Monday 5 December 2011

सूरह हूद-११ (पहली किस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह हूद-११
(पहली किस्त)
मुनाफ़िक़-ए-इंसानियत

मुसलमानों में दो तबके तालीम याफ़्ता कहलाते हैं, पहले वह जो मदरसे से फरिगुल तालीम हुवा करते हैं और समाज को दीन की रौशनी (दर अस्ल अंधकार) में डुबोए रहते हैं, दूसरे वह जो इल्म जदीद पाकर अपनी दुन्या संवारने में मसरूफ़ हो जाते हैं. मैं यहाँ दूसरे तबके को ज़ेरे बहेस लाना चाहूँगा. इनमें जूनियर क्लास के टीचर से लेकर यूनिवर्सिटीज़ के प्रोफ़सर्स तक और इनसे भी आगे डाक्टर, इंजीनियर और साइंटिस्ट तक होते हैं. इब्तेदाई तालीम में इन्हें हर विषय से वाकिफ़ कराया जाता है जिस से इनको ज़मीनी हक़ीक़तों की जुग्रफियाई और साइंसी मालूमात होती है. ज़ाहिर है इन्हें तालिब इल्मी दौर में बतलाया जाता है कि यह ज़मीन फैलाई हुई चिपटी रोटी की तरह नहीं बल्कि गोल है. ये अपनी मदार पर घूमती रहती है, न कि सकित है. सूरज इसके गिर्द तवाफ़ नहीं करता बल्कि ये सूरज के गिर्द तवाफ़ करती है. दिन आकर सूरज को रौशन नहीं करता बल्कि इसके सूरज के सामने आने पर दिन हो जाता है. आसमान कोई बगैर खम्बे वाली छत नहीं बल्कि ला महदूद है और इन्सान की हद्दे नज़र है. इनको लैब में ले जाकर इन बातों को साबित कर के समझाया जाता है ताकि इनके दिमागों से धर्म और मज़हब के अंध विश्वास ख़त्म हो जाए.
इल्म की इन सच्चाइयों को जान लेने के बाद भी यह लोग जब अपने मज़हबी जाहिल समाज का सामना करते हैं तो इन के असर में आ जाते हैं. चिपटी ज़मीन और बगैर खम्बे की छतों वाले वाले आसमान की आयतों को कठ मुल्लों के पीछे नियत बाँध कर क़ुरआनी झूट को ओढने बिछाने लगते हैं. सनेहा ये है कि यह हज़रात अपने क्लास रूम में पहुँच कर फिर साइंटिस्ट सच्चाइयां पढ़ने लगते हैं. ऐसे लोगों को मुनाफ़िक़ कहा गया है, यह तबका मुसलमानों का उस तबके से जो ओलिमा कहे जाते हैं दस गुना कौम के मुजरिम है। सिर्फ ये लोग अपनी पाई हुई तालीम का हक अदा करें तो सीधीसादी अवाम बेदार हो सकती है. मुनाफिकों ने हमेशा इंसानियत को नुकसान पहुँचाया है
चललिए क़ुरआनी मिथ्य का मज़ा चक्खें - - -
''अलारा''
मोहमिल, अर्थहीन शब्द जिसका मतलब तथा-कथित अल्लाह को ही मालूम है। मुसलमान इसका उच्चारण छू-छटाका की नकल में करते है.

''क़ुरआन एक ऐसी किताब है जिसकी आयतें मुह्किम की गई हैं फिर साफ़ साफ़ बयान की गई हैं.''
सूरह हूद-११ -ग्यारहवाँ पारा आयत (१)क़ुरआन की हांड़ी में जो ज़हरीली खिचड़ी पकाई गई है उसकी तारीफों के पुल बाँधे गए हैं जिसका एक नावाला भी बगैर मूज़ी ओलिमा के दिए हुए मकर के मीठे घूँट के हलक़ से नीचे उतारना मुमकिन नहीं।

''एक हकीम बा ख़बर की तरफ़ से है, ये कि अल्लाह तअला के सिवा किसी की इबादत मत करो. मैं तुम को अल्लाह तअला की तरफ़ से डराने वाला और बशारत देने वाला हूँ.''
सूरह हूद-११ -ग्यारहवाँ पारा आयत (२)अल्लाह को वज़ाहत करने की ज़रुरत पड़ रही है कि वह हकीम बा ख़बर है, यह ज़रुरत मुहम्मद ने अपनी बेवकूफ़ाना सोच के तहत कही है, कहना चाहिए था आगाह बाखबर या हकीम बा हिकमत। ख़बर भी कैसी बेहूदा कि खुद अल्लाह कहता है कि अल्लाह तअला के सिवा किसी की इबादत मत करो? फिर खुद कहते है 'मैं तुम को अल्लाह तअला की तरफ़ से डराने वाला और बशारत देने वाला हूँ.'' सितम ये कि इसे भी कलाम इलाही कहते हैं.

'' मुहम्मद माहौल का जायजा लेकर एक एक फ़र्द के तौर तरीके देख कर अल्लाह से वहियाँ नाज़िल करते हैं. लोगों को गुमराह करते हैं कि दुन्या दारी को तर्क करके मुकम्मल तौर पर दीन की राह को अपना लो. अल्लाह से डरते रहने की राय देते हैं. अपनी नबूवत पर इनका यक़ीन कामिल है मगर लोगयक़ीन नहीं करते.''
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (३-६)
हम खुद को कुछ भी समझने लगें, क्या हक है मुझे कि अपनी ज़ात को सब से मनवाएं? तबलीग करके, तहरीक चला के, लड़ झगड़ के, क़त्लो गारत गरी करके, जेहाद करके और तालिबानी बन के।

''अल्लाह छ दिनों में कायनात की तकमील को फिर दोहराता है, इसमें एक नई बात जोड़ता है कि इसके पहले अर्श पानी पर था ताकि तुम्हें आजमाए कि तुम में अच्छा अमल करने वाला कौन है?''
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (७)एक साहब एक बड़े इदारे में डाक्टर हैं, फ़रमाने लगे कि कुरआन को समझना हर एक के बस की बात नहीं. बड़े रुतबे वाले हैं, मशहूर फिजीशियन हैं, बीवी बच्चियों को सख्त पर्देदारी में रखते हैं. काशमज़्कूरह आयत को रख कर मैं उन से कुरआन को समझ सकता.
गौर तलब है कि मज़्कूरह आयत में मुहम्मदी अल्लाह को तमाज़ते गुफ्तुगू भी नहीं है कि वह क्या बक रहा है? अर्श पानी पर था तो फर्श कहाँ था? क्या मुहम्मद के सर पे जहाँ लोग आज़माइश का अमल करते थे। बड़ा पुख्ता सुबूत है मुहम्मद के मजनू होने का.

*मुहम्मद अपनी शायरी पर नाज़ करते हुए कहते हैं - - -
'' काफ़िर कुरआन को सुनकर कहते हैं यह तो निरा और साफ़ जादू है.''
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (७)मगर शरअ (धर्म विधान) और शरह (व्याख्या) दोनों के लिए अनपढ़ नबी ने मुश्किल खड़ी कर दी है. मुहम्मद ने अपने कलाम में जादूई असर बतला कर कलाम की तारीफ़ की है मगर शरअन जादू का असर झूट का असर होता है, इसलिए कुरआन झूठा साबित हो रहा है, इस लिए अय्यार आलिम यहाँ नौज बिल्लाह कहकर अल्लाह के कलाम की इस्लाह करने लगते हैं। मुहम्मद के कलाम में न जादूई असर है न सुब्हान अल्लाह, है तो बस नौज बिल्लाह है.

*कयामत की रट सुनते सुनते थक कर काफ़िर कहते हैं - - -
''इसे कौन चीज़ रोके हुए है ? आए न - - -'' मुहम्मद कहते हैं '' याद रखो जिस दिन वह अज़ाब उन पर आन पड़ेगा, फिर टाले न टलेगा और जिसके साथ वहमज़ाक कर रहे हैं वह आ घेरेगा.''
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (८)चौदहवीं सदी हिजरी भी गुज़र गई, कि कयामत की मुहम्मदी पेशीनगोई थी, डेढ़ हज़ार साल गुज़र गए हैं, क़यामत नहीं आई. इस्लाम दुन्या में ज़वाल पिज़ीर और क़यामत ज़दः भी हो चुका है, दीगर कौमे मुसलसल उरूज पर हैं, क़यामत का अतापता नहीं। कई मुल्कों पर मुसलमानों पर ज़रूर क़यामत आ कर चली गई मगर अल्लाह का कयामती वादा अभी भी क़ायम है और हमेशाक़ायम रहने वाला है.

''अगर हम इन्सान को अपनी मेहरबानी का मज़ा चखा कर छीन लेते हैं तो वह न उम्मीद और ना शुक्रा हो जाता है और जब किसी मेहरबानी का मज़ा चखा देते हैं तो इतराने और शेखी बघारने लग जाता है.''
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (९-११)ऐसी बातें कोई खुदाए अज़ीम तर नहीं बल्कि एक कम ज़र्फ़ इंसान ही कर सकता है. साथ साथ उसका बद अक़ल होना भी लाज़िम है.
मुसलामानों! क्या तुम्हारा अल्लाह ऐसी ही बकवास करता है ?

''आप का दिल इस बात से तंग होता है कि वह कहते हैं कि उन पर कोई खज़ाना नाज़िल क्यूं नहीं हुआ या उनके हमराह कोई फ़रिश्ता क्यूं नहीं आया? आप तोसिर्फ़ डराने वाले हैं.''
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (१२)मुहम्मद की मक्र मुसलमानों के दिमाग के दरीचे खोलने के लिए यह क़ुरआनी आयते ही काफी हैं। क्या जंगों में फरिश्तों को सिपाही बना कर भेजने वाला अल्लाह ऐसा नहीं कर सकता था कि दो चार फरिशेत मुहम्मद के साथ तबलीग में लगा देता, कि लोग खुद बखुद नमाज़ों के लिए सजदे में गिरे होते. लोगों का मुतालबा भी सही है कि मुहम्मद को कोई खज़ाना अल्लाह ने मुहय्या क्यूं न कर दिया कि जंगी लूट पाट के लिए लोगों को न फुसलाते?

''कहते हैं आपने क़ुरआन को खुद बना लिया है, आप कह दीजिए कि तुम भी इस जैसी दस सूरतें बना कर लाओ और जिन जिन गैर अल्लाह को बुला सको बुला लो, अगर तुम सच्चे हो.''
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (१३)वह लोग तो ऐसी बेहूदा सूरतों की अंबार लगा दिया करते थे मगर मुहम्मद बेशर्मी से अड़े रहते कि अल्लाह का मुकाबला हो ही नहीं सकता जैसे आज मुल्ला डटे रहते हैं कि बन्दा और अल्लाह का मुकाबला करे? लहौल्वलाकूवत. लग भग सारा कुरआन और इसकी तमाम सूरह ब मय जुमला आयतों के चन्द जुमले मिलना मुहाल है जिसमे बलूग़त होने के साथ साथमानी और मतलब के जायज़ पहलू हों.

''और ऐसे शख्स से बढ़ कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाल तअला पर झूट बंधे - - - ''
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (१८)
मुहम्मद का तकिया कलाम है कि उन लोगों को ज़ालिम कहना जो उनकी झूटी बात पर यक़ीन न करे। वह अत्याचारी है जो अल्लाह बने हुए मुहम्मद पर और उनके कलाम पर यक़ीन न करे, इस बात को इतना दोहराया गया है कि आज मुसलामानों का ईमान यही क़ुरआनी खुराफ़ात बन गई हैं. इन्तेहाई गंभीर और कौमी फ़िक्र का मुआमला है.
*आजकल मुहम्मद का नया तकिया कलाम, कलामे इलाही के लिए बना हुवा है ''अल्लाह को आजिज़ करना '' गोया अल्लाह कोई बेबस, बेचारी औरत, या बच्चा नहीं, या है भी कि जो आजिज़ और बेज़ार भी हो सकता है उम्मी का यह तकिया कलामी सिलसिला कुछ देर तक चलेगा फिर याद आएगा कि '' अल्लाह तो कुन फयाकून '' की ताक़त रखने वाला जादूगर है, कहा ''हो जा'' और हो गया. दुन्या को कहा ''हो जा!'' दुन्या हो गई. इतनी बड़ी हस्ती इन काफिरों की बातें कान लगाए आजिज़ न होने के लिए सुनती हैं? मुसलमानों यह अल्लाह के आड़ में मुहम्मद के कान हैं. क्या इतना भी तुम्हारी समझ में नहीं आता? सोचो कि दरोग़ की तुम उम्मत हो?
मुहम्मद ने वज्दानी कैफ़ियत में अपने मिशन को लेकर जो भी मुँह में आया है, बका है. तर्जुमा निगारों ने ब्रेकेट लगा लगा कर भर पूर मुहम्मदी अल्लाह की मदद की है. उसके बाद भी मंतिकियों ने तिकड़म लगा कर हाशिया पर तफ़सीर लिखी हैं. यह तमाम टीम जंगजू जेहादियों के लूट माले गनीमत के हिस्से दार हुआ करते थे. इस कुरआन, इस पुर मक्र तर्जुमा, और इस बकवास तफ़सीरों और दलीलों को सिरे से ख़ारिज कर देने की ज़रुरत है. इसी में मुसलमानों की नजात है. ज़रा देखिए क्या क्या बकवास है मुहम्मद की - - - ''और लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से बहेस कर चुके, फिर बहेस भी बहुत कर चुके, सो जिस चीज़ से तुम हमको धमकाया करते हो(क़यामत), वह हमारे सामने ले आओ,अगर सच्चे हो. उन्हों ने फ़रमाया अल्लाह तअल बशर्त अगर उसे मंज़ूर है, तुम्हारे सामने लावेगा और तुम उसको आजिज़ न कर सकोगे और मेरी खैर ख्वाही तुम्हारे काम नहीं आ सकती, गो मैं तुम्हारी खैर ख्वाही करना चाहूं, जब की अल्लाह को ही तुम्हारी गुमराही मंज़ूर हो - - - ''
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (19-34)हजरते नूह का ज़िक्र एक बार फिर आता है. नूह के बारे में मुहम्मद की जानकारी जो भी हो, जहाँ जहाँ नूह का ज़िक्र करते हैं वहाँ वहाँ वह गायबाना नूह बन जाते हैं. अपने मौजूदा हालात को नूह के हालात बना देते हैं. नूह की उम्मत को अपनी नाम निहाद और नाफरमान उम्मत जैसी उम्मत पेश करते हैं. नूह की उम्मत में काफिरों का बुरा अंजाम दिखला कर अपनी उम्मत को धमकाने लगते हैं. मुहम्मद झूटी कहानियां गढ़ गढ़ कर इसको अल्लाह की गवाही में सच ठहराते हैं. इसे पढ़ कर एक अदना दिमाग रखने वाला भी हँस देगा मगर बेज़मीर इस्लामी आलिमों ने इसमें मानी और मतलब भर भर के इसको मुक़द्दस बना दिया है. बड़ी चाल के साथ कुरआन को तिलावत के लिए वक्फ़ करदिया है. मुसलमानों की बद किस्मती है कि जब तक वह कुरआन को नहीं समझेगा, खुद को नहीं समझ पाएगा. मुसलामानों के सामने खुद तक पहुँचने के लिए कुरआन का बड़ा झूट हायल है.
नूह की तरह ही मुहम्मद सुने सुनाए नबियों आद, हूद, समूद, सालेह, युनुस, लूत, और शोएब वगैरह की कहानियाँ गढ़ गढ़ कर अपने हालात के फ्रेम में चस्पाँ करते हैं, जिसे सुन कर लोग इनका मज़ाक़ उड़ाने के सिवा करते भी क्या? उस वक़्त भी लोग समझदार थे बल्कि खुद साख्ता पैगम्बर ही बेवकूफ थे. इतने जाहिल भी न थे जितने बने हुए रसूल. अफ़सोस कि इन लग्व कहानियों से अटा और इन बे बुन्याद दलीलों से पटा पुलिंदा मुसलामानों के अल्लाह का फ़रमान बन गया है. इसे दिन में पाँच बार अक़ीदत के साथ वह अपनी नमाज़ों में दोहराता है. नतीजतन मुसलमानों की ज़िन्दगीहक़ीक़त से कोसों दूर जा चुकी है और झूट के करीब तर.
सूरह हूद-११- ११वाँ १२वाँ पारा आयत (३५-५६)

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. bahut hi baddhiya lekh hai..

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  2. Sir I don't understand that what is your point actually....only insulting Islam or Muhammad(saw) or Spread good massage....

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