Thursday 1 December 2011

सूरह यूनुस १० (तीसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह यूनुस १०

(तीसरी किस्त)

क़ुरआन मुहम्मद की वज्दानी कैफ़ियत में बकी हुई ऊट पटाँग बातों का ऐसा मज्मूआ ए कलाम है जिसका कुछ जंगी फ़तूहात से इस्लामी ग़लबा कायम हो जाने के बाद मज़ाक उड़ाना जुर्म क़रार दे दिया गया. जंगों से हासिल माले ग़नीमत ने इसे मुक़द्दस बना दिया. फ़तह मक्का के बाद तो यह उम्मी की पोथी शरीयत बन कर मुमालिक के कानून काएदे बन्ने लगी. इसके मुजरिमीन ओलिमा ने तलवार तले अपने ज़मीरों को गिरवीं रखना शुरू किया तो इस मैदान में दौड़ का मुकाबला शुरू हो गया. शिकस्त खुर्दा हुक्मरानों और मजबूरो मज़लूम अवाम ने इसे तस्लीम करना शुरू कर दिया. फूहड़ ज़बान, मुतज़ाद बातें, वज्द की बक बक, बे वक़अत क़िस्से, गढ़े हुए वाकए, बुग्ज़ और मक्र की गुफ्तुगू, झूट की सैकड़ों अक्साम को ढकने के लिए मुहम्मद ने इसे तिलावत की किताब बना दिया न कि समझने और समझाने की.
झूट की सदाक़त यह है कि वह अपना पुख्ता सुबूत अपने पीछे छोड़ जाता है. क़ुरआन को तहरीरी शक्ल में महफूज़ करने का मुहम्मद का कोई इरादा नहीं था, यह तो याददाश्त के तौर पर सीना बसीना क़बीलाई मन्त्र तक चलते रहने का सिलसिला था जो इसकी औकात है, मगर उस्मान गनी को तब झटका लगा जब इसके हाफिज़ जंगों में मारे जाने लगे. उनको लगा कि इस तरह तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि क़ुरआन को अगले सीने में मुन्तकिल करने वाला कोई मिले ही नहीं. इस तरह उन्हों ने क़ुरआन के बिखरे हुए नुस्खों को चमड़ों, छालों, पत्थर क़ी स्लेटों और कागजों पर जहाँ जैसा मिला इकठ्ठा किया. आधे से ज्यादा क़ुरआन रद्द हुवा बाक़ी मौजूदा आप के सामने है अपने झूट के हश्र को लिए खड़ा है.
देखिए कि क़ुरआन में मुहम्मद अल्लाह बने हुए क्या कहते हैं - - -


''जब हम लोगों को बाद इसके कि इन पर कोई मुसीबत पड़ चुकी हो, किसी नेमत का मज़ा चखा देते हैं तो फ़ौरन हमारी आयतों के बारे में शरारत करने लगते हैं. कह दीजिए अल्लाह तअला सज़ा जल्दी देगा. बिल यकीन हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते तुम्हारी शरारतों को लिख रहे हैं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (२१)
इस किस्म की ज़नानी तबा मुहम्मद की बातें आज कठ मुल्लों के काम आती हैं खास कर औरतों को मुसलमान बनाए रखने के। क़ुरआन ऐसे बहुत से हरबे ईजाद करता है जो कुन्द ज़ेहनों पर बहुत काम करती है. बुत परस्ती और इन वहमों में क्या फर्क़, बल्कि यह ज़्यादः गाढे हैं. अल्लाह के कलाम में जगह जगह पर फरिश्तों की तैनाती है, क़ुरआन फरिश्तों पर भी यक़ीन और ईमान रखने की हिदायत करता है. बड़ा फ़रिश्ता जिब्रील मुहम्मद की मदद में बड़ा करसाज़ है. अल्लाह के क़ुरआन की आयतें यही ढो ढो कर लाता है और मुहम्मद के सीने में भरता है जिसे वह नबूवत के चैनल से रिले करते हैं. यही फ़रिश्ता मुहम्मद को अपनी सवारी पर लाद कर सातों आसमानों की सैर करता है. मुहम्मद और उनकी बहू ज़ैनब के आसमान पर निकाह होने का गवाह भी जोकर का पत्ता जिब्रील अलैहिस्सलाम ही होता है. जिस ब्याहता के साथ अल्लाह मियाँ मुहम्मद का नाजायज़ निकाह पढाते हैं. इस मुहम्मदी खेल में गाऊदी कौम देखिए कब तक फंसी रहे.

''और जिस रोज़ हम इन सब को जमा करेंगे कि तुम और तुम्हारे शरीक अपनी जगह ठहरो, फिर हम इन आबदीन (पूजक)और मुआब्दीन (पूज्य)में आपस में फूट डाल देंगे और उनके शुरका (सम्लित) कहेंगे तुम हमारी इबादत नहीं करते थे सो हमारे तुम्हारे दरमियान अल्लाह काफी गवाह है कि हम को तुम्हारी इबादत की खबर भी न थी.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (२८-२९)
लअनत है ऐसे अल्लाह पर जो दो आस्था वानों में फूट डलवाने का काम भी करता हो, यह तो सरासर शैतानी हरकत है। वह महज़ मिटटी पत्थर के बुत नहीं हैं, अल्लाह यह भी साबित कर रहा है कि उसकी मर्ज़ी के मुताबिक वह बोलने लगेंगे, जब कि उनको वह हमेशा बेजान और सिफार बतलाता है मगर मुहम्मद कि खोपड़ी कुछ भी साबित कर सकती है।यहाँ बुतों को अल्लाह का गवाह बना रही है.

''आप जानदार चीज़ों से बेजान को निकल देते हैं(जैसे बैजा से चूजा) और बेजान चीज़ों से जानदार को निकल देता है (जैसे परिंदे से अंडा)
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (३१)
अल्लाह की इस बात को बार बार आपके गोश गुज़र करा देता हूँ कि शायद कभी आपको यह बात दिल पर लगे और शर्म आ जाए कि आप किस अल्लाह की इबादत कर रहे हैं.जिसको उस वक़्त इतनी तमीज भी न थी कि अंडे में जान होती है.

'' इस में कोई शक नहीं कि यह (कुरआन ) रब्बुल आलमीन के तरफ़ से नाज़िल हुवा है. क्या वह लोग कहते है कि आप ने इसे अपनी तरफ से बना लिया है? फिर तुम कहदो कि तुम इस के मिस्ल एक ही सूरह लाओ और जिन जिन गैर अल्लाह को बुला सको बुला लो अगर तुम चाहो.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (३८)
मुहम्मदी अल्लाह का चैलेंज कुरआन के बारे में बार बार है कि वह इसे मुहम्मद की रचना नहीं मानता गोया मुहम्मद खुद अपनी किताब कुरआन को अपनी नहीं मानते और अल्लाह का नाजिल ओ नुजूल मानते है. इसमें बड़ी चालाकी छिपी हुई है.इसकी सारी खामियां अल्लाह के सर जाती हैं. कुरआन की कोई सूरह या कोई आयत भी कोई साहबे अक्ल और साहबे जेहन नहीं बक सकता अलावः किसी दीवाने के.

''और बअजे हैं जो इस पर ईमान लाएँगे और बअजे हैं जो इस पर ईमान न लाएँगे और आप का रब इन मुफस्सिदों(झूटों) को खूब जनता है और अगर आप को झुट्लाते है तो कह दीजिए कि मेरा किया हुवा मुझको और तुम्हारा किया हुवा तुमको मिलेगा. तुम मेरे किए हुए के जवाब देह नहीं, मैं तुम्हारे किए का जवाब देह नहीं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (४१)
मुहम्मद के मुहिम में एक वक़्त मजबूरी आन पड़ी थी कि ऐसी आयतें नाजिल होने लगीं (देखें तारिख इस्लाम) वर्ना जेहादी अल्लाह के मुँह से इस किस्म की बातें ? तौबा ! तौबा !! यह आयत आज मुल्लाओं और सियासत दानों के बहुत काम आ रहे हैं. जैसे मुहम्मद के काम वक्ती तौर पर आ गई थीं ताक़त मिलते ही फिर ये लोग जेहादी तालिबान बन जाएँगे.

'' इन में से कुछ ऐसे हैं जो आप की तरफ़ कान लगा कर बैठे हैं, क्या आप बहरों को सुनाते हैं कि जिनके अन्दर कोई समझ ही न हो. और बअज़ ऐसे हैं जो सिर्फ़ देख रहे हैं तो क्या आप अंधों को रास्ता दिखाना चाहते हैं, गो इनको बसीरत भी नहीं है. यकीनी बात है कि अल्लाह तअला लोगों पर ज़ुल्म नहीं करता लेकिन लोग खुद ही को तबाह करते हैं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (४२-४४)
आप की बातों में कोई दम ख़म हो, कोई इन्क्शाफ हो, इन्क्शाफ के नाम पर जेहालत की बातें कि अण्डे को आप बेजान बतलाते हैं और उसमें से जानदार परिन्द निकलते हैं, फिर परिन्द से बेजान अण्डा निकलने का अल्लाह का मुआज्ज़ा दिखलाते है. आप के बातें वही ईसा मूसा की घिसी पिटी कहानियाँ दोहराती रहती हैं, कहाँ तक सुनें लोग? ऊंघने तो लगेंगे ही, अनसुनी तो करेंगे ही. आप कहते हैं कि वह सब हम्मा तन बगोश हो जाएँ. मुहम्मद की इन बातों से अंदाजः लगाया जा सकता है कि उनके गिर्द कैसे कैसे लोग रहते होंगे और उस वक़्त इस क़ुरआन की वक़अत क्या रही होगी ? क़ुरआन की वक़अत तो आज भी वही है मगर हराम खोर ओलिमा और तलवार की धार ने इस पर सोने का मुलम्मा चढ़ा रखा है. नमाज़ अगर दुन्या के लोगों की मादरी जुबानों में हो जय तो चन्द दिनों में ही इस्लाम की पोल पट्टी खुल जाय. अवाम नए सिरे से आप को नए लकबों से नवाजना शुरू करदे.

''लोग कहते हैं कि यह वादा (क़यामत का) कब वाक़ेअ होगा, अगर तुम सच्चे हो? आप फरमा दीजिए कि अपनी ज़ात खास के लिए किसी नफा या किसी नुकसान का अख्तियार नहीं रखता मगर जितना अल्लाह को मंज़ूर हो. हर उम्मत के लिए एक मुअय्यन वक़्त है. जब उनका यह मुअय्यन वक़्त आ पहुचता है तो एक पल न पीछे हट सकते हैं न आगे सरक सकते है.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (५०)
''क्या वह (क़यामत) वाक़ई है? आप फरमा दीजिए कि हाँ ! वह वाकई है और तुम किसी तरह उसे आजिज़ नहीं कर सकते.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (५३)
मुहम्मद ने मुसलमानों के लिए अल्लाह को हाथ, पाँव, नाक, कान, मुँह, दिल और इंसानी दिमाग़ रखने वाला एक घटिया हयूला का पैकर पेश कर रखा है, तभी तो मजबूर बीवियों की तरह अपने शौहर नुमा बन्दों से आजिज़ भी हो रहा है, वर्ना इंसानों और जिनों से दोज़ख के पेट भरने का वादा किए हुए अल्लाह को इनकी क्या परवाह होनी चाहिए। बेचारा मुसलमान हर वक़्त अपने परवर दिगार को अपने सामने तैनात खड़ा पता है. वह ससी हुई, सहमी सहमी ज़िन्दगी गुज़रता है. कुदरत की बख्शी हुई इस अनमोल जिसारत ए लुत्फ़ से लुत्फ़ अन्दोज़ ही नहीं हो पाता. क़यामत का खौफ लिए अधूरी ज़िन्दगी पर किनाअत करता हुवा इस दुन्या से उठ जाता है. कौम की माली, सनअती, तामीरी और इल्मी तरक्की में यह अल्लाह की फूहड़ आयतें बड़ी रुकावट बनी रहती हैं. अवाम जो इन बातों की गहराइयों में जाते हैं वह हकीक़त को समझने के बाद या तो इस से अपना दामन झाड़ लेते हैं या इसका फायदा उठाने में लग जाते हैं. हर मज़हब की लग-भग यही कहानी है.

''याद रखो अल्लाह के दोस्तों पर न कोई अंदेशा और न वह मगमूम होते हैं. वह वो हैं जो ईमान लाए और परहेज़ रखते हैं. इनके लिए दुन्यावी ज़िन्दगी में भी और आखरत में भी खुश खबरी है - - -''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (५३)
आज अल्लाह के दोस्तों पर तमाम दुन्या को अंदेशा है. हर मुल्क में मुसलामानों को मशकूक नज़रों से देखा जाता है. एक मुसलमान किसी मुसलमान पर भरोसा नहीं करता. इनकी हर बात इंशा अल्लाह के शक ओ शुबहा में घिरी रहती है. कोई वादा क़ाबिले एतबार नहीं होता. आखरत के नाम पर एक दूसरे को धोका दिया करते हैं. भोलेभाले अवाम आखरत का शिकार हैं.

कुरआन एक हज़ार बार कहता है जो कुछ ज़मीन और आसमान के दरमियान है अल्लाह का है. कौन काफ़िर कहता है कि यह सब उनके बुतों का है. या कौन मुल्हिद कहता है कि नहीं यह सब उसका है? कौन पागल कहता है कि अल्लाह का नहीं, सब बागड़ बिल्लाह का है, कि मुहम्मद उस से पूछते रहते हैं कि कोई दलील हो तो पेश करो. वह खुद अल्लाह के दलाल बने फिरते हैं, इसका सुबूत जब कोई पूछता है तो बड़ी आसानी से कह देते हैं कि इसका गवाह मेरा अल्लाह काफी है.
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (६५-७४)
नूह के बाद मुहम्मद मूसा का तवील क़िस्सा फिर नए सिरे से ले बैठते है. इनके तखरीबी ज़ेहन में दूसरे मौज़ूअ का ज्यादह मसाला भी नहीं है. शुरू कर देते हैं फिरौन और मूसा की मुकलमों की फूहड़ जंग जिसको पढ़ कर एहसास होता है कि एक चरवाहा इस से बढ़ कर क्या बयान कर सकता है. इसमें तबलीग इस्लाम की होश्यारी खटकती रहती है. अकीदत मंदों की लेंडी ज़रूर तर हुवा करती है यह और बात है.बयान का वाक़ेअय्यत से कोई लेना देना नहीं. मसलन - - -

''ए मूसा आप मुसलामानों को बशारत देदें और मूसा ने अर्ज़ किया ए हमारे रब ! तूने फिरौन को और इसके सरदारों को सामान तजम्मुल और तरह तरह के सामान ए दुनयावी, ज़िन्दगी में इस वास्ते दी हैं कि वह आप के रस्ते से लोगों को गुमराह करें? ए मेरे रब तू उनके सामान को नेस्त नाबूद कर दे और इनके दिलों को सख्त करदे, सो ईमान नलाने पावें, यहाँ तक कि अज़ाबे अलीम देख लें और फ़रमाया कि तुम दोनों की दुआ कुबूल कर लीं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (७५-८९)
मुहमदी कुरआन की नव टंकी देखिए , रसूल खेत की कहते हैं, मूसा खलियान की सुनता है और अल्लाह गोदाम की कुबूल करता है.
इन आयतों को पढ़ कर मुहम्मद की गन्दी ज़ेहन्यत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वह बनी नवअ इंसान के कितने हम दर्द थे फिर भी यह हराम जादे ओलिमा उनको मोह्सिने इंसानियत कहते नहीं थकते.


''और हमने बनी इस्राईल को दरिया के पार कर दिया, फिर उनके पीछे पीछे फिरौन मय अपने लश्कर के ज़ुल्म और ज़्यादती के इरादे से चला, यहाँ तक कि जब डूबने लगा तो कहने लगा मैं ईमान लाता हूँ बजुज़ इसके कि जिस पर बनी इस्राईलईमान ले हैं.कोई माबूद नहीं कि मैं मुसलमानों में दाखिल होता हूँ.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (९०)
क़ुरआन में कितना छल कपट और झूट है यह आयत इस बात की गवाही देती है - - -

१- क़ुरआन का अल्लाह यानी मुहम्मद बक़लम खुद कहते है कि फिरऑन मय अपने लस्कर के दरियाय नील पार कर रहा था और उसमें गर्क हुवा.
तौरेती तवारीख कहती है कि यह वाक़िया नील नदी नहीं बल्कि नाड सागर का है और लश्करे फिरौन गर्क हुई फिरौन नहीं.
२- क़ुरआन का अल्लाह यानी मुहम्मद बक़लम खुद कहते है कि फिरौन ''कहने लगा मैं ईमान लाता हूँ बजुज़ इसके कि जिस पर बनी इस्राईल ईमान लाए हैं'' यानि यहूदियत को छोड़ कर, जब कि वह यहूदियत के नबी मूसा के बद दुआ का शिकार हुवा था, दो हज़ार साल बाद पैदा होने वाले इस्लाम पर कैसे ईमान लाया? कि फिरौन कहता है ''कोई माबूद नहीं कि मैं मुसलमानों में दाखिल होता हूँ.'' यहूदियत की बेगैरती के साथ मुखालिफत करते हुए, बे शर्मी के साथ इस्लाम की तबलीग ? कोई मुर्दा कौम रही होगी जो इनबातों को तस्लीम किया होगा जो आज बेहिस मुसलमानों पर इस्लाम ग़ालिब है.
है कोई जवाब दुन्य के मुसलमानों के पास ? मुस्लिम सरबराहों के पास ? आलिमों और फज़िलों के पास ?


''फिर अगर बिल्फर्ज़ आप इस किताब कुरआन की तरफ़ से शक में हों जोकि हमने तुम्हारे पास भेजा है तो तुम उन लोगों से पूछ देखो जो तुम से पहले की किताबों को पढ़तेहैं यानी तौरेत और इंजील तो कुरआन को सच बतलाएंगे. बेशक आप के पास रब की सच्ची किताब है. आप हरगिज़ शक करने वालों में न हों और न उन लोगों में से हों जिन्हों ने अल्लाह की आयतों को झुटलाया. कहीं आप तबाह न हो जाएँ.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (९४-९५)
अपने रसूल को अल्लाह खालिक ए कायनात को समझाने बुझाने की ज़रुरत पड़ रही है कि खुदा नखास्ता यह भी आदम जाद है गुमराह न हो जाएं ।साथ साथ वह इनको ईसा मूसा का हम पल्ला भी करार दे रहा है. चतुर मुहम्मदने अवाम को रिझाने की कोई राह नहीं छोड़ी.

*देखें कि अल्लाह की इन बातों से आप कोई नतीजा निकल सकते हैं - - -

''अगर आप का रब चाहता तो तमाम रूए ज़मीन के लोग सब के सब ईमान ले आते. सो क्या आप लोगों पर ज़बर दस्ती कर सकते हैं, जिस से वह ईमान ही ले आएं. हालाँकि किसी का ईमान बगैर अल्लाह के हुक्म मुमकिन नहीं और वह बे अक्ल लोगों पर गन्दगी वाक़े कर देता है और जो लोग ईमान लाते हैं उनको दलायल और धमकियाँ कुछफ़ायदा नहीं पहुचातीं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (१००)
यहाँ मुहम्मदी अल्लाह खुद अपनी खसलत के खिलाफ किस मासूमयत से बातें कर रहा है। ज़बरदस्ती, ज़्यादती, जौर व ज़ुल्म तो उसका तरीका ए कार है, यहाँ मूड बदला हुवा है. वह अपने बन्दों की रचना पहले बे अकली के सांचे से करता है फिर उन पर गलाज़त उँडेल कर मज़ा लेता है. मुसलमान उसके इस हुनर पर तालियाँ बजाते हैं. कैसा तजाद(विरोधाभास) है अल्लाह की आयत में कि बगैर उसके हुक्म के कोई ईमान नहीं ला सकता और ईमान न लाने वालों के लिए अजाब भी नाजिल किए हुए है. यह उसके कैसे बन्दे हैं जो उस से जवाब तलबी नहीं करते, वह नहीं मिलता तो कम अज कम उसके एजेंटों को पकड़ कर उनके चेहरों पर गन्दगी वाके करें.

निसार '' निसार-उल-ईमान''




1 comment:

  1. " मुश्किले दिल के इरादे आजमाती हैं, श्बपन के परदे निगाहों से हटाती है होंसला मत हार गिर कर ओ मुसाफिर tokare इंसान को चलना सिखाती हैं " very very very.... nice


    आप लिखते रहिए, हम आपके साथ है-VIKASH KUMAR GAUTAM

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