Sunday 12 February 2012

Bani Israil 17

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


मंद बुद्धि फौजी
अन्ना हज़ारे 

अन्ना हजारे एक सीधा सदा इन्सान है साथ साथ ज़रा सा बेवकूफों जैसा भी. उसका सिधापा उसकी बेवकूफियों में गड मड हो जाता है, जिसे वह खुद नहीं समझ पाता. उसकी यही खूबियाँ हैं जो अवाम को बहुत जल्द भा जाती हैं और दिल्ली में मुतास्सिर कर जाती हैं जो मुंबई पहुँचते पहुँचते फुस्स हो जाती हैं. जनता जनार्दन की भीड़ भेड़ चाल होती है जो कुछ संभालने पर होश में आती है. दिल्ली की दीवानगी मुबई में होश में आ गई थी.अन्ना ने मुबई में जमा कुछ सैकड़ों के मजमे को अपनी आँखों से देखा और बच्चे के हाथों से शरबत का गिलास लेकर पी लिया. अगर दिल्ली जैसा हुजूम होता तो बन्दा उसके दम पर झूम उठता. 
अन्ना की बे वाकूफियों में पहली बेवकूफी यह है की वह बार बार दोहराते हैं है कि सरकार ने उनके साथ धोखा धडी किया? 
वह सरकार के मुकाबिले में हैं क्या? 
खुद को सरकार का सामानांतर समझ बैठे ? वह सरकार की तुलना में खुद को सरकार ए सानी समझ बैठे या सरकार विरोधी अपोजीशन? 
अन्ना खुद अपने मुंह से कहते हैं कि मैं एलक्शन लड़ूं तो मेरी ज़मानत भी जाप्त हो जाय.
तो इतने कमज़ोर शहरी की औकात क्या है कि सरकार उसके साथ धोका धडी करे. उनका बार बार यह दोहराना किसी समझदार इन्सान को एक आँख भी नहीं भाता कि बकलम खुद एक मीनार बने हुए हैं. 
अन्ना बैलट पेपर पर प्रतिनिधियों के नामों के साथ साथ एक खाना और चाहते हैं
 " इनमे कोई नहीं" 
हैना इसमें अन्ना की छिपी हुई बे वकूफी, 
अरे जो वोट देने नहीं जाते वह इसी कालम में अपनी राय घर बैठे दे देते हैं. 
अगर बिल्फर्ज़ यह खाना बैलट पेपर पर बना भी दिया जय तो समाजी मन चले खास कर इस खाने के लिए वोट डालने चले जाएँगे, और हरबार यह "ज़ीरो" जीतता रहे और बाकी हारते रहें तो इस बेवकूफी का अंततः क्या होगा? एलक्शन   बारों मासी बन जाएँगे. 
चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाने का प्रवधान भी इसी बेवकूफी का दूसरा रूप होगा जिसका अंजाम भी मुसलसल चुनाव होत्ते रहना . 
अन्ना एक ईमानदार और भले मानुष है मगर वह मानव श्रेणी में बुद्धि जीवी तक नहीं और समझदार भी नहीं. वह अपने किसी कबीलाई देव की गढ़ी हुई मूर्ति को इतना श्रधा पूर्ण सिजदा करते है कि इन की धोती ऊपर होती है और टोपी नीचे चली जाती है . कहा जा सकता है कि यह उन की निजी श्रधा का मुआमला है मगर उसकी निजता से सार्व जानिकता भी जुडी हुई है. 
इसी तरह वह भारत माता की जय का नारा लगवाते हैं क्या अन्ना हजारे चीनी माता अथवा पाकिस्तानी माता के पुत्रों के साथ जंगी मुहाज पर डटे हुए हैं? 
भूल जाते हो कि तुम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हो यहाँ पर भारत माता की जय बे मौक़ा और बे महेल है. ठीक इसी तरह वन्दे मातरम का नारा भी बे वक़्त की शहनाई है. मानव मूल्यों की लड़ाई के लिए इन पाखंडों की कोई जगह नहीं. 
सामाजिक बुराई को देश भक्ति अथवा देश पूजा से खत्म नहीं किया जा सकता बल्कि ठोस धरातल पर आने की ज़रुरत है. 
अन्ना की निजता और सार्वजनिकता को इनके कर्म कांड और इनके स्लोगन, इनकी तहरीक को उलटी दिशा ले जाती है. ठीक इसी तरह जैसे टीम अन्ना ने एक दाढ़ी वाले को अपने साथ पकड़ रक्खा है. समाजी इन्कलाब के लिए दाढ़ी और छोटी की कोई जगह नहीं होती.
टीम अन्ना सारे के सारे हम्माम के नंगे हैं. यह एक पाक साफ हस्ती के साथ जुड़ कर उसे भी नापाक और अशुद्द कर रहे हैं. 
अन्ना अपनी जिद और अपने अभिमान को त्याग कर अगर मैदान में तन ए तनहा आएँ और लोगों से निवेदन करें कि वे रिश्वत न देने की शपत लें अगर जन साधारण हैं. और रिश्वत न लेने की शपत लें अगर जन असाधारण(सरकारी) हैं. उसके बाद उन लोगों को अन्ना टोपी पहनने का हक दें . 
जन साधारण को सफेद टोपी और जन असाधारण(सरकारी) को हरी टोपी. 
यह टोपियाँ वही लगाएँ जो अपने जीवन में पूर्ण रूप से शुद्ध आचरण रखते हों. 







जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. कमाल पाशा कमाल का आदमी था, उम्दा सोच थी उसकी.. और ईरान के शुरूआती शासक भी..

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