Monday 5 September 2011

सूरह अनआम ६-

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह अनआम ६-(पहली किस्त)


ध्यान दें - - -

क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम हो ही नहीं सकता.कोई अल्लाह अगर है तो अपने बन्दों के क़त्ल-ओ-खून का हुक्म न देगा.

क्या सर्व शक्ति मान, सर्व ज्ञाता, हिकमत वाला अल्लाह मूर्खता पूर्ण और अज्ञानता पूर्ण बकवास करेगा?

क्या इन बेहूदा बातों की तिलावत (पाठ) से कोई सवाब मिल सकता है?

जागो!

मुसलमानों जागो!!

मुहम्मद के सर पर करोड़ों मासूमों का खून है जो इस्लाम के फरेब में आकर अपनी नस्लों को इस्लाम के हवाले कर चुके हैं. मुहम्मद की ज़िदगी में ही हज़ारों मासूम मारे गए और मुहम्मद के मरते ही दामाद अली और बीवी आयशा के दरमियाँ जंग जमल में एक लाख इंसान बहैसियत मुसलमान मारे गए.

स्पेन में सात सौ साल काबिज़ रहने के बाद दस लाख मुसलमान जिंदा नकली इस्लामी दोज़ख में डाल दिए गए,

अभी तुम्हारे नज़र के सामने ईराक में दस लाख मुसलमान मारे गए.

अफगानिस्तान, पाकिस्तान कश्मीर में लाखों इन्सान इस्लाम के नाम पर मारे जा रहे है.

चौदह सौ सालों में हज़ारों इस्लामी जंगें हुईं हैं जिसमें करोड़ों इंसानी जानें गईं.

मुस्लमान होने का अंजाम है बेमौत मारो या बेमौत मरो.

क्या अपनी नस्लों का अंजाम यही चाहते हो?

एक दिन इस्लाम का जेहादी सवाब मुसलामानों को मारते मारते और मरते मरते ख़त्म कर देगा.

वक़्त आ गया है खुल कर मैदान में आओ. ज़मीर फरोश गीदड़ ओलिमा का बाई काट करो, इनके साए से दूर रहो और भोले भाले लोगों को दूर रखो.

अब आइए कुरआनी बकवासों पर जिनको आम मुसलमान नहीं जनता - - -

क़ुरआन ने मुसलामानों में एक वहम ''नाज़िल और नुज़ूल''(अवतीर्ण एवं अवतरित) का डाल दिया है, मिन जानिब अल्लाह आसमान से किसी बात, किसी शय, किसी आफ़त का उतरना नाज़िल होना कहा जाता है. ये सारा का सारा क़ुरआन वहियों(ईश-वाणी) के नुजूल का पुथंना बतलाया जाता है. यानी क़ुरआन का ताअल्लुक़ ज़मीन से नहीं बल्कि यह आसमान से उतरी हुई आफ़त ज़दा किताब है.

क़ुरआन अपनी ही तरह मूसा रचित तौरेत और दाऊद द्वारा रचे ज़ुबूर के गीतों को ही नहीं बल्कि ईसा के हवारियों (धोबियों) के बाइबिल के बयानों को भी आसमानी साबित करता है, जब कि इन के मानने वाले खुद इन्हें ज़मीनी कहते हैं.

आगे की खोज कहती है आसमान ऐसी कोई चीज़ नहीं कि जिसके फर्श और छत हों, ये फ़क़त हद्दे नज़र है. क़ुरआन के सात मंजिला आसमान पर मुख्तलिफ मंजिलों पर मुख्तलिफ दुनिया है, सातवें पर खुद अल्लाह विराजमान है.?

हमारी जदीद तरीन तह्क़ीक़ कहती है की ऐसा आसमान एक कल्पना है, तो ऐसा अल्लाह भी मुहम्मद का तसव्वुर ही है. दोज़ख जन्नत सब उनकी साजिश है.


''तमाम तारीफें अल्लाह के लिए ही लायक हैं जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया और तारीकियों (अंधकार) और नूर को बनाया, फिर भी काफिर लोग दूसरों को अपना रब क़रार देते हैं.''

सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (१)

उम्मी मुहम्मद ब्रम्हामांड में ज़मीन को हर जगह बार बार एक वचन में लाते हैं और आसमान को बहु वचन (अनुमानित सात) क़ुरआन में अल्लाह के मुंह से कहलाते हैं जब कि आसमान एक है और ज़मीन इसमें करोरों बल्कि बेशुमार हैं. कोई ताक़त इसका रचैता अगर है तो वह क्या मुहम्मद का अल्लाह हो सकता है जो कह रहा है? सब तारीफ मेरे लिए हैं और खुद उसको अपनी रचना का ज्ञान नहीं? अंधकार और रौशनी सूरज के गिर्द ज़मीनी गर्दिश के रद्दे अमल से होती है, मुहम्मद से सदयों पहले यूनान के साइंस दानों ने दुन्या को बतला दिया था मगर यह बात मुहम्मदी अल्लाह के कानों तक नहीं पहुंची.

काफिर लोगों ने हमेशा हू, याहू, इलह, इलोही, इलाही, रब और ख़ुदा जैसी किसी ताक़त को ईश्वर माना है और अपने देवी देवताओं को उसका माध्यम जैसे आज तक चला आ रहा है. अरबी माध्यम लात, मनात, उज़ज़ा आदि थे, मुहम्मद ज़बरदस्ती उनको उनका अल्लाह साबित करने मेंलगे हुए है.

''और वह ऐसा है जिसने तुम को मिटटी से बनाया, फिर एक वक़्त मुअय्यन किया और दूसरा खास वक़्त मुअय्यन उसी के नजदीक है, फिर भी तुम शक रखते हो.''सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२)

मुहम्मद अल्लाह के बारे में बतलाते हैं कि वह ऐसा है और कहते हैं यह अल्लाह का कलाम है, जब कि मुहम्मद खुद साबित कर रहे हैं कि यह कलाम खुद उनका है।

इसे ढंग से यूँ कहते - - -धरा को परमाण यही तुलसी,जो फरा, सो झरा, जो बरा सो बुताना।



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

3 comments:

  1. आप यूं तो ख़ुद को ख़ुदा या रब जैसी किसी चीज़ पर यक़ीन न करने वाला या नास्तिक (Atheist) बतलाते हैं लेकिन उस के होने का जैसा सधा हुआ तबसरा आप पेश करते हैं वो तमाम मजहबों के ठेकेदार जो उसको करीब से जानने का दिन-रात दावा करते हैं, अगर सुन लें और समझ पाएं तो शर्म से डूब कर मर जाएं.

    सच है - अगर ख़ुदा नाम की कोई चीज़ है भी कहीं तो ईमानदारी और दुनिया के सारे लोगों की बेहतरी के लिए की गई कोशिशें ही उसकी इबादत हैं इनके अलावा सब ढोंग और बक़वास है. न तो वो नमाज़-इबादत-पूजा से ज़रा सा भी खुश होगा और व ही बेतरह गालियां देने पर ज़रा सा ग़म ही करेगा क्‍योंकि ये दोनों ही वक्‍़त खराब करने वाले चुतियापे से ज्‍़यादा कुछ नहीं हैं और अगर ख़ुदा सच में सारी कायनात का ख़ुदा कहलाने लायक जैसी कोई चीज़ है तो उसे इन दोनों चुतियापों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

    सारे मजहबों को लात मारकर इंसानियत और सारी दुनिया के मजलूम और गरीबों की बेहतरी के लिए की गई खिदमत को ही ख़ुदा मान लिया जाया और इन्‍हीं दोनों की इबादत की जाए तो फिर और कुछ चुतियापे में वक्‍़त बर्बाद करने की ज़रूरत ही न रहे.

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  2. अनाम साहब !
    बहुत ही अच्छी सोच है आपकी.
    मगर ज़रा ज़बान संभाल के.
    यह दोनों नादान और न समझ लोग हैं.
    शुक्रिया

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  3. बहुत खूब लिखा है, लेकिन समझे कौन. नक्कारखाने में तूती की सुने कौन...

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