Monday 15 June 2015

Soorah aAale Imran 3 Part 4 (32-33)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है। 
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह आले इमरान ३ 
चौथी किस्त

मुहम्मद उम्मी थे अर्थात निक्षर. तबीयतन शायर थे, मगर खुद को इस मैदान में छुपाते रहते , मंसूबा था कि जो शाइरी करूंगा वह आल्लाह का कलाम क़ुरआन होगा . इस बात की गवाही में क़ुरआन में मिलनें वाली तथा कथित काफिरों के मुहम्मद पर किए गए व्यंग '' शायर है ना'' है. 
शाइरी में होनें वाली कमियों को, चाहे वह विचारों की हों, चाहे व्याकरण की, मुहम्मद अल्लाह के सर थोपते हैं. अर्थ हीन और विरोद्दाभाशी मुहम्मद की कही गई बातें ''मुश्तबाहुल मुराद '' आयतें बन जाती हैं जिसका मतलब अल्लाह बेहतर जानता है. देखें (सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयत (6+7) 
यह तो रहा क़ुरआन के लिए गारे हेरा में बैठ कर मुहम्मद का सोंचा गया पहला पद्य आधारित मिशन ''क़ुरआन''. 
दूसरा मिशन मुहम्मद का था गद्य आधारित. इसे वह होश हवास में बोलते थे, खुद को पैगम्बराना दर्जा देते हुए, हांलाकि यह उनकी जेहालत की बातें होतीं जिसे कठबैठी या कठ मुललाई कहा जाय तो ठीक होगा. यही मुहम्मदी ''हदीसें'' कही जाती हैं. 
क़ुरआन और हदीसों की बहुत सी बातें यकसाँ हैं, ज़ाहिर है एह ही शख्स के विचार हैं, ओलिमा-ए-दीन इसे मुसलामानों को इस तरह समझाते हैं कि अल्लाह ने क़ुरआन में कहा है जिस को हुज़ूर (मुहम्मद) ने हदीस फलाँ फलाँ में भी फरमाया है. अहले हदीस का भी एक बड़ा हल्का है जो मुहम्मद कि जेहालत पर कुर्बान होते हैं. शिया कहे जाने वाले मुस्लिम इससे चिढ्हते हैं.
मैं क़ुरआन के साथ साथ हदीसें भी पेश करता रहूँगा. 

तो लीजिए कुरानी अल्लाह फरमाता है - - -
" अल्लाह काफ़िरों से मुहब्बत नहीं करता"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (32)

क्या काफ़िर अल्लाह के बन्दे नहीं हैं? फिर वह रब्बुल आलमीन कैसे हुवा? 
क़ुरआन की इन दोगली बातों का मौलानाओं के पास जवाब नहीं है। वह काफ़िरों से मुहब्बत नहीं करता तो काफ़िर भी अल्लाह को लतीफा शाह से ज्यादा नहीं समझते, मुस्लमान इस्लामी ओलिमा से अपनी हजामतें बनवाते रहें और काफ़िरों के आगे हाथ फैलाते रहें.

अल्लाह कहता है - -
" मोमिनों! किसी गैर मज़हब वालों को अपना राज़दार मत बनाओ। ये लोग तुम्हारी खराबी में किसी क़िस्म की कोताही नहीं करते और अगर तुम अक़्ल रखते हो तो हम ने अपनी आयतें खोल खोल कर सुना दीं। काफ़िरों से कहदो कि गुस्से से मर जाओ, अल्लाह तुम्हारे दिलों से खूब वक़िफ़ है। ऐ मुसलमानों! दो गुना, चार गुना सूद मत खाओ ताकि नजात हासिल हो सके।''
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (33) 
क्या यह कम ज़रफी की बातें किसी खुदाए बर हक की हो सकती हैं? क्या जगत का पालन हारा अगर, है कोई तो ऐसा गलीज़ दिल ओ दिमाग रखता होगा? 
अपने बन्दों को कहेगा की मर जाओ, 
नहीं ये गलाज़त किसी इंसानी दिमाग की है और वह कोई और नहीं मुहम्मद हैं। यह टुच्ची मसलेहत की बातें किसी मर्द बच्चे को ज़ेबा नहीं देतीं अल्लाह तो अल्लाह है. कानो में खुसुर फुसुर कर के ओछी बातें सिखलाने वाला, ज्यादा या कम सूद खाने को मना करने वाला अल्लाह हो ही नहीं सकता. 

मुसलमानों! 
जागो कहीं तुम धोके में अल्लाह की बजाए शैतान की इबादत तो नहीं कर रहे हो। कलाम इलाही पर एक मुंसिफाना नज़र डालो, आप को ऐसी तालीम दी जा रही है कि दूसरों की नज़र में हमेशा मशकूक बने रहो . एक हिदू इदारे के कुछ वर्कर आपस में मुझे भांपे बगैर बात कर रहे थे कि मुस्लमान पर कभी विश्वास न करना चाहे वह जलते तवे पर अपने चूतड रख दे, उसकी बात की इस आयात से तस्दीक हो जाती है. अल्लाह ने क़ुरआन में अपनी बातें खोल खोल कर समझाईं हैं, अल्ला मियां! जिसको आज आलिमान दीन ढकते फिर रहे हैं। 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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