Friday 19 June 2015

Soorah Aale Imran 3 Part 5 (34-50)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह आले इमरान ३ 
(पाँचवीं क़िस्त) 
सूरह आले इमरान से मुराद है इमरान यानी मरियम के बाप की औलादें - -
अल्लाह अब सूरह के उन्वान पर आता है (इमरान की जोरू जिसका नाम अल्लाह भूल रहा है ( ? )) की गुफ्तुगू अल्लाह से चलती है, वह लड़के की उम्मीद किए बैठी रहती है, हो जाती है लड़की, जिसका नाम वोह मरियम रखती है. उधर बूढा ज़कारिया अल्लाह से एक वारिस की दरख्वास्त करता है जो पूरी हो जाती है, 
(इस का लड़का बाइबिल के मुताबिक मशहूर नबी योहन हुवा. जिस को कि उस वक़्त के हाकिम शाह हीरोद ने फांसी देदी थी. मुहम्मद को उसकी हवा भी नहीं लगी) 
इन सूरतों में जिब्रील ईसा की विलादत की बे सुरी तान छेड़ते हैं. बहुत देर तक अल्लाह इस बात को तूल दिए रहता है. इस को मुस्लमान चौदह सौ सालों से कलाम इलाही मान कर ख़त्म क़ुरआन किया करते हैं।
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (34-48) 

देखिए की मुहम्मद ईसा से कैसे गारे की चिडिया में, उसकी दुम उठवा कर फूंक मरवाते हैं और वह जानदार होकर फुर्र से उड़ जाती है - -
" बनी इस्राईल की तरफ से भेजेंगे पयम्बर बना कर, वह कहेंगे कि तुम लोगों के पास काफ़ी दलील लेकर आया हूँ, तुम्हारे परवर दिगर की जानिब से। वह ये है कि तुम लोगों के लिए गारे की ऐसी शक्ल बनाता हूँ जैसे परिंदे की होती है, फिर इस के अन्दर फूंक मार देता हूँ जिस से वह परिंदा बन जाता है। 
और अच्छा कर देता हूँ मादर जाद अंधे और कोढ़ी को और ज़िन्दा कर देता हूँ मुर्दों को अल्लाह के हुक्म से। 
और मैं तुम को बतला देता हूँ जो कुछ घर से खा आते हो और जो रख आते हो. 
बिला शुबहा इस में काफ़ी दलील है तुम लोगों के लिए, अगर तुम ईमान लाना चाहो."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (49)
उम्मी मुहम्मद की बस की बात न थी कि किसी वाकिए को नज़्म कर पाते जैसे क़ाबिल तरीन रामायण और महाभारत के रचैताओं ने शाहकार पेश किए हैं। अभी वह इमरान का क़िस्सा भी बतला नहीं सके थे कि ईसा कि पैदाइश पर आ गए। ईसा के बारे में जो जग जाहिर सुन रखी थी उसको अल्लाह की आगाही बना कर अपने कबीलाई लाखैरों को परोस रहे हैं. उम्मियों और जाहिलों की अक्सरियत माहौल पर ग़ालिब हो गई और पेश कुरानी लाल बुझक्कड़ड़ी फलसफे मुल्क का निज़ाम बन गए, जैसा कि आज स्वात घाटी जैसी कई जगहों पर हो रहा है.
इस मसअला का हल सिर्फ जगे हुए मुसलमानों को ही हिम्मत के साथ करना होगा, कोई दूसरा इसे हल करने नहीं आएगा. कोई दूसरा अपना फायदा देख कर ही किसी के मसअलe में पड़ता है क्यूँ कि सब के अपने खुद के ही बड़े मसाइल हैं. 

" और मैं इस तौर पर आया हूँ कि तस्दीक करता हूँ इस किताब को जो तुमहारे पास इस से पहले थी,यानि तौरेत की. और इस लिए आया हूँ कि तुम लोगों पर कुछ चीजें हलाल कर दूं जो तुम पर हराम कर दी गई थीं और मैं तुम्हारे पास दलील लेकर आया हूँ तुम्हारे परवर दिगर कि जानिब से. हासिल यह कि तुम लोग परवर दिगर से डरो और मेरा कहना मनो"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (50) 
मुहम्मद के पास लौट फिर कर वही बातें आती हैं, नया ज्यादा कुछ कहने को नहीं है. 
जिन आयातों को मैं छू नहीं रहा हूँ, उनमे कही गई बातें ही दोहराई गई हैं या इनतेहाई दर्जा लगवयात है. 
यहूदी बहुत ही तौहम परस्त और अपने आप ने बंधे हुए होते हैं जिनके कुछ हराम को मुहम्मद हलाल कर रहे हैं. गैर यहूदी अहले मदीना और अहले मक्का को इस से कोई लेना देना नहीं. मुहम्मद के अल्लाह की सब से बड़ी फ़िक्र की बात यह है कि लोग उस से डरते रहें. बन्दों की निडर होने से उसकी कुर्सी को खतरा क्यूँ है, 
मुसलमानों के समझ में नहीं आता कि यह खतरा पहले मुहम्मद को था और अब मुल्लों को है. 

मुसलामानों! बेदार हो जाओ, इन कुरआनी आयतों को समझो, समझ में आजाएं तो इन्हें अपने सुल्फा कि भूल समझ कर दफ़ना दो और इस से जुड़े हुए ज़रीया मआश को हराम क़रार दे कर समाज को पाक करो. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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