Sunday 5 February 2012

सूरह नह्ल 16(तीसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह नह्ल 16
(तीसरी किस्त)
आजकल मुसलमानों में इस बात की खुमारी रहती है कि उनके इस्लाम को बड़ी तादाद में गैर मुस्लिम क़ुबूल कर रहे हैं, वह भी पढ़े लिखे प्रोफ़ेसर लेविल के लोग. है भी हैरत की बात कि गीता और वैद  जैसी कीमती किताबों को ठुकरा कर कुरान जैसी अहमकाना दलील रखने वाली किताब पर ईमान लाते हैं. यह लोग आखिर कुरआन में क्या पाते हैं? 
यह लोग इस्लामी चेहरा मोहरा और लबो-लहजा अपना कर उनकी तहरीक का एक हिस्सा बन जाते हैं. मज़े की बात यह है कि यह लोग इस्लामी तालीम खुद मुसलमानों से उनके साथ रह के लेते है, ऐसे लोग जब इस्लामी तहरीक, तक़रीर और तदबीर में शामिल हो जाते हैं तो मुसलमान फूले नहीं समाते. मुसलमानों को अपने ऊपर कभी भी भरोसा नहीं रहता, बल्कि अपने अल्लाह के भरोसे रहते हैं, या फिर इस किस्म के दूसरों पर ज्यादह भरोसा होता है, वह सुबूत में ऐसे गैर मुस्लिम का नाम पेश कर देते हैं कि उस दानिश वर ने इस्लाम कुबूल किया तो इस्लाम में ज़रूर कोई बात होगी. उसकी लिखी हुई किताब पढो और इस्लाम को समझो. 
उनके पास ऐसे दानिशवरों कि लिस्ट मौजूद होती है जिन्हों ने इस्लाम को अपनाया. 
मैं ऐसी किताबों का मुतालिया करता हूँ ? क्या इतना पढ़ा लिखा आदमी इस क़दर गिर सकता है कि मुहम्मद जो मुजरिमे-इंसानियत है, "को सल्लललाहो अलैहेवसल्लम" कहे? ख़याली इस्लामी अल्लाह, उसके कल्पित जन्नत और दोज़ख और रूस्वाए- ज़माना कुरान को महिमा मंडित करे? 
मैं ऐसे किसी शख्स को रू बरु देखना चाहता था.एक रोज़ मेरे एक रिश्ते दार ने ऐसे एक प्रोफ़ेसर को मेरे रूबरू कर दिया. उन से मिलकर और उनसे बात करके सारा राज़ खुला कि कट्टर और सज़िशी हिन्दू तंजीमो के इशारे पर यह लोग अपने जीवन की आहूतियाँ देते है और इस्लाम कुबूल करने का नाटक करते हैं. इनको हिदायत होती है कि मुसलामानों को जिहालत में मुब्तिला रक्खो ताकि यह हमारे मुकाबिले में किसी भी मैदाने-इल्म में न आ सकें. 
इनको हिदू तंजीमें अच्छी नौकरियां दिलाती हैं और खुद ऐसे लोगों के लिए खुफिया माली फायदे और तहफ्फुज़ देती हैं. 


''और वह लोग खुदा के नेमत को पहचानते हैं, फिर इसके मुनकिर होते हैं, और ज्यादह तर इनमें न सिपास हैं.''
सूरह नह्ल पर१४ आयत (८३) 
मुहम्मद क़ुदरत की नेमतों को तस्लीम कराते हैं, फिर कहते हैं कि इन्हीं के खालिक अल्लाह का कलाम हम तुम लोगों को सुनते हैं, उसी ने मुझे अपना रसूल बना कर तुम सब पर नाज़िल किया है, इस बात को लेकर लोग उखड जाते हैं तो मुहम्मद उन लोगों को एहसान फ़रामोश कहते हैं, अल्लाह की बख्शीश का. देखिए कि दूर की कौड़ी, दिमागी तिकड़म, अल्लाह बन जाने की दौड़ में बन्दा हक़ीर. 
मुहम्मदी अल्लाह क़यामती पंचायत क़ायम करता है जिसमें वह खुद और उसके नबी हाकिम और गवाह होते हैं, काफ़िर मुद्दई बन कर मुक़दमा दायर करता है, बेढब अल्लाह उन की सजा बढ़ा देता है, ऐसा बार बार मुहम्मद अपने क़ुरआनी बकवास में दोहराते हैं.
सूरह नह्ल पर१४ आयत (८४-९०)
 
''और तुम लोग उस औरत के मुशाबह मत बनो जिसने अपना सूत काते, पीछे बोटी बोटी करके नोच डाला। । . . और अल्लाह तअला को अगर मंज़ूर होता तो वह सब को एक तरह का ही बना देते लेकिन जिस को चाहते हैं बे राह कर देते हैं और जिसको चाहते हैं राह पर डाल देते हैं और तुम से तुम्हारे आमाल कीबाज़पुर्स ज़रूर होगी.''
सूरह नह्ल पर१४ आयत (९१-९३)
 
अल्लाह अपने बन्दों को उन पागल अपनी बंदियों की तरह बनने को मना करता है जिनको काते हुए सूत को बोटियों की तरह नोचने वाला बना रक्खा है. वह भी अल्लाह की बनाई हुई हैं मगर उन जैसा ना बनना, वह तो नमूना है कि कहीं उनकी तरह ना बन जाओ. हालांकि ''अल्लाह तअला को अगर मंज़ूर होता तो वह सब को एक तरह का ही बना देते'' मगर उनको दोज़ख और जन्नत का तमाशा जो देखना था, तभी तो ''जिसको चाहते हैं राह पर डाल देते हैं'' और ''जिस को चाहते हैं बे राह कर देते हैं'' अब भला बतलाइए कि इन्सान के बस में क्या राह गया है? सिवाए अल्लाह के मर्ज़ी के. या आलावा मुहम्मद के गुलामी के.
मुसलमानों कैसे तुमको समझया जाए कि तुम्हारा अल्लाह एक फ्राड है, तुम्हारा रसूल महा फ्राड। 
 
''तो जब आप कुरआन पढना चाहें तो शैतान मरदूद से अल्लाह की पनाह मांग लिया करें यकीनन इसका काबू उन लोगों पर नहीं चलता जो इमान रखते हैं और अपने रब पर भरोसा रखते हैं.
सूरह नह्ल पर१४ आयत (९८-९९)
यानी शैतान इंसानी दिमाग पर इतना ग़ालिब रहता है कि अल्लाह भी इस का क़ायल है. इसके गलबा से महफूज़ रहने के लिए अल्लाह की पनाह मांगी जाय. ज़ालिम है ही ऐसी चीज़, लाख दे पनाह अल्लाह, चंद लम्हों में अंगड़ाई लेती हुई महबूबा की शक्ल में शैतान आँखों के सामने आया कि अल्लाह फुर्र. बेकारों के लिए ज़रीआ मुआश खुदा है, कुरआन नहीं, साइंस दानों के लिए उक्दा कुशाई मंजिले मक़सूद है कुरआन नहीं, मुहम्मद की रची हुई कुरआन नक़ायस इंसानी क्या, बल्कि नक़ायस ए मखलूकात का दर्जा रखती है. 
 
''और जब हम किसी आयत को बजाए दूसरी आयत के बदलते हैं और हालांकि अल्लाह तअला जो हुक्म देता है, इसको वही खूब जनता है तो यह लोग कहते हैं कि आप इफतरा करने वाले हैं बल्कि इन्हीं में से कुछ लोग जाहिल हैं. आप फरमा दीजिए कि इसको रूहुल क़ुद्स, आप के रब की तरफ़ से हिकमत के मुवाफ़िक़ लाए हैं ताकि ईमान वालों को साबित क़दम रखें और मुसलमानों के लिए खुश खबरी हो जाए. और हम को मालूम है कि लोग कहते हैं इनको तो आदमी सिखला जाता है. जिस शख्स की तरफ़ यह निसबत करते हैं उसकी ज़ुबान तो अजमी है और यह कुरआनसाफ़ अरबी में है.''
सूरह नह्ल पर१४ आयत (१०१-१०३)
इंसानों पर बहुत ही गराँ वक़्त था क्या हिंदी क्या अरबी। मुहम्मद के गिर्द निहायत लाखैरे क़िस्म के लोग रहा करते थे, उस वक़्त पेट भर जाने का मसअला ही बहुत बड़ा था, उनमे अरबी अजमी, ईसाई ,यहूदी और काफिरों-मुशरिक सभी नज़र्यात की टोली मुहम्मद के समर्थकों में थी। ऐसे में वह लोग मुहम्मद की मदद करते क़ुरआनी आयतों में , कभी कोई ग़लत आयत मुहम्मद के मुँह से बहैसियत क़ुरआनी आयत निकल जाती और उसके जानकर शोर मचाते तो उसको वापस लेना पड़ता तब अवाम तअना देती कि क्या अल्लाह भी ग़लती करता है? तब मुहम्मद बड़ी बे शर्मी के साथ मुकाबिला करते.
 द्ल्लाम नाम के एक ईसाई की उस वक़्त बड़ी चर्चा थी कि वह मुहम्मद का क़ुरआनी रहबर है. यह आयत उसी के संदर्भ में है.
 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. वह दिन न जाने कब आएगा जब हम सही को सही और गलत को गलत कहना सीखेंगे न कि धर्म का चश्मा लगाकर यूंही देखते रहेंगे.

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