राहत की चीज़ बनाया और दिन को जिंदा हो जाने का वक़्त बनाया."सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (४७)
यह माजी के बेजान मुशाहिदे का एक नमूना है. आज रौशन रातें जागने की और गर्म दिन सोने के लिए खुद अरब में बदल गए हैं. ये किसी अल्लाह का मुशाहिदा नहीं हो सकता.
"और वह ऐसा है कि जिसने दो दरियाओं को सूरतन मिलाया, जिसमें एक तो शीरीं तस्कीन बख्श है और एक शोर तल्ख़. और इनके दरमियाँ में एक हिजाब और एक मअनी क़वी रख दिया और वह ऐसा है जिसने पानी से इंसान को पैदा किया फिर उसे खानदान वाला और ससुराल वाला बनाया और तेरा परवर दिगार बड़ी कुदरत वाला है."सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (५४)कुरआन की ये सूरतें दो मुख्तलिफ जिंसों की तरफ़ इशारा करती हैं. पहली दरिया है निस्वनी अन्दमे-निहानी (योनि) और दूसरी दरिया है नारीना आज़ाए-तानासुल (लिंग). इन दोनों से धार के साथ पेशाब ख़ारिज होता है, इसलिए इसकी मिसाल दरिया से दी गई है."दो दरियाओं को सूरतन मिलाया" यानी औरत और मर्द की मुबाश्रत(सम्भोग) की सूरते हाल की तरफ इशारा है. इस हाल में निकलने वाले माद्दे में से एक को शीरीं और तस्कीन बख्श और दूसरे को शोर तल्ख़ कहा है ? अब मुहम्मदी अल्लाह को इसके जायके का तजरबा होगा कि मर्द का माद्दा और औरत के माद्दे के में से शीरीं और तस्कीन बख्श है ?कौन सा है, और कौन सा शोर तल्ख़ ? "एक हिजाब और एक मअनी क़वी रख दिया और वह ऐसा है जिसने पानी से इंसान को पैदा किया" यानी मुहम्मद ने इन्सान की पैदाइश को कोक शाश्त्री तरीका अल्लाह की ज़बान में बतलाया जो कि हमेशा की तरह मुहम्मद का फूहड़ अंदाज़ रहा.
कहते है इन्ही दोनों जिंसी दरयाओं के पानी से आदमी का वजूद होता है, इसी से खानदान बनता है और खानदानों के मिलन से आपस में ससुराल बनता है.
मुहम्मद ने जैसे तैसे अपने उम्मी अंदाज़ में एक बात कही, मगर तर्जुमान अपनी खिचड़ी कैसे पकता है मुलाहिज़ा हो - - -"मुराद दरियाओं के वह मवाके हैं जहाँ शीरीं दरियाएँ और नहरें समन्दरों से आ मिलते हैं. वहाँ बज़ाहिर ऊपर से दोनों की सतह एक सी मालूम होती है, मगर कुदरत अलैह से इसमें एक हद फ़ासिल है कि अगर इनके कनारे से पानी लिया जाए तो तल्ख़. चुनाँच बंगाल में ऐसे मवाक़े मौजूद है.गौर तलब है अल्लाह कहता है खेत की और ये हाकिम वक़्त के गुलाम ओलिमा सुनते हैं खलियान की. सच पूछिए तो किसी मज़हबी को सच बोलने, सच सोचने, और सच लिखने की जिसारत ही नहीं.
सब कुछ तो साफ़ साफ़ था, इर्शादे-किब्रिया,
तफसीर लिखने वालो! बताओ ये क्या किया,
कैसे अवाम पढ़ के उठेंगे फायदे?
तुमने लिखे हुए पे ही कुछ और लिख दिया।
"और हमने आपको इस लिए भेजा है कि खुश खबरी सुनाएँ और डराएँ. आप कह दीजिए कि मैं तुम से इस पर कोई माव्ज़ा नहीं मांगता, हाँ जो शख्स यूँ चाहे कि अपने रब तक रास्ता अख्तियार करे."सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (५७)डरना, धमकाना, जहन्नम की बुरी बुरी सूरतें दिखलाना और इन्तेकाम का दर्स देना, मुहम्मदी अल्लाह की खुश खबरी हुई. जो अल्लाह जजिया लेता हो, खैरात और ज़कात मांगता हो, वह भी तलवार की ज़ोर पर, वह खुश खबरी क्या दे सकता है?
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
सूरह फुरकान-२५
25 The Criterion
मैं ब्लागिग की टेक्नीकल दुन्या में अनाडी हूँ , मैं तो ये तक नहीं जनता था कि आए हुए कमेंट्स को कैसे डिलीट किया जाय. मगर धीरे धीरे सब सीख रहा हूँ. फफ्ते में एक बार मैं अपनी छपी हुई रचनाओं पर एक नज़र डालता हूँ, अपने पाठकों का शुक्र गुज़र होता हूँ, आलोचनाओं में गली-गुज्वों को बड़े सब्र के साथ देखता हूँ, अपने ब्लॉग के द्वार पर विसर्जित किए गए इस मॉल-मूत्र को एक मुस्कान के साथ बुहार कर कूड़ेदान में डाल देता हूँ. बस. सोचता हूँ कि यही तो कथित धर्मो-मज़ाहिब ने इनको सिखलाया है .
कुछ कट्टर वादी हिन्दू पाठक मुझे इस लिए पसंद करते हैं कि मैं इस्लाम का विरोधी हूँ. वह ठीक समजते हैं मगर ५०% ही. मैं हिन्दू धर्म को भी जनता हूँ और उसमें समाई हुई पहाड़ जैसे अनर्थ को भी, जो मानव मूल्यों को नज़र अंदाज़ किए हुए है, मगर उन पर क़लम चलाना मेरे लिए वर्जित है, क्यूंकि उनके यहाँ बेशुमार समाज सुधारक आज़ादी से अपना काम कर रहे हैं. मुसलमानों कें यहाँ कोई नहीं हुआ. मैं भारत में प्रचलित धर्म एवं मज़हब विरोधी हूँ, क्यूंकि इन्हीं पवित्र शब्दों की आड़ में बड़े बड़े मुजरिम खड़े हुए है. ये बुराइयों की पनाह गाहें बन चुके हैं. भारत को जब तक इन बीमारियों से नजात नहीं मिलेगी तब तक भारत उद्धार नहीं हो सकता.(दूसरी किस्त)
क़ुरआनी कोक-शाश्त्र मुलाहिजा हो.
"और जिस रोज़ आसमान बदली पर से फट जाएगा, और फ़रिश्ते बकसरत उतारे जाएँगे उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत रहमान की होगी. और वह काफ़िर पर सख्त दिन होगा, उस रोज़ ज़ालिम अपने हाथ काट काट खाएँगे. और कहेंगे क्या खूब होता रसूल के साथ हो लेते."सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (२६-२७)
अल्लाह का इल्म मुलाहिजा हो, उसकी समझ से बादलों के ठीक बाद आसमान की छत छाई हुई है जो फट कर फरिश्तों को उतारने लगेगी. इस अल्लाह को हवाई सफ़र कराने की ज़रुरत है, कह रहे हैं कि "उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत रहमान की होगी" जैसे कि आज कल दुन्या में उसका बस नहीं चल पा रहा है. अल्लाह ने काफिरों को ज़मीन पर छोड़ रक्खा है कि हैसियत वाले बने रहो कि जल्द ही आसमान में दरवाज़ा खुलेगा और फरिश्तों की फ़ौज आकर फटीचर मुसलामानों का साथ देगी. काफ़िर लोग हैरत ज़दः होकर अपने ही हाथ काट लेंगे और पछताएँगे कि कि काश मुहम्मद को अपनी खुश हाली को लुटा देते. बसकि गनीमत है कि जम्हूरियत की बरकत इन्हें भी फैज़याब किए हुए है, निज़ामे- मुस्तफा नहीं. चौदः सौ सालों से मुसलमान फटीचर का फटीचर है और काफिरों की गुलामी कर रहा है, यह सिलसिला तब तक क़ायम रहेगा जब तक मुसलमान इन क़ुरआनी आयतों से बगावत नहीं कर देते.
"और जिस रोज़ आसमान बदली पर से फट जाएगा, और फ़रिश्ते बकसरत उतारे जाएँगे उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत रहमान की होगी. और वह काफ़िर पर सख्त दिन होगा, उस रोज़ ज़ालिम अपने हाथ काट काट खाएँगे. और कहेंगे क्या खूब होता रसूल के साथ हो लेते."सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (२६-२७)
अल्लाह का इल्म मुलाहिजा हो, उसकी समझ से बादलों के ठीक बाद आसमान की छत छाई हुई है जो फट कर फरिश्तों को उतारने लगेगी. इस अल्लाह को हवाई सफ़र कराने की ज़रुरत है, कह रहे हैं कि "उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत रहमान की होगी" जैसे कि आज कल दुन्या में उसका बस नहीं चल पा रहा है. अल्लाह ने काफिरों को ज़मीन पर छोड़ रक्खा है कि हैसियत वाले बने रहो कि जल्द ही आसमान में दरवाज़ा खुलेगा और फरिश्तों की फ़ौज आकर फटीचर मुसलामानों का साथ देगी. काफ़िर लोग हैरत ज़दः होकर अपने ही हाथ काट लेंगे और पछताएँगे कि कि काश मुहम्मद को अपनी खुश हाली को लुटा देते. बसकि गनीमत है कि जम्हूरियत की बरकत इन्हें भी फैज़याब किए हुए है, निज़ामे- मुस्तफा नहीं. चौदः सौ सालों से मुसलमान फटीचर का फटीचर है और काफिरों की गुलामी कर रहा है, यह सिलसिला तब तक क़ायम रहेगा जब तक मुसलमान इन क़ुरआनी आयतों से बगावत नहीं कर देते.
अल्लाह की कोई मजबूरी रही होगी कि उसने कुरआन को आयाती टुकड़ों में नाजिल किया, वर्ना उस वक़्त लोग यही मुतालबा करते थे कि यह आसमानी किताब आसमान से उड़ कर सीधे हमारे पास आए या मुहम्मद आसमान पर सीढ़ी लगाकर चढ़ जाएँ और पूरी कुरआन लेकर उतार लाएँ. मुहम्मद का मुँह जिलाने वाली बातें इसके जवाब में ये होतीं कि तुम सीढ़ी लगा कर जाओ और अल्लाह को रोक दो कि मुहम्मद पर ये आयतें न उतारे. इस जवाब को वह ठीक ठीक कहते है बल्कि वजाहत भी बढ़ा हुवा.
सूरह फुरकान-२५-१९वाँ पारा आयत (४१-४२)तायफ़ के हाकिम के पास मुहम्मद जाते हैं और उसको बतलाते हैं कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ, शुरू हो जाते हैं अपने लबो-लहजे के साथ - - - हाकिम क़ुरआनी आयतों को सुनकर इनको ऊपर से नीचे तक देखता है और इनसे ही पूछता है अल्लाह को मक्का में कोई ढंग का आदमी नहीं मिला जो तुम को चुना? तायफ़ के हाकिम की बात पूरी कुरआन पर, हर सूरह पर और हर आयत पर आज भी लागू होती हैं. मुहम्मद के जेहादी तरीका-ए-कार ने इनको लुटेरों का पैगम्बर बना दिया है. हराम जादे ओलिमा ने इन्हें मुक़द्दस बना दिया.
यह माजी के बेजान मुशाहिदे का एक नमूना है. आज रौशन रातें जागने की और गर्म दिन सोने के लिए खुद अरब में बदल गए हैं. ये किसी अल्लाह का मुशाहिदा नहीं हो सकता.
कहते है इन्ही दोनों जिंसी दरयाओं के पानी से आदमी का वजूद होता है, इसी से खानदान बनता है और खानदानों के मिलन से आपस में ससुराल बनता है.
मुहम्मद ने जैसे तैसे अपने उम्मी अंदाज़ में एक बात कही, मगर तर्जुमान अपनी खिचड़ी कैसे पकता है मुलाहिज़ा हो - - -"मुराद दरियाओं के वह मवाके हैं जहाँ शीरीं दरियाएँ और नहरें समन्दरों से आ मिलते हैं. वहाँ बज़ाहिर ऊपर से दोनों की सतह एक सी मालूम होती है, मगर कुदरत अलैह से इसमें एक हद फ़ासिल है कि अगर इनके कनारे से पानी लिया जाए तो तल्ख़. चुनाँच बंगाल में ऐसे मवाक़े मौजूद है.गौर तलब है अल्लाह कहता है खेत की और ये हाकिम वक़्त के गुलाम ओलिमा सुनते हैं खलियान की. सच पूछिए तो किसी मज़हबी को सच बोलने, सच सोचने, और सच लिखने की जिसारत ही नहीं.
तफसीर लिखने वालो! बताओ ये क्या किया,
कैसे अवाम पढ़ के उठेंगे फायदे?
तुमने लिखे हुए पे ही कुछ और लिख दिया।
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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ReplyDeletevery nice post
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ReplyDelete"उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत रहमान की होगी"
ReplyDeleteअर्थार्त मात्र उसी रोज़ उसे वास्त्विक सत्ता मिलेगी?
वाह मोमिन जी क्या खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteइतने पढ़ने के बाद भी अगर इनकी आंखें अगर न खुली तो क्या कर सकते है।
पढ़ने से मुझे ऐसा लग रहा है कि इनका अल्लाह और मोहम्मद एक सिक्के के दो पहलू हैं।
मोहम्मद ने यहूदी और ईसाई के यहोवा परमेश्वर को अल्लाह बना कर उसकी आड़ ले कर ने धर्म की स्थपना कर दी।
अति आदरणीय जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान जी कभी आप vedquran.blogspot.com पर आयें और डा0 अनवर जमाल जी और उनके सिपहसलारों की आंखे खोलने की कृपा करें।
ReplyDeleteअपने मामा का कुरआन लिए फिरते हो, सोचो समझो यह क्या हो रहा है और पढो यह कैसे हो रहा है
ReplyDeleteनव- मुस्लिम डाक्टर मुहम्मद हुज़ेफा (डी. एस. पी. रामकुमार) से मुलाकात interview 5
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मैं अपने मामा का नहीं मुसम्मी'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का कुरआन लेकर घूमता हूँ . डूसरे क्या कहते हैं, इस पर कान न रखिए. हक को अपने दिल में रख कर गौर कीजिए, सदाक़त के साथ अपने ज़मीर की आवाज़ को गवाह बना कर कलम उठइए. मैं मुसलामानों का सच्चा हमदर्द हूँ जो कुरआन की गुमराही में मुब्तिला हैं.
ReplyDeleteमोमिन जी ! ये विश्व गौरव कोई और नहीं, कैराना का सांड और मुस्लिम समाज का गधा " मुहम्मद उमर" है जो आपकी खेती चरने आ गया है.
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पवित्र कुरान,अल्लाह ताला ,मुहम्मद (मुक्ती दाता),की पाकीजगी देखो
कटुऐ बहुत पाक साफ रहते हैं पेशाब करने के बाद मिट्टी के ढेले
से लिंग घिसते है। पेशाब की बूंद शरीर या कपड़े मे नही पड़नी
चाहिये। और बताओ मुहम्मदी अल्लाह ने इनको
>>>>>>>> अपनी सोने की डंडी गू की हंडीं मे <<<<<<<<
घुमाने की आयत आसमान से उतरने की शुभ सूचना मुसलमानो को
दिलवा दी।
(1) >>>>>>>> -गुदा मैथुन anal sex <<<<<<<<
अरब और दूसरे इस्लामी देशों में इसका खूब प्रचलन है ,बड़े बड़े सहाबा इसके आदी थे ऐसा करना आम बात थी ,देखिये-
जामी तिरमिजी -बाब अल तफ़सीर जिल्द 2 पेज 382 .आयते
हर्स(हर्स का मतलब है anal sex )
(2) "इब्ने अब्बास से रिवायत है कि हजरत उमररसूल के पास
गए और बोले या रसूलुलाह मैं रात को अपनी औरत के साथ anal
sex करता हूँ .क्या मैं बर्बाद हो गया .रसूल थोड़ी देर खामोश रहे
.और उसके बाद कुरआन की यह आयत नाजिल हुई -
"तुम्हारी औरतें तुम्हारी खेतियों के सामान हैं .तुम अपनी खेती में
जिस तरफ से चाहो घुस सकते हो .और आगे बढ़ो ,यह ईमान वालों
को शुभ सूचना दे दो .सूरा -अल बकरा 2 :223
जयहिन्द
.
अबे कटुओ आज की खबर सुनो टीवी पर आंखें खोल कर देखो
ReplyDeleteपाकिस्तान की मस्जिद मे आतंकवादियों ने विस्फोट किया 25 लोग
मारे गये हैं।
अकल के अंधो भेजे मे गू भरा है आंखो मे मुहम्मदी अल्लाह की
पट्टी बांधे हो।
मारने वाला भी मुसलमान और मरने वाले भी बेचारे मुसलमान
अब ये बताओ कि इनमे से कौन जहन्नुम जायेगा और कौन जन्नत
जायेगा।
रही बात सच की तो कुरान की सच्चाईयां ये ब्लाग बयान कर रहा है
हमारे हिन्दू धर्म मे
शैतान को शैतान ही न बोला जाता है। ईश्वर तो नही बोला जाता है
चोर को चोर ही बोला जाता है। साहूकार नही बोला जाता है।
मुस्लिम धर्म मे सच्चाई
शैतान को ईश्वर मुहम्मद अल्लाह बोला जाता है ये भी सच्चाई है।
और चोर, लुटेरे, डांकू, हत्यारे जिहादी, बलात्कारी मां,बेटी, बहनो,
भाभी, चाची, मामी वगैरा के साथ व्यभिचार करने वाले इन सब कामो
को अंजाम देने वाले धर्मी है ये ही जन्नत जायेगें। मुहम्मद और
अल्लाह ऐसे काम करने वालो को जन्नत मे विशेष सुविधा देगा
इनको जन्नत मे मेडिल मिलेगा। ये भी कुरआन की सच्चाई है।
ये कुरान की सच्चाई है इसे कौन झुठला सकता है दुनिया मे मुहम्मद
और अल्लाह से बड़ा झूठा न पैदा हुआ है न होगा ये भी सच्चाई है।
तुम लोग अकल के अंधे और दिमाग के पैैदल हो ये भी सच्चाई है।
तुम्हारे धर्म की सच्चाई दुनिया मे किसी के गले मे नही उतर रही है
ये भी सच्चाई है।
जयहिन्द