Sunday 19 May 2013

Soorah Saad 38 (3rd)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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"एक नसीहत का मज़मून ये तो हो चुका और परहेज़ गारों के लिए अच्छा ठिकाना है. यानी हमेशा रहने के बाग़ात जिनके दरवाज़े इनके लिए खुले होंगे. वह बागों में तकिया लगाए बैठे होंगे. वह वहाँ बहुत से मेवे और पीने की चीज़ (शराब) मंगवाएंगे. और इनके पास नीची निगाह वालियाँ, हम उम्र होंगी.  ये वह है जिनका तुम से रोज़े हिसाब आने का वादा किया जाता है और ये हमारी अता है . ये बात तो हो चुकी."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५६-५७)

ये बात तो हो चुकी, अब मुसलामानों को चाहिए कि इस बात में कुछ बात ढूंढें. कौन सी नसीहत कहाँ है?
हलक़ तक शराब उतारने के बाद ही कोई ऐसी बहकी बहकी बातें करता है.
"ये एक जमाअत और आई जो तुम्हारे साथ घुस रही हैं, इन पर अल्लाह की मार. ये भी दोज़ख में घुस रहे हैं. वह कहेंगे बल्कि तुम्हारे ऊपर ही अल्लाह की मार. तुम ही तो ये हमारे आगे लाए हो , सो बहुत ही बुरा ठिकाना है, दुआ करेंगे ऐ हमारे परवर दिगार! इसको जो हमारे आगे लाया हो, उसको दूना अज़ाब देना."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (५९-६१)

शराब जंगे खैबर  के बाद हराम हुई. ये आयतें यक़ीनन शराब की नशे की हालत में कही गई हैं. खुद पूरी सूरह गवाह हैं कि ऐसी बातें होश मंदी में नहीं की जाती.
"ये बात, यानी दोज़खियों का आपस में लड़ना झगड़ना बिलकुल सच्ची हैं. आप कह दीजिए कि मैं तो डराने वाला हूँ और बजुज़ अल्लाह वाहिद ओ ग़ालिब  के कोई लायक़े इबादत नहीं है. और वह परवर दिगार है आसमान ओ ज़मीन का और उन चीजों का जो कि उसके दरमियान हैं, ज़बर दस्त बख्शने वाला."
सूरह साद - ३८- पारा २३- आयत (६४-६६)

आप कह दीजिए कि ये अजीमुश्शान मज़मून है जिस से शायद तुम बे परवाह हो रहे हो. मुझको आलमे बाला की कुछ भी खबर न थी, झगड़ रहे थे."
सूरह साद  - ३८- पारा २३- आयत (६६-६९)
सर फिर, मजनू, दीवाना , पागल था वह अपने ही बनाए हुए अल्लाह का रसूल.जिसकी पैरवी में है  दुन्या कि २०% आबादी. वह अपने पैरों से उलटी तरफ भाग रही है.
यह रहा कुरआन का मज़मून ए नसीहत जिसमे आप नसीहत को तलाश  करें. पूरे कुरआन में, कुरआन की अज़मतों का बखान है. जिसे सुन सुन कर आम मुसलमान इसे अक्दास की मीनार समझता है. असलियत ये है कि कुरआन का ढिंढोरा ज्यादः है और इसमें मसाला कम. कम कहना भी ग़लत होगा कुछ है ही नहीं, बल्कि जो कुछ है वह नफी में है. इसके आलिम अवाम को कुरआन का मतलब समझने से मना करते हैं और इस अमल को गुनाह करार देते हैं कि आम लोग बात को उलटी समझेंगे. दर अस्ल वह खायाफ़ होते हैं कि कहीं अवाम की समझ में इसकी हक़ीक़त न  आ जाए. तर्जुमा पर ज़बान दानी की बहस छेड़ देते हैं जिससे पार पाना सब के बस की बात नहीं, जब कि कुरआन इल्म, ज़बान, किसी फलसफे और किसी मंतिक से कोसों दूर है. इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाना बैसे भी रुसवाई बन जाता है या आगे बढ़ने पर मजहबी गुंडों का शिकार होना तय हो जाता है. मगर कौम को जागना ही पडेगा.


"जो दूर अनदेशी से फैसला नहीं करते हैं, पछतावा उसको पास ही खड़ा मिलता है"
"कानफ़िव्यूशेश"
(चीनी मसलक)
इसे कहते हैं कलामे पाक   


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. किसे सच जानने की फुर्सत है इस जमाने में

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