Sunday 27 May 2012

Soorah Ambia -21

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अंबिया -२१ 
 
यह रफुगर ओलिमा

लखनऊ के नवाबीन में ये प्रथा हुआ करती थी कि अपने साथ कुछ मुसाहिब (चमचे) रखते जो उनकी बातों को संशोधित और सुधार का काम किया करते. नवाब साहब महफ़िलों में लाफ्फ़ाज़ी करते और वह उनकी बात को रफू करते हुए हाँ में हाँ मिला कर कहते 'यानी नवाब साहब के कहने का मतलब हुआ - - -यह
महफ़िल जमी थी और नवाब साहब अपने शिकार के कारनामें बयान कर रहे थे. फरमाने लगे
'' और मैं ने निशाना लगा कर नीलगाय पर बंदूक दागी, गोली उसके खुर को लगी और उसका जिस्म चीरते हुए आँखों से निकल गई .
लोगों ने कहा ,नवाब साहब ये कैसे हो सकता है कि गोली सीधी जाय और जानवर के जिस्म में जाकर टेढ़ी-मेढ़ी चाल अख्तिअर करे?
मुसाहिब ने फ़ौरन नवाब साहब की बात को रफु किया 'दर अस्ल नीलगाय अपने खुर से अपनी आँख खुजला रही थी, गोली दोनों हिस्सों को ज़ख़्मी करती हुई निकल गई. क़िबला नवाब साहब को मुगालता हुआ कि - - -
महफ़िल ने कहा हाँ यह तो हो सकता है - - -
फिर नवाब साहब शुरू हुए ''कि उड़ते कव्वे को मेरी गोली ने ऐसे भूना कि कबाब बन कर ज़मीन पर गिरा - - -
महफ़िल ने फिर मगर अगर का निशाना साधा तो मुसाहिब ने मोर्चा संभालते हुए कहा,
''दर अस्ल कव्वा अपने चोंच में कबाब लिए हुए उड़ रहा था गोली की आवाज़ से कबाब उसकी चोंच से गिरा था, नवाब साहब को मुगालता हुआ कि कव्वा ही कबाब बन गया.'
ऐसी ही गप नवाब साहब छोड़ते रहे और मुसाहिब रफू करता रहा
नवाब साहब फरमाने लगे '' हम शिकार करते हुए पहाड़ की चोटियों पर पहुँचे तो बारिश शुरू हो गई, गोया क़यामत की बारिश थी, इतनी बरसी इतनी बरसी कि पूरा इलाका पानी से लबालब, शुक्र था कि मैं ऊंची पहाड़ी पर था - - -
फिर महफ़िल ने चूँ-चरा की तो नवाब साहब ने रफु गर की तरफ आँख फेरी, वह तो अपनी नशिस्त छोड़ कर दरवाजे पर खड़ा था, वह वहीं से बोला नवाब साहब! मैं रफु करने की मुलाज़मत करता हूँ, पेवन्द लगाने का नहीं.
कुरान की बातें नवाब साहब की, की हुई बक बक जैसी है और आलिमान दीन उसकी रफु गरी करते हैं, रफू ही नहीं, पेवंद कारी  भी करते हैं. इस्लामी दुन्या में जो आलिम बड़ा रफु गर है वही जय्यद आलिम है. फिर भी अल्लाह की बातों को कहीं कहीं कोई आलिम नहीं समझ सका और पेवंद कारी  की नौकरी से बअज आया, यह कहते हुए कि इसका मतलब अल्लाह बेहतर जनता है.



चलिए मुहम्मदी अल्लाह के खेत में चलें जहाँ एक बड़ी उम्मत चरती है. 
(दूसरी किस्त)

''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने लगे.और हमने इसमें कुशादा रस्ते बनाए ताकि वह लोग मंजिल तक पहुँच सकें और हम ने आसमान को एक छत बनाया जो महफूज़ है. और ये लोग इस से एराज़ किए (मुंह फेरे) हुए हैं. और वह ऐसा है जिसने रात और दिन बनाए, सूरज और चाँद. हर एक, एक दायरा में तैरते है. और हमने आप से पहले भी किसी बशर को हमेशा रहना तजवीज़ नहीं किया. फिर आप का इंतक़ाल हो जाए तो क्या लोग हमेश हमेशा दुन्या में रहेंगे. हर जानदार मौत का मज़ा चक्खेगा और हम तुमको बुरी भली से अच्छी तरह आज़माते हैं. और तुम सब हमारे पास चले आओगे और यह काफ़िर लोग जब आपको देखते हैं तो बस आप से हँसी करने लगते हैं. क्या यही हैं जो तुम्हारे मअबूदों का ज़िक्र किया करते हैं? और यह लोग रहमान के ज़िक्र पर इंकार करते हैं. इंसान जल्दी का ही बना हुवा है. हम अनक़रीब आप को अपनी निशानियाँ दिखाए देते हैं ,पस ! तुम हम से जल्दी मत मचाओ. और ये लोग कहते हैं वादा किस वक़्त आएगा? अगर तुम सच्चे हो, काश इन काफ़िरों को उस वक़्त की खबर होती. जब ये लोग आग को न अपने सामने से रोक सकेंगे न अपने पीछे से रोक सकेंगे. और न उनकी कोई हिमायत करेगा. बल्कि वह उनको एकदम से आलेगी. - - -''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (३१-४०)
देखिए ऊपर शुरू आयत में ही तर्जुमा करने वाले आलिम ने कैसे मुहम्मद की बक बक में पेवन्द लगाया है - - -
मुहम्मद कह रहे है ''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने लगे.''
तर्जुमा करने वाले आलिम ने इसको ब्रेकट में (न) लगा कर मतलब को उल्टा कर दिया है --
''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने (न)लगे.''
अब ऐसी जगह पर ओलिमा आपस में एक दूसरे का विरोध कर करते रहते हैं कि अल्लाह ने पहाड़ इस लिए रखे कि ज़लज़ला की सूरत पैदा होती है और यह भी कि वजन रखने से ज़मीन सधी रहे मगर अस्ल मतलब को ज़ाहिर करने की हिम्मत किसी में नहीं कि ये अल्लाह बने मुहम्मद की ला इल्मी है, क्यूंकि वह उम्मी थे.
इंसान जल्दी का ही बना हुवा है.? क्यूँ क्या जल्दी थी अल्ला मियां को, वह अगर उनका बनाया हुवा है तो फिर उसको मुसलमान बनाने का पापड़ क्यूं वह और उनके रसूल बेल रहे हैं.
ज़मीन पर रस्ते इंसान बनाते हैं, अल्लाह नहीं. इस बात में भी मुहम्मद की उम्मियत हायल है.
मुसलामानों ! आसमान कोई छत नहीं आपकी हद्दे नज़र है. ये लामतनाही है, जिसको जनाब ने सात तबक में सात  मंजिला ईमारत तसव्वुर किया है.
आप पर हंसने वाले काफ़िर थे, न ज़ालिम, वह ज़हीन लोग थे कि ऐसी बातों पर हँस दिया करते थे कि आज जो तिलावत बनी हुई हैं.
मुहम्मद तबीयातन तालिबानी थे, जो दुन्या की आबादी को ख़त्म कर देना चाहते थे, इशारतन वह बतला रहे हैं कि वह अल्लाह से जल्दी बाज़ी कर रहे हैं कि क़यामत क्यूँ नहीं आती.
मुहम्मद का एक यह भी तकिया कलाम रहा है कि किसी आमद को हर बार सामने से बुलाते हैं, फिर पीछे से भी आने का कयास करते हैं.

''आप कह दीजिए कि मैं तो सिर्फ वह्यी (ईश वाणी) के ज़रीए तुम को डराता हूँ और बहरे जिस वक़्त डराए जाते हैं पुकार सुनते ही नहीं और उनको आप के रब के अज़ाब का एक झोंका भी लग जाए तो कहने लगें कि हाय मेरी कमबख्ती हम तो खतावार थे. और क़यामत के रोज़ हम मीज़ने-अज़ल क़ायम करेंगे सो किसी पर असला ज़ुल्म न होगा और अगर राइ के दाने के बराबर होगा तो हम इसको हाज़िर कर देंगे.और हम हिसाब लेने वाले काफी हैं.- - - (इब्राहीम की अपने बाप से तू तू मैं मैं, जैसे पहले आ चुका है, इब्राहीम अपने बाप से कहता है) - - -और खुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे. और उन्हों ने इन के टुकड़े टुकड़े कर दिए बजुज़ एक बड़े बुत के (लोगों के गुस्से को देखते ही इब्राहीम झूट बोलते हैं कि ये हरकत इस बड़े बुत की है इससे पूछ लो, - - - झूट काम नहीं आता ,पंचायत इनको आग में झोंक देती है जो अल्लाह की मुदाखलत से ठंडी हो जाती है) ''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (४५-७०)
अल्लाह के कलाम में ? पैगम्बर मुहम्मद की विपदा बयान होती है, दीवाना अल्लाह उनके मुँह से बोलता है कि वह ईशवानी द्वारा लोगों को डराता है मगर वह बहरे काफ़िर बन्दे उसकी सुनते ही नहीं, धमकता है कि अगर एक झोंका भी मेरे अज़ाब का उन पर पड़ जाय तो उनको नानी याद आ जाय. अल्लाह कहता है क़यामत के दिन वह तमाम लोगों के कर्मों का लेखा-जोखा पेश करेगे. एक तरफ कहता है कि किसी पर रत्ती भर अत्याचार न होगा, दूसरी तरफ धमकता है, ''तो हम इसको हाज़िर कर देंगे.और हम हिसाब लेने वाले काफी हैं.- - -''
मूर्ती तोड़क मुहम्मद का अल्लाह भी उन्हीं की ज़बान में खुद अपनी क़सम खाकर कहता है , ''और खुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे'' क्या डरपोक अल्लाह है कि इब्राहीम के बाप आज़र के सामने उसकी हिम्मत नहीं कि बुतों को हाथ भी लगाए, मुन्तजिर है कि यह हटें तो मैं बुतों की दुर्गत कर दूं. मुहम्मद बड़े बुत को बचा कर उससे गवाही की दिल चस्प कहानी गढ़ते हैं जो इस्लामी बच्चे अपने बच्चों के कानों में पौराणिक कथा की तरह घोल देते हैं..
मुसलामानों!
 क्या तुम इन्हीं बेवज्न कलाम को अपनी नमाज़ों में दोहराते हो? ये बड़े शर्म की बात है.
 जागो! खुदा के लिए जागो!!
''और दाऊद और सुलेमान जब दोनों किसी खेत के बारे में फैसला करने लगे जब कि कुछ लोगों की बकरियाँ रात के वक़्त उसको चर गईं और हम उस फैसले को जो लोगों के मुतअल्लिक हुवा था, हम देख रहे थे सो हमने उसकी समझ सुलेमान को देदी और हमने दोनों को हिकमत और इल्म अता फ़रमाया और हम ने दाऊद के साथ तबेअ कर दिया था पहाड़ों को कि वह तस्बीह किया करते थे और परिंदों को हुक्म करने वाले हम थे. और इनको ज़ेरह (कन्वच) की सनअत तुम लोगों के वास्ते सिखलाई ताकि वह लड़ाई में तुम लोगों को एक दूसरे की ज़द से बचाए तो तुम शुक्र करोगे भी? और हम ने सुलेमान अलैहिस सलाम का जोर की हवा को ताबे बना दिया था''.
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (71-81)
क्या पुर मजाक बात है कि दाऊद जिसने चोरी और डाके में अपनी जवानी गुजारी वह अल्लाह की हिकमत से इस मुक़ाम तक पहुंचा कि पहाड़ उसके साथ बैठ कर माला फेरने लगे. पहाड़ कैसे बैठते, उठते और तस्बीह भानते होगे बात भी गौर तलब है जिसे मुहम्मदी अल्लाह ही जाने जो अपने पुश्त से घोडा खोल सकता है. मुहम्मदी अल्लाह ऐसा है कि पंछियों को हुक्म देता है कि इन के मातहेत रहें. यहाँ तक कि हवाओं तक पर भी इन बाप बेटों की हुक्मरानी हुवा करती थी. सवाल उठता है कि जब उन हस्तियों को अल्लाह ने इतनी पवार ऑफ़ अटर्नी देदी थी तो मुसलामानों के आखरुज़ज़मा को क्यों फटीचर बना रक्खा है?
मेरे नादाँ भाइयो !
 कुछ समझ में आता है कि कुरानी इबारतें क्या मुक़ाम रखती हैं इस तरक्की याफ्ता समाज में. क्यूँ अपनी भद्द कराने की ज़िद पर अड़े हुए हो. हिदुस्तान में हिदुत्व का देव है, जो तुम को बचाए हुए है, अगर ये न होता तो तुम खेतों में चरने के लिए भेड़ बकरियों की तरह छोड़ दिए जाते और तुम्हारा अल्लाह आसमान पर बैठा टुकुर टुकुर देखता रहता, किसी मुहम्मद की गवाही देने के लिए. कुरान पूरी की पूरी बकवास है जब तक इसके खिलाफ़ खुद मुसलमान आवाज़ बुलंद नहीं करते तब तक हिंदुत्व का भूत भी ज़िदा रहेगा. जिस दिन मुसलमान जग कर मैदान में आ जाएँगे, हिदुत्व का जूनून खुद बखुद काफुर हो जायगा फिर भारत में बनेगा एक नया समाज जिसका धर्म और मज़हब होगा ईमान.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. अल्लाह ओर कुछ नही केवल मुहमन्द के दीमाग की उपज है, क्योकि ऎसी मजाकिया आयते देने वाला ;अल्लाह; इस दुनिया को बनाने वाला नही हो सकता,

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  2. ye kabhi nahi samajhenge, lakeer ke fakeer hain..

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