Sunday 2 February 2014

Soorah Munafeqoon 63

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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सूरह मुनाफिकून ६३- पारा २८

"जब आपके पास ये मुनाफिकीन आते हैं तो कहते हैं हम गवाही देते हैं कि  आप बेशक अल्लाह के रसूल हैं और ये तो अल्लाह को मालूम है कि आप अल्लाह के रसूल हैं, अल्लाह तअला ही गवाही देता है.''

इंसानी फितरत की सब से बड़ी कमजोरी है अल्लाह . इसको मनवाकर उस से कुछ भी मनवाना आसान है. कुछ लोग अल्लाह के बाद सोचना ही पाप समझते हैं.
किस बेशर्मी से बात कही गई है
 "ये तो अल्लाह को मालूम है कि आप अल्लाह के रसूल हैं, अल्लाह तअला ही गवाही देता है.''
किस बुनियाद पर मुनाफ़िक़ मुहम्मद को रसूल मानने या न मानने की गवाही दे रहे हैं.?
कुदरत कोई चीज़ है, इसकी गवाही तो दी जा सकती है मगर इंसानी सोंच के नतीजे में उसे कोई रूप देना सरासर बे ईमानी है.

"मुनाफिकीन झूठे हैं. इन लोगों ने अपनी कसमों को सिपर बना रख्खा है. फिर ये अल्लाह की राह से रोकते हैं. बेशक इनके ये आमाल बहुत बुरे हैं."

जिस तरह खुद अल्लाह कुरआन में अपनी क़स्मों को सिपर बना कर, क़स्मों की छीछा लेदर करता है कि क़स्मों की कोई औकात नहीं रह जाती, उसी की राह पर उसके बन्दे चल रहे हैं .

"यही लोग आपके दुश्मन हैं. इनसे होशियार रहिए, अल्लाह इनको ग़ारत करे. कहाँ फिरे चले जाते हैं, जब इन से कहा जाता है कि रसूल के पास आओ, वह तुम्हारा इस्तगफ़ार  करदें तो मुंह फेर लेते हैं और उनको देखेंगे तो तकब्बुर करते हुए बेरुखी करते हैं."

क्या खूब ! अल्लाह कहता है कि अल्लाह उसे गारत करे. गोया वह भी मोहताज है और दुआ गो है.
मुहम्मद की सहीह औकात यही है कि वह पागलों की तरह कुरआन बकते और लोग दीवाने की बात अनसुनी करके आगे बढ़ जाते. आज उन लोगों पर हैरत होती है जो उसकी बड़ बड़ को दोहराना इबादत और तिलावत का दर्जा दिए हुए हैं.
मुहम्मदी दिमाग की शातिराना चाल है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है, वह जो भी कहता है, वह वही जाने.. अगर मुहम्मद इसे अपना कलाम कहते तो हर गली कूँचे में उनकी दुर्गत होती. इसी लिए मैं कहता हूँ कि इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी है अल्लाह, ईश्वर या गोड.

"ये कहते हैं कि  अगर अब मदीना लौट कर जाएँगे तो इज्ज़त वाला वहाँ से, ज़िल्लत वाले को बहार निकल देगा. और अल्लाह की है इज्ज़त और उसके रसूल की और मुसलामानों की, लेकिन मुनाफिकीन जानते नहीं..ऐ ईमान वालो! तुमको तुम्हारे मॉल और औलाद अल्लाह की याद से गाफिल न करने पाएँ ."
"अगर अब मदीना लौट कर जाएँगे तो इज्ज़त वाला वहाँ से, ज़िल्लत वाले को बहार निकल देगा"

ये बात मुहम्मद का सख्त मुख़ालिफ़ और मदीना के होने वाले मुखिया अब्दुल्ला बिन उब्बी की जो यक़ीनन ठीक कह रहा था. मुहम्मद के मदीने आमद से उसका बना बनाया खेल बिगड़ गया था. वह अपने  साथियों से कहता कि  तुम्हारे कहने पर उनको मैंने अल्लाह का रसूल मान लिया, फिर  उनकी ज्यादती भी    मजबूरन तस्लीम कर लिया कि ज़कात भी देने लगा, अब तुम चाहते हो कि उनका सजदा भी हम करने लगें तो ये हमसे न होगा.
बुग्ज़ी मुहम्मद ने अब्दुल्ला बिन उब्बी के मरने के बाद उसे उसकी कब्र से निकलवाया था और उसके मुँह में थूका था. हराम ज़ादे ओलिमा उस पर भी मुहम्मद का गुन गान किया.

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