Sunday 23 February 2014

SOOrah malak 67

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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मुसलमानों !
दस्तूर ए कुदरत के मुताबिक हर सुब्ह कुछ   बदलाव हुवा करते हैं 
कहते हैं कि परिवर्तन ही प्रकृति नियम है.फ़िराक़ कहते हैं -
निज़ाम ए दह्र बदले, आसमान बदले ज़मीं बदले,
कोई बैठा रहे कब तक हयात ए बे असर लेकर.
क्या तुम "हयात ए बे असरी" को जी रहे हो? 
हर रोज़ सुब्ह ओ शाम तुम कुछ नया देखते हो . इसके बावजूद तुम पर असर नहीं होता? इंसानी ज़ेह्न भी इसी ज़ुमरे में आता है, जो कि तब्दीली चाहता है.बैल गाड़ियाँ इस तबदीली की बरकत से आज तेज़ रफ़्तार रेलें बन गई हैं..
 तुम जब सोते हो तो इस नियत को बाँध कर सोया करो कि कल कुछ नया होगा, जिसको 
 तुम जब सोते हो तो इस नियत को बाँध कर सोया करो कि कल कुछ नया होगा, जिसको अपनाने में हमें कोई संकोच नहीं होगा.

मगर तुम तो सदियों पुरानी रातों में सोए हुए हो, जिसका सवेरा ही नहीं होने देते. दुनिया कितनी आगे बढ़ गई है, तुमको खबर भी नहीं.

उट्ठो आँखें खोलो. इस्लाम तुम पर नींद की अलामत है. इसे अपनाए हुए तुम कभी भी इंसानी बिरादरी की अगली सफों में नहीं आ सकते. इस से अपना मोह भंग करो वर्ना तुम्हारी नस्लें तुमको कभी मुआफ नहीं करेगी.

खुद साख्ता अल्लाह बना पैगम्बर कहता है - - -

"वह बड़ा आलीशान है, जिसके कब्जे में तमाम सल्तनत है और हर चीज़ पर कादिर है, जिस ने मौत और हयात पैदा किया, ताकि तुम्हारी आजमाइस करे कि तुम में अमल में कौन ज़्यादः अच्छा है और वह ज़बरदस्त बख्शने वाला है."
सूरह  मुलक -६७ -पारा -२९- आयत (१-२)

मुसलामानों ! 
अगर किसी अल्लाह ने तुमको आजमाने के लिए पैदा किया है तो उस पर लअनत भेजो. एक बाप अपनी औलाद को पाल पोस कर इस लिए परवान चढ़ाया कि औलाद बड़ी होकर उसके बुढ़ापे का सहारा बनेगी, तो इंसानी कमजोरी के तहत ये बात जायज़ हो सकती है, महार अल्लाह का अगर ये ख़याल है तो तुम उस अल्लाह मुँह पर उसके एलान को मार दो. 

"जिसने सात आसमान ऊपर तले पैदा किए. सो तू फिर निगाह डाल के देख ले  . . . फिर बार बार निगाहे ज़ेल और दरमान्दा होकर तेरी तरफ़ लौट आएँगे और करीब के आसमान को चराग़ों से आरास्ता कर रखा है और हमने उनको शैतान के मरने का ज़ारीया भी बना दिया है और हम ने उनके लिए दोज़ख का अज़ाब भी तैयार कर रखा है."
सूरह  मुलक -६७ -पारा -२९- आयत (३-५)

कहाँ हैं ऊपर तले सात आसमान? 
ये मुहम्मदी अटकलें हैं. वह अरबों खरबों सितारों और सय्यारों को शामयाने की किंदील समझते हैं, और सितारों के टूटने को राम बाण. अहमकों के सरदार सरवरे कायनात.

"जब काफ़िर लोग दोज़ख में डाले जाएँगे तो उसकी बड़ी शोर की आवाज़ सुनेंगे और वह इस तरह ज़ोर मारती होगी जैसे मालूम होगा कि गुस्से के मारे फट पड़ेगी . . . "
सूरह  मुलक -६७ -पारा -२९- आयत (८)

क्या मुहम्मदी अल्लाह में तुमको कहीं भी जेहालत नज़र नहीं आती?. 
"बेशक जो लोग अपने परवर दिगार से बे देखे डरते हैं, उनके लिए मगफिरत और उजरे अज़ीम है."
सूरह  मुलक -६७ -पारा -२९- आयत (११)

पैगम्बर दगाबाज़ है जो बगैर देखे और बिना सोचे समझे किसी अल्लाह या  रसूल्लिल्लाह का यक़ीन दिलाता है. मुआज्ज़िन झूटी गवाही अपनी अजान में देता है, उसको सजा मिलनी चाहिए. 

"आप कहिए कि उसी ने तुमको पैदा किया और कान, नाक और दिल दिया मगर तुम लोग कम शुक्र करते हो"
सूरह  मुलक   -६७ -पारा -२९- आयत (२३)


अफ़सोस कि मुसलमान अपने कान, नाक और दिल का इस्तेमाल नहीं करता.  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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