Sunday 1 March 2015

Allah kahta hai - - -

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
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नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

बेदारियाँ (जागृति) 4
नमाज़ियो !
तुम अपना एक कुरआन खरीद कर लाओ और काले स्केच पेन से उन इबारतो को मिटा दो जो ब्रेकेट में मुतरज्जिम ने कही है, क्यूँ कि ये कलाम बन्दे का है, अल्लाह नहीं. 
आलिमो ने अल्लाह के कलाम में दर असल मिलावट कर राखी है.
 अल्लाह की प्योर कही बातों को बार बार पढो अगर पढ़ पाओ तो, 
क्यूंकि ये बड़ा सब्र आजमा है. 
शर्त ये है कि इसे खुले दिमाग से पढो, 
अकीदत की टोपी लगा कर नहीं. 
जो कुछ तुम्हारे समझ में आए बस वही कुरआन है, इसके आलावा कुछ भी नहीं. 
जो कुछ तुम्हारी समझ से बईद है वह आलिमो की समझ से भी बाहर है. 
इसी का फायदा उठा कर उन्हों ने हजारो क़ुरआनी नुस्खे लिखे हैं 
अधूरा पन कुरआन का मिज़ाज है, 
बे बुन्याद दलीलें इसकी दानाई है. 
बे वज़न मिसालें इसकी कुन्द ज़ेहनी है, 
जेहालत की बातें करना इसकी लियाक़त है. 
किसी भी दाँव पेंच से इस कायनात का खुदा बन जाना मुहम्मद का ख्वाब है. 
इसके झूट का दुन्या पर ग़ालिब हो जाना मुसलामानों की बद नसीबी है.
आइन्दा सिर्फ पचास साल इस झूट की ज़िन्दगी है. 
इसके बाद इस्लाम एक आलमी जुर्म होगा. 
मुसलमान या तो सदाक़त की रह अपना कर तर्क इस्लाम करके अपनी और अपने नस्लों की ज़िन्दगी बचा सकते है 
या बेयार ओ मददगार तालिबानी मौत मारे जाएँगे. 
ऐसा भी हो सकता है ये तालिबानी मौत पागल कुत्तों की मौत जैसी हो, 
जो सड़क, गली और कूँचों में घेर कर दी जाती है.
मुसलामानों को अगर दूसरा जन्म गवारा है तो आसान है, 
मोमिन बन जाएँ. मोमिन का खुलासा मेरे मज़ामीन में है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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