Monday 21 May 2012

सूरह अंबिया -२१ परा १७ 1st (1-30)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

  सूरह अंबिया -२१ परा १७
1st (1=30) 
चलिए देखें उस डरावने बगड़बिल्ला को जो मुसलमानों को डरा डरा कर अल्लाह बना हुवा है- - -
कुछ मुसलमानों का मानना है कि इंसान के दिल में अगर खौफे-खुदा न रहे तो वह हैवान हो जायगा और माँ बहन बेटियों की तमाज़त खो देगा। आधी दुन्या जो नॉन बिलिवेर्स हैतो क्या वह सब ऐसी ही हैहाँ मुहम्मद तबअ रखने वाले लोग ऐसे ज़रुर हो सकते हैं जिनके लिए गढ़ित अल्लाह सब रिश्तों की छूट देता हैया उन्हें अल्लाह मानने वाले लोग।
मुहम्मद ने इंसान की जिस सब से बड़ी कमजोरी पर अपनी गिरफ़्त मज़बूत की हैवह है अल्लाह का डरवह कुरआन में बार बार कहते हैं कि वह अल्लाह की तरफ से तुम को डरा रहे हैं और मुसलमान उनके झूट पर रोज़े हश्र और दोज़ख का यक़ीन कर लेता हैउसको कैसे समझाया जाए कि दोज़ख और जन्नत सब उसके दिलो-दिमाग में हैं और कायनात में कहीं नहीं हैंउसके बुरे और अच्छे फ़ेल ही उसको दोज़खी और जन्नती बनाए रहते हैंकिसी फ़ेल या अमल से पहले खूब सोच समझ लेना चाहिए कि इसका रद्दे अमल दूसरों के लिए नुक्सान दह या फायदे मंदबस वह हर अमल आपका रहनुमाई करता है कि आप इस वक़्त दोज़ख में जाने वाले है या जन्नत मेंयह ख़याल दिमाग से निकाल दीजिए कि ज़माना क्या कहेगाज़माना तो ज़माना हैउसके कहने पर मत जाइएजो समाज में कमजोरियां हैं उनका डट कर विरोध करिएएक दिन आएगा कि लोग आपके साथ होंगे और आप खुद को जन्नती महसूस करेंगे।
चलिए डरपोक बने समाज को जगाया जाए कि अल्लाह किसी बनिए का मुनीम नहीं होता जो अपनी मख्लूक़ के फ़ेलों का बही खता रक्खेइस कायनात में वह हर शय में विराजमान है और हर शय उसके बनाए नियमानुसार चलती हैकि सदाक़त जन्नत के दरवाजे पर बैठी आप का इंतज़ार कर रही है और दारोग और झूट दोज़ख के दर पे - - - 
''इन लोगों से इनका हिसाब नजदीक आ पहुँचा और ये गफ़लत में एराज़ (विमुखताकिए हुए हैंइनके पास इनके रब से जो नसीहत ताज़ा आती हैये इसको ऐसे सुनते हैं कि उनके साथ हँसी करते हैंउनके दिल मुतवज्जो नहीं होते और ये लोग यानी ज़ालिम लोग चुपके चुपके सरगोशी करते हैं कि ये तुम जैसे एक आदमी हैंतो क्या तुम भी जादू के पास जाओगेहालाँकि तुम जानते हो कि पैगम्बर ने फ़रमाया कि मेरा रब आसमान में या ज़मीन में सब जानता हैऔर वह खूब सुनने वाला और जानने वाला हैबल्कि कहा कि परेशान खयालात हैं। बल्कि इन्हों ने इसको तराश लिया हैबल्कि यह तो एक शायर हैंतो इसको चाहिए कि हमारे पास कोई ऐसी निशानी लावें जैसे पहले लोग रसूल बनाए गएइनसे पहले कोई बस्ती वाले जिनको हमने हलाक़ किया हैईमान नहीं लाए तो क्या यह लोग ईमान ले आवेंगे और इस से पहले सिर्फ आदमियों को ही पैगम्बर बनाया जिनके पास हम वह्यी को भेजा करते थेसो अगर तुमको मालूम न हो तो अहले किताब से दरियाफ़्त कर लोऔर हमने इन के ऐसे जुस्से (शरीरनहीं बनाए थे जो खाना न खाते हों और वह हमेशा रहने वाले नहीं हुएफिर हमने उन से जो वअदा किया था उसको सच्चा कियायानी उनको और जिन जिन को मंज़ूर हुआहमने नजात दीऔर हद से गुजरने वाले को हलाक कियाहम तुम्हारे पास ऐसी किताब भेज चुके हैं कि जिसमें नसीहत हैक्या फिर भी तुम नहीं समझते''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ आयत (-१०)
वह कथित काफ़िर और जाहिल आज के तालीम याफ़्ता लोगों से कुजा बेहतर थे जो कुरआन को उस दीवाने पैगम्बर का ख्याल--परेशान कहते थेकैसी माकूल बात हैजो आज भी लागू होती हैमुहम्मद अपनी बातों को तारीफ़ के सन्दर्भ में जादू जैसी पुर कशिश बतलाते हैंनहीं जानते कि जादू झूट होता हैमुहम्मदी अल्लाह की तमाम वाणी मज़ाक के स्तर पर भी नहीं बल्कि मज्मूम (निन्दितहैंइन बातों को कैसे किसी अल्लाह का कलाम माना जा सकता हैमुसलामानों को इनसे पीछा छुड़ाने में शर्म कैसीये समझदारी और फ़ख्र का क़दम होगा.

''बहुत सी हस्तियाँ जहाँ के रहने वाले ज़ालिम थेगारत कर दीं और उसके बाद दूसरी कौम पैदा कर दींसो जब उन्हों ने हमारा अज़ाब आता देखाइस से भागना शुरू कियाभागो मत और अपने सामान ऐश की तरफ और अपने मकानों की तरफ वापस चलोशायद तुम से कोई पूछे पाछे,. वह लोग कहने लगे हायहमारी कम्बख्तीबेशक हम लोग ज़ालिम थेसो उनकी यही पुकार रहीहत्ता कि हमने उनको ऐसा कर दिया जिस तरह खेती कट गई होऔर आग ठंडी हो गईऔर हमने आसमान और ज़मीन को इस तरह नहीं बनाया कि हम कोई फालतू काम कर रहे होंअगर हमको मशगला ही बनाना मंज़ूर होता तो हम खास अपने पास की चीजों को मशगला बनातेअगर हम को ये करना होताबल्कि हम हक बात को बातिल पर फ़ेंक मारते हैं,. सो वह इस का भेजा निकाल देता है.सो वह दफअतन जाता रहता हैऔर तुम्हारे लिए ये बड़ी खराबी होगी जो तुम गढ़े हो और जितने कुछ आसमानों और ज़मीन में हैसब इसी के हैं और जो उसके नज़दीक हैंवह उस से आर नहीं करते.और न झुकते हैंबल्कि शबो रोज़ तस्बीह करते हैं,  मौकूफ नहीं करते हैं''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (११-२०)
यह मुहम्मदी अल्लाह मुहम्मद के कठमुल्ला जैसे दिमाग की पैदावार हैपच्चीस साल की उम्र तक मक्कियों की भेड़ बकरियां चराने के दरमियान वह भेड़ बकरियों को साधते और सोचते रहे कि इनकी तरह ही आदमी भी इस धरती पर मौजूद हैं क्यूँ न उनको चराया जाएऔर बेवकूफ भेड़ बकरियों जैसा दिमाग रखने वाले दुन्या में उनको भरे पड़े मिलेमाँ की उम्र वाली खदीजा ने इनको टुकड़े डाले और यह उसके पालतू बन गएफिर क्या था गारे-हरा में बैठ कर पंद्रह सालों तक मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ते रहे और मंसूबा बंदी करते रहेचालीस सालों में एक जाहिल जट ने पैगम्बरी का एलान कर दियाईसा और मूसा के बराबर होने का मौक़ा मुनासिब था और अपनी उम्मियत को उरूज पर रखते हुए तजुर्बा किया किए और बन बैठे भेड़ बकरियों नुमा उम्मत के पैगम्बरआखुज्ज़मा - . कई हदीसें गवाही देती है कि मुहम्मद तबीयतन ज़ालिम थेइज्ज़त दार खातून का हाथ काट डाला मअमूली सी चोरी के इलज़ाम मेंअपने सामने दो वफ़ादार और बाकिरदार जोड़े को संगसार करते हुए जिंदा दफन करायाऐसी एक नहीं सैकड़ों मिसालें हैंअपने ही तरह ज़ालिम अल्लाह को मुहम्मद ने क़ायम किया।
साजगारे-कायनात कहता है कि उसे मशगला मंज़ूर होता तो अपने आस-पास ही करतादेखिए कि अल्लाह भागते हुए लोगों को ललकारता हैभागो मतमेरे ज़ुल्म से भाग न सकोगेवह अपने बन्दों को जला कर ही अपने ज़ुल्म की आग को ठंडी बतलाता हैउनकी बसी बसी दुन्या को वीरान करके कटे हुए खेत कि तरह कर देता हैहद तो ये है  कि वह कसाइयों की तरह बन्दों के भेजे भी खोल देता हैकहता है शबो रोज़ तस्बीह किया करोसोचो कि अगर शबो रोज़ तस्बीह करोगे तो मेहनत और मशक्क़त करके अपने बच्चों का पेट कैसे भरोगे?
मुसलमानोंक्या तुम फिर भी ऐसे अल्लाह को पसंद करोगे जिसे फ़ासिक़ मुहम्मद ने गढ़ा हो?
''क्या बावजूद दलायल के उन लोगों ने खुदा के सिवा किसी और को माबूद बना रक्खे हैं - - - और हमने आपसे पहले कोई ऐसा पैगम्बर नहीं भेजा जिसके पास हमने ये वह्यी न भेजी हो कि मेरे सिवा कोई माबूद नहींपस मेरी इबादत किया करो. - - - वह जानते हैं कि अल्लाह तअला उनके अगले और पिछले अहवाल को जनता है और बजुज़ उसके जिसके लिए अल्लाह तअला की मर्ज़ी हो और किसी की सिफ़ारिश नहीं कर सकतेऔर सब अल्लाह तअला की मौजूदगी से डरते। इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और जमीन बंद थेफिर हमने अपनी कुदरत से दोनों को खोल दिया और हमने पानी से हर जानदार चीज़ को बनायाक्या फिर भी ईमान नहीं लाते ''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (२१-३०)
उस अल्लाह पर लअनत है जो अपने मुँह से कहता हो कि मैं ही इबादत के लायक हूँ,तुम मेरी इबादत ही किया करोवह टुच्चा और खुद नुमाई करने वाला अल्लाह तुम्हारा मालिके-कायनात हैतो यह तुम्हारे लिए शर्म की बात होनी चाहिएजहिले-मुतलक की दलील पर गौर हो कि ''क्या इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और जमीन बंद थेफिर हमने अपनी कुदरत से दोनों को खोल दिया'' जैसे कि मुस्लिमों को इसका इल्म रहा हो। मुसलमान इस खुलासे को पाकर फूले नहीं समातेउनसे बेहतर काफ़िर हैं जो इनका मज़ाक उड़ाते हैं।
मुसलामानोंसिर्फ ये मुल्ला और मोलवी ही नहीं दूसरे फ़िरके के दुष्ट प्रकृति के लोग भी नहीं चाहते कि तुम बेदार हो सकोतुमको मुसलमान बना कर रखने में ही उनका हित निहित हैतुम अगर जग गए तो उन्हें अच्छे और मेहनती मज़दूर मिस्त्री कहाँ मिलेंगेअच्छे दस्त कर मुसलमानों में ही ज़्यादा पाए जाते हैंक्या कभी सोचा है कि ऐसा क्यूंइस लिए कि जिन बच्चों में पढ़ लिख कर इंजीनियरडाक्टरकेमिस्ट और साइंटिस्ट बनने कि सलाहियत होती है मगर वह उसकी तालीम से महरूम रहते हैतो हुनर में अपनी सलाहियत का मज़हिरा करते हैंमुल्ला बार बार दोहराते हैं कि कुरआन कहता है''  इल्म हासिल करना है तो चीन तक जाना पड़े तो जाओ'', तो चीन में क्या इस्लामी अल्लाह के मुताबिक तालीम तब थीया अब है। तुम बेदार हुए तो उनकी सनअतों का क्या होगा जो तुम्हारे लिए वज़ू बनाने और इस्तेंजा पाक (लिंग-शोधनकरने का टोटी दार लोटा बनाते हैंतहमदेंटोपियाँपोशाकें और खिज़ाब वगैरा बनाते हैंबड़ी दूकानों और सलाटर हाउसों के लिए कर्मीं कहाँ होंगेहत्ता कि तुम्हारे कुरआन की इशाअत और तबाअत भी उन्हीं के हाथ है.
नवल किशोर प्रेस का नाम सुना हैतुम्हारी सभी दीनी किताबों की बरकतें पचास साल तक उन्हीं के हक में गई हैगैर मुसलामानों की कंज्यूमर सेंटर तुम्हारी इस दीनी जेहालत पर ही क़ायम हैवह तो तुमको क़ायम रखना ही चाहेंगे
कुरआन बार बार तुम्हारी बदहाली और काफिरों की खुशहाली की वकालत करता है क्यूंकि तुम्हारी पूँजी तो ऊपर जमा हो रही है.
 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. आपका यह आर्टिकल कोई डाक्टर मायक या हकीम अनवार नहीं पढेंगे, क्योंकि पढ़ लेंगे तो दुकानदारी कैसे चलेगी - मुशीर

    ReplyDelete
  2. good article....!

    ReplyDelete