Wednesday, 8 December 2010

सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी

'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,

हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,

तबसरा ---- जीम. ''मोमीन'' का है।


सूरह नमल २७


(दूसरी क़िस्त)




कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवानों को

पिछले लेखों में मैं निवेदन कर चुका हूँ क़ि कमेंट्स करने वाले अभद्र भाषा का पर्योग न करें. मेरा अभियान नादान और गुमराह मुसलमानों के लिए है, जोकि दूसरों के लिए भी मार्ग दर्शन है. वैसे भी कडुई और कठोर बातें किसी को नहीं भातीं खुद टीका कार का स्तर गिरता है. नफरत के दिए से अंधकार जाने वाला नहीं. मेरे अभियान का साथ अच्छी और आकर्षक भाषा दें तभी नुसल्मानों को राहे रास्त पर ला सकते हैं.एक सज्जन कटुवा, कटुए जैसे शब्दों से मुसलामानों का अपमान करते हैं, बड़े शर्म की बात है. मै उनको जानकारी दे रहा हूँ कि लिंग की मुख पर जो गैर ज़रूरी चमड़ी होती है वह सभ्यता के विकसित होते ही लिंग से अलग की जाने लगी . चार हज़ार साल पहले पैदा होने वाले फादर अब्राहम से इस बात की पुष्टि होती है कि उनका खतना हुवा था. ख़तने की परिक्रिया यहूद्दियो से इस्लाम में आई. खतने से बहुत सी लैंगिक बीमारी नहीं होती, अक्सर डाक्टर गैर मुस्लिम बच्चों का इलाज खतना करके करते है . खतने के बाद लिंग की विशेष सफाई नहीं करनी पड़ती और कोई दुर्गन्ध भी नहीं होती . खास बात ये है कि इससे दम्पति को यौन सुख भली भान्त होता है.

मुसलामानों में बहुत सी बुराई के साथ साथ ये अच्छाई भी है. अच्छाई को कहीं से मिले, ग्रहण करना चाहिए. मैं भी अज्ञान की भाषा का शिकार हूँ कि मैं भी कटुवा हूँ और इस बात पर मैं मुस्लिम समाज का आभार प्रकट करता हूँ.

याद रखें मुखालिफत बराय मुखालफत गलत है। तथ्य और माकूलियत पर आप के विचार प्रार्थनीय हैं.

कुरआन ए नाज़ेबा की कथा मुलाहिजा हो - - -

बिकीस के दूतों का अपमान करते हुए सुलेमान उन्हें वापस कर देता है - - - उसके बाद कहानी का सिलसिला मुलाहिजा हो - - -बादशाह सुलेमान से मुहम्मद अपनी काबिलयत उगलवाते हैं - - -"सो हम उन पर ऐसी फौजें भेजते हैं कि उन लोगों से उन का ज़रा मुकाबिला न हो सकेगा और हम वहाँ से उनको ज़लील करके निकाल देगे और वह मातहत हो जाएँगे. सुलेमान ने फ़रमाया ऐ अहले दरबार तुम में से कोई ऐसा है कि उस बिलकीस का तख़्त, क़ब्ल इसके कि वह लोग मेरे पास आएँ, मती (आधीन) होकर आएँ, हाज़िर कर दे ?
एक क़वी हैकल जिन ने जवाब में अर्ज़ किया, मैं इसको आप की खिदमत में हाज़िर कर दूंगा, क़ब्ल इसके कि आप इस इजलास से उठ्ठें. और मैं इसको लाने की ताक़त रखता हूँ. और अमानत दार भी हूँ.
जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ.
पस जब सुलेमान अलैहिस्सलाम ने इसको अपने रूबरू देखा तो कहा ये भी मेरे परवर दिगार का एक फज़ल है. ताकि वह मेरी आज़माइश करे, मैं शुक्र करता हूँ. और जो शुक्र करता है अपने ही नफा के लिए करता है. और जो नाशुक्री करता है,(?) मेरा रब गनी है, करीम है.
सुलेमान ने हुक्म दिया कि इसके लिए इस तख़्त की सूरत बदल दो हम देखें कि इसको इसका पता चलता है या इसका इन्हीं में शुमार है जिन को पता नहीं लगता .
सो जब बिलकीस आई तो इस से कहा की क्या तुम्हारा तख़्त ऐसा ही है?
बिलकीस ने कहा हाँ ऐसा ही है और हम को तो इस वाकेऐ की पहले ही तहकीक हो गई थी. और हम मती हो चुके हैं
और इसको गैर अल्लाह की वबा ने रोक रख्खा था और वह काफ़िर कौम में की थी.
बिलकीस से कहा गया कि तू इस महल में दाखिल हो, तो जब इसका सेहन देखा तो उसको पानी समझा और अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दीं. सुलेमान ने फ़रमाया यह तो एक महेल है जो शीशों से बनाया गया है. बिकीस कहने लगी ऐ मेरे परवर दिगार ! मैं ने अपने नफ़स पर ज़ुल्म किया था और अब मैं सुलेमान के साथ होकर रब्बुल आलमीन पर ईमान लाई."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (३७-४४).इस सुलेमानी कहानी के बाद बिला दम लिए अल्लाह समूद और सालेह के बयान पर आ जाता है और इनकी दो एक बातें बतला कर लूत को पकड़ता है और लूत की इग्लाम बाज़ उम्मत (समलैंगिक समूह)को. फिर शुरू कर देता है कुफ्फर के साथ सवाल जवाब अजीब सूरत रखते हैं. कुफ्फर अल्लाह से बुनयादी सवाल करते हैं और अल्लाह उनको बे बुन्याद जवाब देता है.सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (४५-६४)सुलेमान की दास्तान मुहम्मद की अफसाना निगारी का एक नमूना है. हैरत होती है कि मुस्लमान इस अल्लाह की बद तरीन तसनीफ (रचना) किताब पर ईमान रखते हैं जिसको बात करने का सलीका भी नहीं है और जिसकी मदद बन्दों ने तर्जुमानी और लग्व तफ़सीर से की. क्या अल्लाह जलीलुल कद्र अपनी छीछा लेदर ऐसी दास्तान गोई से कराएगा जिसमें झूट और मक्र की भरमार है.
जिन और परिंदों का लश्कर होना ? सुलेमान का हज़ारों परिंदों की हाज़री लेना? इनमें से किसी एक को गैर हाज़िर पाना ? सुलेमान के मुँह से ऐसे कलिमें अदा कराना
" वह इसकी गैर हजिरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबाह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे"दर असल मुहम्मद अपनी फितरत के मुताबिक कुरआन की शक्ल पेश करते है. वह मिज़ाजन ऐसे थे , शुक्र है बुलबुल ने हुज्जत न करके बद खबरी दी कि कमबख्त बिलकीस एक औरत हो कर मर्दों पर हुक्मरानी करती है? भला मुहम्मदी दीन में इसकी गुजाइश कहाँ?
सुलेमान क़दीम बादशाहों में पहली हस्ती हैं जो आला दर्जे की शख्सियत था और अपने वक़्त कि जदीद तरीन तालीमों से लबरेज़ था.वह मुफक्किर था, अच्छा शायर था, माहिरे नबातात (बनस्पति-ज्ञान)और माहिरे हयात्यात था (जीवन विद्या). तमीरात में पहला पहला अज़ीम आर्चितेक्ट हुआ है. उसकी तामीर को वालियान मुमल्कत देखने आया करते थे. घामड़ मुहम्मद ने सुलेमान के बारे में बेहूदा कहानी गढ़ी है देखिए कि देवों के देव, महादेव ने किस तरह मलकाए शीबा का तख़्त पलक झपकते ही सुलेमान के क़दमों पर रख दिया? अगर इसी कुरानी हालात में एक हिन्दू कहता है कि परबत को लेकर हनुमान जी उड़े तो मुसलमान हसेंगे और लाहौल पढेंगे. नकली रसूल के अल्लाह की कहानी आप नियत बाँध कर नमाज़ों में पढ़ते हैं.बादशाह की शान में आधीन देवों की गुस्ताखी मुलाहिजा हो - - -"जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ." इसी तरह कुरआन के दीगर मुकालमों पर गौर करें और मानें कि यह एक अनपढ़ की तसनीफ है, किसी अल्लाह की नहीं.कुरआन में अक्सर कुफ्फार की अल्लाह से तकरार है, उनको सवालों पर अल्लाह का जवाब है, ज़ाहिर है इसके बाद वह जवाब पर सवाल करते होंगे, जिस बे ईमान अल्लाह कभी पेश नहीं करता. मुस्लमान अल्लाह के अर्ध-सत्य को ही पूरा सच मान लेता है. यह कुरआन की धांधली है और मुसलमानों का भोला पन. कुफ्फार मक्का की एक मफ्रूज़ा तकरार पेश है.रसूल :--" अच्छा बतलाओ ये बुत बेहतर हैं या वह जात जो तुमको खुश्की और दरया की तारीकी में रास्ता सुझाता है? जो हवाओं को बारिश से पहले भेजता है जो खुश कर देती हैं.?"सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (63)
कुफ्फार:-- हमारे ये पत्थर के बने बुत, यह तो हैं जो हमें रह दिखलाते हैं और बारिश लाते हैं, जब इनके सामने हम दुआएँ मांगते हैं.रसूल :-- इसका सुबूत ?कुफ्फार:-- सुबूत ? चलो ठीक है हम अपने बुतों को साथ लेकर आते हैं, तुम अपने अल्लाह को लेकर आओ , मिल जायगा सुबूत .रसूल :-- आएं ! (बगलें झाकते हुए) "मेरा परवर दिगार तो आसमानों और ज़मीन का मालिक है, और (और और) बड़ा हिकमत वाला है और (और और) बड़ा ज़बरदस्त है और (और और) आप कह दीजिए कि जितनी मख्लूकात आसमानों और ज़मीन पर मौजूद हैं, कोई भी गैब की बात नहीं जनता बजुज़ अल्लाह के. इनको ये खबर नहीं कि वह दोबारा कब ज़िन्दा किए जाएँगे, बल्कि आखरत के बारे में इनका इल्म नेस्त हो गया है, बल्कि ये लोग इस शक में हैं , बल्कि ये लोग इससे अंधे बने हुए हैं,"सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (65-66)कुफ्फार :-ठीक है ठीक है हम लोग आधा घंटा तक अपने बुतों की इबादत करते हैं और तुम अपने अल्लाह की याद में गर्क हो जाओ, तब तक वह तुम्हारे पास ज़रूर आ जाएगा .( कुफ्फर अपने बुतों के आगे ढोल, मजीरा और दीगर साज़ लेकर रक्से-मार्फ़त करने लगे, महवे-ज़ात-गैब हुए और फ़ना फिल्लाह हो गए, कुछ होश अपना रहा न दुन्या का, खून के कतरे कतरे में मरूफियत दौड़ने लगी, आधा घंटा पल भर में बीत गया, खुद साख्ता रसूल ने उनको झकझोरते हुए कहा कमबख्तो! तुम पर अल्लाह की मार , वक़्त ख़त्म हवा) .कुफ्फार :- अल्लाह के रसूल! पकड़ में आया तुम्हारा अल्लाह?रसूल :- क्या खाक पकड़ में आता तुम्हारे हंगामा आराई के आगे. मैं तो अपनी नमाज़ों की रकात भी न याद रख सका कि कितनी अदा की तुम्हारे शोर गुल के आगे ." आप कह दीजिए कि तुम ज़मीन पर चल फिर कर देखो कि मुजरिमीन का अंजाम क्या हुवा और आप इन पर गम न कीजिए और जो कुछ ये शरारतें कर रहे हैं, इनपर तंग न होइए और ये लोग यूँ कहते हैं कि ये वादा ( क़यामत) कब आएगा? अगर तुम सच्चे हो ? आप कह दीजिए कि अजब नहीं कि जिस अज़ाब की तुम जल्दी मचा रहे हो, उसमें से कुछ तुम्हारे पास ही आ लगा हो."सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (6-72)कुफ्फार :- तो गारे हरा चलें? शायद वहां मिले अल्लाह?"और आप का रब लोगों पर बड़ा फज़ल रखता है लेकिन अक्सर आदमी शुकर नहीं करते और आपके रब को सब खबर हैजो कुछ इनके दिलों में मुख्फी है और जिसको वह एलानिया करते हैं और आसमान और ज़मीन पर कोई मुख्फी चीज़ नहीं जो लौहे-महफूज़ में न हो."सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (७४-७५)छोडिए अल्लाह को, ऐ अल्लाह के फर्जी रसूल! जिब्रील अलैहिस सलाम को ही बुलाइए."ये कुफ्फार जब भी मुझको देखते हैं तो इनको तमस्खुर सूझता है.
अल्लाह ने छे दिन में दुन्या बनाई फिर सातवें दिन आसमान पर कायम हुआ.
वह नूर अला नूर है.
तुहें औंधे मुँह जहन्नम में डाल दिया जायगा और वह बुरी जगह है.
आप मुर्दों को नहीं सुना सकते, और न बहरों को अपनी आवाज़ सुना सकते हैं. जब वह पीठ फेर के चल दें और न आप अंधों को गुमराही से रास्ता दिखलाने वाले हैं. आप तो सिर्फ उन्हीं को सुना सकते हैं जो जो हमारी आयतों पर यकीन रखते हों. फिर वह मानते हैं और जब उन पर वादा पूरा होने का होगा तब उनके लिए हम ज़मीन से एक जानवर निकालेंगे वह इनसे बातें करेगा, कि लोग हमारी आयतों पर यकीन न लाते थे और जिस दिन हम हर उम्मत में से एक एक गिरोह उन लोगों का उन लोगों का जमा करेंगे जो हमारी आयतों को झुटलाया करते थे और उनको कहा जायगा यहाँ तक कि जब वह हाज़िर हो जाएँगे तो अल्लाह इरशाद फरमाएगा कि क्या तुमने हमारी आयतों को झुटलाया था, हालाँकि तुम उनको अपने अहाता ऐ इल्मी में भी नहीं लाए बल्कि और भी क्या क्या काम करते रहे "
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (७४-८० )
कुफ्फार:-- (क़हक़हा)"और तू पहाड़ों को देख रहा है, उनको ख़याल कर रहा है कि वह जुंबिश न करेंगे? हालां कि वह बाल की तरह उड़ते फिरेंगे . ये अल्लाह का काम है जिसने हर चीज़ को मज़बूत बनाये रखा है. यह यकीनी बात है कि अल्लाह तुम्हारे हर फेल की पूरी खबर रखता है."सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (८८)कुफ्फार :-- (क़हक़हा)


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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