Thursday 8 December 2011

सूरह हूद-११ (दूसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
सूरह हूद-११
(दूसरी किस्त)

मोमिन बनाम मुस्लिम


मुसलामानों खुद को बदलो. बिना खुद को बदले तुम्हारी दुन्या नहीं बदल सकती. तुमको मुस्लिम से मोमिन बनना है. तुम अच्छे मुस्लिम तो ज़रूर हो सकते हो मगर मोमिन क़तई नहीं, इस बारीकी को समझने के बाद तुम्हारी कायनात बदल सकती है. मुस्लिम इस्लाम कुबूल करने के बाद ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' यानि अल्लाह वाहिद के सिवा कोई अल्लाह नहीं और मुहम्मद उसके पयम्बर हैं. मोमिन फ़ितरी यानी कुदरती रद्दे अमल पर ईमान रखता है. ग़ैर फ़ितरी बातों पर वह यक़ीन नहीं रखता, मसलन इसका क्या सुबूत हैकि मुहम्मद को अल्लाह ने अपना पयम्बर बना कर भेजा. इस वाकेए को न किसी ने देखा न अल्लाह को पयम्बर बनाते हुए सुना. जो ऐसी बातों पर यक़ीन या अक़ीदत रखते हैं वह मुस्लिम हो सकते हैं मगर मोमिन कभी भी नहीं.
मुस्लमान खुद को साहिबे ईमान कह कर आम लोगों को धोका देता है कि लोग उसे लेन देन के बारे में ईमान दार समझें, उसका ईमान तो कुछ और ही होता है, वह होता है ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' इसी लिए वह हर बात पर इंशा अल्लाह कहता है. यह इंशा अल्लाह उसकी वादा खिलाफ़ी, बे ईमानी, धोखा धडी और हक़ तल्फ़ी में बहुत मदद गार साबित होता है.
इस्लाम जो ज़ुल्म, ज़्यादती, जंग, जूनून, जेहाद, बे ईमानी, बद फेअली, बद अक़ली और बेजा जेसरती के साथ सर सब्ज़ हुवा था, उसी का फल चखते हुए अपनी रुसवाई को देख रहा है. ऐसा भी वक्त आ सकता है कि इस्लाम इस ज़मीन पर शजर-ए-मम्नूअ बन जाय और आप के बच्चों को साबित करना पड़े कि वह मुसलमान नहीं हैं. इससे पहले तरके इस्लाम करके साहिबे ईमान बन जाओ. वह ईमान जो २+२=४ की तरह हो, जो फूल में खुशबू की तरह हो, जो इंसानी दर्द को छू सके, जो इस धरती को आने वाली नस्लों के लिए जन्नत बना सके. उस इस्लाम को खैरबाद करो जो ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' जैसे वह्म में तुमको जकड़े हुए है.

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दुन्या को गुमराह किए हुए सब से बड़ी किताब की तरफ चलते हैं और देखते हैं कि यह किस तरह दुन्या की २०% आबादी को पामाल और ख्वार किए हुए है और इस के खुद ग़रज़ आलिमानेदीन इसकी पर्दा पोशी कब तक करते रहेंगे - - -

''और हमारा कौल तो ये है कि हमारे माबूदों में से किसी ने आपको किसी ख़राबी में मुब्तिला कर दिया है, फ़रमाया मैं अलल एलान अल्लाह को गवाह करता हूँ और तुम को भी गवाह करता हूँ कि मैं इन चीजों से बेज़ार हूँ जिनको तुम अल्लाह का शरीक क़रार देते हो.''
सूरह हूद -११, १२-वाँ परा आयत (५४)
उनका कौल आज भी हक़ बजानिब है कि बुत अगर कुछ फ़ायदा नहीं पहुचाते तो कोई ज़रर भी नहीं, मगर अल्लाह तो बहुत ही खतरनाक साबित हुवा. गौर करें ईमान दारी से.
मुहम्मद हूद का किरदार बन कर बुत परस्तों के दरमियान इस्लाम का प्रचार कर रहे हैं. लोग पूछते हैं कि कोई ठोस दलील तो आपने पेश नहीं किया, यूँ ही आपके कहने पर अपने पूज्य को हम तर्क करने से रहे, अच्छा यही बतलाओ कि तुमको कोई इनसे नुकसान पहुँचा? किसी ने आप को ख़राबी में मुब्तिला कर दिया है? ज़रा गौर कीजिए इन माक़ूल सवालों का ग़ैर माक़ूल जवाब ''मैं अलल एलान अल्लाह को गवाह करता हूँ और तुम को भी गवाह करता हूँ कि मैं इन चीजों से बेज़ार हूँ जिनको तुम अल्लाह का शरीक क़रार देते हो.'' ज्वाला मुखी के मुँह से आग की दरिया और ग्लेशियर से बर्फ के तोदे बहाने वाली कुदरत इस किस्म की नामर्दों की बातें लेकर बैठी है। मुसलमानों आँखें खोलो. अपनी नस्लों को बचाओ मुहम्मदी फरेब से.

''सो तुम सब मिल कर मेरे साथ दाँव घात कर लो, फिर मुझको ज़रा मोहलत न दो, मैंने अपने अल्लाह पर तवक्कुल कर लिया है जो मेरा भी मालिक है और तुम्हारा भी मालिक है. जितने चलने वाले हैं सब कीचोटी इसने पकड़ रखी है. यकीनन मेरा रब सिरात-ए-मुस्तकीम है.''
सूरह हूद -११, १२-वाँ परा आयत (५५-५६)
ये बे वज़न बातें, ये पागल पन की दलीलें, ये बकवास, ये खुराफ़ाती झक क्या किसी अल्लाह का कलाम हो सकता है?

''और जब हमारा हुक्म पहुँचा (अज़ाब के लिए)तो हमने हूद को और जो इनके हमराह अहले ईमान थे उनको अपनी इनायत से बचा लिया और उनको एक सख्त अज़ाब से बचा लिया.''
सूरह हूद -११, १२-वाँ परा आयत (५८)
अहले इल्म कुरआन में जाहिल मुहम्मद के इन तमाम जुमलों पर गौर करें, बजाए इसके कि ब्रेकेट लगा लगा कर इसमें बेशर्मी के साथ मानी-ओ-मतलब पैदा करने के..

''खूब सुन लो आद ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया, खूब सुन लो, रहमत से दूरी हुई, आद को जो कि हूद की कौम थी.''
सूरह हूद -११, १२-वाँ परा आयत (६०)
मुहम्मद ने पच्चीस साल की उम्र तक मक्का वालों की बकरियाँ चराई है, हलीमा दाई के सुपुर्द होने के बाद उनके तमाम क़िस्से मामूली हैं हक़ीक़त यही है। इस दौरान इनसे इतना न हुआ कि पढना लिखना ही सीख लेते . बन गए अल्लाह के रसूल और गढ़ने लगे अल्लाह का कलाम. पूरा कुरान ऐसे ही कूड़े का अम्बार है. मैं तो आपको झलक भर दिखला रहा हूँ. एक एक नामों से क़िस्से कहानियाँ बार बार दोहराई गई हैं।

''और हमने समूद को पास उनके भाई सालेह को भेजा, उन्हों ने फ़रमाया, ए मेरी कौम तुम अल्लाह की इबादत करो। इसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं. इसने तुमको ज़मीन से पैदा किया और इसने तुम को इस में आबाद किया तो तुम अपने गुनाह इस से मुआफ़ कराओ, फिर इसकी तरफ़ मुतवज्जह रहो. बेशक मेरा रब क़रीब है क़ुबूल करने वाला.''
सूरह हूद -११, १२-वाँ परा आयत (६१)
गोया अल्लाह के इर्तेकाब जुर्म का हवाला है, ''ज़मीन से पैदा किया और इसने तुम को इस में आबाद किया तो तुम अपने गुनाह इस से मुआफ़ कराओ'' और इसके लिए उसी से मुआफी भी. कभी अल्लाह उछलते हुए पानी से इन्सान को पैदा करता है, कभी खून के लोथड़े से और अब ज़मीन से.
मुहम्मद ४०साल तक मिटटी पत्थर और मुख्तलिफ धात के बने बुतों के पुजारी रहने के बाद अचानक एक वाहिद माबूद, हवा के बुत की पूजा करने लगे और उसका प्रचार भी करने लगे, लोग कहने लगे अच्छे खासे हमीं जैसे थे, यह तुमको हो क्या गया है? इन्हीं सवालों और बहसों को सैकड़ों बार जिन जिन नाबियों का नाम सुन रखा था उनके साथ गढ़ गढ़ कर कुरआन तैयार किया - - -

''लोग कहने लगे कि ऐ सालेह तुम तो इस से क़ब्ल हम में होनहार थे, क्या तुम हम को इन चीज़ों से मना करते हो जिसकी इबादत तुम्हारे बुज़ुर्ग किया करते थे? और तुम जिस तरफ हमको बुला रहे हो हम वाक़ई बड़े शुब्हे में हैं. आपने फ़रमाया ऐ मेरी कौम! यह तो बताओ कि अगर मैं अपने रब की जानिब से दलील पर हूँ , उसने अपनी तरफ मुझ पर रहमत अता फरमाई है तो अगर मैं अल्लाह का कहना न मानूँ तो मुझे कौन बचाएगा. तुम तो सरासर मेरा नुकसान ही कर रहे हो.''
सूरह हूद -११, १२-वाँ परा आयत (६३)
ये है पुर दलील और हिकमत का कुरान।
आवारा ऊटनी की गाथा फिर मुहम्मद दोहराते हैं और पल झपकते ही समूद आकर ग़ायब हो जाते हैं
एक बार इब्राहीम अलैहिस्सलाम मय अपनी बीवी सारा के फिर पकडे जाते हैं- - -''और हमारे भेजे हुए इब्राहीम के पास बशारत लेकर आए, उन्हों ने सलाम किया, उन्हों ने भी सलाम किया, फिर देर न लगाई कि एक तला हुवा बछड़ा लाए. सो उन्हों ने देखा कि उनके हाथ इस तक नहीं बढ्हते तो उन से मुत्वहहिश हुए और उनसे दिल में खौफ ज़दा हुए. वह कहने लगे डरो मत हम कौम लूत की तरफ भेजे गए हैं और इनकी बीवी खड़ी थीं, पस हसीं, सो हमने बशारत देदी इनको इस्हाक़ की और इस्हाक़ से पीछे याकूब की. कहने लगीं कि हाय खाक पड़े अब मैं बच्चा जनूं बुढ़िया होकर और यह मेरे मियाँ हैं बिलकुल बूढ़े. वाकई अजीब बात है. कहा क्या तुम अल्लाह के कामों में तअज्जुब करती हो. इस खानदान के लोगो! तुम पर तो अल्लाह की रहमत और इसकी बरकतें हैं.बेशक वह तारीफ़ के लायक बड़ी शान वाला है.
सूरह हूद -११, १२-वाँ परा आयत (६८-७३)

मुसलामानों देखो कि यह एक चरवाहे का कलाम है जिसको बात करने की भी तमीज़ नहीं, कम अज़ कम आम आदमी की तरह क़िस्सा गोई ही कर पाता, बात को वाज़ेह कर पाता। मुतरज्जिम को इस उम्मी की काफी मदद करनी पड़ी फिर भी कहानी के बुनियाद को वह क्या करता. मुहम्मद के रक्खे गए बेसिर पैर की बुन्याद को कैसे खिस्काता? क्या अल्लाह के नाम पर ऐसी जग हँसाई करवाना इस सदी में आप को ज़ेबा देता है? क्या मुहम्मद उमर कैरान्वी की तरह बे गैरती के घूँट आपने भी पी रखी हैं? उसकी तो रोटी रोज़ी का मसअला है मगर आप ज़मीर फरोश तो नहीं हैं.
'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. मोमिन साहब लेख तो अच्छा है ,पर कुछ शब्द बहुत कटिन है, जैसे-,अहले इल्म ,मुतवज्जह आदि, अगर आप इनका अर्थ ब्रेकेट मे सरल हिदी मे लिख दे तो समझने मे आसानी होगी

    good article.......60%

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