Sunday 14 October 2012

Soorah namal 27 (3)


मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह नमल २७
(3)

मोमिन बनाम मुस्लिम 

मुसलामानों खुद को बदलो. बिना खुद को बदले तुम्हारी दुन्या नहीं बदल सकती. तुमको मुस्लिम से मोमिन बनना है. तुम अच्छे मुस्लिम तो ज़रूर हो सकते हो मगर मोमिन क़तई नहीं, इस बारीकी को समझने के बाद तुम्हारी कायनात बदल सकती है. मुस्लिम इस्लाम कुबूल करने के बाद ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' यानि अल्लाह वाहिद के सिवा कोई अल्लाह नहीं और मुहम्मद उसके पयम्बर हैं. मोमिन फ़ितरी यानी कुदरती रद्दे अमल पर ईमान रखता है. ग़ैर फ़ितरी बातों पर वह यक़ीन नहीं रखता, मसलन इसका क्या सुबूत है कि मुहम्मद को अल्लाह ने अपना पयम्बर बना कर भेजा. इस वाकेए को न किसी ने देखा न अल्लाह को पयम्बर बनाते हुए सुना. जो ऐसी बातों पर यक़ीन या अक़ीदत रखते हैं वह मुस्लिम हो सकते हैं मगर मोमिन कभी भी नहीं. मुस्लमान खुद को साहिबे ईमान कह कर आम लोगों को धोका देता है कि लोग उसे लेन देन के बारे में ईमान दार समझें, उसका ईमान तो कुछ और ही होता है, वह होता है
''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह''
इसी लिए वह हर बात पर इंशा अल्लाह कहता है. यह इंशा अल्लाह उसकी वादा खिलाफ़ी, बे ईमानी, धोखा धडी और हक़ तल्फ़ी में बहुत मदद गार साबित होता है. इस्लाम जो ज़ुल्म, ज़्यादती, जंग, जूनून, जेहाद, बे ईमानी, बद फेअली, बद अक़ली और बेजा जिसारती के साथ सर सब्ज़ हुवा था, उसी का फल चखते हुए अपनी रुसवाई को देख रहा है. ऐसा भी वक्त आ सकता है कि इस्लाम इस ज़मीन पर शजर-ए-मम्नूअ बन जाय और आप के बच्चों को साबित करना पड़े कि वह मुसलमान नहीं हैं. इससे पहले तरके इस्लाम करके साहिबे ईमान बन जाओ.
वह ईमान जो २+२=४ की तरह हो, जो फूल में खुशबू की तरह हो, जो इंसानी दर्द को छू सके, जो इस धरती को आने वाली नस्लों के लिए जन्नत बना सके.
 उस इस्लाम को खैरबाद करो जो ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' जैसे वह्म में तुमको जकड़े हुए है. 
 अब देखिए मुहम्मद के कुरानी अफ़साने कि कहानी के नाम पर वह क्या हाँक रहे है. - - -  



बादशाह की शान में आधीन देवों की गुस्ताखी मुलाहिजा हो - - -
"जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ." 
इसी तरह  कुरआन  के दीगर मुकालमों पर गौर करें और मानें कि यह एक अनपढ़ की तसनीफ़ है, किसी अल्लाह की नहीं.
कुरआन में अक्सर कुफ़फ़ार की अल्लाह से तकरार है, उनको सवालों पर अल्लाह का जवाब है, ज़ाहिर है इसके बाद वह जवाब पर सवाल करते होंगे, जिस बे ईमान अल्लाह कभी पेश नहीं करता. मुस्लमान अल्लाह के अर्ध-सत्य को ही पूरा सच मान  लेता है. यह कुरआन की धांधली है और मुसलमानों का भोला पन. कुफ़फ़ार मक्का की एक मफ्रूज़ा तकरार पेश है.

रसूल  :--" अच्छा बतलाओ ये बुत बेहतर हैं या वह जात जो तुमको खुश्की और दरया की तारीकी में रास्ता सुझाता है? जो हवाओं को बारिश से पहले भेजता है जो खुश कर देती  हैं.?"
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (63) 

कुफ्फार:-- हमारे ये पत्थर के बने बुत, यह तो हैं जो हमें राह दिखलाते हैं और बारिश लाते हैं, जब इनके सामने हम दुआएँ मांगते  हैं.
रसूल :-- इसका  सुबूत ?
कुफ्फार:-- सुबूत ? चलो ठीक है हम अपने बुतों  को साथ लेकर आते हैं, तुम अपने अल्लाह को लेकर आओ , मिल जायगा सुबूत .
रसूल :-- आएं ! (बगलें झाकते हुए) "मेरा परवर दिगार तो आसमानों और ज़मीन का मालिक है, और (और और) बड़ा हिकमत वाला है और (और और) बड़ा ज़बरदस्त है और (और और) आप कह दीजिए कि जितनी मख्लूकात आसमानों और ज़मीन पर मौजूद हैं, कोई भी गैब की बात नहीं जनता बजुज़ अल्लाह के. इनको ये खबर नहीं कि वह दोबारा कब ज़िन्दा किए जाएँगे, बल्कि आखरत के बारे में इनका इल्म नेस्त हो गया है, बल्कि ये लोग इस शक में हैं , बल्कि  ये लोग इससे अंधे बने हुए हैं,"  
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (65-66) 

कुफ्फार  :-ठीक है ठीक है हम लोग आधा घंटा तक अपने बुतों की इबादत करते हैं और तुम अपने अल्लाह की याद में गर्क हो जाओ, तब तक वह तुम्हारे पास ज़रूर आ जाएगा .
( कुफ्फर अपने बुतों के आगे ढोल, मजीरा और दीगर साज़ लेकर रक्से-मार्फ़त करने लगे, महवे-ज़ात-गैब हुए और फ़ना फिल्लाह हो गए, कुछ होश अपना रहा न दुन्या का, खून के क़तरे क़तरे में मारूफ़ियत  दौड़ने लगी, आधा घंटा पल भर में बीत गया, खुद साख्ता रसूल  ने उनको झकझोरते हुए कहा 

कमबख्तो! तुम पर अल्लाह की मार , वक़्त ख़त्म हवा .
कुफ्फार  :- अल्लाह के रसूल! पकड़ में आया तुम्हारा अल्लाह?
रसूल :- क्या खाक पकड़ में आता तुम्हारे हंगामा आराई के आगे. मैं तो अपनी रकात भी न याद रख सका कि कितनी अदा की तुम्हारे शोर गुल के आगे .
 " आप कह दीजिए कि तुम ज़मीन पर चल फिर कर देखो कि मुजरिमीन का अंजाम क्या हुवा और आप इन पर गम न कीजिए और जो कुछ ये शरारतें कर रहे हैं, इनपर तंग न होइए और ये लोग यूँ कहते हैं कि ये वादा ( क़यामत) कब आएगा? अगर तुम सच्चे हो ? आप कह दीजिए कि अजब नहीं कि जिस अज़ाब की तुम जल्दी मचा रहे हो, उसमें से कुछ तुम्हारे पास ही आ लगा हो."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (6-72) 

कुफ्फार  :- तो गारे हरा चलें? शायद वहां मिले अल्लाह?
"और आप का रब लोगों पर बड़ा फज़ल रखता है लेकिन अक्सर आदमी शुकर नहीं करते और आपके रब को सब खबर है जो कुछ इनके दिलों में मुख्फ़ी  है और जिसको वह एलानिया करते हैं और आसमान और ज़मीन पर कोई मुख्फी चीज़ नहीं जो लौहे-महफूज़ में न हो."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (७४-७५)

छोडिए अल्लाह को, ऐ अल्लाह के फर्जी रसूल! जिब्रील अलैहिस सलाम को ही बुलाइए.
 "ये कुफ्फार जब भी मुझको देखते हैं तो इनको तमस्खुर सूझता है.
अल्लाह ने छे दिन में दुन्या बनाई  फिर सातवें दिन आसमान पर कायम हुआ.
 वह नूर अला नूर है.
 तुहें औंधे मुँह जहन्नम  में डाल दिया  जायगा और वह बुरी जगह है.
आप मुर्दों को नहीं सुना सकते, और न बहरों को अपनी आवाज़ सुना सकते हैं. जब वह पीठ फेर के चल दें और न आप अंधों को गुमराही  से रास्ता दिखलाने वाले हैं. आप तो सिर्फ उन्हीं को सुना सकते हैं जो जो हमारी आयतों पर यकीन रखते हों. फिर वह मानते हैं और जब उन पर वादा पूरा होने का होगा तब उनके लिए हम ज़मीन से एक जानवर निकालेंगे वह इनसे बातें करेगा, कि लोग हमारी आयतों पर यकीन न लाते  थे और जिस दिन हम हर उम्मत में से एक एक गिरोह उन लोगों का उन लोगों का जमा करेंगे जो हमारी आयतों को झुटलाया करते थे और उनको कहा जायगा यहाँ तक कि जब वह हाज़िर हो जाएँगे तो अल्लाह इरशाद फरमाएगा  कि क्या तुमने हमारी आयतों को झुटलाया था, हालाँकि तुम उनको अपने अहाता ऐ इल्मी में भी नहीं लाए बल्कि और भी क्या क्या काम करते रहे "
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (७४-८० )

कुफ्फार:-- (क़हक़हा) 
"और तू पहाड़ों को देख रहा है, उनको ख़याल कर रहा है कि वह जुंबिश न करेंगे? हालां कि वह बाल की तरह उड़ते फिरेंगे . ये अल्लाह का काम है जिसने हर चीज़ को मज़बूत बनाये रखा है. यह यकीनी बात है कि अल्लाह तुम्हारे हर फेल की पूरी खबर रखता है."
सूरह नमल २७- १९ वाँ पारा- आयत (८८)
 कुफ्फार :--  (क़हक़हा)  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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