Sunday 7 October 2012

सूरह नमल २७ (दूसरी क़िस्त)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह नमल २७
(दूसरी क़िस्त)

कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवानों को

पिछली पोस्टों में मैं निवेदन कर चुका हूँ कि टीका कार गाली गलौच और अभद्र भाषा  मेरे ब्लाग में न लाएं. ये  बातें जो पसंद करते हैं उनके ब्लॉग में जाएँ. कडुई और कठोर बातों से कोई फायदा नहीं होता, सिवाए  नुकसान के. कृप्या मेरा साथ दें और मेरे ही लबो-लहजे में तर्क संगत बातों से मुसलमानों को कौमी धारे में लाने का प्रयास करें. भारत के मुस्लमान कहे जाने वाले मानव प्राणी, मज़हबी चक्रांध के शिकंजे में फंसे हुए हैं जिनको मैं जगाना चाहता हूँ , क्यूंकि मैं उससे निकल चुका  हूँ . मुसलमान सिर्फ एक 'पूज्य'अल्लाह को मानता है, हिदू समाज अनेक पूज्य रखता है. आप मेरे उदगारों से प्रभावित है तो बेहतर है कि आप उस  के लिए काम करें
एक सज्जन मुसलामानों के लिए निर्धारित शब्द कटुवा और कटुए की शब्दावली से मुसलामानों को संबोधित किया है, कट्टर हिन्दू पीठ पीछे मुसलामानों को इसी अंदाज़ से इंगित करते हैं, इनको खतने (लिंग की अग्र भाग की गैर ज़रूरी चमड़ी का काटना). का लाभ  नहीं मालूम कि ये क्रिया बहुत ही स्वाभाविक है, जैसे बच्चे कि नाड़ी काटना ज़रूरी होता है. खतने से कई लैंगिक बीमारियों का समाधान होता है जैसे  टीके से चेचक का और पोलिओ की दो बूँद से इन बीमारियों का निदान है. खतना बद्ध लिंग सदा साफ़ और दुर्गन्ध रहित होता है. इसका बड़ा लाभ ये है कि यौन-संबध में दोनों को संतुष्टि होती है.
इंसानी सभ्यता के प्रारंभ में ही मानव समाज ने इसके लाभ को स्वीकरा. चार हज़ार साल पहले बाबा इब्राहीम के खतने का ज़िक्र इतिहास में मिलता है जोकि निरा मानव थे. बाद में यहूदियों ने इसे अपने समाज के लिए अनिवार्य कर दिया और उन्हीं की पैरवी मुसलमान करते हैं जोकि विशुद्ध निदान संगत है. मैं भी कटुवा हूँ और अपने माँ-बाप का आभारी हूँ. बात मुखालिफत की है. "मुखालिफत बराय मुखालिफत" नहीं होना चाहिए कि मुसलमान अगर टोपी लगता है तो हमें टोपी नहीं लगनी चाहिए, भले ही पगड़ी और साफे की झंझट अपनाएँ. 

और अब आइए क़ुरआनी खुराफ़ात पर - - -

बिकीस के दूतों का अपमान करते हुए सुलेमान उन्हें वापस कर देता है - - - उसके बाद कहानी का सिलसिला मुलाहिजा हो  -  - -
बादशाह सुलेमान से मुहम्मद अपनी काबिलयत उगलवाते हैं - - -

"सो हम उन पर ऐसी फौजें भेजते हैं कि उन लोगों से उन का ज़रा मुकाबिला न हो सकेगा और हम वहाँ से उनको ज़लील करके निकाल देगे और वह मातहत हो जाएँगे. सुलेमान ने फ़रमाया ऐ अहले दरबार तुम में से कोई ऐसा है कि उस बिलकीस का तख़्त, क़ब्ल  इसके कि वह लोग मेरे पास आएँ, मती (आधीन) होकर आएँ, हाज़िर कर दे ?
 एक क़वी हैकल जिन्न ने जवाब में अर्ज़ किया, मैं इसको आप की खिदमत में हाज़िर कर दूंगा, क़ब्ल इसके कि आप इस इजलास से उठ्ठें. और मैं इसको लाने की ताक़त रखता हूँ. और अमानत दार भी हूँ. 
जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ.
पस जब सुलेमान अलैहिस्सलाम ने इसको अपने रूबरू देखा तो कहा ये भी मेरे परवर दिगार का एक फज़ल है. ताकि वह मेरी आज़माइश करे, मैं शुक्र करता हूँ. और जो शुक्र करता है अपने ही नफा के लिए करता है. और जो नाशुक्री करता है,(?) मेरा रब गनी है, करीम है. 
सुलेमान ने हुक्म दिया कि इसके लिए इस तख़्त की सूरत बदल दो हम देखें कि इसको इसका पता चलता है या इसका इन्हीं में शुमार है जिन को पता नहीं लगता.
 सो जब बिलकीस आई तो इस से कहा की क्या तुम्हारा तख़्त ऐसा ही है? 
बिलकीस ने कहा हाँ ऐसा ही है और हम को तो इस वाकेऐ की पहले ही तहकीक हो गई थी. और हम मती हो चुके हैं 
और इसको गैर अल्लाह की वबा ने रोक रख्खा था और वह काफ़िर कौम में की थी. 
बिलकीस से कहा गया कि तू इस महल में दाखिल हो, तो जब इसका सेहन देखा तो उसको पानी समझा और अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दीं. सुलेमान ने फ़रमाया यह तो एक महेल है जो शीशों से बनाया गया है. बिकीस कहने लगी ऐ मेरे परवर दिगार ! मैं ने अपने नफ़स पर ज़ुल्म किया था और अब मैं सुलेमान के साथ होकर रब्बुल आलमीन पर ईमान लाई."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (३७-४४).

इस सुलेमानी कहानी के बाद बिला दम लिए अल्लाह समूद और सालेह के बयान पर आ जाता है और इनकी दो एक बातें बतला कर लूत को पकड़ता है और लूत की इग्लाम बाज़ उम्मत को. फिर शुरू कर देता है कुफ्फर के साथ सवाल जवाब.
अजीब सूरत रखते हैं. कुफ्फर अल्लाह से बुनयादी सवाल करते हैं और अल्लाह उनको बे बुन्याद जवाब देता है.
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (४५-६४
सुलेमान की दास्तान मुहम्मद की अफसाना निगारी का एक नमूना है. हैरत होती है कि मुस्लमान इस अल्लाह की बद तरीन तसनीफ (रचना) पर किताब पर ईमान रखते हैं जिसको बात करने का सलीका भी नहीं है और जिसकी मदद बन्दों ने तर्जुमानी और लग्व तफ़सीर से की. क्या अल्लाह जलीलुल कद्र अपनी छीछा लेदर ऐसी दास्तान गोई से कराएगा? जिसमें झूट और मक्र की भरमार है.
 जिन और परिंदों का लश्कर होना ?
सुलेमान का हज़ारों परिंदों की हाज़री लेना?
इनमें से किसी एक को गैर हाज़िर पाना?
सुलेमान के मुँह से ऐसे कलिमें अदा कराना
" वह इसकी गैर हजिरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे"
दर असल  मुहम्मद अपनी फितरत के मुताबिक कुरआन की शक्ल पेश करते है. वह मिज़ाजन ऐसे थे, शुक्र है बुलबुल ने हुज्जत न करके बद खबरी दी कि कमबख्त बिलकीस एक औरत हो कर मर्दों पर हुक्मरानी  करती है?
भला मुहम्मदी दीन में इसकी गुजाइश कहाँ? 
सुलेमान क़दीम बादशाहों में पहली हस्ती हैं जो आला दर्जे की शख्सियत था और अपने वक़्त कि जदीद तरीन तालीमों से लबरेज़ था.वह मुफक्किर था,  अच्छा शायर था, माहिरे नबातात (बनस्पति-ज्ञान)और माहिरे हयात्यात था. तमीरात में पहला पहला अज़ीम आर्चितेक्ट हुआ है. उसकी तामीर को वालियान मुमल्कत देखने आया करते थे. घामड़  मुहम्मद ने सुलेमान के बारे में बेहूदा कहानी गढ़ी है  देखिए कि  देवों के देव , महादेव ने किस तरह मलकाए शीबा का तख़्त पलक झपकते ही सुलेमान के क़दमों पर रख दिया? अगर इसी कुरानी हालात में एक हिन्दू कहता है कि परबत को लेकर हनुमान जी उड़े तो मुसलमान हसेंगे और लाहौल पढेंगे. नकली रसूल के अल्लाह की कहानी आप नियत बाँध कर नमाज़ों में पढ़ते हैं.

 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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