Monday 28 September 2015

Soorah anaam 6 Part 2 (

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६-
(दूसरी किस्त)
मुसलमानों!
क्या तुम को मालूम है कि इस वक्त दुन्या में और खास कर बर्रे सगीर हिंद (भारत उप महा द्वीप) में आप का सब से बड़ा दुश्मन कौन है?
कोई और नहीं आप को पीछे खडा आप का मज़हबी रहनुमा, आप का आलिमे दीन, मौलाना, मोलवी साहब और मुल्लाजी का गिरोह.
जी हाँ! चौंकिए मत यही हज़रात आप के अस्ल मुजरिम हैं, बजाहिर आप के खैर ख्वाह. ये मजबूरी में पेशेवर हैं क्यूं कि इनको इसमें ढाला गया है,और कोई जीविका इनके लिए नहीं है . इनका ज़रीया मुआश दीन है.
मगर इनके लिए दीन कोई हकीक़त नहीं, जैसा कि आप समझते हैं. यह दीन के करीब तर रह कर इसको उरियाँ हालत में देख चुके हैं. अब इन लिए कुछ बचा नहीं जो देखना बाकी रह गया हो. अब तो इन्हें दीन की पर्दापोस्शी करनी है.
इनको इनकी तालीमी वक्फे में यही सिखलाया गया है. यही ''पर्दापोस्शी".
यह निन्नानवे फी सद आलिमे दीन गरीब, मुफ़लिस, मोहताज घरों के फाका कश बच्चे होते हैं. तालीम के नाम पर जो कुछ पाया है, इसी में फसल जोतना, बोना, सींचना और काटना है.
यह पैदाइशी मुन्तक़िम (प्रति शोधक) होते हैं, इसकी वजह गुरबत के मारे, दूसरी वजह तालीमी विषय का इन पर गलत थोपन है.
ये अव्वल दर्जे के अय्यार, परले दर्जे के ईमान फरोश होते हैं. ये अपने साथ की गई समाजी ना इंसाफी का बदला उस समाज से गिन गिन कर लेते है जिसने इनके साथ न इंसाफी की है.
आप अपने बच्चों को इनके से दूर रखिए क्यूंकि कुरआनी जन्नत में मिलने वाली हूरें और गुलामों की यौन सेवाएँ इन्हें जिंसी बे राह रवी का शिकार बना देती हैं. मस्जिद के हुजरे हों चाहे मदरसे की छत, ये हर जगह बाल शोषण करते हुए पकडे जाते हैं.
यह दीन धरम के खुद साख्ता पैगम्बर और स्वयम्भू बने भगवान आज तक अपने विरोधी इन्सान को, इंसानियत को जी भर के कोसते काटते, गलियां, देते और तरह तरह की उपाधियाँ प्रदान करते चले आए हैं. हम कुछ नहीं कर सकते थे, कानून इनका संरक्षक था और है. हुकूमतें इनकी पुश्त पनाही में थीं और हैं. जनता इनके साथ में थी और है मगर शिक्षित,और जागृति जनता, बेदार अवाम अब सिर्फ हमारे साथ हैं.
हम सुरक्षा महसूस कर रहे हैं. सदियों से ये हमें धिक्कारते चले आ रहे हैं अब हमारी बारी है इनकी पोल पट्टी खोलने की, एक बुद्दी जीवी हजारो भेड़ बकरियों पर भरी पड़ेगा. हम शुक्र गुज़र हैं गूगल आदि वेब साइड्स के, हम शुक्र गुज़र है ब्लॉग के उस मुकाम के अविष्कार के जहाँ कबीर का सच बोला जा सकेगा.अब सदाक़त धडाधड छपेगी और कोई कुछ न बिगड़ पाएगा.
काश कि मुहम्मद एक अदना अरबी शायर ही होते कि उनके सर पर करोरो इंसानी खूनों का अजाब तो न होता.तीन आयतें ३, ४, ५ ऐसी ही मुहम्मद की जाहिलाना बकवास हैं.
''उन्हों ने देखा नहीं हम उनके पहले कितनी जमाअतों को हलाक कर चुके हैं, जिनको हमने ज़मीन पर ऐसी कूवत दी थी कि तुम को वह कूवत नहीं दिया और हम ने उन पर खूब बारिश बरसाईं हम ने उनके नीचे से नहरें जारी कीं फिर हमने उनको उनके गुनाहों के सबब हलाक कर डाला''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (6)
मुहम्मद का रचा अहमक अल्लाह अपने जाल में आने वाले कैदियों को धमकता है कि तुम अगर मेरे जाल में आ गए तो ठीक है वर्ना मेरे ज़ुल्म का नमूना पेश है, देख लो. उस वक्त के लोगों ने तो खैर खुल कर इन पागल पन की बातों का मजाक उडाया था मगर जिहाद के माले-गनीमत की हांडी में पकते पकते आज ये पक्का ईमान बन गया है. यही अलकायदा और तल्बानियों का ईमान है. ये अपनी मौत खुद मरेंगे मगर आम बे गुनाह मुसलमान अगर वक़्त से पहले न चेते तो गेहूं के साथ घुन की मिसाल बन जायगी.
''और ये लोग कहते हैं कि इनके पास कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं भेजा गया और अगर हम कोई फ़रिश्ता भेज देते तो सारा किस्सा ही ख़त्म हो जाता, फिर इन को ज़रा भी मोहलत न दी जाती.''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (8)
यानी फ़रिश्ता न हुवा कोहे तूर पर झलकने वाली इलोही की झलक हुई कि उसके दिखते ही लोग खाक हो जाते. देखें कि एक हदीस में इसके बर अक्स मुहम्मद क्या कहते हैं---
'' मुहम्मद सहबियों की झुरमुट में बैठे थे कि एक शख्स आकर कुछ सवाल पूछता है - - -१- ईमान क्या है? २-इस्लाम क्या है? ३-एहसान क्या है? और क़यामत कब आएगी? मुहम्मद उसको अपनी जेहनी जेहालत से लबरेज़ बेतुके जवाब देते हैं. उसके जाने के बाद लोगों से पूछते हैं कि जानते हो यह कौन थे? लोगों ने कहा अल्लाह के रसूल ही बेहतर जानते हैं. फ़रमाया जिब्रील अलैहिस्सलाम थे दीन बतलाने आए थे.
( बुखारी-४७)
ये है मुहम्मद का कुरआनी और हदीसी दो विरोधाभासी अवसर वादिता. यह मोह्सिने इंसानियत नहीं थे बल्कि इंसानियत कि जड़ों में मट्ठा डालने वाले नस्ल-ए-इंसानी के बड़े मुजरिम थे.
कुरआन में अल्लाह बार बार कहता है कि उसे तमस्खुर (हंसी-मज़ाक) पसंद नहीं. लोग तमस्खुर उसी शख्स से करते है जो बेवकूफी कि बातें करता है.खुद साख्ता बने अल्लाह के रसूल कुरआन में ऐसी ऐसी बे वज़्न और बेवकूफी की बातें करते हैं कि हंसी आना लाजिम है, इस पर तुर्रा ये कि ये अल्लाह की भेजी हुई आयतं हैं.हर दिन एक एक टुकडा अल्लाह की आयत बन कर नाजिल होता है. इस पर काफिर कहते हैं कि
'' क्यूं नहीं तुम्हारा अल्लाह यक मुश्त मुकम्मल किताब आसमान से सीढी लगा कर किसी फ़रिश्ते के मार्फ़त एक बार में ही भेज देता.'' देखिए कि बन्दों के इस माकूल सवाल का नामाकूल अल्लाह का जवाब - - -''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (10)
और वाकई आप (खुद साख्ता पैगम्बर मुहम्मद को अल्लाह भी एह्तरामन आप कहता है. ये कमीनगी आलिमान दीन के क़लम का ज़ोर है) से पहले जो पैगम्बर हुए हैं उन के साथ भी इस्तेह्जा (मज़ाक) किया गया है फिर जिन लोगों न इन के साथ तमस्खुर (मज़ाक) किया उन को एक अजाब न आ घेरा जिसका वह मजाक उड़ा रहे थे''

ये है मुहम्मद का कुरआनी और हदीसी दो विरोधाभासी अवसर वादिता. यह मोह्सिने इंसानियत नहीं थे बल्कि इंसानियत कि जड़ों में मट्ठा डालने वाले नस्ल-ए-इंसानी के बड़े मुजरिम थे.कुरआन में अल्लाह बार बार कहता है कि उसे तमस्खुर (हंसी-मज़ाक) पसंद नहीं. लोग तमस्खुर उसी शख्स से करते है जो बेवकूफी कि बातें करता खुद.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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