Sunday 9 February 2014

Soorah Taghabun 64

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
----------------------------------------***
सूरह तग़ाबुन ६४

मुहम्मदी अल्लाह काफिरों, मुशरिकों, मुकिरों और मुल्हिदों का उनके मरने के बाद जो करेगा सो तो बाद की बात है, फिलहाल जिन लोगों ने इसका दीन ए इस्लाम क़ुबूल हर लिया है, उनकी जान साँसत में डाले हुए है. जिन्हों ने इस्लाम नहीं कुबूल किया उनके लिए तो क़यामत और सवाब ओ अज़ाब मज़ाक की बातें हैं मगर जिन्हों ने इस्लाम की घुट्टी पी ली है उनपर अल्लाह का खौफ़ तारी रहता है. इस नए मौला की याद आते ही मुस्लिम, मस्जिद की तरफ़ भागते हैं. नमाज़ को किसी भी हालत में अल्लाह मुआफ़ नहीं करता खड़े होकर नहीं तो बैठ कर, बैठ कर भी नहीं लेट कर, बोल नहीं सकते तो इशारे से ही सहीह.नमाज़ किसी भी हालत में मुआफ़ नहीं.
इसी तरह रोज़ा भी है मगर थोड़ी सी रिआयत के साथ. आज नहीं रख पाए तो क़ज़ा हुवा, बाद में रखना पड़ेगा. मोहताजों को खाना खिला कर इसका हर्जाना अदा किया जा सकता है या दूसरे को बदले में रोज़ा रखवा कर जान छूट सकती है.
कुछ मॉल टाल इकठ्ठा हुवा तो इससे नजात पाने के लिए हज का रुक्न सामने खड़ा हुवा है कि मक्का जाकर आले रसूल की मदद करिए. यानी हज फ़र्ज़ बन जाता है.
इसके बाद खैरात लाजिम है. हर हालत में ज़कात निकलना फ़र्ज़ है २.५% सालाना अगर ४० रपय बचे तो १ रुपया ज़कात निकालिए. ये भुगतान तब तक लाजिम है जब तक की आप खुद खैरात खोरों की लाइन में न आ जाएँ.
चौदह सौ सालों से मुसलमान हुए इंसानी बिरादरी इस टार्चर को झेलती हुई चली आ रही है.इनकी ये अज़ीयत पसंदी दर असल इनकी ज़ेहनी गिज़ा बन चुकी है. जैसे कि क़दीम यूनान के उम्र क़ैद काटने वाले कैदियों को अपने हथकड़ियों और बेड़ियों से प्यार हो जाया करता था कि वह उसे रगड घिस करते कि क़ैदी के वह ज़ेवर चमकने लगते थे. वह उन बेड़ियों से नजात पाने के बाद उसे लादे रहते.
मुसलमान इन गैर तामीरी अमल और फेल के इतने आदी हो चुके हैं कि जैसे इन लग्व्यात के बगैर जिंदा ही नहीं रह सकते. अल्लाह के एजेंट्स इसके लिए हम्मा वक़्त तैयार रहते हैं. मुसलमान अपनी इस दीनी मुसीबत को ज़रा देर के लिए भूलना भी चाहे तो ये भूलने नहीं देते. वह दिन में पाँच बार इन्हें लाउड स्पीकर से याद दिलाए रहते हैं कि चलो अल्लाह के सामने उठठक  बैठक करने का वक़्त हो गया है. पहले ये गाज़ी माले गनीमत का मज़ा लिया करते थे अब मस्जिदों की खिमत की ज़कात, मदरसों के चंदा और गण्डा तावीज़ इनका माल गनीमत बन चुके हैं
ये हराम खोर और निकम्मे खुद धरती का बोझ बने हुए हैं और हर साल अपनी जैसी एक जमात कौम को खोखला करने के लिए खड़ी कर देते हैं. ये लोग मुल्क के मदरसों में सरकारी मदद से मुफ्त खोरी की तालीम ए नाक़िस पाते हैं फिर बड़े होने पर बड़ी बड़ी मज़हबी किताबें लिखते है
एक नमूना मैं पेश कर रहा हूँ ,इनकी तहरीर का - - -  
एक बादशाह का क़िस्सा है कि निहायत मूतशद्दित (आतंकी) और मुतअस्सिब) (भेद भाव करने वाला) था. इत्तेफ़ाक़ से मुसलामानों की एक लड़ाई में गिरफ़्तार हो गया. चूंकि मुसलामानों को इसने तकलीफ बहुत पहुँचाई थी, इस लिए इंतेक़ाम का ज़ोर इनमें भी बहुत था. इसको एक देग में डाल कर आग पर रख दिया.  इसने अव्वल अपने बुतों को पुकारना शुरू कर दिया और मदद चाही, जब कुछ न बन पडा तो वहीँ मुसलमान हुवा और लाइलाहा इललिल्लाह का विरद (रटंत) शुरू कर दिया. लगातार पढ़ रहा था और ऐसी हालत में जिस ख़ुलूस और जोश से पढ़ा जा सकता है. ज़ाहिर है अल्लाह तअला शानाहू की तरफ़ से जो मदद हुई, और इस ज़ोर की बारिश हुई कि वह सारी आग भी बुझ गई और देग ठंडी हो गई. इसके बाद जोर की आँधी चली, जिससे वह देग उडी और दूर उस शहर में जहां सब काफ़िर ही रहते थे, जा गिरी. ये शख्स लगातार कलमे तय्यबा पढ़ रहा था, लोग इसके गिर्द जमा हो गए और अजूबा देख के हैरान थे. इससे हाल दर्याफ़्त किया, उसने अपनी सरगुज़श्त सुनाई, जिससे वह लोग भी मुसलमान हो गए.
(तबलीगी निसाब फ़ज़ायल ज़िक्र ८९) 
मुसलामानों की ये रुस्वाए ज़माना जमाअत है जिसका ज़ेहनी मेयार आपने देखा.
अब देखिए कि इनके अल्लाह का क्या मेयार है.

"सब कुछ जो आसमानों में है, ज़मीन में हैं, अल्लाह की पकी बयान करती हैं, इसी की सल्तनत है और वही तारीफ़ के लायक़ है और वह हर शय पर क़ादिर है ."
"वही है जिसने तुम को पैदा किया है, सो इनमे बअज़े काफ़िर हैं, बअज़े मोमिन और अल्लाह तुम्हारे आमाल देख रहा है."
"ये  काफ़िर दावा करते हैं हरगिज़ हरगिज़ दोबारा जिंदा न किए जाएँगे. आप कह दीजिए क्यूँ नहीं ? वल्लाह! दोबारा जिंदा किए जाएँगे. तुमको सब जतला दिया जाएगा"
"ए ईमान वालो! तुम्हारी बअज़ बीवियां और औलाद तुम्हारे दुश्मन हैं, सो तुम इनसे होशियार रहो और अगर तुम मुआफ़ करदो और दर गुज़र कर जाओ और बख्श दो तो अल्लाह बख्शने वाला है, रहेम करने वाला है."
"तो जहाँ तक तुम से हो सके अल्लाह से डरते रहो और सुनो और मानो. खर्च किया करो ये तुम्हारे लिए बेहतर होगा और जो शख्स नफसानी हिरस से महफ़ूज़ है, ऐसे लोग फलाह पाते हैं. अगर तुम अल्लाह को अच्छी तरह क़र्ज़ दोगे तो वह इसको तुम्हारे लिए बढाता चला जाएगा और तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और अल्लाह बड़ा क़द्र दान है. बड़ा बुर्दबार है, पोशीदः और ज़ाहिर को जानने वाला, ज़बरदस्त है, हिकमत वाला.है "
सूरह तग़ाबुन ६४ आयत (१-१-१८)
मुहम्मद दर अस्ल अल्लाह की हकीकत को जान चुके थे कि वह एक वह्म के सिवा और कुछ भी नहीं. इस बात का फ़ायदा लेते हुए खुद दर पर्दा अल्लाह बन बैठे थे, इस बात की गवाही कई जगह परखुद कुरआन देता है. अगर मुसलामानों के अक़ीदे का कोई अल्लाह होता तो वह सब से पहले मुहम्मद के साथ  कुछ इस तरह पेश आता- - -

ऐ मुहम्मद! तू मुझसे मुतालिक़ हमेशा ग़लत बयानी किया करता है,
मैं जो कुछ हूँ तुझे मालूम भी नहीं और जो नहीं हूँ वह तू खूब जानता है. 
मैंने कब तुझ पिद्दी को आप, आप कहकर मुख़ातिब किया था कि अपनी बकवास में तू बार बार कहता है
 " आप कह दीजिए - - -"
मैं अपने बन्दों को डराता हूँ?
इसके लिए कब तुझको मुक़र्रर किया?
वह खर्च  करें या न करें, उनका ज़ाती मुआमला है. मैं या तू कौन होते हैं इसकी राय के लिए?
जो जितनी मशक्क़त से चीज़ें पैदा करेगा वह उसे सर्फ़ करने में उतना ही मोहतात रहेगा.
 भला मैंने बन्दों से कब क़र्ज़ माँगा ?
तूने मुझे एक सूद खोर बनिया बना कर बन्दों के सामने ला खड़ा किया.
 तूने मुझे भी अपने जैसा समझा ?
 मैं ये हूँ, मैं वह हूँ. मैं कद्र दान हूँ, मैं बुर्दबार हूँ, ज़बरदस्त हूँ, हिकमत वाला हूँ - - -
तुझे गलत फ़हमी है कि ये सब तू हो गया है और मेरा नाम लेकर तू इसका एलान किया करता है
ऐ अक्ल के अंधे! मैं अल्लाह हूँ अल्लाह!
इंसान जैसी अगर शक्ल नहीं है तो इंसान जैसी मेरी अक्ल कैसे हो सकती है?
मेरी अजीब ओ गरीब खसलातें तू बन्दों के सामने पेश किया करता है.
 तू अल्लाह बन कर बन्दों को गुमराह कर रहा है जिसक अन्जाम कमसे कम इनके लिए बुरा ही होगा.

तू दुन्या के गुनाह गारों में अव्वल होगा. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment