Friday 4 September 2015

Soorah maayda 5 Part 1 (1-16)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*******

सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा 
(किस्त --1)

मैं वयस्कता से पहले ईमान का मतलब लेन देन के तकाजों को ही समझता था (और आज भी सिर्फ़ इसी को समझता हूँ) मगर इस्लामी समझ आने के बाद मालूम हुवा कि इस्लामी ईमान का अस्ल तो कुछ और ही है, वह है 'कलमा ए शहादत', 
अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखना, 
कसमे-आम और कसमे-पुख्ता. 
इन बारीकियों को मौलाना जब समझ जाते है कि अल्लाह कितना दर गुज़र (झूट को ) करता है तो वह लेन देन की बेईमानी भरपूर करते हैं. 
मेरे एक दोस्त ने बतलाया कि उनके कस्बे के एक मौलाना, मस्जिद के पेश इमाम, मदरसे के मुतवल्ली क़ुरआन के आलिम, बड़े मोलवी, साथ साथ ग्राम प्रधान, रहे हज़रात ने कस्बे की रंडी हशमत जान का खेत पटवारी को पटा कर जीम का नुकता बदलवा कर नीचे से ऊपर करा दिया जो जान की जगह खान हो गया. हज़रात के वालिद मरहूम का नाम हशमत खान था. विरासत हशमत खान के बेटे, बड़े मोलवी साहब उमर खान की हो गई.
हशमत रंडी की सिर्फ एक बेटी छम्मी थी(अभी जिंदा है), उसने उसको मोलवी के क़दमों पर लाकर डाल और कहा" मोलवी साहब इस से रंडी पेशा न कराऊँगी, रहेम कीजिए, अल्लाह का खौफ़ खाइए - - - " 
मगर मोलवी का दिल न पसीजा उसका ईमान कमज़ोर नहीं था, बहुत मज़बूत था। दो बेटे हैं, मेरे दोस्त बतलाते हैं दोनों डाक्टर है, और पोता कस्बे का चेयर मैन है। रंडी की और मदरसे की जायदादें सब काम आरही हैं. यह है ईमान की बरकत.
मुसलामानों के इस ईमानी झांसे में हो सकता है गैर मुस्लिम इन से ज्यादा धोका खाते हों कि ईमान लफ्ज़ को इन से जाना जाता है.
अहद की बात आई तो तसुव्वुर कायम हुवा "प्राण जाए पर वचन न जाए" मगर अल्लाह तो अहद के नाम पर चौपायों के शिकार की बातें कर रहा है। 

खैर, चलो शुक्र है दो पायों (यानी इंसानों) के शिकार से उसकी तवज्जो हटी हुई है.
"ऐ ईमान वालो! अहदों को पूरा करो. तुम्हारे लिए तमाम चौपाए जो पुरस्कार स्वरूप के हों, हलाल किए गए, मगर जिन का ज़िक्र आगे आता है, लेकिन शिकार हलाल मत समझना, जिस हालत में तुम अहराम (एक अरबी परिधान) में हो. बेशक अल्लाह जो चाहे हुक्म दे," 
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (1)
इस सूरह में शिकारयात पर अल्लाह का कीमती तबसरा ज्यादह ही है गो कि आज ये फुजूल की बातें हो गईं हैं मगर मुहम्मदी अल्लाह इतना दूर अंदेश होता तो हम भी यहूदियों की तरह दुनिया के बेताज बादशाह न होते. खैर ख्वाबों में सही आकबत में ऊपर जन्नतों के मालिक तो होंगे ही. मोहम्मद शिकार के तौर तरीके बतलाते हैं क्यंकि उनके मूरिसे आला इस्माईल इब्ने लौंडी हाजरा(हैगर) के बेटे एक शिकारी ही थे जिनकी अलमाती मूर्तियाँ काबे की दीवारों में नक्श थीं, जिसे इस्लामी तूफ़ान ने तारीखी सच्चाइयों की हर धरोहर की तरह खुरच खुरच कर मिटा दिया.
मगर क्या खून में दौड़ती मौजों को भी इसलाम कहीं पर मिटा सका है. खुद मुहम्मद के खून में इस्माईल के खून की मौज कुरआन में आयत बन कर बन कर बोल रही है. हिदुस्तानी मुल्ला की बेटी की तन पर लिपटी सुर्ख लिबास, क्या सफेद इस्लामी लिबास का मुकाबला कर सका है? 
मुहम्मद कुरआन में कहते है बेशक अल्लाह जो चाहे हुक्म दे, 
यह उनकी खुद सरी की इन्तहा है और उम्मत गुलाम की इंसानी सरों की पामाली की हद. 
एक सरकश अल्लाह बन कर बोले और लाखों बन्दे सर झुकाए लब बयक कहें, इस से बड़ा हादसा किसी क़ौम के साथ और क्या हो सकता है?
"तुम पर हराम किए गए हैं मुरदार, खून और खिंजीर (सुवर) का गोश्त और जो कि गैर अल्लाह के नाम पर मारा गया हो और जो गला घुटने से मर जाए, जो किसी ज़र्ब से मर जाए या गिर कर मर जाए, जिसको कोई दरिंदा खाने लगे, लेलिन जिस को ज़बह कर डालो."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (3) 
ज़रा जिंदगी की हकीक़तों में जाकर देखिए तो ये बातें बेवकूफ़ी की लगती हैं। आप की भूक कितनी है, हालात क्या हैं? हराम हलाल सब इन बातों पर मुनहसर करता है. 
किसी बादशाह ने मेहतरों को हलाल खोर का ठीक ही लक़ब दिया था, आज का सब से बड़ा हराम खोर रिशवत खाने वाला है. धर्म ओ मज़हब की कमाई खाने वाले भी खुद को हराम खोर ही समझें.
"और अगर तुम बीमार हो, हालते सफ़र मे हो या तुम मे से कोई शख्स इस्तेंजे(शौच) से आया हो या तुम ने बीवियों से कुर्बत की हो, फिर तुम को पानी न मिले तो पाक ज़मीन से तैममुम (भभूति करण) करो यानी अपने चेहरों पर, हाथों पर हाथ फेर लिया करो."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (6)
तैममुम भी क्या मज़ाक है मुसलमानों के मुँह पर, इसकी लोजिक कहीं से भी समझ में नहीं आती, सिवाए इसके की मुँह और हाथों पर धूल मल लेना, हो सकता है जहाँ मोलवी तैममुम कर रहा हो वहां कल किसी जानवर ने पेशाब किया हो? इस से बेहतर तो हवाई तैममुम था जैसे हवाई अल्लाह मियां हैं. मगर इसलाम में पाकी की बड़ी अहमियत है. इस तरह पाकी हफ्तों और महीनों बर क़रार रह सकती है भले ही कपडे साफ़ी हो जाएँ और इन से बदबू आने लगे. 
इसके बर अक्स एक कतरा पेशाब ताजे धुले कपडे में लग जाए तो मुस्लमान नापाक हो जाता है, यहाँ तक कि अगर वोह कपडा वाशिंग मशीन में डाल दिया गया है तो उस के साथ के सभी कपडे नापाक हुए. नापाक कपडे की नजासत को बहते हुए पानी से इसलाम धोता है और जिस्म पर बैठी हुई गंदगी को तैममुम से जमी रहने देता है. 
देखने में आता है बनिए मगरीबी यू पी में मुसलामानों को पास बिठाना पसंद नहीं करते.
"और किसी खास क़ौम की अदावत तुम्हारे लिए बाइस न बन जाए कि तुम अदल (न्याय)न करो. अदल किया करो कि वो तक़वा (तपस्या)से करीब है."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (8)
मुहम्मद कभी कभी मसलहतन जायज़ बात भी कर जाते है.
" अल्लाह लोगों से मुसलमान होने के बाद ही अच्छे कामों के बदले बेहतर आखरत के वादे करता है। बनी इस्राईल को उन के बारह सरदारों की पद प्रतिष्ठा की याद दिलाता है, जो कि युसुफ़ के भाई और हज़रत इब्राहीम के पड़ पोते थे. इन से इस्लामी नमाजें और ज़कात अदा कराता है. मुहम्मद अपने मज़हबी कर्म कांड के साथ चौदह सौ साल पहले पैदा होते है और साढे तीन हज़ार साल पहले पैदा होने वाले यहूदियों से इस्लामी फ़राइज़ अदा कराते हैं, अपने ऊपर ईमान लाने की बातें करते हैं, गोया दीर्घ अतीत में दाखिल होकर इस्लामी प्रचार करते हैं और यहूदियों के नबियों को मुसलमान बनाते हुए वर्तमान में आँखें खोलते हैं. अल्लाह इन से क़र्ज़ लेकर इनके गुनाह दूर करने की बात करता है. मुहम्मद को हर रोज़ कोई न कोई बुरी खबर मिलती रहती है कि कोई टुकडी इनकी समूह से कट गई है. अल्लाह इनको तसल्ली देता है. नव मुस्लिम अंसार ताने देने लग जाते हैं, हम तो अंसार ठहरे, उन को भी मुहम्मद क़यामत तक के लिए बैर और अदावत की वजेह से पुन्य के एक हिस्से से वंचित कर देते हैं. मुहम्मद अपनी किताब को एक नूर बतलाते है, और इसकी रौशनी में ही राह तलाश करने की हिदायत करते हैं जी हाँ! किताब यही हरे हुरूफों वाली जिसमें होई राह नज़र नहीं आती." 
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (9-16)





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment