Sunday 11 September 2011

सूरह अनआम ६-(चौथी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अनआम ६

(चौथी किस्त)


कोई देखे या न देखे अल्लाह देख रहा है


काश कि हम अल्लाह को इस क़दर करीब समझ कर ज़िन्दगी को जिएँ. मगर अल्लाह की गवाही का डर किसे है?
उसकी जगह अगर बन्दे दरोगा जी के बराबर भी डर हो तो इन्सान गुनाहों से बाज़ आ सकता है. कोई देखे या न देखे अल्लाह देख रहा है, की जगह यह बात एकदम सही होगी कि

" कोई देखे या न देखे मैं तो देख रहा हूँ."

दर अस्ल अल्लाह का कोई गवाह नहीं है, आलावा कुंद ज़ेहन मुसलमानों के जो लाउड स्पीकर से अजानें दिया करते कि

" मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई अल्लाह नहीं"

और

"मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसके दूत हैं."

अल्लाह गैर मुस्तनद है, और मैं अपनी ज़ात को लेकर सनद रखता हूँ कि मैं हूँ.

इस लिए मेरा देखना अपने हर आमल को यकीनी है.

इसी को लेकर तबा ताबईन कहे जाने वाले मंसूर को सजाए मौत हुई,

उसने एलान किया था कि मैं खुदा हूँ (अनल हक)

इंसान अगर अपने अन्दर छिपे खुदा का तस्लीम करके जीवन जिए तो दुन्या बहुत बदल सकती है.
''यहाँ तक कि जब यह लोग आप के पास आते हैं तो आप से ख्वाह मख्वाह झ्गढ़ते हैं। यह लोग जो काफ़िर हैं वोह यूं कहते हैं यह तो कुछ भी नहीं सिर्फ बे सनद बातें हैं जो कि पहले से चली आ रही हैं और यह लोग इस से औरों को भी रोकते हैं और खुद भी इस से दूर रहते हैं और यह लोग अपने को ही तबाह करते है और कुछ खबर नहीं रखते.''

सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२६)

सोचने की बात यह है कि डेढ़ हज़ार साल उस वक़्त के लोग आज के कुंद ज़हनों से ज़्यादः समझदार थे. मूसा और ईसा के प्रचलित, किस्से दौर जहालत में अंध विशवास के रूप में रायज, थे जिसको चंट मुहम्मद ने रसूले-खुदा बन के सच साबित किया मगर बहर हाल झूट का अंजाम बुरा होता है जो आज दुन्या की एक बड़ी आबादी भुगत रही है.


''और अगर आप देखें जब ये दोज़ख के पास खड़े किए जाएँगे तो कहेंगे है कितनी अच्छी बात होती कि हम वापस भेज दिए जाएं और हम अपने रब की बातों को झूटा न बतलाएं और हम ईमान वालों में हो जाएं''

सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२7)

आगे ऐसी ही बचकानी बातें मुहम्मद करते हैं कि लोग इस पर यकीन कर के इस्लाम कुबूल करें. ऐसी बचकाना बातों पर जब तलवार की धारों से सैक़ल किया गया तो यह ईमान बनती चली गईं. तलवारें थकीं तो मरदूद आलिमों की ज़बान इसे धार देने लगीं.


''और मेरे पास ये कुरआन बतौर वही (ईश वाणी) भेजा गया है ताकि मैं इस कुरआन के ज़रीए तुम को और जिस जिस को ये कुरआन पहुंचे, इन सब को डराऊं''

सूरह अनआम-६-७वाँ पारा आयत(२८)

कुरआन बतौर वही नहीं बज़रीए वही कहें या रसूलल्लाह!

कुरआनी अल्लाह अपनी किताब कुरआन में न आगाह करता है न वाकिफ कराता है और न ख़बरदार करता है,

बस डराता रहता है.

ज़ाहिर है कि वह उम्मी है, उसके पास न तो अल्फाज़ के भंडार हैं, न ज़बान दानी के तौर तरीके. बच्चों को डराया जाता है, बड़ों को धमकाया जाता है, मुहम्मद को इस की तमाज़त नहीं. वह बड़े बूढों, औरत मर्द, गाऊदी और मुफक्किर, सब को अपने बनाए अल्लाह के बागड़ बिल्ले से डराते हैं.

मुसलमानों का तकिया कलाम बन गया है,

''अल्लाह से डरो''

भला बतलाइए कि क्यूँ ख्वाह मख्वाह अल्लाह से डरें? वह कोई साँप बिच्छू या भेडिया तो नहीं? डरना है तो अपनी बद आमालियों से डरो जिसका कि अंजाम बुरा होता है. आप की बद आमालियाँ वह हैं जो दूसरों को नुकसान पहुंचाएं.

इन कुंद ज़ेहन साहिबे ईमान मुसलामानों को कोई समझाए कि अरबों खरबों बरस से कायम इस कायनात का अगर कोई रचना कार है भी तो वह एक जाहिल जपट मुहम्मद से अपनी सहेलियों की तरह, अपने गम गुसारों की तरह, अपने महबूब की तरह बात करेगा? अगर तुम्हारा यकीन इतना ही कच्चा है तो कोई गम नहीं कि तुम इस नई दुन्या में सफा-ए- हस्ती से मिटा दिए जाओ और जगे हुए इंसानों के लिए जगह खाली करदो कि जो दो वक़्त की रोटी नहीं पा रहे हैं. हालांकि वह बेदार हैं और तुम अकीदत की नींद में डूबे हुए गुनाहगार ओलिमा को हलुवा पूरी खिला रहे हो.

मगर नहीं रुको मैं इतना और कह दूं कि मुहम्मद ने तो सिर्फ कुरैशियों की हलुवा पूरी को कायम करना चाहा था मगर यह बीमारी तो सारी दुन्या को लग गई? दुन्या को दुन्या जाने, मैं तो सिर्फ पंद्रह करोर हिदुस्तानी मुसलमानों को जगाना चाहता हूँ.


देखो कि ब्रह्माण्ड का रचैता एक धूर्त से कैसे बातें करता है - - -

''हम खूब जानते हैं कि आप को इनके अक़वाल मगमूम करते हैं, सो यह लोग आप को झूटा नहीं कहते, लेकिन यह जालिम अल्लाह ताला की आयातों का इनकार करते अनआम-६-७वाँ पारा आयत(३३)
मेरे भोले भाले मुसलमानों क्या यह अय्यारी की बातें तुम्हारे समझ में नहीं आतीं?



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. क्या साहब, आप तो हरएक चीज की बखिया उधेड़ देते हैं.

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